गायकवाड़ की हरकत के बाद शिवसेना की ज्यादती बर्दाश्त करना बीजेपी की मजबूरी क्यों है
बीजेपी लगातार महाराष्ट्र में अपनी ताकत बढ़ा रही है. शिवसेना की राजनितिक ज़मीन भी लगातार खिसकती जा रही है. यही वजह है की पार्टी सरकार को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती.
-
Total Shares
वैसे तो सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वाद विवाद और झड़प एक आम बात है, लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब सरकार के दो मंत्री ही आपस में भीड़ जायें. लोकसभा में सरकार की कुछ ऐसी ही फजीहत हुई.
शिवसेना के सांसदों ने नागरिक उड्डयनमंत्री अशोक गजपति राजू को सदन के भीतर ही घेर लिया और इस से पहले की स्थिति और बिगड़ जाये और हाथा पाई की नौबत आती गृह मंत्री राजनाथ सिंह, एस एस अहलुवालिया और स्मृति ईरानी को बीच बचाव करना पड़ा. लेकिन निश्चय ही सरकार के लिए ये बहुत ही शर्मनाक क्षण था. गजपति राजू ने रविन्द्र गायकवाड की बात का जवाब देते हुए कहा की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता जिसके बाद शिवसेना के सांसदों ने अनंत गीते के नेतृत्व में गजपति राजू का घेराव किया.
नागरिक उड्डयनमंत्री अशोक गजपति राजू का घेराव किया गया
महाराष्ट्र चुनाव के बाद से ही शिवसेना और बीजेपी के बीच राजनीतिक खींचतान जारी है. बीजेपी लगातार महाराष्ट्र में अपनी ताकत बढ़ा रही है. शिवसेना भी ये महसूस कर रही है कि उसकी राजनीतिक ज़मीन लगातार खिसकती जा रही है. यही वजह है की पार्टी सरकार को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती भले ही वो खुद बहुत ही कमजोर विकेट पर क्यों न हो. गायकवाड के मुद्दे पर भी शिवसेना ने साफ कर दिया था की अगर उन्हें बोलने की इजाजत नहीं दी गई और समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो वो विरोध प्रदर्शन करेंगे, भले ही इस से सरकार की छीछालेदार होती है तो हो.
शिवसेना का ये भी मानना है की सरकार जानबूझकर मामले को घसीट रही है क्योंकि उनका मकसद है शिवसेना को नीचा दिखाना. यही वजह है कि शिवसेना ने यहां तक धमकी दे डाली कि अगर जल्दी ही कोई समाधान नहीं निकला गया तो मुंबई से विमानों को उड़ने नहीं दिया जायेगा.
वहीं बीजेपी के लिये ये एक राजनीतिक कशमकश की स्थिति है. एक तरफ सरकार ये सन्देश नहीं देना चाहती कि वो गायकवाड को बचने की कोशिश कर रही है वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रपति चुनाव में कुछ ही महीने रह गए हैं और उनके हर एक वोट कीमती है. ऐसे में सरकार की कोशिश है कि वो अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चले.
फिलहाल स्थिति ये है की अगर एनडीए के सभी घटक दल अपना एक एक मत भी अपने उम्मीदवार को देते हैं तब भी इलेक्टोरल कॉलेज में उन्हें बीस हज़ार वोट और चाहिए चुनाव जीतने के लिए. राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री ने दस अप्रैल को एनडीए के नेताओं को डिनर पर बुलाया है. शिवसेना सरकार की मजबूरी को बखूबी समझ रही है इसीलिए पार्टी ने यहां भी साफ कर दिया है की अगर गायकवाड मसले का समाधान नहीं हुआ तो वो इस मीटिंग का भी बहिष्कार कर सकते हैं.
गायकवाड के मुद्दे पर सहयोगी दलों के साथ तनाव और सहयोगी दलों के बीच यानी टीडीपी और शिवसेना के बीच तनाव सरकार और बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. शिवसेना पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए उम्मीदवार के खिलाफ वोट कर चुकी है. इस बार भी अगर शिवसेना ऐसा फैसला करती है तो एनडीए उम्मीदवार की जीत खटाई में पड़ सकती है और शिवसेना सरकार को झुकाने के लिये इसी बात का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.
प्रधानमंत्री के सामने अब चुनौती ये है कि न सिर्फ उन्हें अपने सहयोगी दलों को अपने साथ रखना है बल्कि कुछ अन्य छोटी पार्टियों का समर्थन भी हासिल करना है. ऐसे में शायद उन्हें अपने इस strange bedfellow को साथ रखने के लिए शायद समझौता करना ही पड़ेगा जो सरकार की छवि को धक्का पहुंचा सकती है.
ये भी पढ़ें-
विनम्र होकर गायकवाड़ ने पच्चीस चप्पल मारी, क्या होता अगर गुस्से में होते
आपकी राय