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Updated: 15 जुलाई, 2016 01:53 PM
कुमार विक्रांत
कुमार विक्रांत
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राहुल गांधी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर आखिरकार अपनी बात मनवाने में काफी हद तक कामयाब रहे. उनकी पसंद दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को यूपी में कांग्रेस का सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. शीला दीक्षित यूपी के बड़े ब्राह्मण नेता पं. उमाशंकर दीक्षित की बहू हैं. शीला अब याद दिलाती हैं कि, मैं यूपी की बहू हूं, ब्राह्मण हूं, ये सच्चाई है. प्रशांत की रणनीति के तहत शीला के दिल्ली में किए गए विकास को वो प्रदेश में कांग्रेस का हथियार बनाएंगे.

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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित यूपी में कांग्रेस की सीएम उम्मीदवार

दरअसल प्रशांत का मानना है कि, प्रदेश के नेताओं के बजाय बड़े कद वाली शीला की पैकेजिंग करना ज्यादा मुफीद होगा. वैसे एक जमाने में यूपी से सांसद बनकर पीएमओ की मंत्री रहीं शीला दिल्ली में 15 साल मुख्यमंत्री रहने के बाद अब फिर यूपी लौटी हैं, वो भी कांग्रेस का सीएम चेहरा बनकर. केजरीवाल के उदय के बाद दिल्ली में शीला का पतन हो गया, तो यूपी कांग्रेस में उनका उदय हो गया. अब शीला भी कहती हैं कि, यूपी के लोग भी दिल्ली आते हैं, देखते हैं कि, विकास क्या होता है. मेंरा एजेंडा यूपी का विकास ही होगा.

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कभी सोनिया के खिलाफ चुनाव लड़े संजय सिंह को कैम्पेन कमेटी की कमान-

अमेठी राजघराने से आने वाले और राजपूत नेता के तौर जाने जाने वाले राज्यसभा सांसद संजय सिंह को कैम्पेन कमेटी की कमान सौंप दी गई है. संजय सिंह एक जमाने में संजय गांधी के खासे करीबी रहे हैं. राजीव गांधी से अलग होकर वी पी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. संजय सिंह का नाम मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी सैय्यद मोदी हत्याकांड से भी जुड़ा, जिससे बाद में वो बरी हो गए. 1998 में उन्होंने अमेठी से गांधी परिवार के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा को हराकर सांसद बने. फिर1999 में अमेठी से बीजेपी के ही टिकट पर सोनिया गांधी के खिलाफफ लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए.

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सांसद संजय सिंहअपनी पत्नी अमिता सिंह के साथ

हालांकि 2004 लोकसभा चुनाव के पहले वो कांग्रेस में वापस आ गए और राहुल गांधी के सियासत में उतरने पर उनका प्रचार किया. 2009 में अमेठी से सटे सुल्तानपुर से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव से पहले असम से पार्टी ने उनको राज्यसभा भेज दिया. तब 2014 लोकसभा चुनाव में संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह सुल्तानपुर से वरुण गांधी के खिलाफ लड़ीं और हार गईं

कांग्रेस का जाति कार्ड-

कांग्रेस की रणनीति यूपी की सियासत में जातीय कार्ड खेलने की रही. प्लान के मुताबिक, राजपूत-ब्राह्मण के साथ मुस्लिम को जोड़कर पार्टी बड़े वोट बैंक पर निशाना साधेगी. साथ ही यादवों को छोड़कर ओबीसी खासकर कुर्मी और दलितों में जाटव को छोडकर बाकी समाज को जोड़ने की कोशिश करेगी. ग्लैमर का तड़का भी रहे, लेकिन खालिस सियासी, इसलिए राजबब्बर को पहले ही पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपी जा चुकी है.

इसी रणनीति के तहत पार्टी ने अपनी टीम तैयार की है. शीला के साथ ही यूपी के बड़े ब्राह्मण नेता प्रमोद तिवारी को समन्वय समिति का चेहरा बनाया गया है. कुर्मी समाज से आने वाले और राजघरानों में पैठ रखने वाले पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह को वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया गया है. संजय सिंह और प्रमोद तिवारी के कमेटी में जितिन प्रसाद, रीता बहुगुणा जोशी और राजीव शुक्ला सरीखे ब्राह्मण नेताओं को जगह दी गई है. इसी लिहाज से गड़रिया समाज से ताल्लुक रखने वाले पूर्व सांसद राजाराम पाल को भी वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया गया है.

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वैसे अपने समीकरण के संकेत तो कांग्रेस ने पहले ही दे दिए थे, जब अपने सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आज़ाद को पार्टी का प्रभारी महासचिव बनाया था. अब नरेन्द्र मोदी के खिलाफ के खिलाफ 2014 लोकसभा में आपत्तिजनक भाषण देने वाले सहारनपुर से अपने लोकसभा प्रत्याशी इमरान मसूद को भी पार्टी ने वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाया है. इसके अलावा मुस्लिम नेता सलमान खुरशीद और मोहसिना किदवई को भी समितियों में रखा गया है. कुल मिलाकर कांग्रेस की रणनीति के केन्द्र में राजपूत, ब्राह्मण और मुस्लिम होंगे और इसी के जरिये वो मैदान में उतर रही है.

सुर्खियों में बने रहने की कोशिश-

कांग्रेस सुर्खियों में भी बनी रहना चाहती है. इसीलिए पहले राजबब्बर का ऐलान किया और फिर बाद में शीला, संजय और प्रमोद का. दो टुकड़ों में ऐलान का मकसद सिर्फ ज्यादा सुर्खियां बटोरना रहा. इसीलिए प्रियंका गांधी पर वो सस्पेंस बनाए हुए हैं. लेकिन रायबरेली अमेठी के बाहर प्रियंका प्रचार कर सकती हैं, ये पार्टी बार बार संकेत देती हैं, सिर्फ इसीलिए कि, सुर्खियां बनीं रहें.

कांग्रेस का सपना-

यूपी की सत्ता से बाहर कांग्रेस शीला को चेहरा बनाकर नई टीम के जरिये पूरी ताकत झोंकने जा रही है, अभी राज्य में 4 नम्बर की पार्टी कागजी रणनीति और चेहरों के साथ मैदान में उतरने को तैयार है. पार्टी इसके जरिये सफलता पाने ख्वाब जरूर एक बार फिर देख रही है, पर ये ऐसा ख्वाब है जिसे पार्टी 1989 के बाद से हर चुनाव में देखती है, लेकिन बाद में हाथ मलती रह जाती है.

लेखक

कुमार विक्रांत कुमार विक्रांत @kumar.v.singh.9

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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