इन आंकड़ों के दम पर बीजेपी कहती है कि आयेगा तो मोदी ही
भाजपा के साथ-साथ सोशल मीडिया के मीम्स और गली मोहल्ले के लोग भी ये कहते हैं कि 'आएगा तो मोदी ही.' पर मोदी सपोर्टर्स का ये कहना आखिर क्यों वाजिब है? जानिए, आंकड़ों का ये पूरा विश्लेषण...
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आप के दिमाग में बार-बार आता होगा कि आखिर किस आधार पर मोदी और शाह बार-बार 300 सीटों का दावा कर रहे हैं! वो क्या वजह है जिसके चलते बीजेपी इतना आत्मविश्वास से भरी है? क्यों बीजेपी बार-बार कह रही है कि आयेगा तो मोदी ही? इसके पीछे कई कारण हैं. संगठन का मजबूत होना. प्रशासन पर असर होना और पार्टी की रणनीति लेकिन असल वजह है आंकड़े.
दरअसल बीजेपी की जीत का पिछली बार का अंतर इस आत्म विश्वास की वजह है. 2014 के चुनाव में जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो 312 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत का अंतर 1 लाख से ज्यादा था. इनमें से 207 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. इतना ही नहीं इनमें से 42 सीटों पर जीत का अंतर 3 लाख से ज्यादा था. इसी तरह 75 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को अपने प्रतिद्वंद्वी से 2 लाख वोट ज्यादा मिले. इसके अतिरिक्त 38 सीटों पर डेढ़ लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. ये सभी सीटें मिलकर 207 बनती हैं जो उसकी कुल सीटों का करीब 75 फीसदी. दूसरे शब्दों में बीजेपी को हराना है तो इन सीटों पर पचास हज़ार से डेढ़ लाख तक वोटरों को बीजेपी से मुख्य विपक्षी पार्टी की तरफ आना होगा.
भाजपा 2019 इलेक्शन के दौरान संगठन के तौर पर बहुत मजबूत है.
संगठन के मामले में बीजेपी बेहद मजबूत हालत में है. हर बूथ पर उसके कार्यकर्ता हैं. दूसरी पार्टियों के जहां टेंट तक नहीं हैं वहा उसके कार्यकर्ताओं के कई वीडियो अपने पक्ष में वोट डलवाते वायरल हो चुके हैं. वोट डालने से पहले कार्यकर्ता एक-एक वोटर को मनाने में जुटा है. बूथ मेनेजमेंट के अलावा पार्टी हर सीट पर उम्मीदवारों के चयन, संसाधनों के उपयोग, बेतहाशा धन शक्ति, तकनीकी दक्षता और सत्ता में होने के कारण प्रशासन पर पकड़ ऐसे कारण हैं जो बीजेपी को दूसरों के मुकाबले बढ़त देते हैं.
बीजेपी के पास इसके अलावा सोशल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है. अगर चुनाव के आखिरी तीन दौर को छोड़ दें तो कांग्रेस सोशल मीडिया पर पिछड़ती ही नज़र आई. बूथ लेवल तक 5 लोगों की टीम सोशल मीडिया हैंडल कर रही है जबकि कांग्रेस समेत बाकी दल अभी इस मामले में केंद्रीय टीम तक ही सीमित हैं. ऐसे में जब कोई मसला वायरल करना हो तो बीजेपी की पावर विपक्ष से कहीं ज्यादा है. कई बार तो ऐसी बात भी सच दिखने लगती है जो वास्तव में हुई ही न हो क्योंकि उसे सोशल मीडिया के हर प्लेटफार्म पर फैला दिया जाता है.
गुजरात में बीजेपी ने सभी 26 सीटों में से 24 पर 1 लाख या उससे अधिक के अंतर से जीत हासिल की थी. बीजेपी के मौजूदा सांसदों में प्रीतम मुंडे ऐसी सांसद हैं जिन्होंने अपनी सीट 6 लाख 96 हजार 321 वोटों के अंतर से जीती है. हालांकि, यह आम चुनाव न होकर उपचुनाव था जो उनके पिता गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद अक्टूबर 2014 में हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद वडोदरा सीट 5 लाख 70 हजार 128 और वाराणसी सीट 3 लाख 71 हजार 785 वोट से जीती थी.
भले ही कोई पप्पू कहे या कमज़ोर राहुल गांधी अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने मोदी की अजेय होने की इमेज को कमज़ोर किया है वो अकेले ऐसे योद्दा हैं जिन्होंने देश में माहौल बनाया कि मोदी को भी हराया जा सकता है. बल्कि एक बड़ा तबका मान रहा है कि मोदी 2019 की लड़ाई शायद हार जाते लेकिन राहुल के पास अपना संगठन और आधार उतना मजबूत नहीं है. उसके पास संसाधन नहीं है. ऐसे में सिर्फ विपक्षी एकता का हथियार बचता है अफसोस विपक्ष 2014 के मुकाबले काफी मजबूती के साथ एक है लेकिन फिर भी उतना एक नहीं है.
बीजेपी को इस चुनाव में दूसरा सबसे बड़ा लाभ बिखरे विपक्ष की वजह से होता दिख रहा है. सभी दल मोदी को हटाने के दावे तो कर रहे हैं लेकिन वे आपस में एकजुट नहीं हैं. जिस महागठबंधन की चर्चा बड़े जोर-शोर के साथ शुरू हुई थी वह महज उत्तर प्रदेश तक सिमट गया है.
लेकिन इन हालात के बावजूद आंकड़े का एक हिस्सा कांग्रेस के लिए उम्मीद भी जगाता है. 2014 के चुनाव में कुल 55 करोड़ 38 लाख 01 हजार 801 वोट पड़े थे. इसमें से बीजेपी को 17 करोड़ 16 लाख 60 हजार 230 वोट मिले थे. इसके विपरीत कांग्रेस को 10 करोड़ 69 लाख 35 हजार 942 वोट मिले थे. इस तरह से बीजेपी का वोट शेयर 31 फीसदी था जबकि कांग्रेस का महज 19.31 फीसदी. अगर पांच फीसदी वोट कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं तो हालात बदल सकते हैं. कांग्रेस के लिए इतने वोट लाना इसलिए मुश्किल नहीं है क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने 12.20 प्रतिशत का लाभ लिया था और कांग्रेस ने 9.24 प्रतिशत वोट गंवाए थे. इनमें से पांच फीसदी वोट वापस लाना मुश्किल भी नहीं है.
बात अगर सीट शेयर की करें तो 2014 के चुनाव में बीजेपी का सीट शेयर 51.93 फीसदी था जबकि कांग्रेस महज 8.01 फीसदी पर थी. यही नहीं बीजेपी के अलावा किसी भी पार्टी का सीट शेयर प्रतिशत दहाई से नीचे था. जाहिर है कि इतनी बड़ी गिरावट को रोकने के लिए विपक्ष का एकजुट होना जरूरी था जो हुआ नहीं. ऐसे में बीजेपी अगर कह रही है कि आएगा तो मोदी ही तो उसकी एक वजह यह भी है.
कांग्रेस के पक्ष में आंकड़े-
बीजेपी ने पिछली बार कुछ राज्यों में क्लीन स्वीप कर डाला था. बीजेपी ने गुजरात की सभी 26 व राजस्थान की भी सभी 25 सीटें जीती थीं. इसी तरह एम.पी. की 29 में से 27 और छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. उत्तर प्रदेश की 80 में से 73, महाराष्ट्र की 48 में से 41 और बिहार की 40 में से 32 सीटें एन.डी.ए. के पास थीं. यानी इन राज्यों की कुल 259 सीटों में से बीजेपी/एन.डी.ए. के पास 237 सीटें थीं. बीजेपी का हिस्सा इसमें 208 सीटों का था. अब राजस्थान, एम.पी. और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारें हैं. महाराष्ट्र, यू.पी. और बिहार में गठबंधन की टक्कर मिल रही है. ऐसे में यहां अगर घाटा पड़ा तो दिक्कत हो जाएगी. हालांकि बीजेपी इस बार पश्चिम बंगाल और लाभ पाने की उम्मीद कर रही है जिस पर ही सारा खेल टिका हुआ है.
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