कांगड़ा ही तय करता है कि, किसे मिलेगा हिमाचल का ताज
हिमाचल में चुनाव होने वाले हैं और सभी की नजर कांगड़ा है. अतः कहा जा सकता है जो कांगड़ा में बाजी मारेगा वही सत्ता की मलाई खाएगा.
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वैसे तो हिमाचल प्रदेश का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां 1990 से, भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं लेकिन एक बात और भी अहम है. यहां चुनाव के लिहाज़ से कांगड़ा जिला काफी अहमियत रखता है. वर्ष 1985 के बाद से कांगड़ा से होकर ही शिमला का रास्ता निकलता आ रहा है. 68 विधानसभा सीटों वाले हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले में अकेले 15 विधानसभा सीटें हैं. जिसका इतिहास है कि जो भी पार्टी यहां ज्यादा सीटें जीतती है, वही राज्य में सरकार भी बनाती है. पिछले 32 सालों से कांगड़ा जिला ही यह तय कर रहा है कि शिमला में कौन सी पार्टी राज करेगी. अतः कहा जा सकता है कि कांगड़ा जिला ही असली किंग मेकर है.
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कांगड़ा एक मजबूत स्तम्भ है राहुल और मोदी की भी कांगड़ा में रैलियां
कांगड़ा जिले की एहमियत हो देखते हुए इस बार भी दोनों प्रमुख पार्टियां, कांग्रेस और भाजपा कांगड़ा में पूरा जोर लगाए हुए हैं. जहां कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी अकेले कांगड़ा में ही तीन चुनावी रैलियां कर चुके हैं वहीं भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनसे कहीं पीछे नहीं दिख रहे. कांगड़ा जिले की महत्ता इसी से पता चल जाती है. यही वजह है कि प्रदेश के दोनों प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस शुरू से ही इस जिले को सबसे अधिक महत्व देते आए हैं. इस जिले का राजनीतिक कद सीटें ज्यादा होने के कारण तो है ही, इसके साथ ही जिले ने एक तरफा लीड भी चुनावों में दी है, जिसके कारण उसी पार्टी की सरकार भी राज्य में बनना तय होता है.
कांगड़ा एक ऐसा पड़ाव है जिसने हिमाचल के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई है
साल 2012 का नतीजा
पिछली बार, यानी 2012 के चुनाव में यहां की 15 सीटों में से कांग्रेस को 10 सीटें मिली थीं, बीजेपी को 3 और निर्दलीय उम्मीदवारों के हाथों 2 सीटें लगी थीं. बाद में निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस का समर्थन किया था. इस तरह से वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में 2012 में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
2007 का परिणाम
अब बात वर्ष 2007 की. 2007 में भाजपा को नौ सीटें प्राप्त हुई थी और कांग्रेस को पांच सीटें. एक सीट बसपा को मिली थी. चूंकि भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुई थीं फलस्वरूप धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी.
2003 का नतीजा
वर्ष 2003 के चुनाव में कांग्रेस को 11 सीटें मिली और भाजपा को 4 सीटें. प्रदेश में इस बार भी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी.
2017 का ये चुनाव जितना ज़रूरी भाजपा के लिए है उससे ज्यादा ये कांग्रेस के लिए है
1998 का परिणाम
वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा ने कांगड़ा में 11 सीटें जीतीं थी. कांग्रेस को मात्र 5 सीटें मिली थी. इस साल इस जिले में, 16 विधानसभा सीटें हुआ करती थी. इसी वर्ष जब निर्दलीय की मदद से सरकार बनी थी तो इस समय भी यहां से ही जीते निर्दलीय रमेश धवाला कांगड़ा से ही थे. क्योंकि भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही 31 -31 सीटें मिली थी. और प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी.
1993 का नतीजा
साल 1993 में कांगड़ा जिले में कांग्रेस को 13 और भाजपा को 3 सीटें मिली. इस साल इस जिले में 16 सीटें हुआ करती थी. इस बार प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी.
1990 का परिणाम
इस साल कांगड़ा जिले में भाजपा को 12 सीटें मिली थी और शांता कुमार के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी.
1985 के परिणाम
वर्ष 1985 के विधानसभा चुनावों में कांगड़ा जिले में कांग्रेस को 12 सीटों पर विजयी मिली थी और वीरभद्र सिंह को कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया था.
इस तरह से बिलकुल साफ है कि 32 सालों से कांगड़ा जिला ही यह तय करता है कि हिमाचल पर राज कौन करेगा. हालांकि इस बार देखना होगा कि यह जिला इतिहास पर कायम रहता है या फिर इतिहास बदलता है.
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