भागवत की सफाई, मोदी का मस्जिद दौरा - देश तो नहीं संघ जरूर बदल रहा है
कांग्रेस अगर ये समझती है कि बीजेपी ने उसे 'मुस्लिम पार्टी' साबित कर दिया है, तो अब फिक्र की जरूरत नहीं. बीजेपी अब खुद को 'मुस्लिम विरोधी पार्टी' की इमेज से बाहर आने में जी जान से जुटी है - और संघ भी इस मिशन में शामिल है.
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अब तो बिलकुल नहीं लगता कि किसी को भी पाकिस्तान जाने की जरूरत पड़ेगी. ऐसा इसलिए नहीं कि इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन गये - बल्कि, इसलिए क्योंकि मुस्लिमों को लेकर अपने सनातन स्टैंड पर संघ प्रमुख मोहन भागवत सफाई देने लगे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश-विदेश की मस्जिदों का दौरान करने लगे हैं.
फिर तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह और साध्वी निरंजन ज्योति जैसे बीजेपी नेता लोगों को पहले की तरह ये भी नहीं बताने वाले कि किस हिंदू को कितने बच्चे पैदा करने चाहिये.
'...क्योंकि मुस्लिमों के बगैर हिंदुत्व ही खतरे में पड़ जाएगा' - मोहन भावगत का भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने को लेकर ये नया नजरिया है. ये हृदय परिवर्तन सिर्फ 2019 तक ही वैलिड है या आगे भी, अभी नहीं बताया गया है.
संघ प्रमुख को सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में शिरकत करने वालों को लेकर खूब चर्चा हुई. जिनकी चर्चा हुई वे नेता तो नहीं आये लेकिन जेडीयू प्रवक्ता केसी त्यागी, जया जेटली, कुमारी शैलजा और सोनल मानसिंह ने मौजूदगी जरूर दर्ज करायी. मगर सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान खींचा नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने. कोई और शो होता तो लगता नवाजुद्दीन अपनी फिल्म 'मंटो' के प्रमोशन के लिए इवेंट विशेष का हिस्सा बने हैं, लेकिन बताया गया कि वो तो फिल्म का प्रीमियर छोड़ कर संघ के कार्यक्रम में पहुंचे थे.
संघ के कार्यक्रम 'भविष्य का भारत' में नवाजुद्दीन सिद्दीकी सिर्फ पहुंचे भर नहीं थे. नवाजुद्दीन को संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ बैठे भी देखा गया. मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा का ये हॉट टॉपिक रहा.
RSS supremo Mohan Bhagwat with @Nawazuddin_S in Delhi today .. pic.twitter.com/IVuDZoqHyI
— Faridoon Shahryar (@iFaridoon) September 17, 2018
ये तो स्वाभाविक ही है, जिस विचारधारा को मानने वाले मुस्लिम टोपी पहनने से इंकार करें और फिर अचानक मस्जिद-मस्जिद घूमते नजर आने लगें, उसी विचारधारा के पुरोधा यू-टर्न लेते दिखें तो चर्चा तो होगी ही. योगी आदित्यनाथ जैसे नेता ताजमहल परिसर में झाडू लगाने लगे, फिर अटकलें तो शुरू होंगी ही. वैसे प्रधानमंत्री मोदी की ही तरह मगहर में यूपी के सीएम योगी आदित्यानाथ को भी मुस्लिम टोपी पहनाने की कोशिश हुई थी, जिसे उन्होंने सफलता पूर्वक नाकाम कर दिया था.
संघ की ये स्कीम सिर्फ 2019 तक वैलिड है या आगे भी?
सवाल ये है कि जो भागवत मुस्लिम आबादी को काउंटर करने के लिए हिंदू औरतों को ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देते रहे हैं. जो संघ प्रमुख कहा करते रहे - 'मुस्लिम इबादत से मुस्लिम हैं, लेकिन राष्ट्रीयता के नाते वे हिंदू ही हैं.' बिलकुल वही संघ प्रमुख इतने बदले बदले क्यों नजर आ रहे हैं? दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा, "हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है. हिंदू राष्ट्र है इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं होता. जिस दिन ये बात कही जाएगी कि यहां मुस्लिम नहीं चाहिए, उस दिन वो हिंदुत्व नहीं रहेगा."
बरसों बाद यूनिफॉर्म बदलने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक का ताजा विचार तो सत्ता को लेकर उसका मोह और जीत को लेकर आश्वस्ति की कमी ही लगती है. ऐसा भी लगता है जैसे देर आया दुरूस्त आया की तर्ज पर राजधर्म का कोई एहसास हुआ हो. आखिर 2019 में अंबेडकर के साथ साथ अटल बिहारी वाजपेयी के इंसानियत का संदेश भी तो सुनाया ही जाना है.
एक डिस्क्लेमर भी - 'नागपुर कॉल सेंटर नहीं है'
मुस्लिम समुदाय को लेकर अपना पक्ष रखने के साथ ही साथ मोहन भागवत उस बात का भी खंडन कर रहे हैं जिसे 'नागपुर से कंट्रोल होना' कहा जाता रहा है.
संघ के कार्यक्रम में मोहन भागवत कहते हैं, "जो एक दल चलता है, उस दल में स्वयंसेवक क्यों हैं? बहुत सारे पदाधिकारी क्यों हैं? उस दल के आज पंथ प्रधान हैं, राष्ट्रपति हैं. ये सभी स्वयंसेवक हैं. लेकिन, जो लोग कयास लगाते रहते हैं कि नागपुर से फोन आता होगा, ये बिल्कुल गलत बात है."
अपनी बात के सपोर्ट में मोहन भागवत की दलील है, "एक तो वहां काम करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता मेरी आयु के हैं या मुझसे सीनियर हैं. संघ कार्य का जितना मेरा अनुभव है कदाचित उससे अधिक उनको अनुभव अपनी राजनीति का है. उनको राजनीति चलाने के लिए किसी सलाह की आवश्यकता नहीं है. हम उस बारे में कुछ नहीं जानते. हम सलाह दे भी नहीं सकते."
नागपुर कंट्रोल की बात तो पिछले चार साल से हो रही है. विरोधियों का क्या उनका तो काम ही यही है. संघ को इससे घबराहट क्यों और कब से होने लगी?
ऐसा भी तो नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी को कोई ऐक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर मानता हो. लगता तो नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी को कोई ऐसा समझने की भूल कर रहा होगा. ये बात तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर भी लागू नहीं हुई कभी. फिर संघ प्रमुख भागवत को ऐसी सफाई देने की जरूरत क्यों पड़ने लगी? सिर्फ इसलिए क्योंकि आम चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है? और कोई साफ वजह फिलहाल तो नहीं लग रही है.
अभी अभी तीन तलाक अध्यादेश पर भी मोदी कैबिनेट ने मुहर लगा ही दी है - ताकि एकजुट मुस्लिम वोट बैंक को बांटा जा सके. खास बात ये है कि कांग्रेस कोई तर्कसंगत बात नहीं कह पा रही है. ऊपर से सत्ताधारी बीजेपी इसमें रोड़ा डालने का इल्जाम सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर लगा रही है. मनरेगा से लेकर माओवाद तक और महान विभूतियों से लेकर कांग्रेस काल की पेशकश आधार तक - मोदी सरकार नयी पैकेजिंग के साथ अपना ठप्पा लगाकर बेच रही है, बीजेपी विरोधियों का तो यही दावा है. कहीं 'मुस्लिम तुष्टिकरण' को लेकर भी कांग्रेस नेताओं को ऐसे ही दावे तो नहीं करने पड़ेंगे? संघ और बीजेपी नेतृत्व के ताजातरीन लक्षण तो यही बता रहे हैं.
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