युवाओं के लिए खुद को आधुनिक बनाने की कोशिश में संघ?
भले ही आरएसएस का ही एक तबका यूनीफॉर्म में बदलाव का विरोध कर रहा हो लेकिन ऐसा करना समय की जरूरत और संघ की दूरगामी रणनीति का हिस्सा है.
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बदलते समय के साथ तालमेल बैठाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ने अपने यूनीफॉर्म में बदलाव करने का फैसला किया है. अब तक आरएसएस की पहचान रहा खाकी हाफ पैंट जल्द ही इतिहास बन सकता है. आरएसएस अपने स्वंयसेवकों के लिए ट्राउजर यानी फुल पैंट लाने पर विचार कर रहा है. अगर सबकुछ योजना के मुताबिक चला तो बहुत ही जल्द आरएसएस के स्वयंसेवक एकदम नए कलेवर में नजर आ सकते हैं. आरएसएस के इस बदलाव से कई लोग हैरान होंगे लेकिन इसके पीछे एक खास सोच और जरूरत नजर आती है, आइए जानें.
कौन सा यूनीफॉर्म है प्रस्तावितः
पिछले हफ्ते रांची में हुई संघ की एक मीटिंग में सदस्यों के सामने स्वंयसेवकों ने नई यूनीफॉर्म में परेड की थी. अब इस प्रस्तावित बदलाव को चर्चा के लिए अगले साल मार्च में संघ की निर्णय लेने वाली सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के सामने रखा जाएगा. दरअसल आरएसएस के कुछ सदस्य इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं. आरएसएस की प्रस्तावित यूनिफॉर्म में दो तरह के विकल्पों पर विचार किया जा रहा हैं. ये यूनीफॉम या तो एक टी-शर्ट, काला ट्राउजर, अभी के जैसी काली कैप, सफेद कैनवस का जूता और खाकी मोजा होगी या एक पूरी बांह की सफेद शर्ट, पैंट्स (इसका प्रस्तावित रंग खाकी, नेवी ब्लू या ग्रे है), काले लेदर या रेक्सीन के जूते, खाकी मोजे, एक कैनवस बेल्ट और एक काली कैप होगी. अब तक आरएसएस के स्वंयसेवकों की यूनीफॉर्म सफेद शर्ट, खाकी पैंट, लेदर के बेल्ट, काले लेदर या रेक्सीन के जूते और खाकी मोजा रही है.
पहली बार पूरी यूनीफॉर्म में होगा बदलावः
अपने यनीफॉर्म में आरएसएस पहले भी बदलाव करता रहा है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बदलाव पहली बार होगा. आरएसएस के यूनीफॉर्म में आखिरी बार बदलाव 2010 में हुआ था जब उसने कैनवस बेल्ट की जगह लेदर बेल्ट को अपनाया था. 1925 में आरएसएस की स्थापना से लेकर 1939 तक उसकी यूनीफॉर्म पूरी खाकी थी. लेकिन 1940 में पहली बार सफेद शर्ट को यूनीफॉर्म में शामिल किया गया. 1973 में लेदर के जूतों की जगह लॉन्ग बूट को शामिल किया गया और बाद में विकल्प के तौर पर रेक्सीन के जूतों की भी इजाजत दी गई. संघ में ये छोटे-छोटे बदलाव तो होते रहे हैं लेकिन ऐसा पहली बार होगा जब संघ पूरी यूनीफॉर्म को ही बदलेगा.
युवाओं को आकर्षित करने की कोशिशः
भले ही आरएसएस का ही एक तबका इस बदलाव का विरोध कर रहा हो लेकिन ऐसा करना समय की जरूरत और संघ की दूरगामी रणनीति का हिस्सा है. इस कदम के पीछे जो सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है वह है युवाओं को संघ की तरफ आकर्षित करना. इससे कहीं न कहीं आरएसएस कट्टर छवि को तोड़कर उस युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींचना चाहता है जिन्हें किसी भी ऐसी विचारधारा से जुड़ने से परहेज है जिससे कट्टरता को बढ़ावा मिलता हो. जिस देश में दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी रहती हो, जहां की 50 फीसदी आबादी 25 से कम और 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की हो, वहां युवाओं को केंद्रित करके योजना बनाने की बात अपने आप समझ में आ जाती है. 2014 के आम चुनावों में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को मिली भारी जीत के पीछे भी युवाओं का ही हाथ था. इसलिए संघ की योजना अपने प्रभाव के विस्तार के लिए देश के भविष्य यानी युवाओं के बीच अपनी पैठ जमाना है.
अपनी स्थापना के समय से ही खाकी रंग ही संघ की पहचान रहा है. खाकी रंग को अनुशासन और सेवा का प्रतीक माना जाता है जो कि संघ के सिद्धांतों पर फिट बैठता है. लेकिन संघ की पहचान रहा खाकी रंग का हाफ पैंट आधुनिक सोच वाले युवाओं के लिए मिसफिट सा हो गया है और उन्हें कतई अपनी तरफ आकर्षित नहीं करता. इस यूनीफॉर्म से युवाओँ के मन में संघ की कट्टर छवि कैद हो गई है जिससे संघ अब काफी हद तक निजात पाना चाहता है.
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