चप्पलबाजी और संसद में हंगामा तो ट्रेलर था पिक्चर तो पूरी बाकी है!
शिवसेना के लिए 2019 का डबल मतलब है - क्योंकि उस साल पहले लोक सभा, फिर महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होंगे. शिवसेना ने इसकी तैयारी अभी से शुरू कर दी है.
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अच्छा हुआ या बुरा हुआ - जो जैसे भी नहीं मालूम. रविंद्र गायकवाड़ के उड़ान भरने पर पाबंधी खत्म हो गयी. बात बस इतनी है कि एक माननीय सांसद का सम्मान बचा लिया गया, जिसका क्रेडिट जाता है शिवसेना के टीम वर्क को. ये तो अब जगजाहिर है कि किस तरह शिवसेना अपनी ताकत की बदौलत अपने सांसद की खोयी हुई प्रतिष्ठा फिर से हासिल की. अपने सांसद के लिए चार्टर्ड प्लेन के इंतजाम से लेकर संसद में हंगामा और मंत्री को घेर कर दबाव बनाने तक शिवसेना ने इसके लिए हर तरीके अपनाये.
दरअसल, शिवसेना के लिए 2019 का डबल मतलब है - क्योंकि उस साल पहले लोक सभा, फिर विधानसभा चुनाव होंगे. शिवसेना ने इसकी तैयारी अभी से शुरू कर दी है और ऐसे देखें तो गायकवाड़ एपिसोड सिर्फ टेलर था - पिक्चर तो पूरी बाकी है.
एक्शन
गायकवाड़ की चप्पलबाजी और उसके बाद उनकी बहादुरी के किस्से वायरल होते ही शिवसेना के लिए मुश्किलें खड़ी हो गयीं. इस मुश्किल घड़ी को भी पार्टी ने अपने तरीके से हैंडल किया.
असल में, महाराष्ट्र के नगर निकायों और बीएमसी चुनाव में मिली हार से शिवसेना को बड़ा झटका लगा है - और खुद उद्धव ठाकरे ने इसे बड़ी शिद्दद से महसूस किया है.
ये उद्धव ठाकरे ही रहे जिन्होंने गायकवाड़ के चप्पल कांड को विरोधियों का खिलौना नहीं बनने देने का फैसला किया. खुद गायकवाड़ ये बात जाहिर भी करते रहे कि वो जो भी कर रहे हैं आलाकमान के कहने पर कर रहे हैं. चाहे वो मीडिया से दूर रहने की बात हो या फिर संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेकर अपना पक्ष रखने का मामला, मालूम होता है कि उद्धव ठाकरे ने खुद इसकी मॉनिटरिंग की और अंजाम तक पहुंचाया.
ताकि भाव चालू रहे...
उद्धव ठाकरे को ऐसा लगा था कि शिवसेना के विरोधी, जिसमें बीजेपी भी शामिल हो सकती है, गायकवाड़ की चप्पलबाजी को तूल देकर खुद फायदा उठा सकते हैं. यही वजह रही कि शिवसेना ने नेतृत्व ने इस मामले में किसी भी तरीके के लोक लाज की जरा भी परवाह नहीं की. बल्कि कहें तो शिवसेना ने बिलकुल पुराने अंदाज में खुद को पेश किया, जैसा बाला साहेब ठाकरे के जमाने में हुआ करता था.
गायकवाड़ को भी ये अनुमान नहीं था कि एयर इंडिया के कर्मचारी की पिटायी के बाद मामला इतना तूल पकड़ लेगा. एक अखबार की रिपोर्ट में ये बात सामने भी आई थी. शिवसेना के एक पूर्व सांसद ने अखबार को बताया था कि गायकवाड़ भूल गये थे कि एयरपोर्ट यूनियन में अब शिवसेना का वर्चस्व नहीं रहा. आशय ये था कि अगर ऐसा होता तो किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं होती कि किसी शिवसैनिक के खिलाफ इतना कड़ा फैसला ले.
एक बात और भी थी, शिवसेना नेतृत्व ने ये भी महसूस किया कि बगैर मजबूत सपोर्ट के खुद एयर इंडिया और फिर सारे एयरलाइन वाले शिवसेना सांसद के खिलाफ इतना दुस्साहस नहीं दिखाते.
यही सब कारण रहे कि शिवसेना नेतृत्व ने गायकवाड़ प्रकरण में इतनी दिलचस्पी ली - और सरकार पर ऐसा दबाव बनाया कि पाबंदी वापस लेनी पड़ी. शिवसेना के नेताओं ने एनडीए का बहिष्कार और मुंबई से किसी को भी उड़ान नहीं भरने देने की धमकी दे रखी थी.
री-एक्शन
वैसे इस बात को तो शिवसेना नेतृत्व ने खुद भी महसूस किया होगा कि पार्टी की जमीनी ताकत कमजोर पड़ रही है. इसीलिए अब शिवसेना को ज्यादा ताकतवर बनाने पर जोर चल रहा है.
महाराष्ट्र की विधानसभा में शिवसेना के 63 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के 122. देवेंद्र फडणवीस सरकार में शिवसेना कोटे से कई मंत्री भी हैं. खास बात ये है कि मंत्री वे नेता बनाये गये हैं जो विधान परिषद के सदस्य हैं. शिवसेना के विधायकों में इस बात को लेकर भी नारजगी है कि जिनका कोई जनाधार नहीं वो मंत्री बने हुए हैं. अब तक तो वे चुप थे लेकिन बीएमसी चुनाव में मंत्रियों के इलाके में भी शिवसेना की हार के बाद कानाफुसी तेज होने लगी. इन बातों के नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है जिससे लगता है कि मंत्री तो बदले ही जाएंगे पार्टी पदाधिकारियों में भी भारी फेरबदल हो सकता है.
फिर मान कर चलना चाहिये कि जल्द ही शिवसेना पुराने तेवर के साथ नये अंदाज में सामने आने वाली है. असल में आदित्य ठाकरे का मिजाज अपने दादा बाला साहेब ठाकरे की तरह बिलकुल कड़क है, जबकि उद्धव ठाकरे को अपना सोफियाना अंदाज पसंद है - लेकिन बीएमसी में हार के बाद बयार बदली है और बदलाव मजबूरी है.
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