सबरीमाला के लिए बीजेपी के आंदोलन में अयोध्या की झलक
भाजपा की कोशिशों की बदौलत अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में आस्था जीत गई और राम मंदिर (Ram Temple) निर्माण का रास्ता साफ हो गया. अब भगवान अय्यप्पा के भक्त भी सबरीमाला (Sabrimala) मुद्दे पर भाजपा की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखेंगे.
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Sabrimala Review Petition में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) ने अपना फैसला सुना दिया है. उन्होंने 5 जजों वाली बेंच से ये मामला अब 7 जजों वाली बेंच को सौंप दिया है, लेकिन साथ ही इसमें एक पेंच भी छोड़ दिया है. आने वाले दो सालों में 2021 में केरल में विधानसभा चुनाव (Kerala Assembly Election 2021) होने वाले हैं और इस बीच सबरीमाला के मामले पर सियासी गलियारे में बहस होना तय है. पिछले दिनों में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर को लेकर फैसला सुनाया है, उसने केरल के लोगों को बेशक प्रभावित किया होगा. भले ही अब तक भाजपा ने राम मंदिर पर दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर कोई राजनीति नहीं की है, लेकिन ये फैसला सीधे-सीधे भाजपा को फायदा पहुंचाएगा. अयोध्या मामले (Ayodhya Case) में आस्था जीत गई और राम मंदिर (Ram Temple) निर्माण का रास्ता साफ हो गया. अब भगवान अय्यप्पा के भक्त भी भाजपा की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखेंगे.
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने 2021 के केरल चुनाव के लिए भाजपा की जमीन तैयार करने का काम किया है.
दो साल तक ज्वलंत रखना होगा ये मुद्दा
भाजपा को अब सिर्फ दो साल तक सबरीमाला के मुद्दे को ज्वलंत रखना है. सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सबरीमाला मामले में जो भी फैसला सुनाए, केरल में आंदोलन तो होंगे ही. अगर 28 सितंबर वाले फैसले को बरकरार रखते हुए 10-50 साल की महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति जारी रखी, तो अय्यप्पा भक्त प्रदर्शन करेंगे और अगर फैसला पलट दिया तो समान अधिकार की मांग करने वाले लोग सड़कों पर उतर जाएंगे. इन लोगों के साथ ही कम्युनिस्ट पार्टी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करेगी. यानी किसी भी सूरत में सबरीमाला के मुद्दे पर प्रदर्शन होते रहेंगे. भाजपा को भी इस मामले को 2 साल तक ज्वलंत बनाए रखना है. 2021 में चुनाव होने वाले हैं और लोग आस्था के नाम पर वोटों से भाजपा की झोली भर देंगे.
केरल को भी त्रिपुरा की तरह जीतेगी भाजपा !
इस समय केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है, जबकि त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है. हालांकि, दोनों में एक समानता है कि दोनों ही जगह पहले कभी भाजपा नहीं रही. 2018 में पहली बार त्रिपुरा में भाजपा जीती है और हो सकता है कि केरल में पहली बार 2021 में भाजपा अपना झंडा गाड़ दे. त्रिपुरा में भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाकर विकास, रोजगार और भ्रष्टाचार मिटाने के वादों के साथ लोगों का दिल जीत लिया. अब भारतीय जनता पार्टी का टारगेट केरल हो सकता है. जिस तरह उसने त्रिपुरा की राजनीति पर कब्जा कर लिया, अब बारी केरल की है. केरल में पहली बार भाजपा की सरकार बन सकती है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उसकी जमीन तैयार हो गई है. यहां एक बात ध्यान रखने की ये भी है कि भाजपा ने त्रिपुरा की राजनीति में ऐसे कदम जमाए कि कुछ साल पहले जिस पार्टी के 49 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी, 2018 में उसी त्रिपुरा में भाजपा की सरकार आ गई. कांग्रेस और टीएमसी के बहुत से नेता भाजपा में शामिल हो गए. अब अगर केरल में भी चुनाव से पहले बड़ी संख्या में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता भाजपा का दामन थाम लें तो हैरानी नहीं होगी.
राम मंदिर की तरह सबरीमाला भी भाजपा ही सुलझा सकती है !
अगर बात की जाए जनता की, तो वह आस्था के मुद्दे पर सबसे जल्द एकमत होती है. कम से कम भारत में तो ऐसा होता ही है. केरल की जनता को भी ये दिख रहा है कि कैसे भाजपा ने सालों से लटके हुए राम मंदिर मामले को सुलझाने में मदद की है. भले ही फैसला सुप्रीम कोर्ट का हो, लेकिन इस केस को लड़ने में भाजपा का एक अहम योगदान था. ऐसे में अगर सबरीमाला मंदिर के मामले में देखा जाए तो भाजपा इस मामले से जुड़े अय्यप्पा भक्तों के साथ खड़ी है. अगर बड़ी बेंच इस मामले में 28 सितंबर वाला फैसला जारी रखती है तो राम मंदिर पर आया फैसला जनता को ये मैसेज देगा कि अब सिर्फ भाजपा ही है तो उन्हें न्याय दिला सकती है और सबरीमाला मंदिर में पुरानी परंपरा को दोबारा लागू करवा सकती है. देखा जाए तो भाजपा अब ये जताने में सफल हो चुकी है कि कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट तक सभी सबरीमाला के मामले में विलेन हैं और सिर्फ राजनीति कर रहे हैं, जबकि भाजपा ही है जो लोगों की आस्था को समझ रही है.
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