Sabarimala की राजनीति में 'अयोध्याकांड' से भी बढ़कर मामला बन रहा है!
Sabarimala को लेकर कांग्रेस के बाद अब वाम दलों के स्टैंड में बदलाव साफ साफ दिखायी पड़ रहा है. कोई शक नहीं है कि ये सब बीजेपी के दबाव में हो रहा है - और अब तो लगता है केरल भी त्रिपुरा की राह चल पड़ा है.
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केरल में Sabarimala का अय्यप्पा मंदिर दो महीने तक चलने वाली पूजा के लिए खुल गया है. मंदिर का कपाट खुलने से पहले ही मंदिर की ओर जा रहीं 10 महिलाओं को केरल पुलिस ने पंबा बेस कैंप से ही लौटा दिया. वजह बताया गया कि उनकी उम्र 10 साल से 50 साल के बीच थी. मंदिर की परंपरा के अनुसार इनका प्रवेश वर्जित है. सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला केस में पुनर्विचार याचिकाओं (Sabarimala temple) पर सुनवाई के बाद इसे बड़ी बेंच को भेज दिया गया है. खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा है कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत देने वाले 28 सितंबर, 2018 के उसी कोर्ट के आदेश पर स्थगनादेश नहीं है.
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के साथ ही विवाद शुरू हो गया था. पहले तो राजनीतिक दल इस मुद्दे पर बंटे नजर आ रहे थे लेकिन अब सबकी एक ही राय बन गयी है.
सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला केस की सुनवाई में शामिल जस्टिस आरएफ नरीमन भी इस बात पर आश्चर्य जाहिर किया है कि आखिर अदालत के आदेश को लागू करने में सरकार की दिलचस्पी क्यों नहीं है?
सबरीमाला कैसे बदला राजनीतिक दलों का नजरिया
सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा को लेकर 64 याचिकाएं दाखिल हुई हैं जिनमें करीब 50 पुनर्विचार याचिकाएं हैं. इसी साल फरवरी में अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब उसे बड़ी बेंच को भेज दिया गया है.
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर बीजेपी का शुरू से ही स्टैंड एक ही रहा है. केरल लोगों की भावनाओं का पक्ष लेते हुए बीजेपी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ही गलत बताती रही है.
2018 में केरल दौरे पर पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो साफ तौर पर कह दिया था कि अदालत को ऐसे फैसले देने ही नहीं चाहिये जिन्हें लागू न किया जा सके. हालांकि, अयोध्या मामले में बीजेपी कहती आयी है कि जो भी अदालत का फैसला होगा सभी मानेंगे. हाल में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर फैसला आने से पहले तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहले से ही फैसले को मानने और उसे हार या जीत के रूप में न देखने की अपील करते आ रहे थे.
बीजेपी के खिलाफ आदतन विरोधी रवैये के चलते कांग्रेस पहले तो सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में देखी गयी, लेकिन धीरे धीरे वो भी उसी रंग में रंग गयी. तस्वीर साफ करते हुए राहुल गांधी ने फैसले को सही तो ठहराया लेकिन उसे अपनी निजी राय भी बता डाली. एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने कहा था, 'सबरीमाला के मामले में मेरा निजी विचार है कि महिलायें और पुरुष बराबर हैं... महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति मिलनी चाहिए.'
अयोध्या से भी आगे का मामला बनने जा रहा सबरीमाला केस...
साथ ही, राहुल गांधी ने ये जोड़ दिया कि केरल में कांग्रेस का नजरिया वहां की महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक बेहद भावनात्मक मुद्दा है. मतलब, लोगों के साथ वहां कांग्रेस पार्टी भी अदालत के फैसले के खिलाफ खड़ी है.
सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो केरल की वाम मोर्चे की सरकार के नजरिये में आया बदलाव है. मुख्यमंत्री पी. विजयन सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद हर हाल में उसे लागू करने के पक्ष में दिखे, लेकिन अब उनकी भी राय बदल चुकी है.
केरल पुलिस अब 50 साल से कम उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने के लिए अदालती आदेश लेकर आने को कह रही है. ठीक वैसे ही जैसे जम्मू-कश्मीर में अपने घर जाने के लिए लोगों को अदालती आदेश पेश करना होता था.
समझ लेना चाहिये वाम मोर्चे के नजरिये में ये बदलाव आम चुनाव में मिली हार के बाद आया है.
जस्टिस नरीमन ने यही सवाल उठाया है - सरकार की कोर्ट के आदेश को लागू करने में दिलचस्पी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला केस की सुनवाई पांच सदस्यों वाली संविधान कर रही थी. 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ये केस सात जजों की बेंच के पास भेज दिया, हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अंतिम फैसले तक उसका पिछला आदेश बरकरार रहेगा. पीठ ने ये फैसला 3:2 से किया. जस्टिस नरीमन और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुनवाई करने वाली पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ के सदस्य थे और बहुमत के फैसले से दोनों ने ही असहमति जतायी थी.
एक अन्य केस में सुनवाई करते हुए जस्टिस नरीमन ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘कृपया अपनी सरकार को सबरीमाला मामले में कल सुनाये गये असहमति के फैसले को पढ़ने के लिये कहें... वो बहुत ही महत्वपूर्ण है. अपने प्राधिकारी को सूचित कीजिये और सरकार को इसे पढ़ने के लिये कहिये.’
वस्तुस्थिति तो यही है कि सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश में अभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. ऐसे में अगर केरल पुलिस 50 साल से कम उम्र की महिलाओं से प्रवेश के लिए अदालती आदेश मांग रही है तो ये कुछ और नहीं, मौजूदा सरकार का राजनीतिक स्टैंड है - और ये पुराने स्टैंड से यू-टर्न है. साफ साफ लगता है कि कांग्रेस के बाद वाम दल भी बीजेपी के राजनीतिक दबाव में आ चुके हैं. वाम मोर्चे के लिए भी ये कुछ कुछ वैसे ही है जैसे बीजेपी और संघ पर लगातार हमले के बावजूद राहुल गांधी खुद को जनेऊधारी शिवभक्त हिंदू साबित करने में जी जान से जुटे देखे जाते रहे हैं. वाम मोर्चा भी अब लगता है उसी रास्ते चल पड़ा है.
सबरीमाला पर वाम मोर्चा सरकार का नया स्टैंड केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के बढ़ते प्रभाव का नतीजा लग रहा है - और ऐसा लगता है त्रिपुरा की तरह केरल में भी भगवा का रास्ता धीरे धीरे साफ होता जा रहा है.
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