Sachin Pilot के पास समय तो बहुत है लेकिन विकल्प बहुत कम
राजस्थान का राजनीतिक संकट (Rajasthan Political Crisis) फिलहाल तो खत्म हो गया है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सचिन पायलट (Sachin Pilot) से बगावत की कीमत लगान की तरह वसूल रहे हैं - पायलट के पास समय तो बहुत है, लेकिन विकल्प सीमित हैं.
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) की कांग्रेस में रगड़ाई चालू हो गयी है. अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को मलाल भी तो इसी बात को लेकर रहा. अब तो मौका भी मिल गया है और वो मौके का पूरा फायदा भी उठाते जा रहे हैं. जब से सचिन पायलट और उनके साथी विधायक जयपुर लौटे हैं, अशोक गहलोत बार बार जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी कोई खास जरूरत नहीं रही.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले तो सचिन पायलट को निकम्मा और नकारा बोलते ही रहे, लगता है अब मानने भी लगे हैं - लेकिन अगर ऐसा है तो वो बहुत बड़ी भूल भी कर रहे हैं. कांग्रेस के ही नेता हैं मणिशंकर अय्यर जो नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री रहते चायवाला ही समझते रहे. आज मणिशंकर अय्यर कहां कम ही लोगों को खबर होगी, जब तक कि नये सिरे से उनका कोई विवादित बयान नहीं आ जाता.
राजस्थान का राजनीतिक संकट (Rajasthan Political Crisis Ends) खत्म होने के साथ ही, ये भी सही है कि अशोक गहलोत ने विश्वास मत हासिल करने के साथ ही कम से कम छह महीने के लिए सरकार चलाने का लाइसेंस रिन्यू तो करा लिया, लेकिन सदन के आखिरी छोर से आयी आवाज ने जता दिया कि सरकार की जान भी सचिन पायलट नाम के तोते में ही बसी हुई है.
सचिन पायलट को बगावत की कीमत भी अभी कदम कदम पर चुकानी पड़ रही है - राहुल गांधी की तरफ से जो आश्वासन मिले हैं उनके अमल में आने में अभी वक्त लग सकता है - और आश्वासनों की तो वैसे भी कभी कोई गारंटी नहीं होती. देखा जाये तो सचिन पायलट के पास समय तो बहुत है, लेकिन विकल्प बेहद कम नजर आ रहे हैं.
वक्त की कोई कमी नहीं है
सचिन पायलट का भी हाल फिलहाल वैसा ही है जैसा 2019 के आम चुनाव के बाद राहुल गांधी का हो गया था, लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है कि वो राहुल गांधी नहीं हैं. राजनीति में सचिन पायलट भी आये तो पारिवारिक विरासत के साथ ही हैं, लेकिन उनकी विरासत का पावर ऑफ अटॉर्नी भी राहुल गांधी के ही पास है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोरोना काल में बुलाये गये विधानसभा सत्र का हर कदम पर पूरा फायदा भी उठाया. सोशल डिस्टैंसिंग के बहाने सचिन पायलट को सदन के आखिरी लाइन की कुर्सी दी गयी थी, लेकिन सचिन पायलट ने भी माकूल जवाब देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. अशोक गहलोत अगर सचिन पायलट को जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं तो वो भी तत्काल हिसाब बराबर करने में चूक नहीं रहे हैं.
दिखावे का ये साथ लंबा नहीं चलने वाला है
अशोक गहलोत ने सत्र से पहले कहा था कि अगर 19 लोग नहीं लौटते तो भी वो बहुमत साबित कर देते और सत्र के दौरान बीजेपी और अमित शाह पर बरसते हुए सचिन पायलट को फिर से टारगेट किया - कई नेता छुपकर दिल्ली गये और सीएम बनाने की रेस शुरू कर दी, लेकिन किसी की दाल नहीं गल पायी.
सदन में आखिरी कतार में बैठने के लिए कुर्सी दिये जाने पर सचिन पायलट का कहना रहा, 'मैं सदन में आया तो देखा कि मेरी सीट पीछे रखी गई है. मैं आखिरी कतार में बैठा हूं. मैं राजस्थान से आता हूं, जो पाकिस्तान बॉर्डर पर है. बॉर्डर पर सबसे मजबूत सिपाही तैनात रहता है - मैं जब तक यहां बैठा हूं, सरकार सुरक्षित है.'
सचिन पायलट के कहने का मतलब तो यही है कि मौजूदा अशोक गहलोत सरकार की चाबी उनकी मुट्ठी में ही है, एक बार चूक जाने का मतलब हमेशा के लिए चित्त हो जाना समझने की गलतफहमी किसी को नहीं होनी चाहिये.
सीट बदले जाने को लेकर सचिन पायलट ने समझाने की कोशिश की कि ये सब वक्त और व्यवस्था के हिसाब से तय होता है. पार्टी ही देती और पार्टी ले भी लेती है. बोले, 'पहले मैं सरकार का हिस्सा था लेकिन अब मैं सरकार में नहीं हूं - ये महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई कहां बैठता है, बल्कि ये कि लोगों के दिल और दिमाग में क्या है?'
अपनी तरफ से सचिन पायलट ने अशोक गहलोत को तो चेतावनी दे दी है, साथ ही, राहुल गांधी को भी जयपुर से ही रिमाइंडर भेज दिया है. सचिन पायलट का कहना है कि समय आने पर सभी बातें सामने आ जाएंगी, कहते हैं - जो कुछ कहना सुनना था. हमें जिस डॉक्टर के पास अपने मर्ज को बताना था बता दिया. सदन में आये हैं तो कहने-सुनने की बातों को छोड़ना होगा. इस सरहद पर कितनी भी गोलीबारी हो कवच, ढाल और भाला बन कर रहूंगा.
मुद्दे की जो सबसे बड़ी बात सचिन पायलट ने याद दिलायी वो रही - 'जो मुद्दे उठाये जा रहे थे उन सभी मुद्दों के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है - मुझे पूरा विश्वास है कि रोडमैप का ऐलान समय पर कर दिया जाएगा.'
विकल्प बहु्त कम हैं
कोई शक शुबहे वाली बात नहीं है कि सचिन पायलट के पास राजनीति के लिए काफी वक्त पड़ा है, लेकिन फिलहाल वो जिस मोड़ पर खड़े हैं उससे आगे विकल्प भी कम हैं और विकल्पों का दायरा भी काफी संकरा है.
1. कांग्रेस में संघर्ष: सचिन पायलट के सामने पहला विकल्प तो यही है कि वो कांग्रेस में खामोशी के साथ अपने लिए माकूल मौके का इंतजार करें. ये तो जरूरी तो नहीं कि राजस्थान की राजनीति के अलावा कोई दुनिया नहीं है. चाहें तो फिर से राष्ट्रीय राजनीति में मौका मिल ही सकता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने के बाद राहुल गांधी को भी तो किसी ऐसे नेता की जरूरत होती ही होगी जिसे देख कर आंख मार सकें - सचिन पायलट चाहें तो वहां भी फिट हो ही सकते हैं.
जयपुर में हैंडसम दिखना, अंग्रेजी अच्छी बोलना भले बेकार साबित हो रहा हो, दिल्ली में तो चलता ही है. चलता क्या दौड़ता भी है.
2. बीजेपी का विकल्प भी बंद तो नहीं है: ये तो सही है कि जिस तरह सचिन पायलट को अशोक गहलोत फूटी आंख नहीं देखना चाहते, वसुंधरा राजे भी करीब करीब वही राय रखती हैं. भला बीजेपी में वो अपने लिए कोई मुसीबत क्यों खड़ी होने दें - लेकिन जिस मॉडल पर ज्योतिरादित्य सिंधिया दिल्ली में फिट हो गये, सचिन पायटल के लिए भी तो रास्ता बन ही सकता है. आखिर ज्योतिरादित्य सिंधिया दोस्त किस बात के हैं.
3. नयी क्षेत्रीय पार्टी का भी स्कोप है: माना जाता है कि राजस्थान में दो पार्टी सिस्टम ही चलता है और किसी अन्य के लिए कभी गुंजाइश नहीं बनती. कई नेताओं ने ऐसी कोशिश भी की है और बाद में उनको भी बीजेपी और कांग्रेस में ही शरण लेनी पड़ी है.
सचिन पायलट के साथ प्लस प्वाइंट ये है कि 18 विधायक तो घोषित तौर पर उनके साथ रहे, लेकिन ऐसे भी कई विधायक हैं जो सचिन पायलट के समर्थक हैं. ऐसे विधायक बीजेपी में जाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन अशोक गहलोत की राजनीति से ऊब कर सचिन पायलट के नयी पार्टी बनाने में साथ दे सकते हैं. ऐसे विधायकों के लिए अपने से ज्यादा अपने बच्चों की चिंता सता रही है. नयी पार्टी में वो भविष्य देखते हैं - और सचिन पायलट चाहें तो आजमाने में कोई हर्ज नहीं है.
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