Sachin Pilot: दुनिया के सबसे नामी बिजनेस स्कूल से पढ़े पायलट की असली परीक्षा अब है
अपने बागी तेवर से पूरे राजस्थान (Rajasthan) की सियासत को प्रभावित करने वाले सचिन पायलट (Sachin Pilot) काबिल व्यक्ति हैं जो अपने शुरूआती दौर में राजनीति में नहीं आना चाहते थे मगर पिता राजेश पायलट की मौत के बाद हालात उन्हें राजनीति में ले ही आए.
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राजस्थान (Rajasthan) के सियासी घमासान में सबसे चर्चित नाम है सचिन पायलट (Sachin Pilot) का. पूरा का पूरा राजनीतिक घटनाक्रम सचिन पायलट के इर्दगिर्द ही नाच रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की कुर्सी को हिलाकर रख देने वाले सचिन पायलट कोई मामूली नेता नहीं हैं. सियासत में जल्द ही अपना सिक्का जमा लेने वाले सचिन पायलट को सियासत भले ही विरासत में मिली हो लेकिन अपनी काबिलियत के चलते सचिन पायलट ने अपना एक अलग वजूद बना लिया है. सचिन पायलट भारत के उन नेताओं में शामिल है जो बेहद पढ़े लिखे माने जाते हैं. राजस्थान में मचे सियासी उठापटक के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट पर निशाना साधते हुए कहा था कि अच्छी अंग्रेजी बोलना और सुंदर दिखना ही सबकुछ नहीं होता है. राजनीति में नेताओं को अपनी जिम्मेदारी को भी निभाना चाहिए.
अशोक गहलोत का ये हमला सीधे तौर पर सचिन पायलट के लिए था. सचिन पायलट की पढ़ाई लिखाई और राजस्थान के उपमुख्यमंत्री पद तक का सफर आसान तो बिल्कुल भी नही है. सितंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में जन्मे सचिन पायलट की शुरूआती पढ़ाई लिखाई दिल्ली में हुई. फिर दिल्ली विश्व विद्यालय से बैचलर और डिप्लोमा किया और उसके बाद अमेरिका चले गए. अमेरिका में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन बिजनेस स्कूल में दाखिला ले लिया. यह कालेज दुनिया के प्रसिद्ध बिजनेस कालेजों में से एक है. इस कालेज की सालाना फीस करीब 85 लाख रुपये के आसपास है. सचिन पायलट ने इसी कालेज से एमबीए की पढ़ाई की है.
सचिन पायलट ने अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में बीबीसी और फिर एक अमेरिकन मल्टीनेशनल कंपनी में करीब दो साल तक काम किया. उस वक्त सचिन पायलट की दिलचस्पी राजनीति में न के बराबर हुआ करती थी और वह किसी बैंक की नौकरी करना चाहते थे लेकिन पिता राजेश पायलट के निधन के बाद सचिन पायलट ने राजनीति में एंट्री ले ली और 2004 में राजस्थान के दौसा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ लिया.
सचिन पायलट की बगावत ने राजस्थान की पूरी सियासत को बुरी तरह प्रभावित किया है
इस चुनाव में उनकी जीत हुई. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में भी अजमेर लोकसभा सीट से सचिन पायलट ने जीत दर्ज की और यूपीए-2 सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट में केंद्रीय राज्यमंत्री बन गए. इसके बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट चुनाव हार गए और केंद्र की गद्दी से कांग्रेस बेदखल हो गई. चुनाव हारने के बाद ही सचिन पायलट को राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंप दी गई.
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान में बाजी मार ली और सचिन पायलट का नाम मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में चलने लगा. लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा जबकि मुख्यमंत्री के पद पर अशोक गहलोत को बैठाया गया. अधिकतर लोगों का मानना यही है कि यहीं से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट का खैमा अलग-अलग हो गया था.
दोनों ही नेता एक दूसरे को अपनी राह में रोड़ा मान बैठे थे. दोनों ही नेताओं के बीच अंदरूनी मतभेद जरूर थे लेकिन ये खुलकर सामने नहीं आ पा रहे थे. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यह मतभेद और बढ़ गया जब कांग्रेस पार्टी के टिकट बंटवारे का काम सचिन पायलट के हाथों में था क्योंकि वह राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष थे इस टिकट बंटवारे में सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री को इस कार्य से दूर रखा. जिससे दोनों के बीच टीस और बढ़ गई.
यह खटास इतनी बढ़ गई थी कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे को भी उनके मनमुताबिक सीट नहीं दी गई थी. वर्ष 2020 के राज्यसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया जिसके बाद ऐसी ही सुगबुगाहट राजस्थान में भी सामने आऩे लगी थी हालांकि उस वक्त मामला किसी तरह कंट्रोल कर लिया गया था लेकिन मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच का टकराव लगातार बढ़ता ही रहा.
अब नौबत यह आ गई है कि कांग्रेस ने सचिन पायलट से तमाम पद छीन लिए हैं जबकि सचिन पायलट का कहना है कि वह अभी भी कांग्रेस पार्टी मे ही हैं. हालांकि विधायकों को लेकर दोनों ही खेमा राजस्थान हाईकोर्ट की शरण मे हैं जिस पर फैसला 24 जुलाई को आना है. तब तक राजस्थान में सियासी ड्रामा जारी ही रहने वाला है.
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