सोच बदलो, वोट लो - बीजेपी की नयी मुहिम का लब्बोलुआब यही है
2019 को लेकर बीजेपी ने एक नयी मुहिम शुरू की है - 'संपर्क फॉर समर्थन'. बीजेपी देश के एक लाख ऐसे लोगों तक पहुंच रही है जो लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. बीजेपी जान गयी है कि ऐसे लोग यदि उनकी बात समझ गए तो समझो काम हो गया.
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फिल्म सरकार में 'सोच' को लेकर एक छोटी सी बहस होती है. समझने वाली बात ये है कि सोच को टारगेट करना जरूरी होता है, मकसद अपनेआप पूरा हो जाता है. सोच का सीधा मतलब विचारधारा से है. मिशन 2019 में कामयाबी के लिए बीजेपी ने यही लाइन पकड़ी है. बीजेपी अब सोच को टारगेट कर रही है और ऐसी शख्सियतों को साधने की कोशिश कर रही है जो आम लोगों की सोच को प्रभावित करने की क्षमता रखते हों.
बीजेपी की नयी मुहिम 'संपर्क फॉर समर्थन' में एक लाख लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य है. जनरल दलबीर सुहाग और सुभाष कश्यप से अमित शाह की मुलाकात से लेकर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और रघुराम राजन को बुलावा भी इसी मुहिम का हिस्सा लगता है.
बुद्धिजीवियों के बीच बीजेपी
बीजेपी का बूथ लेवल मैनेजमेंट बेजोड़ माना जाता रहा है. विपक्ष अभी मुकाबले के लिए खुद को तैयार कर पाता कि बीजेपी ने पर्सेप्शन मैनेजमेंट का फॉर्मूला लाकर नयी चुनौती पेश कर दी है. पर्सेप्शन मैनेजमेंट मार्केटिंग के सबसे ज्यादा असरदार तरीकों में से एक माना जाता है - और मौजूदा दौर की रन मशीन मानी जाने वाली मोदी-शाह की जोड़ी कांग्रेस के बाद विपक्ष मुक्त भारत की तैयारी बड़ी शिद्दत से कर रही है.
संपर्क फॉर समर्थन...
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व आर्मी चीफ दलबीर सिंह सुहाग से मुलाकात कर खुद इस मुहिम की शुरुआत की. 'संपर्क फॉर समर्थन' अभियान के बारे में एक ट्वीट में अमित शाह ने बताया कि बीजेपी के 4000 चुने हुए लोग देश के बुद्धिजीवियों, कलाकारों और तमाम फील्ड के एक लाख दिग्गजों से संपर्क करेंगे और करीब 50 लाख चुने हुए कार्यकर्ता आम लोगों से घर-घर जाकर मुलाकात करेंगे.
खास बात ये है कि सितंबर, 2016 में जब पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी उस वक्त जनरल दलबीर सिंह सुहाग ही आर्मी चीफ थे. जनरल सुहाग का हरियाणा से होना और जाट समुदाय से ताल्लुक उनकी दूसरी खूबियां हैं.
हरियाणा में विधानसभा चुनाव की बारी लोक सभा के ठीक बाद आनी है. संभव है दोनों चुनाव साथ भी करा लिये जायें. आम आदमी पार्टी ने इस बार हरिणाया विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. ये बताने के लिए अरविंद केजरीवाल एक रैली भी कर आये हैं. शाह ने जनरल सुहाग के बाद जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप से भी मुलाकात उसी अंदाज में मुलाकात की.
वोट के लिए सोच पर निशाना
बीजेपी अब चुन चुन कर उस तबके को प्रभाव में लेने की कोशिश कर रही है जिसका समाज में अपनेआप प्रभाव बना रहता है. बुद्धिजीवियों के बारे में माना जाता है कि एक बार उन्हें किसी बात का यकीन हो जाये तो वो अपने आस पास के लोगों में नियमित रूप से मुफ्त में सलाहियत का संचार करते रहते हैं. बीजेपी अपने नये मिशन 'संपर्क फॉर समर्थन' के जरिये बुद्धिजीवियों के अलावा उन लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है जिनकी समाज में विशेष हैसियत है - और एक बार ऐसे लोग बीजेपी की बातों से इत्तेफाक जता दिये तो समझो काम हो गया.
न्योता तो रघुराम राजन को भी है
जिस तरह प्रणब मुखर्जी को संघ के कार्यक्रम में बुलाया गया है, उसी तरह आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को भी वीएचपी ने शिकागो हिंदू कांग्रेस का न्योता दिया है. प्रणब मुखर्जी तो संघ के कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे हैं लेकिन राजन का क्या रुख रहा अभी कोई खबर नहीं आयी है. राजन को इससे पहले आम आदमी पार्टी ने राज्य सभा की सदस्यता ऑफर किया था. राजन ने बड़ी ही संजीदगी के साथ आप का ऑफर ठुकरा दिया था.
संघ और वीएचपी के कार्यक्रम में थोड़ा फर्क है. स्वामी विवेकानंद की शिकागो यात्रा के 125 साल पूरे होने पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत, तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा, योगी आदित्यनाथ, हॉलीवुड स्टार रिचर्ड गेरे और अमेरिकी कांग्रेस की सदस्य तुलसी गबार्ड के भी शामिल होने की अपेक्षा है. रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से रिटायर होने के बाद से रघुराम राजन शिकागो में ही रहते हैं और वहीं अध्यापन का काम करते हैं.
देश भर के बुद्धिजीवियों से संपर्क के साथ ही बीजेपी ऐसे लेखकों तक पहुंच बना रही है जो संघ की विचारधारा को प्रमोट करने में मददगार साबित हों. साथ ही नये ऐसे लेखकों की भी टीम तैयार की जा रही है जो संघ की विचारधारा और बीजेपी की नीतियां लोगों तक तमाम माध्यमों से पहुंचाने का काम कर सकें. देखा जाये तो पहले से ही कई लेखक इस मुहिम में पूरी श्रद्धा से जुटे हुए हैं - और पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइटों पर ओपिनियन पीस लिखते रहते हैं.
मुंबई में इफ्तार पार्टी भी
बीजेपी ने भले ही अपना स्लोगन 'सबका साथ सबका विकास' बदल कर 'साफ नीयत सही विकास' कर लिया हो, लेकिन हर तबके तक पहुंचने की उसकी कोशिशें जारी हैं, ये बात अलग है कि उसे इस मामले में सफलता कम ही मिल पाती है.
रमजान के मौके मुस्लिम राष्ट्रीय मंच मुंबई में 4 जून को इफ्तार पार्टी आयोजित करने जा रहा है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को संघ का ही मुस्लिम फोरम माना जाता है. ऐसा पहली बार है कि आरएसएस की तरफ से मुंबई में कोई इफ्तार पार्टी रखी जाने वाली है.
अब तक इतना ही
संघ और बीजेपी अपनी मुहिम और लोगों की सोच पर हावी होने में किस हद तक सफल हो रही है, इसे चलते फिरते महसूस किया जा सकता है. अभी वीकेंड पर कुछ रिश्तेदारों के साथ डिनर का प्रोग्राम बना था. स्टार्टर के साथ ही सियासी विमर्श भी शुरू हो गया. संयोग से समर्थकों का ऐसा जमावड़ा रहा कि चर्चा ऑल पार्टी मीटिंग जैसी चल रही थी. एक बच्ची चुपचाप सब सुन रही थी. बहस के बीच जैसे ही उसे कट-प्वाइंट मिला अपनी बुआ का हाथ पकड़ कर बोली, "बुआ... बुआ आप वोट किसे दोगी?" बगैर जवाब सुने उसने वोट भी मांग लिया, "बीजेपी को वोट देना बुआ... प्लीज. प्लीज. प्लीज."
"लेकिन बीजेपी को ही क्यों?" पूछे जाने पर वो कुछ देर के लिए खामोश रही फिर पेरेंट्स की तरफ देखते हुए झटके से बोली, "ऐसे ही!"
ये सीबीएसई के 10वीं का रिजल्ट आने से पहले की बात है. मालूम हुआ बच्ची अच्छे नंबर से पास भी हो गयी है. वो परेशान सिर्फ इस बात के लिए है कि अभी वोट नहीं दे पाएगी. उसे और इंतजार करना पड़ेगा, इसलिए तब तक बीजेपी के लिए वोट मांग रही है. बच्ची के पिता सरकारी नौकरी में बड़े अधिकारी हैं और मां बॉयोटेक्नोलॉजी में पीएचडी हैं.
ऐसा ही एक और एक्सपीरियंस हाल ही में एक डॉक्टर से परामर्श लेने जाने पर हुआ. डॉक्टर साहब मरीजों से निवृत्त हो चुके थे और हमारा नंबर आखिरी रहा, इसलिए थोड़े फुरसत में लगे. मोहल्ले की समस्याओं से परेशान डॉक्टर साहब देश की हालत पर चर्चा करने लगे. फिर संघ के किसी बड़े आदमी का गुमनाम हवाला देते हुए बोले, "2019 में लौटने दीजिए... वो तो साफ हो जाएगा."
जब पूछा कि कौन? खुद ही साफ किये, "पाकिस्तान तो साफ हो जाएगा..."
एक बार कुरेदने की कोशिश की कि आखिर वो ये सब इतने यकीन के साथ कैसे कह रहे हैं, 'वही बता रहे थे'. मतलब 'वही' जो बता रहे हैं मान लेने की जरूरत है. ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं, बस मान लेना है. ये सब सुनने जानने के बाद संपत सरल की टिप्पणियां हास्य से ज्यादा कहीं हकीकत के काफी करीब लगने लगती हैं.
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