मोदी के मंत्री ने साबित कर दिया - प्रधानमंत्री की चुप्पी कितनी खतरनाक होती है !
कठुआ ओर उन्नाव जैसे मामलों में प्रधानमंत्री ने चुप्पी तो तोड़ी, पर बहुत देर कर दी. केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार का बयान सबूत है. यही वजह है कि दुनिया भर में बुद्धिजीवियों की चिंता खत्म नहीं हो रही है.
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केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री संतोष गंगवार के बयान से साबित हो गया है कि प्रधानमंत्री की चुप्पी कितनी खतरनाक होती है. संतोष गंगवार की बातों से ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे लोगों के लिए बलात्कार की एक दो घटनाएं बहुत मायने नहीं रखतीं.
'बड़े बड़े देशों में...'
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही दिया हुआ है. कठुआ और उन्नाव के साथ ही देश के कई हिस्सों में हुई ऐसी घटनाओं के बाद महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी साफ कर चुके हैं कि सरकार ऐसे मामलों में सख्ती से निबटेगी - और अब तो मोदी सरकार ने अध्यादेश लाकर कानूनों में तब्दीली कर काफी सख्त प्रावधान भी कर दिये हैं. फिर केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार का बयान आता है - कहते हैं, बात का बतंगड़ बनाया जा रहा है.
मतलब, एक-दो बलात्कार से खास फर्क नहीं पड़ता!
देश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर संतोष गंगवार का बयान भी शाहरुख खान के डायलॉग जैसा ही लगता है. फिल्म दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे के डायलॉग को अपने भारत दौरे के वक्त तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बोला था, "सेनोरिटा, बड़े-बड़े देशों में ऐसी छोटी-छोटी…" आखिर में ओबामा ने ये भी जोड़ा था - 'आप समझ गये होंगे मैं क्या कहना चाहता हूं?'
संतोष गंगवार की बात को भी समझने की जरूरत है. आखिर संतोष गंगवार भी तो यही समझाना चाहते हैं कि बलात्कार की ये मामूली घटनाएं हैं और बड़े बड़े देशों में ऐसा होना भी कोई बहुत बड़ी गंभीर बात नहीं है?
न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में संतोष गंगवार कहते हैं, "ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण होती हैं. पर कभी कभी रोका नहीं जा सकता है. सरकार सक्रिय है सब जगह, कार्रवाई कर रही है. इतने बड़े देश में एक दो घटना हो जाये तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिये."
Aisi ghatnaye(rape cases) durbhagyapurn hoti hain,par kabhi kabhi roka nahi ja sakta hai.Sarkar sakriya hai sab jagah ,karyavahi kar rahi hai.Itne bade desh mein ek do ghatna ho jaye to baat ka batangad nahi banana chahiye: Santosh Gangwar,Union Minister pic.twitter.com/yy3JJQQ4oz
— ANI (@ANI) April 22, 2018
क्या देश की सरकार चला रहे नेता आम लोगों के बारे में ऐसी ही सोच रखते हैं? जिस देश में गाय के मुद्दे पर कोहराम मच जाता हो, उस मुल्क में बलात्कार हो जाने पर भी सत्ता के जिम्मेदार लोग ऐसी ही सोच रखते हैं? कहां थाने के पुलिसकर्मियों को ऐसी ट्रेनिंग देने की बात चल रही है कि वे पीड़ितों के साथ संवेदनशीलता दिखायें और फिर वैसा ही सलूक करें - और कहां नेताओं की सोच में कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है.
बीजेपी और समाजवादी पार्टी बार बार विचारधारा को लेकर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती हैं, लेकिन महिलाओं को लेकर तो लगता है एक सिक्के के दो नहीं बल्कि एक ही पहलू जैसी दोनों की सोच है. संतोष गंगवार के लिए एक-दो बलात्कार बहुत मायने नहीं रखता, फिर क्या मामले बहुत ज्यादा बढ़ जायें तब चिंता की बात होनी चाहिये? फिर किसलिए बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ - यही दिन देखने के लिए?
बुद्धिजीवियों की चिंता
देश के पूर्व नौकरशाहों के बाद दुनिया के 600 से ज्यादा बुद्धिजीवियों ने भी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है. दोनों ही चिट्ठियों में चिंताएं एक जैसी हैं - कठुआ और उन्नाव गैंग रेप सहित ऐसी सारी घटनाओं को लेकर.
कोई बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन...
नौकरशाहों ने चिट्ठी में लिखा था - ‘प्रिय प्रधानमंत्री जी, मौजूदा हालात के लिए कोई और नहीं आपको ही जिम्मेदार माना जाएगा.’
नौकरशाहों ने मौजूदा दौर को अंधकार भरा वक्त बताया है, वे लिखते हैं - 'अंधकार इतना घना है कि हमें अंधेरी सुरंग का दूसरा सिरा नजर नहीं आ रहा है और हमारा सिर शर्म से झुका जा रहा है.'
प्रधानमंत्री को संबोधित ताजा खत में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, ब्राउन विश्वविद्यालय, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, कोलंबिया विश्वविद्यालय और आईआईटी के शिक्षाविदों और विद्वानों के हस्ताक्षर हैं. इन सभी का कहना है कि वे कठुआ-उन्नाव और उनके बाद की घटनाओं पर अपने गहरे गुस्से और पीड़ा का इजहार करना चाहते हैं. इनका आरोप है कि प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध रखी है.
कठुआ और उन्नाव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर खूब हंगामा हो रहा था. लगा प्रधानमंत्री मोदी का बयान आ जाने के बाद बवाल थम जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मोदी को अपनी ही सलाहियत से सीख लेने की सलाह दे डाली. अब जबकि मोदी सरकार ने बलात्कार से जुड़े कानूनों को काफी सख्त बना दिया है, दुनिया भर के बुद्धिजीवियों की प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी सुर्खियों में है.
केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने कठुआ और उन्नाव की घटनाओं को मामूली बताकर प्रधानमंत्री का सिरदर्द बढ़ा दिया है. हो सकता है प्रधानमंत्री मोदी सख्त लहजे में साथियों को भी समझाये होते तो ऐसी बातें न होतीं. उन्नाव की घटना में तो आरोपी विधायक को तब तक बचाने का आरोप लगा जब तक कि मामला सीबीआई ने अपने हाथ में न ले लिया. सीबीआई के केस ले लेने के बाद भी गिरफ्तारी तब हो पायी जब हाई कोर्ट ने सख्ती दिखायी.
मौन अक्सर स्वीकारोक्ति का संकेत माना जाता है. जाहिर है कि गंभीर और अति संवेदनशील मामलों में प्रधानमंत्री मोदी से बयान की अपेक्षा भी इसीलिए की जाती है. प्रधानमंत्री ज्वलंत मुद्दों पर अगर मन की बात करेंगे नहीं, फिर तो यही लगेगा कि जो भी हो रहा है सब उनके मन से ही हो रहा है. है कि नहीं?
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