वर्ण व्यवस्था और छुआछूत पर गांधी और अम्बेडकर से बहुत अलग थे सावरकर
गांधी का कहना था कि रोटी - बेटी का संबंध (वर्ण व्यवस्था 'सही' है) पर छूआछूत 'गलत' है. अंबेडकर मानते थे कि जाति व्यवस्था शोषण का आधार है और छूआछूत गलत है. वहीं इन दोनों से इतर सावरकर की सोच थी कि वर्ण-व्यवस्था/ जाति व्यवस्था 'गलत' है और छूआछूत 'अपराध' है.
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मार्क्सवादी इतिहास पढ़ने वाले हर विद्यार्थी को पता है कि गांधी जी और अंबेडकर के बीच जाति व्यवस्था और दलितो के पृथक निर्वाचन क्षेत्र लेकर बड़ा विवाद हुआ था. तब गांधी जी ने अम्बेडकर का विरोध करते हुए अनशन कर दिया था और गांधी का कहना था कि रोटी (यानि खाने पीने में जातियों का भेद) और बेटी (दो जातियों के बीच शादी विवाह) का भेद होना चाहिए. इसमें गलत कुछ नहीं.
इसको लेकर अंबेडकर गांधी जी के विरोधी बन गए. हालांकि गांधी जी के अनशन और जिद की वजह से बाबा भीमराव अंबेडकर जी को झुकना पड़ा था और पूना पैक्ट के द्वारा दोनों के बीच एक सहमति भी बनी जो इतिहास की पुस्तकों में पुूना पैक्ट के नाम से प्रसिद्ध है.
गांधी, सावरकर और अम्बेडकर के वर्ण व्यवस्था और छुआछूत पर अलग अलग विचार थे
अंबेडकर को दलितों के पृथक निर्वाचन आयोग का विचार त्यागना पड़ा. लेकिन गांधी जी के जाति व्यवस्था के समर्थन को लेकर उनके विचारों की वजह से अंबेडकर के मन में गांधी के लिए कड़वाहट रह गई.
सावरकर ने अपनी पुस्तक 'मोपला' के द्वारा यह दिखाया कि हिंदुओं की गुलामी का मुख्य कारण जाति- व्यवस्था और छुआछूत है. सावरकर ने अपनी पुस्तक मोपला में नंबूदरी ब्राह्णण लक्ष्मी और अछूत तिया जाति के दामू के बीच विवाह करवा दिया. गौरतलब है कि उस वक्त नंबूदरी ब्राह्णणों से तिया जाति के लोग 24 फीट की दूरी पर खड़े किये जाते थे ताकि उनकी परछाईं भी ब्राह्णणों का स्पर्श नहीं कर सके.
नोट - वीर सावरकर को भले ही वामपंथी या मुस्लिम विद्धान उन्हें अपना दुश्मन मानते हों लेकिन हिंदू जाति में जाति व्यवस्था और छुआछूत के मामले में वो गांधी के मुकाबले अबेंडकर के ज्यादा करीब लगते हैं.
भले ही अंबेडकर इस व्यवस्था के खिलाफ हिंदू धर्म से ही बाहर खुद को निकाल देते हैं लेकिन फिर वो भी हिंदू धर्म के ही एक संप्रदाय बौद्ध संप्रदाय में दीक्षा लेते हैं. बौद्ध संप्रदाय में भी वर्ण व्यवस्था है ,लेकिन कर्म के आधार पर है. बौद्ध संप्रदाय में क्षत्रियों को ब्राह्णणों से उपर स्थान दिया गया है लेकिन यहां भी शूद्र सबसे निचले पायदान पर हैं. अब अंबेडकर जी ने बौद्ध संप्रदाय को क्यों अपनाया ये सवाल लाजिमी है.
लेकिन सावरकर की व्यवस्था में जाति प्रथा और छुआछूत को पूरी तरह खत्म कर हिंदुओं को एक राष्ट्र के रुप में संगठित करना था. एक ऐसे कौम की तरह जैसे इस्लाम और ईसाइयत खड़ी है. संगठित और एक विचार से भरी. सावरकर का मानना था कि हिंदू जब तक जाति व्यवस्था को तोड़ेगा नहीं वो एक राष्ट्र के रुप में संगठित नहीं हो सकेगा और न ही प्रगतिशील होगा.
सावरकर ने जाति प्रथा के उन्मूलन के लिए रत्नागिरी में एक अंतरजातीय होटल भी खोला जहाँ बिना किसी भेदभाव और छुआछूत के सभी जाति के लोग एक साथ भोजन करते थे. सावरकर ने अंतरजातीय सामूहिक विवाहों का आयोजन कर ही हिंदुओ को एक करने का प्रयास भी किया.
गांधी जी का विचार इस मामले में अलग था. वो बनी बनाई व्यवस्था को तोड़ना नहीं चाहते थे. बस कुछ सुधारों के हिमायती थी जिनमें अछूत कल्याण प्रमुख था. छुआछूत के वो भी विरोधी थे, लेकिन जातियों के बीच अंतर को कायम रखना चाहते थे. यही वजह थी कि अंबेडकर ने गांधी जी के अछूत उद्धार कार्यक्रमों को हमेशा मजाक बताया और विरोध करते रहे.
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