New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 28 मार्च, 2016 05:35 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
  @RKSinha.Official
  • Total Shares

दिल्ली के विकासपुरी में डॉक्टर पंकज नारंग की हत्या पर सेक्युलर बिरादरी की चुप्पी डराने वाली है. इसके चलते ये एक्सपोज भी हो गई है. इसने दादरी के अखलाक और डा. नारंग की हत्यायों में भी फर्क करना शुरू कर दिया है. ये कह रहे हैं कि डा.नारंग की हत्या सांप्रदायिक नहीं है. ज़िन्दगी बचाने वाले डॉक्टर की सरेआम हत्या कर दी जाती है, पर खामोश है ये 'सदबुद्धिजीवी'. अब कहां गई असहिष्णुता? विकासपुरी में डा. नारंग की हत्या को दादरी कांड वाले अखलाख से अलग बताने वाले 'सद्बुद्धिजीवी' तमाम कुतर्क देने लगे हैं.

एक दादरी हादसे को लेकर सेक्युलर बिरादरी जिस तरह से सोशल मीडिया पर एक्टिव हुई थी और मोमबती मार्च निकाल रही थी, ये सब करने की उसने डा.नारंग के कत्ल के बाद जरूरत नहीं समझी. क्यों? इन्हें इस सवाल का जवाब इन्हें देना होगा. यहीं नहीं, इन्होंने संघ के कार्यकर्ताओं के केरल और असम में इस्लामिक कट्टरपंथियों और उग्र वामपंथियों द्वारा लगातार कत्ल की घटनाओं पर कभी स्यापा नहीं किया. ये कभी असम या पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी भाषियों के मारे जाने पर भी विचलित नहीं हुए.

अब जरा देखिए कि देश विरोधी नारे लगाने वाले कन्हैया के पक्ष में सेना में "बलात्कारी" ढूँढ लेते हैं, अफजल में "शहीद" ढूँढ लेते हैं, वो,डाक्टर नारंग के हत्यारों में "धर्म" ना ढूँढ़ने की अपील कर रहे हैं. इन्हें क्या मालूम कि कि अब जनकपुरी वेस्ट मेट्रो स्टेशन के पास रहने वाले डाक्टर पंकज नारंग की पत्नी, सात साल के बेटे और विधवा मां की जिंदगी किस तरह से गुजरेगी. उस अभागे डा. पकंज नारंग का कसूर इतना ही था कि उन्होंने कुछ युवकों को तेज मोटर साइकिल चलाने से रोका था. बस इतनी सी बात से ये अराजक युवक इतने खफा हो गए कि उन्होंने डाक्टर नारंग और उनके जीजा को बेरहमी से पीटा. डाक्टर नारंग ने दम तोड दिया और उनके जीजा अस्पताल में हैं. मेरे एक परिचित ने डा. नारंग की शोक सभा में भाग लिया. उसने बताया कि वहां पर नाराजगी इस बात से थी कि अखलाक मारा जाता है तो मीडिया छाती पीट-पीट कर सांप्रदायिकता का रंग दे देता है और एक संप्रदाय विशेष के लोग आकर किसी को उसके दरवाजे पर ही बेरहमी से पीट-पीटकर जान से मार जाएं तो उसे “रोड़ रेज”कहते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव रखने की अपील की जाती हैं. कुछ चैनलों और उनके दिग्गज पत्रकारों को लोग नाम ले ले कर कोस रहे थे.

दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट कमिशनर दीपेंद्र पाठक भी कह रहे कि ये रोड़ रेज नहीं है. ये साफ साफ हत्या है और वो भी सुनियोजित तरीके से. डा.नारंग की उनके 7 साल के मासूम पुत्र के सामने हत्या कर दी जाती है. जरा सोचिए कि इस घटना का उस बच्चे पर जीवनभर कितना गहरा असर रहेगा. इस घटना को सांप्रदायिक दृष्टि के साथ-साथ मानवता के गिरते मूल्यों पर पड़ताल के नज़रिए से देखने की जरूरत है. छोटी-छोटी बातों पर हम क्यों एक-दूसरे का ख़ून करने पर उतर आते हैं? इस पर मनन होना चाहिए.

बहरहाल, डा. नारंग की हत्या से लगता है कि छद्म धर्मनिरपेक्ष बिरादरी विचलित नहीं हुई है. उसे इस हत्या से गोया कोई लेना-देना नहीं हो. यह बिरादरी बीते दिनों दो मुद्दों पर भारत सरकार से लेकर पूरे हिन्दू समाज को कोस रही थी. दिल्ली के निकट ग्रेटर नोएडा के दादरी में गोमांस खाने की झूठी (या सच्ची यह तो जांच में ही सिद्ध होगा) अफवाह के कारण एक व्यक्ति की पीट- पीटकर हत्या की घटना को अंजाम दे दिया गया. जाहिर है, सारा देश इस घटना से शर्मसार था. इसकी चौतरफा निंदा भी हुई. पर, कथित धर्मनिरपेक्ष बिरादरी इतने से ही संतुष्ट नहीं हुई. उसे इस घटना के कारण भारत के किसी कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र बनने की आशंका सता रही थी. हालांकि, घटना उत्तर प्रदेश की थी, लेकिन, ये राज्य सरकार के खिलाफ एक शब्द भी बोलने से बचते रहे. कानून-व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, सेक्युलरवादी इस तथ्य की अनदेखी करते रहे.

दादरी कांड से पहले सेक्युलर बिरादरी मुंबई बम धमाकों के गुनहगार याकूब मेनन के हक में खड़ी थी. बेशर्मी के साथ उसको फांसी की सजा दिए जाने के विरोध में देश की न्याय व्यवस्था को पत्थर मार रही थी. उसके बाद इन्होंने जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी करने वालों का भी साथ दिया.

दादरी कांड के मामले में जाहिराना तौर पर सियासत की रोटी सेंकी गई और इसे जबरन मजहब से जोड़ा गया. पर विकासपुरी में डाक्टर नारंग की हत्या को सामान्य अपराध का केस बता रही है ये बिरादरी. इस दोहरे चरित्र को देश कब तक सहन करेगा.

इसे भी पढ़ें: अखलाक और डॉक्टर नारंग की हत्या में फर्क क्या है?

ये सेक्युलरवादी खुद तय कर देते हैं कि कब धर्मनिरपेक्षता खतरे में है और कब सुरक्षित है. ये नेपाल के धर्मनिपेक्ष राष्ट्र घोषित होने से गदगद थे, पर बांग्लादेश में बीते कुछ समय के दौरान हिन्दू ब्लॉगरों के कत्ल से इन्हें कोई असर नहीं हुआ. ये बांग्लादेश में हिन्दू ब्लॉगर अविजित रॉय की निर्मम हत्या और उनकी पत्नी के ऊपर हुए जानलेवा हमले के बावजूद चुप रहे. इस घटना के बाद भी वहां पर कई हिन्दू ब्लॉगरों पर हमले होते रहे. बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के लिए स्पेस जीवन के सभी क्षेत्रों में घट रहा है. पर मजाल है कि भारत के सेक्युलरवादियों ने उनके हक में कभी मोमबत्ती मार्च निकाला हो.अविजित रॉय बांग्लादेश मूल के अमेरिकी नागरिक थे. वे हिन्दू थे. वे और उनकी पत्नी बांग्लादेश में कट्टपंथी ताकतों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे, अपने ब्लॉग के जरिए. पाकिस्तान में तो हिन्दुओं की जिस तरह की दिल-दहलाने वाली हालत है, उसे यहां पर बयां करने का कोई मतलब ही नहीं है. सारी दुनिया को वहां पर हिन्दुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे जुल्मों-सितम की जानकारी है.

डाक्टर नारंग की हत्या के बाद इनके रुख से साफ है कि अपने को प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष ताकतों का हिमायती कहने-बताने वाले संगठन और लोग किस तरह से काम करते हैं.

ये सेक्युलरवादी खुद तय कर देते हैं कि कब धर्मनिरपेक्षता खतरे में है और कब सुरक्षित है.

लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय