केस छोड़ने का नुकसान वकील समझें, केजरीवाल के लिए तो फायदे का ही सौदा है!
मानहानि मामले में अरविंद केजरीवाल के वकीलों का केस छोड़ना ऊपरी तौर भले ही चिंता की बात लगे. मगर, ऐसा नहीं है. इसमें तो केजरीवाल का ही फायदा नजर आ रहा है.
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खबर तो ये है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दूसरे वकील ने भी उनका केस लड़ने से इंकार कर दिया है. खबर के अंदर की खबर कुछ और है!
जाने माने वकील और राज्य सभा सांसद राम जेठमलानी इससे पहले केजरीवाल का केस छोड़ चुके हैं. मानहानि का ये केस वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केजरीवाल और उनके साथियों के खिलाफ दायर किया है.
अगर वकीलों को भी लगता है कि उनके केस छोड़ देने से केजरीवाल का नुकसान हो जाएगा तो उनका अंदाजा गलत साबित हो सकता है. थोड़ा गौर फरमायें तो लगता है कि वकीलों का केस छोड़ने से जो भी नुकसान हो - केजरीवाल के लिए तो फायदा ही फायदा है. आइए समझने की कोशिश करते हैं.
ऊपरी तौर पर खबर
मशहूर वकील राम जेठमलानी के केस छोड़ देने के बाद सीनियर वकील अनूप जॉर्ज चौधरी दिल्ली हाई कोर्ट में अरविंद केजरीवाल की ओर से पैरवी कर रहे थे. जिरह के दौरान केजरीवाल के वकील जेठमलानी ने जेटली को CROOK कह डाला था. इस पर जेटली ने पूछा था कि इस शब्द का इस्तेमाल वो खुद कर रहे हैं या फिर अपने क्लाइंट के कहने पर. कोर्ट में तो जेठमलानी ने कह दिया कि क्लाइंट के कहने पर, लेकिन केजरीवाल साफ मुकर गये. बाद में जेठमलानी ने केस छोड़ दिया और पत्र लिख कर बताया कि कैसे केजरीवाल के कहने पर उन्होंने उस शब्द का इस्तेमाल किया था.
तस्वीरें भी कई बार सियासत की भाषा नहीं बोल पातीं!
सीनियर वकील चौधरी ने आरोप लगाया है कि उनके क्लाइंट ठीक से केस की ब्रीफिंग नहीं करते जिसकी वजह से कोर्ट में उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. चौधरी ने इस सिलसिले में 12 फरवरी की सुनवाई का जिक्र किया है.
सुनवाई के दौरान हुए वाकये के बारे में चौधरी ने कहा, "ब्रीफिंग में इस लचर और लापरवाह ढंग की वजह से मुझे भुगतना पड़ा और मैं निश्चित तौर पर इसका पक्ष नहीं बनना चाहूंगा." चौधरी ने पत्र लिख कर सूचित कर दिया है कि आगे से वो केजरीवाल के केस की पैरवी करने में असमर्थ होंगे.
केजरीवाल के अलावा मानहानि के इस मामले में आम आदमी पार्टी और नेता भी आरोपी हैं - राघव चड्ढा, कुमार विश्वास, आशुतोष, संजय सिंह और दीपक वाजपेयी. इन नेताओं ने जेटली पर आरोप लगाया था कि 2000 से 2013 तक डीडीसीए का अध्यक्ष रहते उन्होंने भ्रष्टाचार किया था.
अब अंदर की खबर
अंदर की खबर को समझने के लिए वहां लौटना होगा जब कोर्ट ने मानहानि के मामले की शीघ्र सुनवाई का आदेश दिया था. आप नेता आशुतोष ने सिंगल जज आदेश को चैलेंज किया. इसको लेकर उनकी खिंचाई भी हुए. ये बात अगस्त, 2017 की है.
सुनवाई कर रही अदालत की पीठ इस पर टिप्पणी थी, "हम त्वरित तरीके से सुनवाई कराने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए किसी एक जज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता."
इतना ही नहीं बेंच ने तब आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा था, "हम पहली बार सुन रहे हैं कि एक पक्ष त्वरित सुनवाई से दुखी है, क्योंकि यह खत्म हो जाएगा." मानहानि के मुकदमे की जल्द सुनवाई के एक न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ केजरीवाल की इस याचिका को बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था.
एक और ऐसा वाकया है जिस पर गौर किया जा सकता है. मानहानि केस में एक बार केजरीवाल की ओर जवाब दाखिल किया जाना था. जवाब देने में देर के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल पर ₹ 5000 का जुर्माना लगाया.
जरा सोच कर देखिये. वकीलों के केस छोड़ने से पहला नुकसान तो उन्हीं को होना है. अगर केस नहीं लड़ेंगे तो फीस कहां से मिलेगी. ये बात और है कि इससे उनकी कमाई पर असर तो नहीं ही पड़ेगा. क्लाइंट केजरीवाल नहीं तो कोई और होगा.
केस की जल्द सुनवाई के खिलाफ जब याचिका खारिज हो जाये. जवाब न देने पर पांच हजार रुपये का जुर्माना देना पड़े. इससे अच्छा तो यही है कि वकील अपना केस छोड़ते रहें. एक छोड़ेगा तो दूसरा आएगा. दूसरा छोड़ेगा तो तीसरा आएगा. जो भी नया वकील आएगा उसे भी तो केस समझने के लिए थोड़ा वक्त तो चाहिये ना.
ये भी तो हमारी न्याय व्यावस्था की खूबसूरती ही है कि किसी भी पक्ष की पूरी बात सुने बगैर फैसला नहीं सुनाया जा सकता. अब जब तक केजरीवाल का पक्ष सुना नहीं जाएगा फैसला कैसे सुनाया जा सकता है. कम से कम इस तरीके से तो केस टल ही जाएगा. सोच कर देखिये. है कि नहीं फायदे की बात!
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