Shah Faesal के लिए मोदी सरकार को जम्मू-कश्मीर में बड़ा रोल तैयार करना चाहिये
शाह फैसल (Shah Faesal) की प्रशासनिक पृष्ठभूमि भी है और छोटा ही सही राजनीतिक अनुभव भी. Article 370 हटाये जाने के बाद अगर शाह फैसल के अनभवों के कॉम्बो पैकेज का फायदा जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के लोगों किसी रूप में मिलता है तो उनकी प्रतिभा का बेहतर इस्तेमाल हो सकेगा.
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शाह फैसल (Shah Faesal) के प्रशासनिक सेवा में लौटने की चर्चा है. शाह फैसल को ये उम्मीद तो है कि जम्मू-कश्मीर में एक दिन फिर से सब कुछ पहले जैसा होने लगेगा लेकिन ऐसा कब होगा, किसी को नहीं मालूम. अपनी छोटी सी राजनीतिक पारी को शाह फैसल फेल तो नहीं मानते, लेकिन ये जरूर मानते हैं कि Article 370 हटाये जाने के बाद बदली परिस्थितियों की जो हकीकत है उसमें अगर कोई पॉलिटिकली करेक्ट नहीं है, तो उसके लिए कुछ भी करने की गुंजाइश जरा भी नहीं है.
बीजेपी के सीनियर नेता मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) का उप राज्यपाल बनाये जाने के बाद, अब शाह फैसल को भी किसी महत्वपूर्ण भूमिका में देखने की कोशिश हो रही है - अब तक का शाह फैसल का जो भी ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, एक बात तो साफ तौर पर समझ आती है कि वो घाटी की क्षेत्रीय राजनीति में लोगों को एक नयी रोशनी दिखाने की कोशिश कर रहे थे. वो न तो पाकिस्तान परस्त अलगाववाद के पक्षधर रहे और न ही मुख्यधारा की राजनीति के साथ साथ केंद्र से विरोध वाली तरफ नजर आये थे. हां, जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे में उनकी दिलचस्पी जरूर रही, लेकिन अब वो सूबे के मौजूदा स्वरूप को ही आखिरी सच मानते हैं - ऐसे में शाह फैसल अगर किसी नये रोल में नजर आते हैं तो जम्मू-कश्मीर को लेकर एक अच्छी उम्मीद की जानी चाहिये.
एक छोटी सी राजनीतिक पारी
जम्मू-कश्मीर को लेकर मनोज सिन्हा के बाद अगर कोई चर्चा में है तो वो हैं - शाह फैसल. मेडिकल की पढ़ाई के बाद IAS परीक्षा टॉप करने वाले शाह फैसल जितनी राजनीति शुरू करने को लेकर चर्चा में रहे, उतनी ही चर्चा फिलहाल उनके राजनीति छोड़ने को लेकर हो रही है.
शाह फैसल ने राजनीति की शुरुआत तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह की थी, लेकिन ऐसे में जब उनके प्रशासनिक सेवा में लौटने की चर्चा है - शाह फैसल की तुलना बिहार के मौजूदा डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे से होने लगी है. केजरीवाल, शाह फैसल और गुप्तेश्वर पांडे में प्रशासनिक बैकग्राउंड तुलना के लिए कॉमन फैक्टर हो रहा है, हालांकि, शाह फैसल ने उससे पहले मेडिकल की पढ़ाई की थी और गुप्तेश्वर पांडेय ने संस्कृत की. ऐसे वक्त जब नयी शिक्षा नीति में संस्कृत को महत्व दिये जाने की आलोचना करके ट्रोल हो रहे मोटिवेशनल स्पीकर संदीप माहेश्वरी ट्रोल हो रहे हैं, जानना दिलचस्प है कि गुप्तेश्वर पांडे ने यूपीएससी की परीक्षा संस्कृत में ही दी थी.
गुप्तेश्वर पांडेय फिलहाल सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर अपने बयानों के लिए सुर्खियों में छाये हुए हैं - और उनके बयानों में जो राजनीतिक तेवर देखने को मिल रहा है वो कहीं न कहीं उनकी दबी इच्छाओं को उभार कर पेश कर रहा है. 2009 में गुप्तेश्वर पांडेय ने सेवा से वीआरएस ले लिया था क्योंकि वो बक्सर से लोक सभा का चुनाव लड़ना चाहते थे - जब लालमुनि चौबे के बगावती रूख के बाद बीजेपी से टिकट नहीं मिला तो वो बिहार सरकार से इस्तीफा वापस लेने की गुजारिश किये और सरकार ने भी मान लिया.
प्रशासनिक सेवा के चलते शाह फैसल का मामला भले ही गुप्तेश्वर पांडेय या अरविंद केजरीवाल जैसा लगता हो, लेकिन बहुत हद तक अमिताभ बच्चन और आशुतोष जैसा ही लगता है. अमिताभ बच्चन जहां कांग्रेस के टिकट पर इलाहाबाद से लोक सभा का चुनाव जीतने के कुछ दिन बाद राजनीति छोड़ दिये, वहीं आशुतोष ने दिल्ली से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में लोक सभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गये - कुछ दिन प्रवक्ता के तौर पर टीवी डिबेटों में आप का बचाव करते भी देखा गया जिसमें उनका फूट फूट कर रोना भी शामिल है. बाद में अमिताभ बच्चन के एक्टिंग में वापसी की तरह आशुतोष भी राजनीतिक नाकामी के बाद पत्रकारिता में लौट चुके हैं.
अपनी राजनीतिक पार्टी के लांच के मौके पर बेटे के साथ शाह फैसल. साथ में, जेएनयू की पूर्व छात्रनेता शेहला रशीद भी हैं.
शाह फैसल ने वैसे तो अरविंद केजरीवाल की तरह ही बाकायदा राजनीतिक पार्टी बनाकर राजनीति शुरू की, लेकिन जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने के बाद बदले हालात में आगे बढ़ने का फैसला किया है. जब शाह फैसल ने राजनीति शुरू की थी तब दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति अलग रही - अब तो दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां प्रशासनिक प्रमुख उप राज्यपाल होते हैं - विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू कश्मीर को भी मुख्यमंत्री मिल जाएगा, लेकिन अभी काफी वक्त है.
अब जबकि शाह फैसल के प्रशासनिक सेवा में वापसी का जिक्र चल रहा है, देखना है आगे के सफर में उनकी सोच किस दिशा में जा रही है और उनसे लोगों की अपेक्षाएं कैसी हो सकती हैं?
शाह फैसल अब क्या सोचते हैं
शाह फैसल को लेकर अब केंद्र सरकार की तरफ से सरप्राइज के कयास लगाये जाने लगे हैं - मीडिया रिपोर्ट में शाह फैसल की भूमिका मनोज सिन्हा के सहयोगी और सलाहकार के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, उमर अब्दुल्ला के नजरिये से देखें तो ये भी जरूरी नहीं कि वाकई वैसा ही सरप्राइज मिलने जा रहा हो.
मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बनाये जाने की खबर आने पर नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर लिखा था कि सूत्रों के हवाले से जो कुछ मीडिया में चल रहा होता है, मान कर चलना चाहिये कि ये सरकार उससे इतर और बहुत ही अलग करने वाली है.
Last night there were one or two names that people were circulating as a done deal & this name wasn’t among them. You can always trust this government to pull an unexpected name out of the hat contrary to anything the “sources” had planted earlier ???? https://t.co/b2wI25Fu0a
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) August 6, 2020
बहरहाल, पक्की खबर का इंतजार तो करना ही होगा. इंडिया टुडे से बातचीत में शाह फैसल जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति को स्वीकार करते हुए मानते हैं कि लोगों को भी इसके साथ आना होगा, कहते हैं, 'IAS के सदस्य के रूप में, मैं इस राष्ट्र के भविष्य में एक हितधारक रहा हूं. मैं सोच भी नहीं सकता कि कुछ लोग भारत विरोधी क्यों होंगे. मुझे एक ऐसे राष्ट्र के गद्दार के रूप में नहीं देखा जा सकता है जिसने मुझे जीवन में सब कुछ दिया है. अब मैं आगे बढ़ना चाहता हूं और सब नए सिरे से शुरू करना चाहता हूं.'
शाह फैसल ने 2019 के आम चुनाव से पहले जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट राजनीतिक पार्टी बनायी थी, लेकिन अब वो इसके अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं. शुरुआती दौर में शाह फैसल के साथ जेएनयू की छात्रनेता रहीं शेहला रशीद भी मजबूत सहयोगी के तौर पर जुड़ी थीं. पहले तो शाह फैसल ने लोक सभा चुनावों में दिलचस्पी दिखायी थी, लेकिन वक्त कम होने की वजह से इरादा बदल दिया और विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये - लेकिन चुनाव बाद जब 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म कर दी गयी तो सब कुछ ठप हो गया. बाकी नेताओं की तरह शाह फैसल को भी कई महीने तक नजरबंद रखा गया था.
आम चुनाव से इंडिया टुडे कॉनक्लेव में शाह फैसल ने घाटी में आतंकवाद को सामाजिक समर्थन मिलने लगा है - और वास्तव में इससे खतरनाक कुछ हो भी नहीं सकता. घाटी में आतकंवाद के समर्थन मिलने की बात से शाह फैसल खुद भी हैरान थे और कहा था कि किसी ने ऐसी उम्मीद नहीं की थी.
शाह फैसल ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म किये जाने को लेकर केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की तीखी आलोचना भी की थी, लेकिन अब वो मानते हैं कि जमीनी हकीकत बदल गयी है - पॉलिटिकली करेक्ट हुए बिना राजनीति करना बहुत मुश्किल है.
बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में शाह फैसल कहते हैं, 'मैं बहुत विनम्रता के साथ राजनीति छोड़ रहा हूं - और लोगों को बता रहा हूं कि मैं झूठी उम्मीदें नहीं दिला सकता कि मैं आपके लिए ये करूंगा, वो करूंगा, जबकि मुझे पता है कि मेरे पास ऐसा कर पाने की ताकत नहीं है.'
शाह फैसल से बीबीसी का सवाल होता है - क्या फिर से उसी सिस्टम में लौटना चाहते हैं जहां से आप कुछ बड़ा करने के लिए बाहर निकले थे?
शाह फैसल कहते हैं, 'मैंने कभी सिस्टम नहीं छोड़ा. मैं एक छोटे सिस्टम से दूसरे में शिफ्ट हुआ था. मेरी विशेषज्ञता लोक प्रशासन है और मुझे सरकार के साथ काम करने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन वो कब और कैसे होगा मुझे फिलहाल नहीं पता.'
शाह फैसल अभी 37 साल के हैं और अब तक वो प्रशासनिक अनुभव के साथ साथ राजनीति की छोटी सी पारी में ही काफी कुछ सीख चुके हैं. बताते हैं, 'PSA के तहत मेरी खुद की हिरासत भी मेरे लिए एक बड़ा सबक थी. मुझे जिंदगी को अलग ढंग से देखने का मौका मिला - मुझे अहसास हुआ कि हालात कितने मुश्किल हैं.'
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