Maharashtra की सियासत के 7 अहम पड़ाव जिसने शरद को 'शाह' बना दिया
शरद पवार (Sharad Pawar) को संजय राउत (Sanjay Raut) ने डॉन की तरह पेश करते हुए कहा था कि उन्हें समझना मुश्किल नहीं नामुमकिन सा है. लगता है पवार की सियासी चालों को अमित शाह (Amit Shah) भी ठीक से भांप नहीं पाये.
-
Total Shares
महाराष्ट्र की 14वीं विधानसभा के सदस्यों का शपथग्रहण भी अलग ही रहा. जब सदन का विशेष सत्र शुरू हुआ तब तक न तो सरकार बन पायी थी, न ही मुख्यमंत्री की नियुक्ति या डिप्टी CM का नाम तक ही फाइनल हो पाया था. अंदर ही अंदर हुआ भी हो तो उद्धव ठाकरे ही सीएम होंगे, ऐसा कुछ तो बताया नहीं गया है. अब तक तो यही परंपरा रही है कि सबसे पहले मुख्यमंत्री का शपथग्रहण होता और फिर बाकी सदस्यों को शपथ दिलायी जाती है. प्रोटेम स्पीकर तो बीजेपी के ही रहे, लेकिन उनके शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पहले ही इस्तीफा दे चुके थे.
महाराष्ट्र की सियासी जंग को शरद पवार बनाम अमित शाह के रूप में लिया जा रहा है. ज्यादातर चीजों को देखने का नजरिया भी नतीजों से ही तय होता है. महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे तो कोई और ही कहानी कह रहे थे, लेकिन वो फाइनल नजीते नहीं थे - क्या पता जो नजर आ रहा वो भी फाइनल से पहले की कोई झलक ही हो.
1. प्रधानमंत्री मोदी और शरद पवार की वो मुलाकात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शरद पवार की दिल्ली में हुई मुलाकात को महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम में निर्णायक मोड़ की तरह देखा गया. जब रातों रात राष्ट्रपति शासन हटाये जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली तो पक्का लगने लगा था कि खेल के पीछे शरद पवार का ही हाथ है. अजित पवार को लेकर उद्धव ठाकरे के साथ मीडिया के सामने आये शरद पवार ने जो बयान दिया वो तो और भी संदेह पैदा करने वाला रहा. ऐसा तब तक लगा जब तक कि NCP विधायकों ने जयंत पाटील को अपना नया नेता नहीं चुन लिया.
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अचानक ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और शरद पवार की पार्टी NCP की तारीफ कर हर तबके को पॉलिटिकल मैसेज दे दिया था. संदेश तो यही था कि शिवसेना के दगा देने के बाद बीजेपी और एनसीपी परदे के पीछे सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हकीकत तो शरद पवार को मालूम ही थी, लिहाजा उसे और हवा देने के लिए किसानों के नाम पर वो मुलाकात भी कर आये. अब तो ऐसा लगता है, मोदी के साथ पवार की वो मुलाकात बीजेपी नेतृत्व की राजनीतिक चालों पर काउंटर अटैक था.
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा...
शरद पवार मिले भी और अपने मिशन में लगे रहे - और अंजाम तक पहुंचा कर ही दम लिया.
2. अजित पवार किसके प्यादा रहे - BJP या NCP के?
जब चुनावी माहौल चरम पर था, अजित पवार ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था - और अपने बेटे पार्थ पवार से कह दिया कि 'खेती, राजनीति करने से ज्यादा फायदेमंद है'. ये तब की बात है जब ED ने शरद पवार और अजित पवार सहित कई लोगों के खिलाफ FIR दर्ज किया था. शरद पवार ने जहां पूछताछ के लिए ED अधिकारियों के सामने पेश होने की बात की, अजित पवार ने राजनीति से ही संन्यास लेने की चर्चा आगे बढ़ा दी. जब तक अजित पवार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बने रहे NCP की विरासत, सुप्रिया सुले को पार्टी में तरजीह और शरद पवार से मनमुटाव की खबरें छायी रहीं. अजित पवार के लौटने पर अलग ही नजारा देखा गया - सुप्रिया सुले आगे बढ़ कर गले मिलीं और पैर भी छुये.
अव्वल तो कयासों से ज्यादा किसी के हाथ कुछ लगने वाला है नहीं, फिर भी जो घटनाक्रम हुए उनके पीछे की राजनीतिक समझने की कोशिश तो होनी ही चाहिये.
संजय राउत का बयान भी गौर करने लायक है - 'अजित पवार को गठबंधन में ठीक स्थान मिलेगा, वो बहुत बड़ा काम करके आये हैं.' संजय राउत चाहें शेरो-शायरी करें या कार्टून ही ट्वीट क्यों न करें, सबको मालूम है कि वो किसी दूसरे के मन की ही बात करते हैं.
सबसे बड़ी बात शरद पवार ने फडणवीस और अजित के शपथ के बाद भी भतीजे के खिलाफ एक्शन लेने की बात नहीं की. अजित पवार को विधायकों के नेता पद से हटाया गया लेकिन पार्टी का अनुशासन तोड़ने या पार्टी विरोधी काम के लिए कोई एक्शन नहीं लिया गया. वैसे अजित पवार की बगावत एक्शन लायक तो थी ही. शरद पवार आखिर तक उसे अजित पवा का निजी फैसला बताते रहे.
ऐसे में एक सवाल सहज तौर पर उठ रहा है - ये सब वाकई अजित पवार की बगावत रही या फिर शरद पवार की सोच समझ कर लिखी गयी स्क्रिप्ट का हिस्सा?
3. विधायक दल का नेता बदलने की सूचना और होटल में परेड
जब तक महाविकास अघाड़ी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथग्रहण को चैलेंज नहीं किया गया था - कोई मानने को तैयार न था कि गाए कुछ नया होने वाला है.
प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ और उसके बाद शरद पवार की मुलाकात में जो माइंड-गेम चल रहा था, एनसीपी नेता ने होटलों में ठहराये गये विधायकों को लेकर एक और कारगर रणनीति तैयार कर ली. शरद पवार के ऐसे हर कदम में चार कदम आगे की सोच देखी जा सकती है.
जब तक जोरआजमाइश चलती है, सरकार बनाने वाले दोनों पक्ष विधायकों के सपोर्ट की चिट्ठी या उन्हें साथ लेकर राजभवन पहुंचते हैं - जिसे विधायकों के परेड की संज्ञा दी जाती रही है. फडणवीस के फिर से सीएम बन जाने के बाद ऐसा कोई स्कोप भी नहीं बचा था, लिहाजा पवार ने दिमाग दौड़ाया. शरद पवार ने हर मौके का पूरा फायदा उठाया. राजभवन और विधानसभा में NCP के नये नेता की आधिकारिक सूचना और 53 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र भिजवा दिया. पत्र में नाम हस्ताक्षर न होने के बावजूद अजित पवार का भी नाम डाल दिया गया. दूसरी तरफ, अजित पवार भी खुद को एनसीपी में और शरद पवार को भी अपना नेता बताते रहे.
पूरी तैयारी के बाद, शरद पवार ने एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस विधायकों की लाइव टीवी पर होटल में ही परेड करा दी - मराठी में 'आम्ही 162' के पोस्टर भी लगा दिये गये थे.
बीजेपी को इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा था कि जब होटल में 162 विधायक सोनिया गांधी, उद्धव ठाकरे और शरद पवार की कसमें खा रहे हैं तो फ्लोर टेस्ट में देवेंद्र फणडवीस के पक्ष में कौन खड़ा होने जा रहा है?
ये सब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ चौतरफा दबाव बनाने की शरद पवार की बड़ी कोशिश रही - और काम भी आयी.
4. कांग्रेस की लीगल टीम पर पूरा भरोसा रहा
शरद पवार को कांग्रेस की लीगल टीम पर पक्का यकीन रहा. भले ही अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल की जोड़ी कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को जेल जाने से नहीं बचा पायी, लेकिन कर्नाटक में तो आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर कमाल दिखाते हुए कमल नहीं ही खिलने दिया था. शरद पवार जानते थे कि सुप्रीम कोर्ट सियासी उठापटक के रतजगे भी इस बार शामिल भले न हो, लेकिन मेन स्वीच तो वहीं से ऑफ या ऑन होगा.
शरद पवार अच्छी तरह जानते थे कि सिर्फ विधायकों को साथ रखने और तीनों दलों के नेताओं के साथ खड़े रहने से सब कुछ नहीं होने वाले - मोदी-शाह की जोड़ी को सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश से ही मजबूर किया जा सकता है.
5. उद्धव ठाकरे का भी पूरा इस्तेमाल किया
शरद पवार क्या ये तो हर कोई जानता था कि महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के बाद शिवसेना का सपोर्ट बीजेपी की कमजोर कड़ी बन चुका है. शिवसेना के साथ गठबंधन टूट जाने की स्थिति में बीजेपी के लिए दो ही रास्ते संभव थे - या तो NCP 2014 की तरह फिर से सपोर्ट में खड़ी हो जाये या फिर किसी भी दल के दो-तिहाई विधायक टट जायें - आखिरी रास्ता 'ऑपरेशन लोटस' तो था ही, लेकिन शरद पवार विधायकों को साथ रख कर उसके खिलाफ पहले ही मुकम्मल इंतजाम कर चुके थे.
बीजेपी के खिलाफ शरद पवार ने सबसे पहला वार गठबंधन पर ही किया - और उद्धव ठाकरे के अंदर भड़की आग को खूब हवा देते रहे. इस लड़ाई में उद्धव ठाकरे एक मजबूत कंधा लेकर मैदान में डटे रहे और शरद पवार ने इसका भरपूर फायदा उठाया.
उद्धव ठाकरे ने जो कभी सपने में नहीं सोचा था, वो सपना दिखा दिया - और आखिर तक न आग बुझने दी न सपना टूटने दिया. उद्धव ठाकरे ने सपने की बात तो खुलेआम ही कबूल की है.
ED के FIR के बाद अपने पक्ष में आये मातोश्री की तरफ से बयान को शरद पवार पहले ही भांप चुके थे - और बाकियों की तरह उद्धव ठाकरे का भी हर कदम पर पूरा इस्तेमाल किया.
6. सोनिया के नाम पर भी खूब खेल हुआ
जब महागठबंधन के नेताओं के बीच कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर बातचीत चल रही थी, तो बार बार यही सुनने को मिलता रहा कि थोड़ी बातचीत हुई और ज्यादा बाकी है. ये भी कोई सामान्य बात नहीं थी, इसके पीछे भी राजनीतिक चालें थीं.
जब सोनिया के करीबी नेता उद्धव ठाकरे से मिले तो मालूम हुआ कि शरद पवार ने दोनों ही पक्षों को जो बातें बतायी हैं - वे सब उनके मन की बातें हैं. दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे को लेकर वैसा कुछ भी नहीं कहा था. साफ रहा, सोनिया गांधी के नाम पर भी शरद पवार खूब खेल खेलते रहे. जब तक संभव हुआ शिवसेना के साथ सारा मोलभाव सोनिया गांधी के नाम पर ही करते रहे.
हर किसी को हर बात की खबर लग चुकी थी, फिर भी एक दूसरे के बगैर किसी का काम आगे नहीं बढ़ता इसलिए सभी चुप रहे. मौका निकाल कर शरद पवार प्रधानमंत्री मोदी से पहले सोनिया गांधी से भी मिल आये.
7. ED की FIR से लेकर सतारा की बारिश तक
लगता तो ऐसा है कि शरद पवार ने ईडी की एफआईआर से ही अपनी ताजा राजनीतिक पारी शुरू कर दी थी. भाग्य भी शरद पवार का साथ देता गया - और उनके विल पावर का तो लोग लोहा मानते ही हैं कि कैसे उसी के बूते उन्होंने कैंसर जैसी बीमारी को शिकस्त दे दी.
महाराष्ट्र की ताजा राजनीति कई बार बिहार में हुए डीएनए टेस्ट की भी झलक मिली. देवेंद्र फडणवीस को गैर-मराठा होने का भी नुकसान हुआ लगता है. सबसे दिलचस्प बात रही, संजय राउत की बातों का धीरे धीरे हकीकत बनते जाना. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने जो आंखों देखा हाल सुनाया वो तो सच हो गया - देखना होगा आगे क्या क्या होता है?
उद्धव ठाकरे की बातों को संजय राउत लगातार दोहराते रहे, सीएम तो शिवसैनिक ही होगा. ये उद्धव ठाकरे का अपने पिता बाल ठाकरे से किया वादा रहा जो निभाने की बात कर रहे थे. संजय राउत ने ये भी कहा था कि शरद पवार को समझने में सौ जन्म लगेंगे.
अब तो संजय राउत को कहने का मौका भी मिल गया है, "उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने का मिशन पूरा हो चुका है और हमारा ‘सूर्ययान’ मंत्रालय पर लैंड हो गया है. जब मैंने ये कहा था तो लोग मुझपर हंस रहे थे - अगर आने वाले समय में दिल्ली में भी हमारा सूर्ययान उतरे तो आश्चर्य नहीं होगा."
इन्हें भी पढ़ें :
शरद पवार की 'प्रेरणा' से ही बीजेपी को समर्थन दे सकते थे अजित पवार!
आपकी राय