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Updated: 31 दिसम्बर, 2021 04:15 PM
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शरद पवार (Sharad Pawar) ने अपने एक पुराने बयान पर सफाई दी है. बीजेपी के साथ एनसीपी के गठबंधन को लेकर. सफाई से तस्वीर स्पष्ट होने की जगह और भी उलझ गयी है - पवार ने अपने बयान को जुमला जैसा तो नहीं बताया है, शरारतपूर्ण बता कर शक की सूई को पूरा एक चक्र फिर से घुमा दिया है.

शरद पवार के कहने का मतलब है कि बीजेपी के साथ गठबंधन की बात वो शिवसेना को गुमराह करने के मकसद से दिये थे - लेकिन ऐन उसी वक्त वो ये भी कह रहे हैं कि बीजेपी (BJP) की तरफ से महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार का उनको ऑफर मिला था.

बीजेपी की तरफ से गठबंधन का ये ऑफर में शरद पवार को किसी और ने नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने ही दिया था - और शरद पवार का ये भी दावा है कि वो मोदी का ऑफर फौरन ही ठुकरा भी दिये थे - क्योंकि 'ये मुमकिन नहीं है.'

अपने 81वें जन्मदिन के मौके पर एक कॉफी टेबल बुक 'अष्टावधानी' के विमोचन के दौरान शरद पवार ने ऐसी कई बातें बतायी हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिल खोल कर तारीफ तो की ही है, अपने पुराने संबंधों का जिक्र भी किया है, लेकिन ये भी दावा किया है कि अपने नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय के एक्शन को लेकर वो मोदी से कभी कुछ भी नहीं बोले.

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद हुई मोदी-पवार मुलाकात को लेकर बताया गया था कि किसानों के मुद्दे पर वो मीटिंग हुई थी. बाद कुछ ऐसी बातें में मीडिया के जरिये सामने आयी थीं जिनकी वजह से मीटिंग फेल रही - और गठबंधन भी नहीं हो सका.

ऐसे में ये समझना जरूरी हो गया है कि आखिर क्या वजह रही जो पवार ने मोदी का ऑफर मौके पर ही ठुकरा दिया?

गठबंधन का प्रस्ताव क्यों ठुकराया

जैसे शरद पवार ने अभी मोदी की तारीफ की है और कहा है कि उनके जैसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ है - पहले के प्रधानमंत्रियों में काम करने की वो शैली नहीं देखी जो मोदी के कामकाज की है.

sharad pawar, narendra modiशरद पवार को मोदी के साथ हुई मुलाकात में बातचीत को लेकर कम से कम एक बार और सफाई देने पर ही तस्वीर साफ हो सकती है!

2016 में वसंतदादा संस्थान के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण चल रहा था. एनसीपी नेता शरद पवार भी मंच पर मौजूद थे. मोदी कह रहे थे, "मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि है कि गुजरात में शुरुआती दिनों में शरद पवार ने मुझे हाथ पकड़ कर राह दिखायी."

शरद पवार का कहना है कि अलावा केंद्र की यूपीए सरकार में तब कोई भी ऐसा मंत्री नहीं था जो मोदी से बातचीत कर सके क्योंकि वो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर लगातार हमला करते थे. मोदी उन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे.

जैसे कसाब ने बिरयानी खायी थी: 26/11 के मुंबई अटैक केस में सरकारी वकील रहे उज्ज्वल निकम ने पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब को बिरयानी खिलाने की बात कही थी. बाद में अपने बयान स्पष्ट करते हुए निकम ने कहा था कि न तो कसाब ने बिरयानी मांगी थी, न ही सरकार की तरफ से ऐसा कुछ परोसा गया था - बल्कि, बकौल उज्ज्वल निकम वो बयान झूठा था.

शरद पवार ने भी तब बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर अपने बयान को खुद ही बचकाना या शरारतपूर्ण (Mischievous) करार दिया है - और उसके पीछे तब के हालात की याद दिलाते हुए वजह भी बतायी है.

शरद पवार ने तब कहा था कि उनकी पार्टी एनसीपी, बीजेपी को समर्थन देने को लेकर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है. शरद पवार अब कह रहे हैं, 'ये शायद शिवसेना को लेकर मन में शक की वजह से था - क्योंकि वो कांग्रेस के साथ गठबंधन करने जा रही थी.'

मोदी का ऑफर ठुकराया: विधानसभा चुनाव के नतीजे आ जाने के काफी दिनों बाद तक सरकार बन पाने की स्थिति नहीं बन पा रही थी. बीजेपी और शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर तकरार होने लगी थी. शिवसेना नेतृत्व का कहना था कि वो चाहते हैं कि दोनों पार्टियां आधे आधे कार्यकाल तक अपना मुख्यमंत्री रखें, लेकिन बीजेपी को ये मंजूर न था. आखिर में चुनावी गठबंधन टूट गया और सरकार चलाने के लिए शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ नया गठबंधन बना लिया.

बीजेपी को लेकर शरद पवार का कहना है, 'ये सच है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर बात हुई थी... प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमें इस बारे में सोचना चाहिये... मैंने उनसे कहा था कि ये संभव नहीं है और मैं इस मामले में अंधकार में नहीं रखना चाहता - ये बात मैंने प्रधानमंत्री को उनके कार्यालय में ही कही थी.'

शरद पवार जैसे सीनियर नेता के मुंह से ऐसी बातें थोड़ी अजीब लगती हैं. बेशक उनको अपनी बात रखने का अधिकार है. ये भी अधिकार है कि वो क्या बतायें और क्या छिपा लेते हैं, लेकिन ये नहीं समझ में आता कि उनकी कौन सी बात को फाइनल वक्तव्य मान लिया जाये.

मुलाकात के वक्त वो बताये थे कि महाराष्ट्र के किसानों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी मीटिंग हुई. अब कह रहे हैं कि मीटिंग में गठबंधन पर चर्चा हुई - मोदी के साथ मुलाकात को लेकर मीडिया में जो खबरें आयी थीं, उन्हें अब कैसे देखा जाना चाहिये?

क्या वो कृषि मंत्रालय नहीं चाहते थे: शरद पवार ने तब मोदी से मुलाकात में किसान ऐंगल पिरो कर भले ही बात बदलने की कोशिश की हो, लेकिन कुछ दिन बाद आयी मीडिया रिपोर्ट में तो कुछ और ही खबर देखने को मिली थी.

पुरानी रिपोर्टों के मुताबिक, मोदी और पवार के बीच गठबंधन पर बात हुई थी, लेकिन कुछ मसले ऐसे रहे जिनकी वजह से बात नहीं बन सकी - एक बात मोदी सरकार में एनसीपी के लिए खास मंत्रालय की डिमांड भी थी.

बताते हैं कि तब सुप्रिया सुले को केंद्र में मंत्री बनाने पर बात हुई थी, लेकिन विभाग को लेकर मामला अटक गया. कहते हैं, एनसीपी कोटे में शरद पवार ने कृषि मंत्रालय की मांग रखी थी जिसे मोदी ने नामंजूर कर दी. शरद पवार यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रह चुके हैं और महाराष्ट्र के किसानों में उनकी खासी पैठ रही है. वो चाहते थे कि एक बार फिर वही मंत्रालय उनके हिस्से आ जाये तो एनसीपी की राजनीति की राह आसान हो सकती है.

चूंकि महाराष्ट्र में अपने भतीजे अजित पवार के कारण बेटी सुप्रिया सुले के लिए कोई इंतजाम नहीं कर पाये थे, लिहाजा पवार की ये मांग राजनीतिक लिहाज से जरूरी और स्वाभाविक भी लगती है?

सवाल ये है कि क्या शरद पवार सुप्रिया सुले को कृषि मंत्री नहीं बनाना चाहते थे?

क्या फडणवीस पर बात नहीं अटक गयी: सुप्रिया सुले वाली बात के साथ ये भी खबर आयी थी कि शरद पवार चाहते थे कि महाराष्ट्र बीजेपी सरकार बनाये लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी और को बिठाये - और ये मांग भी मोदी को मंजूर नहीं थी.

तो क्या शरद पवार ने बगैर ये सब बात हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऑफर ठुकरा दिया था? अगर वाकई ऐसा ही था तो अन्य कारणों को भी समझने की कोशिश होनी चाहिये.

अजित पवार बीजेपी सरकार में डिप्टी सीएम कैसे बने: ये पूछे जाने पर कि क्या शरद पवार ने एनसीपी नेता अजित पवार को देवेंद्र फडणवीस के साथ सरकार बनाने के लिए भेजा था, एनसीपी नेता कहते हैं कि अगर ऐसा होता तो जो हुआ वो नहीं होता.

शरद पवार कहते हैं, 'अगर बीजेपी के पास मैं अजित पवार को भेजता तो इसे अधूरा नहीं छोड़ता... बीजेपी को ऐसा लग रहा था कि एनसीपी और कांग्रेस के रिश्ते ठीक नहीं हैं तो गठबंधन किया जा सकता है.'

अगर ये सब कारण नहीं थे तो ऐसी कौन सी चीज थी जो दोनों के बीच बेहतरीन रिश्ते के बावजूद गठबंधन की बात तुरंत ही खत्म हो गयी?

क्या विचारधारा आड़े आ गयी?

पवार को मोदी शुरू से पसंद: शरद पवार ने ये भी बताया है कि यूपीए की बैठकों में वो कहा करते थे कि भले ही उनके और मोदी और बीजेपी के बीच मतभेद हों - हमें ये नहीं भूलना चाहिये कि वो एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं और उनको लोगों को मैंडेट हासिल है.

पवार के अनुसार, तब वो कहा करते थे - अगर वो मुद्दों के साथ आ रहे हैं तो ये सुनिश्चित करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है कि मतभेदों का समाधान हो और गुजरात के लोगों पर कोई असर न पड़े. पवार का कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हमेशा ही उनके नजरिये का सपोर्ट किया था.

क्या की विचारधारा आड़े आयी: कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाने के सवाल पर शरद पवार ने जो कुछ कहा है उसके आधार पर भी बीजेपी के साथ पार्टी के गठबंधन न होने पाने की वजह समझने की कोशिश की जा सकती है.

शरद पवार का कहना है कि चूंकि कांग्रेस ही उनकी विचारधारा का आधार रही है, लिहाजा वो उससे कभी दूर जाने के बारे में सोचे ही नहीं पाये. कहते हैं, 'कांग्रेस उस विचारधारा का मुख्य आधार थी - और इसीलिए कभी उससे दूर जाने के बारे में नहीं सोचा.'

फर्ज कीजिये शरद पवार और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात में बीजेपी और एनसीपी के बीच गठबंधन पर बात बन जाती तो क्या होता - पवार के लिए ये सोचने वाली बातें रही होंगी.

1. अगर शरद पवार बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बना लेते, तो राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने का स्कोप ही खत्म हो जाता.

2. बीजेपी के साथ जाने पर भी एनसीपी को डिप्टी सीएम से ज्यादा तो मिल नहीं पाता, न महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बना पाते न रिमोट कंट्रोल का सुख ही मिल पाता.

3. शरद पवार की बातों से ही लगता है कि उनकी प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं है, लेकिन ये बात राष्ट्रपति बनने को लेकर सामने नहीं आयी है - अगर बीजेपी के साथ गठबंधन कर लेते तो ऐसे सारे रास्ते बंद हो जाते.

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