शरद पवार और एकनाथ शिंदे की मुलाकात नींद हराम करने वाली तो है ही!
एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ऐसे लोगों से खोज खोज कर मिलते रहे हैं जो किसी न किसी तरह उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से जुड़े हों. अब वो शरद पवार (Sharad Pawar) से भी मिल चुके हैं - और गैर-राजनीतिक बतायी जाने वाली ये मुलाकात महाराष्ट्र में नये समीकरण के संकेत देती है.
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शरद पवार (Sharad Pawar) के वानखेड़े स्टेडियम के गरवारे क्लब में डिनर पर जाने की खबर आते ही लोगों के कान खड़े हो गये थे. लोग डिनर डिप्लोमेसी में महाराष्ट्र के क्रिकेट की चर्चा करते करते मुख्यधारा की राजनीति के समीकरण बनते बिगड़ते महसूस करने लगे थे - और मौका मिलते ही एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) और शरद पवार दोनों ने शब्दों से जो क्रिकेट खेला, गेंद स्टेडियम से काफी दूर जाती दिखायी पड़ रही है.
महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद ये पहला मौका रहा जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र के दिग्गज एनसीपी नेता शरद पवार की मुलाकात हुई - और वो भी मुख्यमंत्री से डिप्टी सीएम बना दिये गये देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में, जाहिर है मुलाकात के राजनीतिक मायने समझने की कोशिशें तो होंगी ही.
घोषित तौर पर ये डिनर और मुलाकात क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव के संदर्भ में आयोजित की गयी थी - और यथा प्रयास हर पक्ष की आखिर तक यही कोशिश रही कि बाहर संदेश यही जाये कि पूरे आयोजन का महाराष्ट्र की राजनीति से कोई लेना देना नहीं है.
तब भी जबकि ये मुलाकात ऐसे वक्त हो रही थी, जब अंधेरी ईस्ट उपचुनाव को लेकर बहुत सारी बातें और राजनीतिक घटनाक्रम के लोग गवाह बने हैं - और राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने के ठीक दो महीने बाद 7 नवंबर को महाराष्ट्र के नांदेड़ पहुंच रहे हैं. महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने राहुल गांधी के स्वागत के लिए शरद पवार और उद्धव ठाकरे को घर जाकर न्योता भी दिया है. ये भी बताया गया है कि दोनों ही नेता राहुल गांधी के स्वागत के दौरान वैसे ही मौजूद रहेंगे जैसे कन्याकुमारी से निकलने से पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन मजबूती के साथ डटे रहे.
अंधेरी उपचुनाव में जो कुछ हुआ है, वो अपनेआप में मिसाल है. कहने को तो उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की शिवसेना उम्मीदवार ऋतुजा लटके के खिलाफ अपना प्रत्याशी वापल लेकर बीजेपी महाराष्ट्र की संस्कृति की दुहाई दे रही है, लेकिन ये जवाब किसी के पास नहीं है कि अगर वास्तव में ऐसा ही है तो कोल्हापुर या पंढरपुर उपचुनावों में ऐसा क्यों नहीं हुआ था.
ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी ने शरद पवार और राज ठाकरे की अपील पर अपने उम्मीदवार मुरजी पटेल का नामांकन आखिरी दिन वापस करा लिया था. राज ठाकरे ने तो देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिख कर ये गुजारिश की थी - सवाल ये है कि आखिर बीजेपी ने कैसे बड़ी जल्दी उद्धव ठाकरे को वॉक ओवर देने का फैसला कर लिया?
उद्धव ठाकरे के साथी नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाया था कि बीएमसी के जरिये सत्ताधारी बीजेपी और एकनाथ शिंदे की सेना ऋतुजा लटके के चुनाव लड़ने में हर संभव अड़ंगे डाल रहे हैं. ऋतुजा अगर आखिरी दिन नामांकन दाखिल कर पायीं तो वो बॉम्बे हाई कोर्ट के सख्त आदेश के बाद ही. वरना, बीएमसी के अधिकारी तो ऋतुजा का इस्तीफा ही नहीं स्वीकार कर रहे थे.
और ध्यान देने वाली बात तो ये भी है कि बॉम्बे हाई कोर्ट का ऑर्डर आने के बाद ही शरद पवार भी अदालत की तारीफ कर रहे हैं - और सवाल तो ये भी खड़ा होता है कि राज ठाकरे ने भी हाई कोर्ट का फैसला आने से पहले बीजेपी को उम्मीदवार वापस लेने की सलाह क्यों नहीं दी थी?
तो क्या ये सब परदे के पीछे मैनेज किया गया था? क्या ये बीजेपी की सलाह, सिफारिश या गुजारिश पर ही राज ठाकरे और शरद पवार की पहल रही? फिर तो सवाल ये भी उठेगा कि क्या बीजेपी को अंधेरी ईस्ट सीट पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना उम्मीदवार के सामने अपने उम्मीदवार के हार जाने की आशंका हो रही थी?
शरद पवार, एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस ऐसे दौर में डिनर के बहाने मंच शेयर कर रहे हैं, जब बीसीसीआई अध्यक्ष रह चुके एनसीपी नेता क्रिकेट की राजनीति के लिए मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार से हाथ मिला चुके हैं - फिर तो बहुतों की नींद हराम होगी ही.
बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की राजनीति का एपिसेंटर एक बार फिर महाराष्ट्र बनने लगा है!
मुलाकात से पहले ही मीडिया से बातचीत में देवेंद्र फडणवीस के एक करीबी नेता का कहना रहा, 'MCA एक प्रतिष्ठित एसोसिएशन है और देवेंद्र फडणवीस और शरद पवार का जिनर उसी से जुड़ा... ये पूरी तरह खेल की बात है... ऐसे मामलों में राजनीति न देखें.'
हो सकता है, लोग नेताओं के बयान पर आंख मूंद कर भरोसा भी कर लिये होते, लेकिन एकनाथ शिंदे ने ये बोल कर ही इसे घोर राजनीतिक बना दिया कि 'इससे कुछ लोगों की रातों की नींद उड़ सकती है'!
राजनीति के साये में एक गैरराजनीतिक मुलाकात
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को छोड़ दें, तो डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी चीफ शरद पवार दोनों ही नेताओं की कोशिश ये मैसेज देने की रही कि ये डिनर वाला कार्यक्रम सिर्फ क्रिकेट के विमर्श तक सीमित रहे. शरद पवार ने मीटिंग के बीच में भी हर किसी से यही अपील की कि क्रिकेट से राजनीति को दूर रखने का प्रयास हो.
बात क्रिकेट की थी और बीसीसीआई के चेयरमैन रह चुके शरद पवार भी मौजूद थे, फिर भला एकनाथ शिंदे बैटिंक करने से कैसे चूक जाते. बोले, 'हमें भी थोड़ी-थोड़ी बैटिंग करना आता है.'
और तभी वो उसी मुद्दे पर आ गये जिससे बचने की कोशिश देवेंद्र फडणवीस भी करते रहे, और शरद पवार भी. एकनाथ शिंदे कहने लगे, 'तीन महीने पहले हमने बैटिंग की थी और मैच भी जीता था.'
अपने सत्ता संघर्ष की दास्तां दोहराते हुए एकनाथ शिंदे भविष्य की तरफ भी दावेदारी दिखाने लगे. हो सकता है, मौके की नजाकत को समझते हुए एकनाथ शिंदे ने ये समझाने की कोशिश की हो कि उनके निशाने पर सिर्फ उद्धव ठाकरे ही हों, ऐसा नहीं है. तो क्या शरद पवार और देवेंद्र फडणवीस भी एकनाथ शिंदे के निशाने पर उद्धव ठाकरे की ही तरह आ चुके हैं - राजनीति में भला कौन ऐसी बातों से इनकार कर सकता है?
एकनाथ शिंदे की गौरव गाथा सुनने के बाद शरद पवार को भी लगा होगा, मौके पर ही माकूल जवाब देना ही चाहिये. बिलकुल उसी भाषा में. मतलब, जब राजनीति को क्रिकेट के नजरिये से देखा जा रहा हो, तो अगला राजनीतिक बयान भी तो क्रिकेट की भाषा में ही होना चाहिये.
शरद पवार तो पुराने खिलाड़ी रहे हैं, राजनीति के भी और क्रिकेट पॉलिटिक्स के भी. एकनाथ शिंदे को वहीं सुना भी दिया, 'हमें भी अगर मौका मिला तो अच्छे से कैच पकड़ना आता है' लगे हाथ याद भी दिलाना नहीं भूले, 'इस बात को ध्यान में रखिएगा.'
शरद पवार की हाजिर जवाबी एकनाथ शिंदे के लिए बाउंसर साबित हुआ, हालांकि, ठहाकों के बीच बात आई गयी हो गयी. फिर शरद पवार ने पूरे इत्मीनान के साथ समझाया भी. निश्चित तौर पर शरद पवार की समझाइश एकनाथ शिंदे के लिए ही रही होगी.
फिर शरद पवार ने समझाया, 'हमारी विचारधारा अलग-अलग है... राजनीति में सब के विचार और आदर्श अलग-अलग हो सकते हैं... हम वहां संघर्ष करते हैं - और करेंगे, लेकिन हम खेल में राजनीति को बाहर रखना ही पसंद करते हैं.'
हो सकता है, एकनाथ शिंदे को सब समझ में आ भी चुका हो, लेकिन शरद पवार रुके नहीं. और वो तमाम नेताओं के नाम ले लेकर किस्से सुनाने लगे. कहने लगे, 'जब मैं बीसीसीआई का अध्यक्ष था... तब नरेंद्र मोदी गुजरात एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में मीटिंग के लिए आते थे... हिमाचल की तरफ से अनुराग ठाकुर... और कांग्रेस की तरफ से राजीव शुक्ला आते थे... ये सब बताने का मतलब सिर्फ यही है कि हम खेल में राजनीति को नहीं लाते हैं... अब भविष्य में भी कुछ प्रोजेक्ट करने हैं... मुंबई में बीसीसीआई का हेड क्वार्टर लाये... जिस हॉल में हम बैठे हैं इसे भी बनाया.'
सभी ने अपनी अपनी बात कही, लेकिन एकनाथ शिंदे की एक बात ऐसी भी कह डाली जिसने तमाम कोशिशों के बावजूद क्रिकेट और राजनीति का घालमेल बढ़ा ही दिया, 'पवार, फडणवीस और शेलार एक ही मंच पर... कुछ लोगों की रातों की नींद उड़ सकती है... लेकिन ये राजनीति करने की जगह नहीं है... हम सभी खेल के प्रशंसक और समर्थक हैं... हम अपने राजनीतिक मतभेदों के बावजूद खेल के विकास के लिए साथ आये हैं.'
महाराष्ट्र में नये समीकरण बन रहे हैं क्या?
MCA यानी मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन का चुनाव तमाम कोशिशों के बावजूद गैर राजनीतिक रह पाये, ऐसे चांस भी बहुत कम लगते हैं. बल्कि क्रिकेट की राजनीति का दायरा इतना बढ़ा हुआ लग रहा है कि वो महाराष्ट्र में नये राजनीतिक समीकरणों के ताने बाने बुने जाने के इशारे कर रहा है.
ऐसा लगता है जैसे क्रिकेट के नाम पर एनसीपी और बीजेपी ने हाथ मिला लिया हो. एसोसिएशन चुनावों के लिए बीजेपी और एनसीपी के बीच गठबंधन हो चुका है, ये कहना गलत तो बिलकुल भी नहीं होगा - सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात ये है कि मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार एक साथ हो गये हैं.
महाराष्ट्र की राजनीति पर नये गठबंधन का भले ही कोई असर न दिखा हो, लेकिन पूर्व क्रिकेटर संदीप पाटिल सबसे ज्यादा प्रभावित नजर आते हैं. 8 अक्टूबर को संदीप पाटिल ने नामांकन दाखिल किया था और तब शरद पवार की टीम उनका सपोर्ट कर रही थी, लेकिन आखिरी वक्त में पवार गुट के लोगों ने संदीप पाटिल को जोरदार झटका देते हुए आशीष शेलार से हाथ मिला लिया - बाकी चीजें धीरे धीरे आने वाले दिनों में देखने को मिल सकती हैं.
क्या महाराष्ट्र से बाहर भी कोई प्रभाव पड़ सकता है: अगर शरद पवार वास्तव में क्रिकेट के राजनीति से दूर रखना चाहते हैं, और आगे भी ऐसा करने में सफल रहते हैं तो बाद और है - वरना, शरद पवार और बीजेपी की नजदीकियां राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को कमजोर करेंगी ही.
ऐसा इसलिए भी क्योंकि शरद पवार विपक्षी खेमे के एक बहुत ही मजबूत खंभे हैं. कांग्रेस को विपक्षी एकजुटता में भूमिका के लिए संगठन चुनाव के नतीजों का इंतजार रहा और अब वो घड़ी भी आ चुकी है.
नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट करने की जो नयी पहल की है, उसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का ही इंतजार रहा. मल्लिकार्जुन खड़गे तो पहले ही संकेत दे चुके हैं कि नीतीश कुमार की पहल पर फैसला वही लेंगे. हाल ही में जब नीतीश कुमार लालू यादव के साथ दिल्ली में सोनिया गांधी से मिले थे, तो 10 जनपथ से भी यही बताया गया कि चुनाव बाद ही कोई फैसला हो सकेगा. पहले तो ऐसे सारे मसले सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही सुलझाते रहे. आगे भी ये वाली भूमिका उनके ही हाथ में रहेगी. हां, फैसला सुनाने वाली जिम्मेदारी मल्लिकार्जुन खड़गे के पास होगी.
अब सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव ही नहीं खत्म हुआ है, राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा में लोगों के मिल रहे साथ ने भी कांग्रेस नेतृत्व को उत्साहित कर रखा है. ऐसे में कांग्रेस का पुराना व्यवहार बदला हुआ हो सकता है - और नीतीश कुमार को ये भी जल्दी ही मालूम हो जाएगा.
अपने दिल्ली दौरे में नीतीश कुमार ने शरद पवार से भी मुलाकात की थी. कांग्रेस के खिलाफ ममता बनर्जी की विपक्षी खेमेबाजी को कमजोर करने वाले भी शरद पवार ही हैं, नीतीश कुमार को भी ध्यान होगा ही. अगर शरद पवार का विपक्षी राजनीति से मन ऊबने लगा है, तो ये न तो कांग्रेस न ही नीतीश कुमार के लिए कोई अच्छी बात है.
अगर वाकई ऐसा ही होता है तो मान कर चलना चाहिये कि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी गुटबाजी को सीरियसली लेने लगी है - और शरद पवार का बीजेपी के प्रति नरम हो जाना भर भी बाकियों के लिए बेहद नुकसानदेह हो सकता है.
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