शिया सेंट्रल बोर्ड के प्रस्ताव ने अयोध्या विवाद की आग में खर डाला है
शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और श्री श्री रविशंकर ने अयोध्या मामले को और भी ज्यादा पेचीदा कर दिया है और ये सुलझने के बजाए आए दिन और उलझता चला जा रहा है.
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अयोध्या मामला आए दिन नए मोड़ ले रहा है और लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है. सुन्नी वक्फ बोर्ड, निरमोही अखाड़ा, राम लला विराजमान के बाद श्री श्री रविशंकर और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कई मायनों में इस पूरे मामले को और भी पेचीदा कर दिया है. इस पूरे मसले पर जहां एक तरफ श्री श्री रविशंकर अपने स्तर से मामला सुलझाने का फार्मूला तलाश रहे हैं तो वहीं शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इसे और ज्यादा उलझाते हुए एक नया तीर छोड़ दिया. शिया सेंट्रल बोर्ड का मत है कि, विवादित स्थल मीर बाक़ी से जुड़ा है, जो एक शिया मुसलमान था. अतः विवादित स्थल का सुन्नी वक्फ बोर्ड से कोई लेना देना नहीं है और इसे, उससे अपने आप हट जाना चाहिए.
अभी सुन्नी वक्फ बोर्ड, शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के इस कथन की आलोचना सही तरह से कर भी नहीं पाया था कि फिर एक बार शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कुछ ऐसा कहा जिससे दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया है और सियासी सरगर्मियां तेज हो गयी हैं. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी तरफ से प्रस्ताव रखते हुए कहा है कि राम मंदिर अयोध्या में बना दिया जाए लेकिन साथ ही लखनऊ में मस्जिद का निर्माण कराया जाए. एएनआई के मुताबिक बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि 'अलग-अलग पार्टी से विचार-विमर्श करके हमने एक प्रस्ताव तैयार किया है. इस प्रस्ताव में अयोध्या में राम मंदिर और लखनऊ में मस्जिद बनवाने की बात कही गई है क्योंकि यही एक उपाय है जिसके चलते देश में शांति और भाईचारा बना रहेगा'.
अयोध्या विवाद पर वसीम रिज़वी के सुझाव ने आग में घी डालने का काम किया है
आपको बताते चलें कि इसी 31 अक्टूबर को बोर्ड के चेयरमैन वासिम रिजवी ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में मुलाकात की थी. वासिम रिजवी की श्री श्री रविशंकर से उस मुलाकात का उद्देश्य बातचीत के माध्यम से अयोध्या विवाद को सही ढंग से सुलझाना था.
तब श्री श्री से मुलाकात करने के बाद रिजवी ने अपने बयान में कहा था कि.' पूरा राष्ट्र आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक का सम्मान करता है, इसलिए शिया समुदाय का मानना है कि सालों से चले आ रहे इस विवाद को दोस्ताना तरीके से सुलझा लिया जाए'. रिजवी का ये भी मत है कि, 'इस मामले में शिया समुदाय को बोलने का पूरा हक इसलिए भी है क्योंकि 1944 से शिया समुदाय मस्जिद में नमाज के लिए जाया करता था जिसे सुन्नी समुदाय ने अपने नाम पर रजिस्टर करा लिया था लेकिन बाद में इस अवैध करार दे दिया गया था'.
अयोध्या विवाद पर अचानक अपना पक्ष रखकर मामले को और पेचीदा बनाने वाले वसीम रिज़वी पर उनके आलोचकों का तर्क है कि,आए दिन अपने बयानों से इस विवाद का रुख मोड़ने वाले वसीम ढोंग कर रहे हैं और उनका उद्देश्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी बनना और खुद को बचाना है. गौरतलब है कि समाजवादी सरकार में सूबे के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार आज़म खान के करीबी रहे वसीम रिज़वी पर वक्फ बोर्ड में भारी अनियमितता और धांधली के आरोप है और उनपर सीबीआई की जांच भी चल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि अयोध्या विवाद का सहारा लेकर वसीम मुख्यमंत्री की गुड बुक्स में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं और इसके लिए वो किसी भी स्तर तक जाने को तत्पर भी दिख रहे हैं.
वसीम रिज़वी के इस सुझाव से फैजाबाद समेत राजधानी के भी मुसलमानों की भावना आहत हो गयी है
ध्यान रहे कि, शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड की अपेक्षा शिया वक्फ बोर्ड वसीम के पक्ष में नहीं है और उसने उनकी बात सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि, वो बाबरी मस्जिद को उसकी जगह से हटाने के पक्ष में नहीं हैबोर्ड का मानना है कि वसीम अपने स्वार्थ के लिए पूरे शिया समुदाय को बदनाम कर रहे हैं और खुदको कानूनी गिरफ्त से बचाने के लिए अजीब ओ गरीब बयान दे रहे हैं'. वसीम रिज़वी के इस 'आईडिया' से न सिर्फ फैजाबाद और अयोध्या बल्कि राजधानी लखनऊ में भी कोहराम मच गया है. आम से लेकर खास वर्ग तक सभी उनकी निंदा में लग गए हैं और लोगों ने इसे चाटुकारिता की पराकाष्ठा बताया है. लोगों का मत कुछ ऐसा है कि वसीम न तो शियों के ठेकेदार हैं और न ही आम मुसलामानों के साथ ही न ही वो कोई धर्मगुरु हैं जिसे इस मुद्दे की समझ हो तो वो आखिर किस हक से इसपर बयानबाजी कर माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं.
लखनऊ और अयोध्या में मौजूद मुसलमानों का मत है कि इस पर किसी को भी ऐतराज नहीं है कि अयोध्या में राम मंदिर बने, मगर जो वसीम रिज़वी का विचार है वो केवल और केवल स्वार्थ सिद्धि के लिए हैं और उसपर कोई भी आम मुसलमान कभी उनका साथ नहीं दे पाएगा. कहा जा सकता है कि बहुत आम सा दिखने वाला ये मामला उतना आम नहीं है जितना हम समझ रहे हैं. आइये अंत में ये जानने का प्रयास किया जाए कि इस विवाद में मौजूद तीनों पक्षों निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के क्या दावे हैं.
शिया वक्फ बोर्ड के अलावा सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी वसीम रिज़वी की तीखी आलोचना की है
निर्मोही अखाड़ा - बताया जाता है कि गर्भगृह में विराजमान रामलला की पूजा और वहां की पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी निर्मोही अखाड़े की है और वो शुरू से इसे करता रहा है. लिहाजा, विवादित स्थान उसे सौंप दिया जाए.
रामलला विराजमान - रामलला विराजमान का दावा है कि वह रामलला के करीबी मित्र हैं और भगवान राम अभी अपने बाल रूप में हैं, इसलिए उनकी सेवा करने के लिए वह स्थान रामलला विराजमान पक्ष को दिया जाए.
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड - निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान से विपरीत सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए ये दावाकिया था कि वहां बाबरी मस्जिद थी और मुस्लिम वहां नमाज पढ़ते रहे हैं. इसलिए वह स्थान मस्जिद होने के चलते उन्हें सौंप दिया जाए.
विवादित स्थल पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया था. अपने फैसले में कोर्ट ने तीनों पक्षों को विवादित 2.77 एकड़ की जमीन को बराबर में बांटने का आदेश दिया था. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जिसकी अगली सुनवाई 5 दिसंबर को तय हुई है.
अंत में बस हम यही कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि जिस तरह शिया सेंट्रल वक्फ के चेयरमैन वसीम रिज़वी इस मामले को और उलझा रहे हैं वो बिल्कुल भी सही नहीं है और इससे बात सुलझने के बजाय और ज्यादा बिगड़ेगी.
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