उद्धव के लिए सबसे खतरनाक है शिवसैनिकों का राज ठाकरे से सहमत होना!
महाराष्ट्र में चल रही लाउडस्पीकर मुहिम पर उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackery) का सरकारी स्टैंड बाकियों की कौन कहे, शिवसैनिकों (Shiv Sena Workers) को ही नहीं सुहा रहा है - और अंदर ही अंदर वे राज ठाकरे (Raj Thackeray) के रुख से ज्यादा इत्तेफाक रख रहे हैं.
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लाउडस्पीकर पर राज ठाकरे (Raj Thackeray) की मुहिम असर दिखाने लगी है. खासकर लाउडस्पीकर के मुद्दे पर शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के भाषण का वीडियो दिखाने के बाद - और जो भी असर हो रहा है, वो हर तरह से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackery) को घेरने के लिए बीजेपी को ऐसे ही किसी जोरदार और असरदार मुद्दे की जरूरत थी. ऐसा मुद्दा जिसका विरोध करना उद्धव ठाकरे के लिए मुश्किल हो जाये. बीजेपी ने अपनी तरफ से उद्धव ठाकरे की राजनीतिक लाइन बदल लेने के बाद उनके हिंदुत्व पर ही चोट करने की कोशिश की थी. यहां तक कि राजभवन से भी एक ऐसा पत्र भेजा गया जिसमें राज्यपाल उद्धव ठाकरे कटाक्ष के साथ पूछ रहे थे - आप तो ऐसे न थे!
राज ठाकरे के हमलों को काउंटर करते हुए संजय राउत बार बार यही दोहरा रहे हैं कि शिवसेना को किसी और से हिंदुत्व समझने की जरूरत नहीं है. शिवसेना प्रवक्ता दावा करते हैं कि शिवसेना बाला साहेब ठाकरे और विनायक दामोदर सावरकर के हिंदुत्व स्कूल को फॉलो करती है.
संजय राउत जो कह रहे हैं वो सही हो सकता है, लेकिन राजनीतिक तौर पर दुरूस्त नहीं है. जो सवाल राज ठाकरे उठा रहे हैं उसका सही जवाब तो बिलकुल नहीं लगता - अगर ऐसा होता तो राज ठाकरे शिवसेना में कभी भी सेंध नहीं लगा पाते.
लेकिन लाउडस्पीकर के मुद्दे पर राज ठाकरे ने शिवसेना (Shiv Sena Workers) में बरसों बाद सेंधमारी कर डाली है. राज ठाकरे के मातोश्री की राजनीति छोड़कर आ जाने के बाद बहुत संघर्ष करना पड़ा. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने के बाद शुरुआती दौर में राज ठाकरे को थोड़ी बहुत चुनावी कामयाबी भी मिली थी, लेकिन वो उसे आगे कायम नहीं रख सके. 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के गठन के तीन साल बात हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे के 13 विधायक मंत्रालय पहुंचे थे, लेकिन 2019 आते आते महज एक विधायक तक पहुंच गये.
संगठन साथ होने की वजह से उद्धव ठाकरे की राह में राज ठाकरे अब तक कभी मुश्किलें नहीं खड़ी कर सके थे, लेकिन लाउडस्पीकर का मुद्दा ऐसा है जिस पर उद्धव ठाकरे अब भी नहीं संभले तो लेने के देने पड़ सकते हैं.
राज ने उद्धव को दी सबसे बड़ी शह
शिवसेना की तरफ से भले ही राज ठाकरे को हर तरीके से खारिज करने की कोशिशें चल रही हों, लेकिन वो धीरे धीरे पैर जमाने भी लगे हैं. भले ही राज ठाकरे का बाला साहेब ठाकरे की तरह भगवा धारण करना शिवसैनिकों को प्रभावित न कर रहा हो. भले ही राज ठाकरे को मनसे की तरफ से सबसे बड़े हिंदू लीडर के तौर पर पेश करने से शिवसेना की सेहत पर फर्क न पड़ रहा हो - लेकिन लाउडस्पीकर काफी अंदर तक असर करने लगा है.
लाउडस्पीकर पर शिवसैनिक राज ठाकरे के साथ हैं: इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, शिवसेना के कुछ पदाधिकारियों का दावा है कि लाउडस्पीकर पर राज ठाकरे के स्टैंड का 99 फीसदी शिवसैनिक समर्थन कर रहे हैं - और इससे बड़ी फिक्र वाली बात उद्धव ठाकरे के लिए अभी तो कुछ और हो भी नहीं सकती है.
राज ठाकरे अब शिवसेना में सेंध लगाने की कोशिश में हैं - और उद्धव ठाकरे की मुश्किल बढ़ती जा रही है.
बहुत देर से ही, असल बात तो ये है कि राज ठाकरे भी वही मांग कर रहे हैं जो कभी शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की डिमांड हुआ करती थी - और सत्ता में आने पर लाउडस्पीकर बंद कराने की बात किया करते थे. राज ठाकरे ने चाचा बाल ठाकरे का वही भाषण शेयर कर तहलका मचा दिया है.
अंग्रेजी अखबार से बातचीत में मुंबई में शिवसेना के एक पूर्व शाखा प्रमुख का सवाल होता है - हम असहमत कैसे हो सकते हैं? शिवसेना के ये नेता कह रहे हैं कि जो मुद्दा उनको उठाना चाहिये था उसे राज ठाकरे उठा रहे हैं - और उद्धव ठाकरे उसके खिलाफ खड़े हो गये हैं.
राज से पहले उद्धव का बना अयोध्या का कार्यक्रम: राज ठाकरे ने 5 जून को अयोध्या जाने का कार्यक्रम बनाया है. वो पूरे परिवार के साथ जाएंगे और रामलला के साथ साथ हनुमान गढ़ी में भी दर्शन पूजन करेंगे. राज ठाकरे की तरफ से इस बात की घोषणा भी की जा चुकी है. साथ ही, ये भी माना जा रहा है कि राज ठाकरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मुलाकात कर सकते हैं - अब खबर ये भी आ रही है कि राज ठाकरे से पहले ही उद्धव ठाकरे ने भी अयोध्या दौरे का कार्यक्रम फाइनल कर दिया है.
राज ठाकरे को लेकर विरोध के भी स्वर सुनाई पड़ रहे हैं. बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण शरण सिंह ने घोषणा की है कि जब तक राज ठाकरे उत्तर भारतीयों से हाथ जोड़ कर माफी नहीं मांग लेते वो उनको अयोध्या में घुसने नहीं देंगे.
बीजेपी सांसद की योगी आदित्यनाथ को भी सलाह है कि जब तक राज ठाकरे उत्तर भारतीयों से माफी नहीं मांग लेते, उनको भी मनसे नेता से मुलाकात नहीं करनी चाहिये. केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले के बाद बृजभूषण शरण सिंह विरोध अब तक के दूसरे ही विरोधी लग रहे हैं जो बीजेपी की तरफ से हों. वरना, बीजेपी चुपचाप तमाशा देख रही है. ऐसा लगता है बीजेपी भी राज ठाकरे को इतनी छूट नहीं देना चाहती होगी कि उनको कंट्रोल करना भी भारी पड़ने लगे.
बहरहाल, राज ठाकरे को काउंटर करने के लिए उद्धव ठाकरे का दौरा करीब करीब तय हो चुका है और हमेशा की तरह शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत इंतजामों में जुट गये हैं. सूत्रों के हवाले से आयी खबर के मुताबिक, उद्धव ठाकरे का ये दौरान 12 से 14 मई के बीच हो सकता है.
बताते हैं कि पहले उद्धव ठाकरे की पूरे लाव लश्कर के साथ अयोध्या जाने की तैयारी रही, लेकिन अब कार्यक्रम में थोड़ी फेरबदल हुई है. उद्धव ठाकरे के साथ उनके बेटे और साथी कैबिनेट मंत्री आदित्य ठाकरे भी जा सकते हैं और कुछ शिवसैनिक भी.
राज पर कठोर कार्रवाई क्यों नहीं?
हनुमान चालीसा के मुद्दे पर नवनीत राणा की गिरफ्तारी का मुद्दा और अजान के खिलाफ लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा का पाठ - ये दोनों ही हिंदुत्व की राजनीति के हिसाब से पूरी तरह अलग मसले हैं. हालांकि, सवाल ये भी उठाये जा रहे हैं कि नवनीत राणा और राज ठाकरे के खिलाफ पुलिस एक्शन में भेदभाव क्यों किया जा रहा है?
भेदभाव के हिसाब से दोनों में बड़ा फर्क भी है. नवनीत राणा से शिवसेना की खुन्नस इसलिए भी है कि क्योंकि अमरावती सीट पर 1996 से शिवसेना का कब्जा रहा है, बीच में सिर्फ 1998 को छोड़ दें तो. 2019 में नवनीत राणा ने शिवसेना के सीटिंग सांसद को शिकस्त देकर सीट हथिया ली थी. तब की स्थिति ये रही कि एनसीपी नेतृत्व चाहता था कि वो पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ें लेकिन वो निर्दल ही लड़ने का फैसला कर चुकी थीं. जीत से साबित भी हो गया कि फैसला सही था.
जहां तक राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के रिश्ते का सवाल है, वो भी समझना जरूरी है. बेशक राज ठाकरे की मौजूदा स्थिति उद्धव ठाकरे के कारण ही हुई है. दोनों ही एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी हैं, लेकिन आपसी रिश्ता इतना भी खराब नहीं है कि हालत नवनीत राणा बनाम मातोश्री जैसी हो जाये.
ये सही है कि नवनीत राणा की गिरफ्तारी के जरिये उद्धव ठाकरे की तरफ से राजनीतिक विरोधियों को कड़ा मैसेज देने की कोशिश हुई थी, लेकिन उसमें ज्यादा मैसेज बीजेपी के लिए था और राज ठाकरे के लिए कम. अव्वल तो राज ठाकरे खुद भी नवनीत राणा की तरह उद्धव ठाकरे के खिलाफ कदम नहीं बढ़ाते, लेकिन ये भी माना जा सकता है कि उद्धव ठाकरे भी राज ठाकरे के खिलाफ राणा दंपत्ति जैसा कठोर कदम नहीं उठाना चाहते होंगे.
वैसे ये बात सिर्फ रिश्तों तक ही सीमित नहीं है क्योंकि राणा दंपत्ति और राज ठाकरे की गिरफ्तारी का सड़कों पर असर भी अलग अलह होना तय है. नवनीत राणा की गिरफ्तारी का असर तो देखा ही जा चुका है. बीजेपी की तरफ से किरीट सोमैया मिलने के लिए थाने तक जरूर गये थे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बयान जारी करने के अलावा कुछ और तो किया नहीं. देशद्रोह के केस पर बोले कि अगर ऐसा करना है तो बीजेपी भी ऐसा ही करेगी, शिवसेना की गठबंधन सरकार जो चाहे कर ले.
राज ठाकरे के खिलाफ एक अदालती वारंट जारी होने के अलावा आईपीसी की धारा 116, 117 और 143 के तहत केस दर्ज किया गया है और इसी पर सवाल उठाया जा रहा है. औरंगाबाद से AIMIM सांसद इम्तियाज जलील कह रहे हैं कि ये अजीब है कि नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा को हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणा पर राजद्रोह के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता है, लेकिन उनके खिलाफ हल्की धाराओं में मामला दर्ज किया जाता है, जबकि वो हिंसा की धमकी दे रहे हैं.
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