सिंघू बॉर्डर पर हुई जघन्य हत्या ने अराजक किसान आंदोलन के खाते में एक सितारा और जड़ दिया!
सिंघु बॉर्डर पर एक युवक की न केवल बड़ी ही बेरहमी से हत्या की गई है बल्कि उसके हाथ को काटकर शव से बांधकर उसे धरनास्थल पर मौजूद बैरिकेड पर लटका दिया गया. जैसा मामला है कहना गलत नहीं है कि सिंघू बॉर्डर पर हुई जघन्य हत्या ने अराजक किसान आंदोलन के खाते में एक सितारा और जड़ दिया है.
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दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर एक बार फिर सुर्खियों में है. हो भी क्यों न पिछले 11 महीनों से शायद ही कोई ऐसा दिन बीता हो जब अपनी गतिविधियों के चलते किसान आंदोलन लोगों की नजरों में न आया हो. मोदी सरकार द्वारा लाए गए 3 नए कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली के अलग अलग बॉर्डर्स पर धरने पर बैठे किसानों का चाल चरित्र और चेहरा कैसा है? साथ ही किस तरह की अराजकता को इन बॉर्डर्स पर अंजाम दिया जा रहा है? गर जो इसका आंकलन करना हो तो सिंघु बॉर्डर पर धरना स्थल से कुछ ही कदमों की दूरी पर मिली 35 साल के युवक की लाश का रुख कीजिये. ज्ञात हो कि दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर से झकझोर कर रख देने वाली खबर सामने आई है. सिंघु बॉर्डर पर एक युवक की न केवल बड़ी ही बेरहमी से हत्या की गई है बल्कि उसके हाथ को काटकर शव से बांधकर उसे धरनास्थल पर मौजूद बैरिकेड पर लटका दिया गया. जैसा मामला है कहना गलत नहीं है कि सिंघू बॉर्डर पर हुई जघन्य हत्या ने अराजक किसान आंदोलन के खाते में एक सितारा और जड़ दिया है.
सिंघु बॉर्डर पर जो हुआ उसने पूरे किसान आंदोलन पर सवालिया निशान लगा दिए हैं
धरना स्थल से कुछ ही कदमों की दूरी पर लाश मिलने के बाद दहशत का माहौल है. तरह तरह की बातें हो रही हैं और कहा यही जा रहा है कि एक बार फिर इस लाश के जरिये सम्पूर्ण किसान आंदोलन पर सवालिया निशान लगे हैं. बात लाश की हो तो जिस युवक की हत्या हुई है उसकी उम्र 35 साल के आस पास है. पुलिस मामले की जांच में जुट गई है और उसने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है.
जैसी शव की बेकद्री हुई है बताया यही जा रहा है कि हत्या से पहले युवक के साथ खूब जमकर मारपीट हुई है और उसे घसीटा भी गया है. हत्यारे किस हद तक क्रूर थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हत्या के बाद युवक के शव को दोनों हाथों के सहारे बैरिकेड से बांधकर न केवल लटकाया गया बल्कि उसके दाहिने हाथ को काटकर शव के साथ ही बांध दिया गया.
किस वजह से हुई युवक की इतनी निर्मम हत्या.
हालांकि अभी तक शव की पहचान नहीं हो सकी है लेकिन बताया यही जा रहा है कि युवक ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी. संदेह इस बात का भी है कि युवक का ये अंदाज धरनास्थल पर मौजूद निहंग सिखों को पसंद नहीं आया था और युवक को सबक सिखाने के उद्देश्य से उन्होंने इस दिल को दहला कर रख देने वाली वारदात को अंजाम दिया है. मामले में क्यों निहंगों पर शक गहरा होता है? इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि जिस वक्त पुलिस मौका ए वारदात पर पहुंची वहां निहंगों ने खूब जमकर हंगामा किया.
बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा गुरु ग्रंथ साहिब की बेकद्री को लेकर की गयी इस हत्या की जिम्मेदारी निहंग समूहों ने ली है. निहंग समूह 'निर्वैर खालसा-उड़ना दल' ने सिंघू सीमा पर बेअदबी को लेकर एक दलित व्यक्ति की हत्या की बात स्वीकार की है. मामले में एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें बलविंदर सिंह, पंथ-अकाली, निर्वैर खालसा-उड़ना दल ने घटना की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि, जो कोई भी बेअदबी का काम करेगा, हम उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे. हम किसी पुलिस, प्रशासन से संपर्क नहीं करेंगे.
वहीं स्वराज इंडिया के कंवीनर योगेंद्र यादव ने सिंघु बॉर्डर पर हुई इस घटना की निंदा की है और कहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा इस मामले की जांच के लिए लीगल मदद लेगा और इंसाफ होकर ही रहेगा.
संयुक्त किसान मोर्चा इस नृशंस हत्या की कठोर निंदा करता है।हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी के खिलाफ हैं,लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत बिलकुल भी नहीं हैहत्या के दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए।मोर्चा प्रशासन का हरसंभव सहयोग करेगा pic.twitter.com/vTpbdP9vtK
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) October 15, 2021
भले ही योगेंद्र यादव और संयुक्त कईसन मोर्चा मामले की निष्पक्ष जांच की बात कर रहा हो मगर इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली के अलग अलग बॉर्डर्स पर जारी किसान आंदोलन एक अराजक आंदोलन हैं और ये बात बस यूं ही नहीं है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसके पीछे हमारे पास माकूल वजहें हैं.
मामला किस हद तक पेचीदा है इसे समझने के लिए हमें 11 महीने पीछे चलना होगा और और उस दौर में जाना होगा जब इस पूरे धरने की शुरुआत हुई. शुरुआत में एक कर्मचारी की लिंचिंग हुई थी, बाद में जब मामले ने तूल पकड़ा तो प्रदर्शनकारी किसानों ने युवक को बीजेपी का जासूस बता कर न केवल अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा बल्कि बेशर्मी का भी परिचय दिया.
26 जनवरी को पुलिस वालो पर ट्रैक्टर चढ़ाना, लाल किले पर उपद्रव
इसी तरह उस वक़्त लोकतंत्र शर्मसार हुआ जब कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के आंदोलन में गणतंत्र दिवस को जमकर हिंसा हुई. ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली की सड़कों पर उपद्रवियों ने तांडव किया. हाथों में तलवारें, मुंह पर काला कपड़ा, पुलिसवालों पर पथराव और लाल किले पर केसरी झंडा आप खुद बताइये क्या इसे किसी तरह का विरोध प्रदर्शन कहा जाएगा? और वो भी देश के अन्नदाता से जुड़ा ?
विषय बहुत सीधा है जिस तरह किसानों ने गणतंत्र दिवस पर दिल्ली पुलिस को कुचला उसने इस बात की तस्दीख कर दी कि ये आंदोलन न तो किसानों का ही था और न ही किसान हित में.
फिर पश्चिम बंगाल की युवती से गैंगरेप
जैसा की साफ़ है कि किसान आंदोलन की आड़ में तमाम तरह के गुल खिलाए जा रहे हैं इसकी तस्दीख मई 2021 में उस वक़्त हो गयी जब दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन में शामिल होने आई पश्चिम बंगाल की 25 वर्षीय युवती के साथ धरना स्थल पर गैंगरेप की बात सामने आई. मामला तब खुला जब लड़की के पिता खुलकर सामने आए और उन्होंने मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई थी. लड़की के पिता ने किसानों पर आरोप लगाया था कि उनकी बेटी का शव देने के बदले उन पर दबाव डाला गया कि वे लिख कर दें कि उनकी बेटी कोरोना से मरी है.
लखीमपुर में बीजेपी कार्यकर्ताओं की लिंचिंग
बात किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता की चल रही है तो हम किसी भी सूरत में लखीमपुर खीरी में हुई भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की लिंचिंग को ख़ारिज नहीं कर सकते. भिंडरावाले समर्थकों ने जिस तरह लखीमपुर में तांडव किया और निर्दोष भाजपा समर्थकों को मौत के घाट उतारा पूरी दुनिया घटना की साक्षी बनी है. मामले के तहत बड़ा सवाल विपक्ष पर है जो 4 किसानों की मौत पर तो छाती पीट रहा है मगर इन भाजपा कार्यकर्ताओं की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
ध्यान रहे दीप सिद्धू से लेकर खालिस्तानियों तक पूर्व में कई ऐसे मौके आए हैं जब अलग अलग धरना स्थल पर संदग्धि गतिविधियों को अंजाम दिया गया और बात चूंकि लाश की हुई है तो संदिग्ध अवस्था में लाशें भी मिलती रही हैं. जिन्होंने इस बात की खुद ब खुद तस्दीख कर दी है कि किसानों की आड़ लेकर कुछ देश विरोधी ताकतें अपने एजेंडे को अंजाम दें रही हैं. इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब देश के तमाम लोगों को एकजुट होना चाहिए और किसानों के इस धरने के खिलाफ सामने आना चाहिए.
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