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Updated: 28 नवम्बर, 2020 09:37 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सोनिया गांधी (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा है - 'अहमद पटेल (Ahmed Patel) की जगह कांग्रेस में कोई भी नहीं ले सकता'! ऐसा लगता है जैसे ये अहमद पटेल को महज श्रद्धांजलि ही नहीं, बल्कि, कांग्रेस के बाकी नेताओं को कोई खास संदेश देने की भी कोशिश हो. खास कर वैसे नेताओं के लिए जो अहमद पटेल की जगह लेने की जी तोड़ कोशिश में लगे हैं. या वे नेता जो एक अरसे से कांग्रेस नेतृत्व के सामने सवालों की झड़ी लगा रहे हैं और रह रह कर सवाल पूछ रहे हैं.

अहमद पटेल की शोक सभा में सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को ये भी समझाने की कोशिश की है कि अहमद पटेल होने का क्या मतलब होता है और जो अहमद पटेल जैसे नहीं हैं, उनके बारे में वो वास्तव में क्या राय रखती हैं.

अहमद पटेल को लेकर कांग्रेस कार्यकारिणी में एक प्रस्ताव भी पारित हुआ है और उसके जरिये कांग्रेस नेताओं को संदेश देने की भी कोशिश की गयी है कि जो अहमद पटेल जैसे नहीं हैं वे कांग्रेस नेतृत्व की नजर में शायद ही कभी अपनी अहमियत भी दर्ज करा पायें. CWC की तरफ से ये संदेश खास तौर पर G-23 नेताओं के लिए समझा जा रहा है. G-23 कांग्रेस के उन नेताओं के ग्रुप को कहा जा रहा है, जिन्होंने मिल कर सोनिया गांधी को पत्र लिखे थे. नेताओं का तीसरा पत्र मीडिया में लीक हो गया था जिसमें 'एक ऐसे कांग्रेस के लिए एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत महसूस की गयी थी जो वास्तव में काम करता हुआ नजर आये भी'. जी-23 नेताओं की अगुवाई सीनियर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद कर रहे हैं. शोक सभा में ये संदेश मुकुल वासनिक ने पढ़ा. मुकुल वासनिक खुद भी जी 23 का हिस्सा रहे और चिट्ठी पर दस्तखत करने वालों में शामिल रहे, लेकिन भावुक होकर माफी भी मांग ली थी.

बिहार चुनाव 2020 के नतीजे आने के बाद कपिल सिब्बल ने कांग्रेस नेतृत्व से नये सिरे से सवाल किया और कटाक्ष किया था कि कांग्रेस नेतृत्व को 'हार की आदत' सी बनती जा रही है. अहमद पटेल की याद में पारित कांग्रेस के प्रस्ताव में जो कुछ कहा गया है, परोक्ष तौर पर ऐसे नेताओं के लिए एक संदेश ही लगता है.

ahmed patel, sonia gandhiसोनिया गांधी अगर हर कांग्रेसी में अहमद पटेल को खोजेंगी तो निराशा के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला

कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) और फिर गुलाम नबी आजाद की शिकायत रही है कि उनकी चिट्ठी में जो मुद्दे उठाये गये उन पर कभी चर्चा ही नहीं हुई - अब तो सिब्बल और आजाद को भी मान ही लेना चाहिये कि कांग्रेस नेतृत्व ने प्रस्ताव के जरिये और अहमद पटेल के बहाने उनको तो जवाब दे दिया गया है, भले ही वो उनके सवालों से कोई मेल न खाता हो!

कांग्रेस के प्रस्ताव को ही चिट्ठी का जवाब भी समझें!

कांग्रेस में अहमद पटेल जो काम अब तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नाम लेकर मैनेज करते चले आ रहे थे, कांग्रेस नेतृत्व अब वो काम अहमद पटेल के नाम पर करने की कोशिश कर रहा है.

अहमद पटेल की याद में कांग्रेस की शोक सभा में जो प्रस्ताव पारित किया गया उसके जरिये पार्टी के तमाम नेताओं को सीधा, सपाट और सख्त मैसेज देने की भी कोशिश की गयी है कि कांग्रेस में रहना है तो अहमद पटेल बन कर ही रहना होगा - और अगर कोई अब तक अहमद पटेल जैसा कोई नहीं बन पाया है तो हाशिये पर जाने से बचने के लिए हर हाल में बनने की कोशिश करनी ही होगी.

अब सवाल है कि कांग्रेस नेतृत्व की नजर में अहमद पटेल कैसे थे - और ऐसी क्या उनकी खासियत रही जो उनको बाकी नेताओं से अलग करती थी? खुद सोनिया गांधी ये बताया भी है.

कांग्रेस के ट्विटर हैंडल से जारी सोनिया गांधी के शोक संदेश में कहा गया है, 'अहमद पटेल बुनियादी तौर पर संगठन के आदमी थे. कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान भी उनकी रुचि संगठन में ही रही. सरकारी दफ्तर, पद, प्रचार में उनकी कोई रुचि नहीं थी और न ही उन्होंने सार्वजनिक पहचान या प्रशंसा की कभी अपेक्षा की. लोगों की नजरों, सुर्खियों से दूर चुपचाप लेकिन बड़ी कुशलता के साथ अपना काम करते रहे.'

सोनिया गांधी ने शोक सभा में कहा, कांग्रेस पार्टी जब भी किसी तरह के संकट में फंसती थी, कैसे अहमद पटेल हर बार समाधान लेकर ही आते थे. राहुल गांधी का भी अहमद पटेल के बारे में करीब करीब ऐसा ही नजरिया है. राहुल गांधी भरूच भी गये थे जहां अहमद पटेल को सुपुर्द-ए-खाक किया गया. बताते हैं कि वहां पहुंच कर राहुल गांधी काफी भावुक भी हो गये थे. माना जाता है कि राहुल गांधी कांग्रेस के जिन नेताओं के बारे में नकारात्मक सोच रखते हैं अहमद पटेल भी उनमें शामिल रहे. राहुल गांधी ने अहमद पटेल को कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाया जरूर था, लेकिन वो खुद को हाशिये पर ही महसूस किया करते थे. मेनस्ट्रीम में वो तभी लौटे जब राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और फिर सोनिया गांधी ने कमान अपने हाथ में वापस लेने के बाद अहमद पटेले को संदेश भिजवाया - जिसे सुनते ही वो दौड़ पड़े और पुराने काम पर नये सिरे से जुट गये.

फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व ने अहमद पटेल की जगह तात्कालिक तौर पर पंजाब से आने वाले कांग्रेस नेता पवन कुमार बंसल को कोषाध्यक्ष का काम देखने को कहा गया है. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की तरफ से जारी पत्र में बताया गया है कि ये नियुक्ति अंतरिम तौर पर की जा रही है. कोषाध्यक्ष पद की होड़ में कमलनाथ से लेकर पी. चिदंबरम जैसे नेता शामिल हैं और देखना होगा कि पवन बंसल को ही ये काम स्थायी रूप से सौंप दिया जाता है या फिर किसी और को ये जिम्मेदारी सौंपी जाती है.

बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस नेतृत्व को कपिल सिब्बल ने याद दिलाया था कि G-23 नेताओं की चिट्ठी पर न तो विचार किया गया और नहीं उनके सवालों का जवाब मिला. ऐसा लगता है जैसे सर्व सम्मति से पास कांग्रेस के प्रस्ताव में कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद सहित चिट्ठी लिखने वाले सभी नेताओं को जबाव दे दिया गया है - बाकी सभी नेता अपनेआप में समझदार तो हैं ही.

कांग्रेस पार्टी के इस प्रस्ताव में दो बातों पर खास जोर नजर आ रहा है - कर्तव्य और अनुशासन. प्रस्ताव में कहा गया है, 'कांग्रेस पार्टी के मार्गदर्शन के लिए अपनी यात्रा के हर कदम पर CWC कर्तव्य और अनुशासन की भावना के साथ आगे बढ़ेगी.'

कांग्रेस में बागी रुख अख्तियार करने वाले नेता इसे गीता के संदेश की तरह ही समझ सकते हैं - कर्म करना आवश्यक है और फल की इच्छा करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है.

कांग्रेस नेतृत्व की मानें तो अहमद पटेल इस पैरामीटर पर पूरी तरह खरे उतरते रहे - और वे सभी जो फिलहाल स्थायी अध्यक्ष की डिमांड के साथ साथ मीडिया के जरिये बयानबाजी कर रहे हैं उनको भी ये बातें गांठ बांध लेनी चाहिये. अव्वल तो चिट्ठी लिखने की उनको जरूरत ही नहीं थी, लिखा भी तो उसे कर्तव्य समझ कर भूल जायें और उस जवाब या बहस और विमर्श जैसे फल की इच्छा तो कतई न करें. कांग्रेस के संसार में बने रहने के लिए उनकी भलाई इसी में है.

कांग्रेस नेताओं को 'अहमद पटेल' बनने की नसीहत

CWC प्रस्ताव में कहा गया है - "अहमद भाई की कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं थी. कांग्रेस पार्टी का हित ही उनका एकमात्र हित था - और कांग्रेस के एजेंडे की उन्नति उनका एकमात्र एजेंडा था.'

कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव और सोनिया गांधी के शोक संदेश के जरिये अहमद पटेल को जिस तरीके से प्रोजेक्ट किया जा रहा है, उसमें एक ऐसे निःस्वार्थ कांग्रेसी की तस्वीर उभर रही है जो आदर्श स्थिति में तो हर किसी को अच्छा लगेगा - लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि क्या वो वैसा ही बनना भी चाहेगा?

अहमद पटेल की अपनी पसंद नापसंद रही होगी. अहमद पटेल को याद करते हुए हर कोई यही कह रहा है कि राजनीतिक गतिविधियों में हर वक्त सक्रिय रहने के बावजूद वो निजी तौर पर पारिवारिक व्यक्ति के तौर पर ही रहना पसंद करते थे. मीडिया से बातचीत या प्रचार प्रसार से उनको मतलब नहीं होता था. सोनिया गांधी की तरफ से कहा जा रहा है कि कांग्रेस के सत्ता में होने के बावजूद वो कभी सरकार में शामिल होना पसंद नहीं किये. बैकग्राउंड में रहते हुए किसी और को अपने ही काम का श्रेय लेते देखना भी उनको पसंद था. अब ऐसा तो कोई विरले व्यक्ति ही हो सकता है.

बेशक अहमद पटेल में वो सारी खूबियां मौजूद रहीं जो सोनिया गांधी को ही क्या किसी भी नेता को पसंद होंगी. ये भला किसे नहीं पसंद होगा कि कोई सलाहकार हर मुश्किल मुद्दे पर अपनी बेहतरीन सलाह दे. हर मुश्किल वक्त में जो भी जरूरत हो पलक झपकते सारा प्रबंध कर दे - और न तो उसे किसी पद का लालच हो न वो प्रचार का भूखा हो.

अब अगर सोनिया गांधी हर कांग्रेसी में अहमद पटेल जैसी खूबी खोज रही हैं, तो उस पैमाने में तो किसी और की कौन कहे राहुल गांधी भी नहीं फिट होंगे. फिर भला बाकियों से क्या उम्मीद की जाये.

कांग्रेस नेतृत्व को अहमद पटेल जैसे सलाह देने वाले की तो हर वक्त जरूरत है, लेकिन किसी से भी सलाह तभी चाहिये जब मांगी जाये. बिन मांगी सलाह की कोई जरूरत नहीं है. सलाह भी वही जिसकी किसी को कानों कान भनक तक न लगे. आखिर अहमद पटेल यही तो करते थे - अब सामूहिक तौर पर चिट्ठी लिखने के बाद मीडिया में लीक करने वाले नेताओं की सलाह भी वैसे ही मानी जाये जैसे अहमद पटेल की मानी जाती रही तो ये कैसे मुमकिन है?

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#कांग्रेस, #अहमद पटेल, #सोनिया गांधी, Sonia Gandhi And Rahul Gandhi, Ahmed Patel, Kapil Sibal

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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