सोनिया को ये उम्मीद जरूर होगी कि राहुल की तरह खड़गे निराश नहीं करेंगे!
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाल कर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को बहुत बड़ी राहत दी है और ये उनके मुंह से ही सुनने को मिली है - ये राहत कहीं राहुल गांधी (Rahul Gandhi) जितनी ही छोटी तो नहीं होने वाली है?
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मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है, और इसके साथ ही उनका ट्विटर बॉयो भी बदल गया है - अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी. बधाई तो अध्यक्ष बनने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे को भी बनती है, लेकिन बधाई के असली पात्र राहुल गांधी हैं, जिनके अपनी जिद पर अड़े रहने के कारण ही ये संभव हो पाया है.
भले ही ये कहा जाये कि ये मुमकिन इसलिए हुआ है क्योंकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) जिम्मेदारी से भाग गये, लेकिन ऐन उसी वक्त ये भी तो कहा जाएगा कि ये राहुल गांधी की जिद ही है कांग्रेस में एक चुनाव प्रक्रिया चली और उसके जरिये नया अध्यक्ष बना है. चुनाव प्रक्रिया पर शशि थरूर की तरह और भी चाहें तो सवाल उठा सकते हैं, ये अलग बात है.
आखिर में लब्बोलुआब यही है कि करीब ढाई दशक बाद कांग्रेस को गांधी परिवार से इतर एक अदद अध्यक्ष मिल गया है - और ऐसा गांधी परिवार के दो दावेदारों के दूरी बना लेने की वजह से हुआ है. राहुल गांधी के मुकाबले कम लोग ही सही, लेकिन कुछ तो ऐसे लोग रहे ही जो प्रियंका गांधी वाड्रा को अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे थे. कांग्रेस नेता आर्चाय प्रमोद कृष्णम ने तो ये मांग पार्टी के उदयपुर चिंतन शिविर में ही कर डाली थी, सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) और प्रियंका गांधी वहीं बैठी हुई थीं.
ये तो नहीं कह सकते कि राहुल गांधी जिम्मेदारी लेने से ही भाग गये. कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले वो उपाध्यक्ष और महासचिव भी रह चुके हैं. अपने दो साल से भी कम वाले कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यकाल में उनके खट्टे मीठे अनुभव रहे जो 2019 आते आते बर्दाश्त के बाहर हो गये जब वो कांग्रेस को आम चुनाव में जीत नहीं दिला सके. वैसे कहते हैं कि राहुल गांधी ने खुद इस्तीफा देकर मिसाल कायम करने की कोशिश की थी, लेकिन किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
तब से लेकर अब तक देखने को तो यही मिला है. हर कोई अपनी जिद पर अड़ा रहा. कोई कुछ छोड़ने को तैयार नहीं हुआ. अगर कमलनाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए छोड़ दिया होता तो राहुल गांधी को अपना एक साथी नहीं खोना पड़ता - और अभी अभी राजस्थान में अशोक गहलोत ने जो खेल खेला है, सचिन पायलट के धैर्य की परीक्षा लेना भी राहुल गांधी को भारी पड़ रहा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे का कामकाज संभाल लेना वास्तव में सोनिया गांधी के लिए बहुत बड़ी राहत है, तभी तो सोनिया गांधी ने मंच से ही ये बात कह डाली है. मल्लिकार्जुन खड़गे को एक समारोह में कार्यभार सौंप दिया गया. चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री ने मल्लिकार्जुन खड़गे को चुनाव जीतने का सर्टिफिकेट दिया, जिसे सौंपते हुए राहुल गांधी की भी तस्वीरें सामने आयी हैं.
मल्लिकार्जुन खड़गे का अध्यक्ष बनना तो उसी दिन तय नजर आने लगा था जिस दिन वो नामांकन दाखिल करने पहुंचे थे. तभी से मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने पर उनके सामने आने वाली चुनौतियों की भी चर्चा होने लगी थी. ऐसी जिम्मेदारियां तो हमेशा ही कांटों भरा ताज रही हैं. जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए ये बातें कही जा रही हैं तो 80 साल की उम्र में मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने तो खाई से निकल कर पहाड़ पर चढ़ने की चुनौती आ खड़ी हुई है.
राहत किसे सोनिया को या राहुल गांधी को?
कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त होने के बाद सोनिया गांधी को एक और दायित्व किसी न किसी को सौंपना है - यूपीए चेयरपर्सन कि जिम्मेदारी. सोनिया गांधी यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलाएंस की संस्थापक अध्यक्ष हैं. जब कांग्रेस का ही बुरा हाल है, तो भला यूपीए की कौन कहे. ममता बनर्जी तो यूपीए के अस्तित्व को ही खारिज कर चुकी है.
कुछ समय पहले शरद पवार को यूपीए का चेयरमैन बनाने की मांग चल रही थी. मांग तो यूपीए के विस्तार और ऐसे नेताओं को साथ लेने की भी रही जो अभी न तो एनडीए, न ही यूपीए के सदस्य हैं. ऐसे नेताओं में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नाम लिये जा सकते हैं. वैसे तो नीतीश कुमार ने भी एनडीए छोड़ दिया है, लेकिन लालू यादव के साथ आ जाने और सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद माना जा सकता है कि वो भी करीब करीब यूपीए में ही शामिल हैं.
ये तस्वीर कांग्रेस की तरफ से ट्विटर पर शेयर की गयी है, और लिखा है - लोकतंत्र जिंदाबाद!
कांग्रेस अध्यक्ष जैसी जिम्मेदारी यूपीए चेयरपर्सन की तो नहीं है, लेकिन विपक्षी खेमे में अब तक राहुल गांधी को लेकर स्वीकार्यता का अभाव सोनिया गांधी के लिए अलग ही तनावपूर्ण मसला है. हालांकि, करीब साल भर पहले राहुल गांधी विपक्षी नेताओं के साथ ब्रेकफास्ट और सड़क पर मार्च करते देखे गये थे, लेकिन वो ममता बनर्जी को संदेश देने से ज्यादा नहीं लगा था.
मल्लिकार्जुन खड़गे को बधाई देते हुए सोनिया गांधी का कहना रहा, 'सबसे ज्यादा संतोष ये है कि जिनको कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया है वो एक अनुभवी और जमीन से जुड़े नेता हैं. एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में काम करते हुए अपनी मेहनत और समर्पण से इस ऊंचाई तक पहुंचे हैं. अपने बारे मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसी ही बातें कही.
मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस की कमान सौंपने के बाद सोनिया गांधी ने बधाई देते हुए खुद काफी राहत महसूस करने की बात कही - और करीब करीब वे बातें ही दोहरायी जो दिसंबर, 2017 में राहुल गांधी की ताजपोशी के वक्त कहा था - 'मुझे जिम्मेदारी से मुक्ति मिल गई है.'
सोनिया गांधी के भाषण में पांच साल बाद भी वही बातें सुनने को मिलीं जो बातें 2017 में कहा था, ‘सच कहूं तो मैं राहत महसूस कर रही हूं... आपने इतने साल तक जो प्यार, सम्मान दिया है.. ये मेरे लिए गौरव की बात है... मुझे इसका एहसास जीवन की आखिरी सांस तक रहेगा... ये सम्मान बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी... अपनी योग्यता और क्षमता के मुताबिक जितना बन पड़ा, उतना किया... दायित्व से मुक्त हो जाऊंगी और ये भार मेरे सिर से उतर जाएगा, इसलिए राहत महसूस कर रही हूं - अब ये जिम्मेदारी खड़गे जी पर आ गई है.’
दिसंबर, 2017 में राहुल गांधी को हैंडओवर देते हुए सोनिया गांधी ने कहा था, 'आज मैं आखिरी बार कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर संबोधित कर रही हूं... 20 साल पहले जब मुझे अध्यक्ष चुना गया, तब मेरे दिल में घबराहट थी... यहां तक कि मेरे हाथ कांप रहे थे... मेरे सामने बहुत मुश्किल ड्यूटी थी.'
लेकिन 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद जब राहुल गांधी ने इस्तीफा न देने की किसी की भी सलाह नहीं मानी, तो सोनिया गांधी को वो राहत भरे दिन और मुक्ति का भाव फिर से छोड़ देना पड़ा. ऐसा करना सोनिया गांधी के लिए काफी मुश्किल हो रहा था, क्योंकि उनकी सेहत ठीक नहीं रह रही थी, फिर भी मजबूरी में आगे आना पड़ा.
राहुल गांधी ने सिर्फ इस्तीफा नहीं दिया था, बल्कि सबके सामने मजबूती से सिफारिश कर डाली कि आगे से गांधी परिवार से बाहर का कांग्रेस अध्यक्ष खोजा जाये. कांग्रेस कार्यकारिणी की उस मीटिंग में कुछ नेताओं ने प्रियंका गांधी का नाम भी सुझाया था, तो राहुल गांधी का कहना रहा - 'मेरी बहन को इसमें मत फंसाओ... बहन को मत फंसाओ.'
ये अच्छी बात थी कि तब सोनिया गांधी के राजनीतिक सहयोगी अहमद पटेल भी रहे. 'राणा की पुतली फिर नहीं तब तक...' वाले अंदाज में अहमद पटेल हरकत में आये और एक झटके में सब मैनेज हो गया. सोनिया गांधी को CWC ने अंतरिम अध्यक्ष बना दिया. काम चलने लगा. देखते देखते कार्यकाल पूरा हो गया. राहुल गांधी नहीं माने तो एक्सटेंशन देना पड़ा.
और एक दौर ऐसा भी आया जब ये सवाल तक पूछे जाने लगे कि जब कांग्रेस के पास कोई स्थायी अध्यक्ष है ही नहीं तो फैसले कौन ले रहा है? ये कांग्रेस के G-23 नेताओं की चिट्ठी के बाद की बात है.
तब सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक बुला कर घोषणा करनी पड़ी, अगर आप सभी की अनुमति हो तो मैं कहना चाहूंगी कि मैं ही अध्यक्ष हूं... सारे फैसले भी मैं ही ले रही हूं. भला कोई क्या कहता. सभी सम्मान पूर्वक खामोश हो गये.
एक बार फिर सोनिया गांधी ने जब राहत और मुक्ति की बात की, तो मल्लिकार्जुन खड़गे तपाक से बोल पड़े... राहत नहीं मिलने वाली है. हालांकि, ये सब खुशनुमा माहौल में हो रहा था और मल्लिकार्जुन खड़गे की बात पर हर कोई मुस्कुराने लगा था.
मल्लिकार्जुन खड़गे का आशय राहुल गांधी जैसा कतई नहीं था. पहले ही वो कह चुके हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वो आम सहमति से काम करेंगे. गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में इसी बात का जिक्र भी किया था. गुलाम नबी आजाद की शिकायत रही कि सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से आम सहमति और सामूहिक जिम्मेदारियों के साथ ही कामकाज चलता रहा, लेकिन जैसे ही राहुल गांधी को प्रमोशन देकर महासचिव से उपाध्यक्ष बनाया गया, चीजें एकदम से बदल गयीं.
वैसे जो बातें मल्लिकार्जुन खड़गे कह रहे हैं, उसे गुलाम नबी आजाद की चिट्ठी के हिसाब से समझें तो रबर स्टांप कार्यशैली मान लेना पड़ेगा - मुश्किल ये नहीं है कि कार्यशैली क्या होगी और कामकाज कैसे होगा, बड़ा सवाल ये है कि ये सब कब तक यूं ही चलता रहेगा?
मान लेते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोनिया गांधी के राहत न मिलने वाली बात का अलग मतलब है, लेकिन ऐसे हालात हुए कि मतलब शब्दशः निकलने लगे तो? सोचने वाली बात यही है.
खड़गे के लिए तो टेंशन ही टेंशन है
सोनिया गांधी के ठीक बाद मल्लिकार्जुन खड़गे का ही भाषण हुआ. जाहिर है सोनिया गांधी को राहत न देने के अलावा भी लोग सुनना चाहते थे कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर मल्लिकार्जुन खड़गे अपने भाषण में क्या कहेंगे?
अपने करीब 21 मिनट के भाषण में मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपनी करियर हिस्ट्री से लेकर कांग्रेस अध्यक्षों तक सभी के बारे में बोला - लेकिन राहुल गांधी, सोनिया गांधी का कम से कम 10 बार नाम लिया. दिल खोल कर तारीफ की. गांधी परिवार का ये हक भी बनता है. सीने पर पत्थर रख कर ही सोनिया गांधी ने ऐसा होने दिया होगा.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों का भी जिक्र किया, 'आने वाले समय में हिमाचल, गुजरात और दूसरे राज्यों में चुनाव होने हैं... जनता बदलाव चाहती है... हमें पूरी मेहनत और मजबूती के साथ चुनावों में प्रदर्शन करना होगा... आप सभी की मेहनत से ही हमें यश मिल सकेगा.'
दलित समुदाय से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे ने मौके पर ही मुद्दा उठाया. बीजेपी को टारगेट करते हुए बोले, इस न्यू इंडिया में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और शोषित समाज को अपमानित किया जाता है... अवसर छीने जा रहे हैं... बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान को बदलकर संघ के संविधान को लाने की कोशिश हो रही है... ये न्यू इंडिया बनाने के लिए वो कांग्रेस मुक्त भारत बनाना चाहते हैं... हम लोग ऐसा होने नहीं देंगे.'
मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यभार संभालने के मौके की जो तस्वीर सामने आयी है, काफी कुछ कह रही है. एक तरफ सोनिया गांधी और दूसरी तरह राहुल गांधी हैं और बीच में मल्लिकार्जुन खड़गे खड़े हैं. राहुल गांधी और सोनिया गांधी मुस्कुराते हुए ताली बजा रहे हैं, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के चेहरे पर खुशी का कोई भाव नहीं है - असल में ये मल्लिकार्जुन खड़गे की असली पोजीशन है.
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