राहुल गांधी को खड़गे से ज्यादा फायदा शशि थरूर को सलाहकार बनाने से हो सकता है
मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन उनके पास पार्टी को आगे ले जाने का कोई खास प्लान नहीं है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) चाहें तो शशि थरूर (Shashi Tharoor) के मैनिफेस्टो की कुछ चीजें लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं - काफी फायदे में रहेंगे.
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शशि थरूर (Shashi Tharoor) की कांग्रेस में पारी लगभग खत्म हो चुकी है. G-23 वाली चिट्ठी पर दस्तखत के बावजूद जो कुछ क्रेडिट या कसर बाकी थी, कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के बाद वो वे सब भी गवां ही चुके हैं.
अब गांधी परिवार के जो करीबी नेता G-23 नेताओं के खिलाफ चिट्ठी लिखने की जुर्रत के लिए सख्त से सख्त एक्शन लेने की मांग कर रहे थे, शशि थरूर के खिलाफ कान भर रहे होंगे. और ये भी हो सकता है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी को शशि थरूर के बारे में अलग अलग फीडबैक मिल रहा हो. जो नेता भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ हैं, वे अपने हिसाब से राहुल गांधी को समझा रहे होंगे - और जो दिल्ली में बैठ कर सोनिया गांधी को महाभारत के संजय की तरह अपडेट कर रहे होंगे, उनका मिर्च-मसाले के साथ चीजें परोसने का अपना अलग ही तरीका होगा.
भले ही ऐसा कोई मौका फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को न मिल पा रहा हो, लेकिन दिग्विजय सिंह और अंबिका सोनी तो हैं ना, ये बताने के लिए कि शशि थरूर - 'निकम्मा, नकारा और पीठ में छुरा भोंकने वाले' नेता हैं. वैसे भी सचिन पायलट के बारे में अशोक गहलोत की कही हुई कई बातें शशि थरूर पर भी बरबस फिट बैठती ही हैं, 'अच्छा दिखने से कुछ नहीं होता... अच्छी अंग्रेजी बोलने से कुछ नहीं होता.' और शशि थरूर तो अच्छी अंग्रेजी बोलने के साथ साथ लिखते भी हैं.
देखा जाये तो अब वो घड़ी भी आ ही गयी है, जब सचिन पायलट वाली बात राहुल गांधी (Rahul Gandhi), एक बार शशि थरूर के लिए भी दोहरा सकते हैं - शशि थरूर के धैर्य की सार्वजनिक तौर पर तारीफ करके. इससे ज्यादा तो वो सचिन पायलट के लिए भी नहीं कर पा रहे हैं. आगे की बात और है, अभी तक तो नहीं ही कर पाये हैं.
शशि थरूर का मामला सचिन पायलट से काफी अलग है. शशि थरूर के रास्ते में मल्लिकार्जुन खड़गे कोई बाधा नहीं खड़ी करेंगे, ये बात अलग है कि वो करने की स्थिति में भी नहीं हैं - हां, अगर शशि थरूर की निष्ठा पर कोई शक है तो बात अलग है.
लेकिन शशि थरूर ने ऐसा कौन सा काम किया है जिससे उनकी निष्ठा पर शक किया जा सके? सिवा G-23 वाली चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने के.
G-23 नेताओं की जो पॉलिटिकल लाइन थी, वो कांग्रेस के खिलाफ कहां थी?
तब तो उन नेताओं के कांग्रेस छोड़ने जैसी भी कोई बात समझ में नहीं आयी थी. कांग्रेस छोड़ने का फैसला तो काफी इंतजार करने के बाद उन नेताओं ने किया. जब जिसे मौका मिला धीरे धीरे निकल लिया. जितिन प्रसाद अच्छा खासा यूपी में ब्राह्मण वोट बैंक पर काम कर रहे थे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की टीम का मजबूत हिस्सा भी रहे. एक बार लोक सभा चुनाव के दौरान उनके बारे में अफवाह जरूर उड़ी थी, लेकिन वो कांग्रेस के साथ बने रहे. फिर अचानक उनको पश्चिम बंगाल का चुनाव प्रभारी बना कर उत्तर प्रदेश से हटा दिया गया. ऐसा कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ किया था - महाराष्ट्र में चुनाव प्रभारी बना कर. आगे का हाल सबको मालूम है ही.
G-23 की एक ही तो मांग थी. कांग्रेस के लिए एक स्थायी अध्यक्ष का इंतजाम हो - और वो काम करता हुआ दिखे.
निश्चित तौर पर ये टिप्पणी राहुल गांधी के कार्यकाल और उनकी कार्यशैली की तरफ सवालिया निशान थी, लेकिन बाद की बातचीत में G-23 नेताओं ने ये भी माना था कि राहुल गांधी से भी उनको कोई दिक्कत नहीं है. बस ये मालूम हो जाये कि राहुल गांधी ही कमान संभाल रहे हैं, ताकि किसी को अपनी बात कहनी हो तो वो उसके दरवाजे पर दस्तक दे सके. मुश्किल वैसे इतनी ही नहीं थी, अगर दस्तक के बाद भी दरवाजा न खुले तो?
शशि थरूर अभी बीजेपी के नेता नहीं हैं, राहुल गांधी को ये ख्याल रखना चाहिये - क्योंकि भलाई इसी में है.
शशि थरूर के ट्रैक रिकॉर्ड को राहुल गांधी नये सिरे से देखने की कोशिश करें तो पाएंगे कि उनका कोई भी स्टैंड बदला नहीं है. वो भी संघ, बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ वैसे ही मुखर, हमलावर और आक्रामक होते हैं जैसे खुद राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा या कोई अन्य कांग्रेस नेता. ऐसे नेताओं को राहुल गांधी निडर कैटेगरी में रखते हैं. जो संघ और बीजेपी को लेकर कांग्रेस को संयम बरतने की सलाह देते हैं, राहुल गांधी उनको डरपोक कैटेगरी में रखते हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से पहले शशि थरूर से एक ही गलती हुई है. शशि थरूर ने भी कांग्रेस के उन नेताओं के विचार को एनडोर्स किया है, जिनकी सलाहियत रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमलों से बचना चाहिये - और ये बात राहुल गांधी को बिलकुल भी पंसद नहीं आती है.
सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) का इस्तेमाल तो सोच लिया है और उसके हिसाब से पक्का इंतजाम भी कर दिया है. शशि थरूर को लेकर तो राहुल गांधी को ही फैसला करना होगा - मल्लिकार्जुन खड़गे ढाल हैं और शशि थरूर तलवार हैं!
मल्लिकार्जुन खड़गे की भूमिका तय है
मल्लिकार्जुन खड़गे के कर्नाटक में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को अच्छा खासा समर्थन मिल रहा है. देखने के लिए ही सही, भीड़ आ तो रही है. और भीड़ आएगी तो नेता की बातें सुनेगी भी, लिहाजा सुन भी रही है - सबसे बड़ा सबूत तो बीजेपी की तरफ से जनसंकल्प यात्रा की घोषणा करना ही लगता है.
भारत जोड़ो यात्रा को मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई खिल्ली भी उड़ाते हैं, लेकिन सतर्क भी लगते हैं. मीडिया के पूछने पर बोम्मई कहते हैं, 'महात्मा गांधी के बारे में बात कीजिये... किसी फर्जी गांधी के बारे में नहीं.'
मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का फायदा अभी से समझ में आने लगा है. और दलित समुदाय के आरक्षण के मुद्दे पर राहुल गांधी के बयान का असर भी काफी तेज हो रहा है. राहुल गांधी के एक बयान के 24 घंटे हुए भी नहीं थे कि बीजेपी की बसवराज बोम्मई सरकार की तरफ से सर्वदलीय बैठक बुला ली जाती है. विपक्ष के नेता सिद्धारमैया के साथ साथ जेडीएस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को भी बुला लिया जाता है.
ये सब राहुल गांधी के भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सिर्फ ये कहने पर ही होता है कि SC-ST के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ाने को लेकर जस्टिस नागमोहन दास की सिफारिशों को बीजेपी की सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. कर्नाटक में चालीस फीसदी कमीशन का जिक्र तो किसी न किसी बहाने से कर ही लेते हैं.
ये भी महसूस किया गया है कि भारत जोड़ो यात्रा को उन इलाकों में भी लोगों का सपोर्ट मिल रहा है, जहां कांग्रेस को बहुत अच्छी स्थिति में नहीं समझा जाता है. ऐसा कोई पहली बार तो नहीं है, लेकिन कांग्रेस के भीतर भी राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर चर्चा होने लगी है. राहुल गांधी को देखने आने वाले और सुनने वाले लोग कांग्रेस को वोट देंगे या नहीं, ये तो कई बातों पर निर्भर करेगा - लेकिन राहुल गांधी ये भरोसा तो बढ़ाने ही लगे हैं कि वो भीड़ को अपनी तरफ खींचने लगे हैं.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी जगह जगह मीडिया से बात भी करते हैं, और ऐसे ही एक मौके पर पूछा गया कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बन जाने के बाद कांग्रेस में उनकी क्या भूमिका होने वाली है?
राहुल गांधी का कहना है कि कांग्रेस में उनकी भूमिका तो पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही तय करेंगे. जब पूछा जाता है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष को वो रिपोर्ट करेंगे? तो उनका जवाब होता है, बिलकुल. कांग्रेस में अध्यक्ष के पास सर्वोच्च अधिकार होते हैं. कांग्रेस में ऐसा ही परिवर्तन पांच साल पहले 2017 के आखिर में भी हुआ था, तब सोनिया गांधी ने कहा था कि राहुल गांधी ही उनके भी नेता हैं.
ये भी मान कर चलना होगा कि मल्लिकार्जुन खड़गे का इतना ही असर हो सकता है, बाकी जिस काम के लिए वो बने हैं या बनाये गये हैं गांधी परिवार गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का अपने हिसाब से इस्तेमाल करेगा ही. राहुल गांधी से ऐसे सवाल भी पूछे जा रहे हैं, और वो बार बार बता भी रहे हैं. अपनी तरफ से जता भी रहे हैं, निशाने पर बीजेपी होती है. राहुल गांधी ये बोल कर कि कांग्रेस चुनाव के जरिये अध्यक्ष बनता है, आखिर किसे सुना रहे हैं? निश्चित तौर पर बीजेपी को ही तो.
शशि थरूर बड़े काम के हो सकते है
शशि थरूर कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण नेता हैं. हर हाल में लोक सभा चुनाव तीन पर जीत चुके हैं. दो बार तो मोदी लहर में भी संसद पहुंचे हैं. एक मोदी लहर में तो मल्लिकार्जुन खड़गे भी पार हो गये थे - और लोक सभा में कांग्रेस के नेता की भूमिका में भी रहे. 2014 में कांग्रेस को कुछ और सीटें मिली होतीं तो नेता प्रतिपक्ष का पद भी हासिल होता - लेकिन 2019 वाली मोदी लहर में मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव हार गये थे और ये सब शशि थरूर बार बार याद भी दिला रहे थे.
ऐसा तो नहीं है कि शशि थरूर कोई निर्दलीय सांसद हैं यानी उनकी जीत में कांग्रेस का योगदान नहीं है, लेकिन ये भी मान लेना चाहिये कि कांग्रेस के टिकट पर भी वो अपने बूते ही जीते हैं. जैसे इसी साल हुआ यूपी चुनाव में कांग्रेस के दो नेता अपने बूते विधानसभा पहुंच गये.
राहुल गांधी को किसी भी सूरत में शशि थरूर को गवांना नहीं चाहिये. शशि थरूर प्रोफेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और ये भी मान लेना चाहिये कि राहुल गांधी मंजूरी मिले बगैर ऐसा तो नहीं ही हो पाता. शशि थरूर देश के उस क्लास के नेता हैं, जो कांग्रेस से जुड़ा हुआ है. अब भी जब कि संघ और बीजेपी के कारण राजनीति का मिजाज काफी बदल चुका है.
अव्वल तो राहुल गांधी को चाहिये कि शशि थरूर को अपना सलाहकार बना लें. जैसे अहमद पटेल, सोनिया गांधी के सलाहकार हुआ करते थे.
राहुल गांधी को शशि थरूर की वो बाद जरूर याद रखनी चाहिये जब मैनिफेस्टो को लेकर उन्होंने कहा था, 'मेरा मकसद पार्टी को पुनर्जीवित करना... फिर से सक्रिय करना है... कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना है.. और लोगों के संपर्क में रहना है... मेरा मानना है कि ये 2024 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी से लड़ने के लिए कांग्रेस के लिए काफी कारगर साबित होगा.'
शशि थरूर के बारे में बाकी कांग्रेस नेताओं और गांधी परिवार की जो भी धारणा रही होगी, कांग्रेस सांसद ने संगठन चुनाव के दौरान भी अपनी बातें बड़ी ही सोफियाने तरीके से कही. वो न मुद्दे से भटके, न ही निशाना चूके - लेकिन किसी के लिए कोई अपमान जनक बात नहीं की.
शशि थरूर अपने मन की करते हैं. जो ठीक लगता है करते ही हैं. हां में हां नहीं मिलाते - और वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमलों के पक्षधर नहीं हैं. अगर ये बातें राहुल गांधी दिल पर लेने की जगह दिमाग से देखें तो अपनेआप रास्ता नजर आएगा. वो रास्ता जिसकी उनको शिद्दत से तलाश है.
वो कांग्रेस के वोटर के पास जाने की बात करते हैं. वो संगठन को आगे ले जाने् की बात करते हैं. वो कांग्रेस के संसाधनों को दुरूस्त करने की बात करते हैं - भला ऐसा कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कहां मिलेगा? राहुल गांधी के करीबी तो बस उनके कपड़ों की तारीफ करते हैं. हो सकता है कुछ ये भी समझाने की कोशिश कर रहे हों को कि जब मां ने सनस्क्रीम भेजा है तो लगाने से परहेज क्यों करना चाहिये.
लेकिन ये सब पूरी जिंदगी काम नहीं आने वाला है. जैसे पहले वो छुट्टी पर चले जाया करते थे, कुछ दिन के लिए चाहें तो ऐसे चापलूसों को छुट्टी पर भेज दें - जिस दिन राहुल गांधी ये सब समझ लेंगे कांग्रेस का भी कल्याण हो जाएगा, और उनका भी.
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