मोदी से ज्यादा राहुल का काम बिगाड़ेगी बुआ-भतीजे की जोड़ी
मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन न करने का सवाल खुद उछाला और खुद ही तफसील से उसका जवाब देकर बाकी सारे सवाल खत्म करने का काम किया. असल में कांग्रेस से मायावती को हमेशा से ही खौफ रहा है कि कहीं वो उसके वोट बैंक पर दोबारा कब्जा न जमा ले.
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लखनऊ के एक पंचतारा होटल में जहां तकरीबन दो साल पहले ‘यूपी के लड़के’ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे, आज फिर उसी जगह पर दोबारा एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन हुआ. जगह वही थी, मगर प्रेस कांफ्रेंस के किरदार बदले हुये थे. यूपी के लड़कों की जगह पर बुआ-भतीजे की जोड़ी मीडिया से मुखातिब थी. मौका था गठबंधन की आधिकारिक घोषणा और सीटों के बंटवारे के ऐलान का. करीब 22 मिनट चली प्रेस कांफ्रेंस में बुआ करीब 14 मिनट बोलीं तो भीतजे ने लगभग 8 मिनट माइक थामा. माया-अखिलेश ने मीडिया को अपनी नयी राजनीतिक दोस्ती से तारूफ करवाया. दोनों दलों ने बराबरी का व्यवहार करते हुए 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दो सीटें अन्य दलों और रायबरेली और अमेठी की सीटों को बिना किसी गठबंधन के लिये कांग्रेस के लिये छोड़ा गया है. माया-अखिलेश की प्रेस वार्ता की सबसे अहम् बात यह रही है कि मायावती ने भाजपा के साथ ही साथ कांग्रेस की भी जमकर धुलाई की. सपा-बसपा ने कांग्रेस को एक किनारे करके उसकी सत्ता वापसी के रास्ते में गठबंधन का एक बड़ा-सा पत्थर रख दिया है. वास्तव में मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ने के मकसद से बसपा-सपा की दोस्ती भाजपा से ज्यादा कांग्रेस का काम बिगाड़ेगी, अब यह बात तय हो गयी है.
माया-अखिलेश की प्रेस कांफ्रेंस की शुरूआत यूपी की चार बार की मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती ने की. पूरी वार्ता की सबसे ज्यादा जरूरी बातें मायावती के मुंह से निकली. मायावती ने कांग्रेस को भाजपा के साथ एक तराजू में तौलने का काम किया. मायावती ने कांग्रेस और भाजपा की सोच, कार्यशैली व नीति को एक ही बताया. मायावती ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहाकि यूपी में हुये उपचुनाव में उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी. मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन को को ‘सारहीन’ करार दिया. लबोलुबाब यह है कि मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन न करने का सवाल खुद उछाला और खुद ही तफसील से उसका जवाब देकर बाकी सारे सवाल खत्म करने का काम किया. असल में कांग्रेस से मायावती को हमेशा से ही खौफ रहा है कि कहीं वो उसके वोट बैंक पर दोबारा कब्जा न जमा ले.
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने 23 वर्ष पुरानी दुश्मनी भुलाकर एक बार फिर गठबंधन किया है
यूपी की राजनीति में कांग्रेस पिछले दो दशकों से निचले पायदान पर खड़ी है. बावजूद इसके यूपी की कई लोकसभा सीटों पर उसकी मजबूत पकड़ और जनाधार को नकारा नहीं जा सकता है. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले दम पर 71 सीटों के साथ 42.63 फीसदी वोट शेयर हासिल किया था. समाजवादी पार्टी को कुल 22.35 फीसदी वोटों के साथ पांच सीटें मिली थी. बहुजन समाज पार्टी को 19.7 फीसदी वोट तो मिले लेकिन उसका खाता नहीं खुल पाया. इसके उलट कांग्रेस महज 7.53 फीसदी वोट हासिल कर दो सीटें अमेठी व रायबरेली जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस का पश्चिम उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, गाजियाबाद और मुरादाबाद की लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. ऐसे में एक बड़े वोटर समूह में अपनी पैठ बनाने वाली कांग्रेस अगर सपा-बसपा के बिना चुनाव मैदान में उतरेगी तो इसका सीधा लाभ बीजेपी को होना तय है.
अब चूंकि सपा-बसपा के गठबंधन की आधिकारिक घोषणा हो चुकी है ऐसे में यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा. सपा-बसपा के गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा यूपी में इन दोनों पार्टियों को ही मिलेगा. इसकी वजह है कि अगर सपा-बसपा के वोट शेयर को मिला दिया जाए तो यह करीब 40 फीसदी के आस-पास बैठता है, जो 2014 के मुकाबले में बीजेपी के बराबर है. अब अगर इसी वोट शेयर से सीटों की जीत का अनुमान लगाया जाए तो हो सकता है कि 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का आधे से ज्यादा सीटों जीत का परचम लहरा सकता है. सपा-बसपा चाहेगी कि पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल जैसे- निषाद पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) उसके साथ हो जाए. अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए 2019 की राह और भी मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि गठबंधन में ना शामिल किए जाने पर पिछले चुनाव में महज 7.5 फीसदी वोट पाने वाली कांग्रेस के लिए मुश्किलें और बढ़ेंगी और केंद्र की सत्ता में वापसी के सपने बिखर सकते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां बीजेपी को 39.6 फीसदी वोट शेयर मिला था तो सपा और बीएसपी को 22 फीसदीं दोनों के वोटों को मिला दें तो 44 फीसदी हो जाता है. कांग्रेस को मात्र 6 फीसदी ही वोट मिले थे.
2014 में कांग्रेस ने यूपी में लोकसभा की दो सीटें जीती थीं. 2009 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए अकेले दम पर 21 सीटें हासिल की थीं. यहां सपा ने 23 और बसपा ने 20 सीटें हासिल की थीं, जबकि बीजेपी को 10 सीटें मिली थीं. वोटिंग प्रतिशत पर गौर करें तो मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस ने यूपी की करीब दो दर्जन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया था. दो सीटें जीतने के अलावा कुल छह सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. यहां कांग्रेस प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे. माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस आगामी वक्त में महागठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ती है तो गठबंधन के वोटबैंक पर इसका बड़ा असर पड़ेगा. वहीं मायावती और अखिलेश के महागठबंधन से बाहर होने की स्थिति में पश्चिम यूपी की सहारनपुर, मेरठ, मुरादाबाद और गाजियाबाद जैसी सीटों पर इकट्ठा हो रहे वोटर बंटेगेे, जिससे बीजेपी को फायदा होगा.
मायावती ने कांग्रेस को भाजपा के साथ एक तराजू में तौलने का काम किया
वास्तव में कांग्रेस में गठबंधन को लेकर प्रारम्भ से ही दो अलग राय थीं. एक राय यह है कि अकेले चुनाव लड़कर सभी सीटों पर पार्टी को मजबूती दी जाए. विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन करने से सपा सरकार के खिलाफ चल रही लहर का नुकसान कांग्रेस को भी उठाना पड़ा. पड़ोसी तीन राज्यों में अकेले चुनाव लड़ कर सरकार बनने के बाद यूपी में भी पार्टी नेता इसको लेकर मुखर हो गये थे. सपा-बसपा के गठबंधन की घोषणा के बाद अब यह साफ हो गया है कि कांग्रेस अपने दम पर यूपी में मैदान में उतरेगी. इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी में कांग्रेस का जनधार लगातार गिरता जा रहा हैं. पार्टी के पास यूपी में मौजूद सात विधायकों में से दो पश्चिम उत्तर प्रदेश से हैं, लेकिन इन सब के बीच करीब तीन दशक से सत्ता से बाहर कांग्रेस संगठन की दृष्टि से काफी कमजोर दिखने लगी है. कांग्रेस के कई नेताओं व सियासी जानकारों का कहना है कि अगर पार्टी पश्चिम यूपी में एसपी और बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ती है तो उसके लिए अपना सियासी वजूद बचाना आसान होगा. वहीं अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में कांग्रेस को नुकसान जरूर होगा.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक, पिछले दिनों हुए फूलपुर, गोरखपुर, कैराना और नूरपुर के उपचुनाव ये साफ दिखाते हैं कि गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में बीजेपी को आसानी से पटखनी दी जा सकती है. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सभी दलों को एक साथ आना, खासकर कांग्रेस का. लेकिन जानकारों का मुताबिक, मौजूदा परिस्थिति में सपा-बसपा के गठबंधन से विपक्षी मतों का बिखराव होगा और बीजेपी को इसका सीधा फायदा होगा. सपा-बसपा ने कांग्रेस से किनारा करके राजनीतिक समझ-बूझ का परिचय दिया है या बड़ी गलती की है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा. फिलवक्त, सपा-बसपा, कांग्रेस और भाजपा सब अपनी-अपनी राजनीति और रणनीति कामयाब होते देख रहे हैं.
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