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Updated: 05 मार्च, 2021 02:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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केरल चुनाव (Kerala Assembly Election) में तो ऐसा लग रहा है जैसे ई. श्रीधरन (E. Sreedharan) आगे आगे चल रहे हों और बीजेपी पीछे पीछे. हो सकता है ये सब अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मर्जी से हो रहा हो, लेकिन देखकर तो बिलकुल ऐसा ही लग रहा है.

ये श्रीधरन ही हैं जो बीजेपी नेताओं के आधिकारिक बयान आने से पहले ही स्वयं को बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रोजेक्ट कर चुके थे - लव जिहाद और किसान आंदोलन पर अपनी राय जाहिर कर श्रीधरन ने लगे हाथ फटाफट ये भी साफ कर दिया था कि वो बीजेपी में क्यों फिट हो सकते हैं.

बीजेपी की तरफ से तो श्रीधरन के दावों को सिर्फ अटेस्ट किया जाना बाकी रहा - बिलकुल ऐसा ही हुआ भी, लेकिन थोड़ी ही देर बाद केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन को श्रीधरन के केरल में बीजेपी के सीएम कैंडिडेट होने को लेकर भूल सुधार के बाद सस्पेंस की स्थिति बन गयी है.

हालांकि, श्रीधरन के कुछ बयान ऐसे भी हैं जो बीजेपी नेतृत्व को शायद ही कभी मंजूर हों. साथ ही, श्रीधरन जिस तरीके से खुद को प्रोजेक्ट कर रहे हैं ऐसा लगता है वो अपने को बीजेपी के बाकी नेताओं से बेहतर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं - करीब करीब वैसे ही जैसे कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बाइसेप्स और ऐब्स की नुमाइश की खूब चर्चा हो रही है.

टेक्नोक्रेट या फुलटाइम पॉलिटिशियन - बेहतर कौन

केरल में मुख्यमंत्री पी. विजयन को छोड़ कर कम से कम दो ऐसे नेता हैं जो खुद को बाकियों से बिलकुल अलग प्रोजेक्ट कर रहे हैं, खास तौर पर अपनी फिटनेस को लेकर - राहुल गांधी के बाइसेप्स और ऐब्स की चर्चा हो रही है, तो श्रीधरन भी उम्र के मुकाबले मेंटल फिटनेस को तरजीह देने की बात कर रहे हैं. 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने से पहले लालकृष्ण आडवाणी भी फिटनेस को लेकर श्रीधरन जैसी तो नहीं, लेकिन मिलती जुलती ही बातें कर रहे थे - लालकृष्ण आडवाणी बता रहे थे कि कैसे वो पूरी तरह फिट महसूस करते हैं और उनके ही शब्दों में 'अल्प भोजन' लेते हैं.

सबसे पहले तो राहुल गांधी के पानी से बाहर निकलने वाली तस्वीर सामने आयी और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने ट्वीट करते हुए उनके ऐब्स और बाइसेप्स की तरफ लोगों का ध्यान खींचा. दरअसल, शर्ट गीली होने के कारण शरीर से चिपक गयी थी और उसके चलते सारे शेप साफ साफ उभर रहे थे. बाद में कुछ और लोगों की तरफ से भी सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के ऐब्स का भी बॉलीवुड सेलीब्रिटी जैसा बताने के प्रयास हुए. अभी ये सब चल ही रहा था कि एक दिन छात्रों के बीच राहुल गांधी अपनी चुनावी रैली में ही फिटनेस चैलेंज शुरू कर दिये - और एकिडो के डेमो के साथ साथ 9 सेकंड में 13 पुशअप्स का भी सियासत में नया रिकॉर्ड बना डाला.

ये तो बीजेपी ही है जो मार्गदर्शक मंडल बनाकर श्रीधरन से उनकी उम्र को लेकर सवाल पूछने का मौका दे दे रही है, वरना केरल के एकमात्र बीजेपी विधायक ओ. राजगोपालन भी श्रीधरन से उम्र में काफी बड़े हैं.

अपनी उम्र को लेकर उठते सवालों पर श्रीधरन कहते हैं, 'शारीरिक उम्र की बजाय मानसिक उम्र ये तय करती है कि किसी को क्या जिम्मेदारियां उठानी चाहिये... मन की उम्र ही मायने रखती है, न कि शरीर की उम्र... मानसिक रूप से मैं बहुत अलर्ट और युवा हूं... अब तक मेरे साथ सेहत से जुड़ी कोई समस्या नहीं पैदा हुई है... मुझे नहीं लगता कि सेहत कोई बड़ा मुद्दा होने वाला है.'

लेकिन श्रीधरन की एक बात बाकी नेताओं खटक भी सकती है, 'मैं किसी आम नेता की तरह काम नहीं करूंगा - मैं एक टेक्नोक्रेट की तरह काम करना जारी रखूंगा.'

क्या श्रीधरन ये साबित करना चाहते हैं कि एक टेक्नोक्रेट किसी आम नेता से कहीं ज्यादा बेहतर काम करता है या कर सकता है?

तो क्या इसे बीजेपी के लिए सबक नहीं माना जाना चाहिये या श्रीधरन की बातों को भी 'कालेधन के 15 लाख..' की तरह पहले से ही चुनावी जुमला समझ कर संतोष कर लेना चाहिये.

e sreedharan, rahul gandhiऐसा क्यों लगने लगा है जैसे श्रीधरन और राहुल गांधी दोनों ही फिटनेस के बहाने खुद को बाकी नेताओँ के मुकाबले बेहतर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं?

महज इतना ही कौन कहे, श्रीधरन के मुंह से उरालंगल लेबर कांट्रैक्ट कोआपरेटिव सोसायटी की तारीफ भी बीजेपी नेतृत्व को नाराज कर सकता है क्योंकि उसे लेफ्ट समर्थक माना जाता है. ठीक ऐसे ही रेलवे के निजीकरण को लेकर भी श्रीधरन के विचार सरकार की सोच से मेल खाते नहीं पाये गये. श्रीधरन रेलवे के निजीकरण को मूर्खतापूर्ण फैसला बताते रहे हैं और हाल ही में दोहराया भी है.

सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो ये है कि श्रीधरन ये भी संकेत देने लगे हैं कि वो तो वोट मांगने भी नहीं जाने वाले हैं. कहते हैं, 'मैं वोट मांगने डोर टू डोर नहीं जाऊंगा लेकिन मेरा संदेश मतदाताओं तक पहुंच जाएगा.'

मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर जैसे बीजेपी ने आईना दिखाने की कोशिश की है, श्रीधरन को केरल के लोगों के मन की बात भी सुनने की अभी से ही कोशिश करनी चाहिये.

मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर बीजेपी में सस्पेंस क्यों बना रहता है

हाल फिलहाल तो पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी, अब केरल में भी मेट्रो मैन ई. श्रीधरन के बीजेपी के सीएम कैंडिडेट होने पर सस्पेंस कायम हो गया है.

केरल में श्रीधरन का मामला पश्चिम बंगाल में सौरव गांगुली जैसा तो बिलकुल नहीं है. श्रीधरन शुरू से ही घूम घूम कहते आ रहे हैं कि केरल में बीजेपी को सत्ता में लाना उनका पहला काम होगा और अगर पार्टी उनको मुख्यमंत्री बनाती है तो वो खुशी खुशी स्वीकार करेंगे. बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली के तरफ से मुख्यमंत्री पद की बात तो दूर अभी तक तो बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर भी कोई बयान नहीं आया है.

हाल के दिनों में मीडिया में कुछ खबरें ऐसी आयी जरूर हैं जिनमें सौरव गांगुली के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के वक्त बीजेपी ज्वाइन करने की बात है. अगर वाकई ऐसा है तो मान कर चलना चाहिये कि सौरव गांगुली ही ममता बनर्जी के खिलाफ पश्चिम बंगाल में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के फेस होंगे.

लेकिन बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने ऐसी खबरों को ही खारिज कर दिया है. दिलीप घोष ने आज तक से बातचीत में कहा है, ''सौरव गांगुली को लेकर जो खबरें बनाई जा रही हैं उनमें कोई दम नहीं है. सौरव गांगुली ने अभी तक कुछ नहीं कहा है - और बीजेपी ने भी नहीं कहा है.'' श्रीधरन को लेकर तो इससे भी बुरी स्थिति नजर आयी है.

हुआ ये कि केंद्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन ने न्यूज एजेंसी से बातचीत में पहले बोल दिया कि बीजेपी ने ई. श्रीधरन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है, लेकिन तीन घंटे बाद ही वो खुद ही भूल सुधार के साथ खंडन भी करने लगे. बताने लगे कि उनको ऐसी जानकारी मीडिया रिपोर्ट से मिली थी, लेकिन जब वो पार्टी प्रमुख से बात की तो मालूम हुआ कि ऐसा कोई फैसला हुआ ही नहीं है.

केंद्रीय मंत्री मुरलीधरन के दो ताबड़तोड़ बयानों के बाद से श्रीधरन के बीजेपी के केरल में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होने के दावे पर भी सवालिया निशान लग गया है. साथ ही, श्रीधरन की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ गयी है.

सवाल तो अब ये भी उठता है कि क्या बीजेपी ने श्रीधरन को लेकर मन बदल लिया है?

अगर ये महज कम्यूनिकेशन गैप का मामला नहीं है तो क्या बीजेपी नेतृत्व इसे बेहतर तरीके से हैंडल नहीं कर सकता था?

आखिर एक केंद्रीय मंत्री की बयानबाजी से श्रीधरन जैसी शख्सियत को संदेहों के घेरे में छोड़ देने की क्या जरूरत रही?

श्रीधरन तो शुरू से ही ऐसे संकेत देते रहे. अगर केंद्रीय मंत्री मुरलीधरन कुछ नहीं भी बोले होते तो भी कौन सा पहाड़ टूट पड़ता. वैसे भी वी. मुरलीधनर को केरल प्रमुख के. सुरेंद्रन या फिर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तो हैं नहीं जो उनकी बातों को पत्थर की लकीर ही मान लिया जाता.

कोई ये भी तो नहीं मान सकता कि श्रीधरन जैसा व्यक्ति अपने मन से ही बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार होने के दावे अपने मन से करता फिरेगा. ये तो बीजेपी नेतृत्व की मंजूरी के बाद ही मुमकिन हुआ होगा. वरना, श्रीधरन भी चाहते तो सौरव गांगुली की तरह बातें और मुलाकातें करते रहते और खुद खामोश रहते - ये सोच कर कि जब बीजेपी चाहेगी तो कोई भी सार्वजनिक घोषणा कर लेगी.

असम में तो सर्बानंद सोनवाल मुख्यमंत्री होने के नाते पहले से ही बीजेपी का चेहरा हैं. वैसे 2016 में भी वो केंद्रीय मंत्री रहते ही मुख्यमंत्री का चेहना बन चुके थे, लेकिन असम के अलावा अभी बीजेपी के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कहीं सामने नहीं आया है. पुडुचेरी को छोड़ भी दें तो तमिलनाडु में तो अभी स्कोप भी नहीं बना है - और पश्चिम बंगाल में बीजेपी के सामने वही परंपरागत दुविधायें हैं - एक पहले से ऐसा कोई नेता तैयार नहीं किया जा सका है और दूसरा, अगर किसी एक को कैंडिडेट बना भी दिया जाये तो कहीं पार्टी के दूसरे नेता नाराज न हो जायें.

सौरव गांगुली को लेकर भी हो सकता है बीजेपी नेतृत्व के मन में दिल्ली में किरण बेदी वाले बुरे अनुभव के चलते संकोच हो - और अब तो लगता है श्रीधरन के मामले में भी वही हुआ है.

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#केरल चुनाव, #ई श्रीधरन, #भाजपा, E. Sreedharan, Rahul Gandhi, Kerala Assembly Election

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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