गुरु गडकरी का काम बोलता है, पर चेले पटोले के जातीय समीकरण में उलझ गये हैं
नितिन गडकरी अक्सर मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में चर्चा में रहते हैं. नागपुर में इस बार गडकरी को अपने शिष्य नाना पटोले से कड़ी चुनौती मिल रही है - क्योंकि कांग्रेस ने चुनाव को जातीय समीकरणों में उलझा दिया है.
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नितिन गडकरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट के सबसे कामदार मंत्री माने जाते हैं. नितिन गडकरी का काम बोलता है - और उनके काम से जुड़े आंकड़े हर वक्त उनकी जबान पर होते हैं. ये गडकरी के काम करने की स्टाइल ही है कि किसी समय महाराष्ट्र वो बुलडोजर मिनिस्टर कहलाते रहे - और बाद में भी विकास पुरुष की अपनी छवि बरकरार रखने की कोशिश कायम रही है.
2014 में गडकरी का पुराना काम लोगों के सिर चढ़ कर बोला और पुराने कांग्रेसी विलास मुत्तेमवार को भारी वोटों के अंतर से हराने में कामयाब रहे. नितिन गडकरी नागपुर सीट से ही एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गढ़ तो है ही महाराष्ट्र के के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस भी वहीं से आते हैं.
पांच साल बाद नितिन गडकरी का काम तो पूरे देश में बोल रहा है लेकिन खुद अपने इलाके में बड़ी चुनौती से जूझ रहे हैं. दरअसल, उनके खिलाफ कांग्रेस ने दो साल पहले बीजेपी छोड़ने वाले नाना पटोले को ही मैदान में उतार कर चुनाव को जातीय समीकरणों में उलझा दिया है.
हाल-फिलहाल नितिन गडकरी बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ मुखर नजर आये हैं - और अगर नेतृत्व पर सवाल खड़े करते रहे हैं. गडकरी को बीजेपी में नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के दूसरे दावेदार के रूप में भी देखा जाता रहा है - हालांकि, वो सार्वजनिक तौर पर इस बात से इंकार करते रहे हैं.
गुरु और चेला आमने सामने
नागपुर से नितिन गडकरी के मुकाबले मैदान में नाना पटोले हैं. नाना पटोले पहले बीजेपी में थे और नितिन गडकरी को अपना गुरु मानते हैं. गुरु और चेले इस बार अलग अलग पार्टियों से आमने सामने चुनाव मैदान में आ डटे हैं.
नाना पटोले के बारे में पूछे जाने पर नितिन गडकरी कहते हैं कि वो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ कभी दुश्मनी नहीं रखते. गडकरी कहते हैं, ‘मैं राजनीति में ऐसी दुश्मनी नहीं रखता. मेरी शुभकामनाएं उनके साथ हैं.’
नाना पटोले बीजेपी के टिकट पर वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव भंडारा-गोंदिया से एनसीपी के दिग्गज नेता प्रफुल्ल पटेल को हरा कर जीता था. 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वो प्रफुल्ल पटेल से हार गये थे लेकिन दूसरे स्थान पर रहे. 2017 में नाना पटोले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और 2018 में कांग्रेस ज्वाइन कर ली.
कांग्रेस ने गडकरी के काम को जातीय समीकरणों में उलझा दिया है
नाना पटोले ने बीजेपी छोड़ने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर सवाल खड़े किये थे. नाना पटोले का आरोप था कि प्रधानमंत्री मोदी किसी की सुनते नहीं और अपनी मनमानी करते हैं. नाना पटोले का ये भी आरोप रहा कि वो मोदी के सामने किसानों का मुद्दा उठाना चाहते थे लेकिन उन्हें बोलने नहीं दिया गया. वैसे नाना पटोले के बारे में कहा जाता है कि वो काफी समय तक एक पार्टी में नहीं रह पाते. वो बीजेपी से पहले भी कांग्रेस में रहे और उससे पहले शिवसेना से जुड़े थे.
2014 में नितिन गडकरी ने कांग्रेस उम्मीदवार विलास मुत्तेमवार को करीब 3 लाख वोटों से हराया था. तब बीएसपी तीसरे और आम आदमी पार्टी चौथे पोजीशन पर रही. गडकरी को ब्राह्मण होने के बावजूद सभी जातियों यहां तक कि मुस्लिम तबके के भी वोट मिले थे.
नागपुर में कुनबी समुदाय की बड़ी आबादी है और नाना पटोले इसी तबके से आते हैं. करीब दो दशक बाद कांग्रेस ने कुनबी समुदाय से किसी उम्मीदवार को टिकट दिया है. कुनबी के अलावा हल्बा, दलित और मुस्लिम आबादी भी प्रभावी स्थिति में है जो बीजेपी के विरोध में हो चला है. नाना पटोले इन सभी को एकजुट करने में जुटे हुए हैं. नाना पटोले इस बात को भी खारिज करते हैं कि नितिन गडकरी की छवि से चुनाव में कोई असर पड़ेगा. मतलब साफ है, वो चुनाव को जातीय आधार पर उलझाना चाहते हैं - क्योंकि यही वो फैक्टर है जो उनके पक्ष में और गडकरी के खिलाफ जा सकता है. हल्बा समुदाय बीजेपी से इस कारण नाराज है कि सत्ताधारी पार्टी ने उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया. 2014 में कुनबी और हल्बा दोनों बीजेपी के साथ थे. इन समुदायों के 32 संगठनों की ओर से हाल ही में एक कांफ्रेंस हुआ था जिसमें कांग्रेस को वोट देकर बीजेपी को हराने का प्रस्ताव पास हुआ था.
नितिन गडकरी को नाना पटोले राजनीतिक गुरु तो मानते हैं लेकिन उनकी छवि के असर को खारिज करते हैं
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की ओर से अब्दुल करीम को टिकट मिला है. वैसे चर्चा है कि मुस्लिम समुदाय भी कांग्रेस को लेकर मन बना रहा है. बीएसपी ने भी मोहम्मद जमाल नाम के मुस्लिम उम्मीदरवार को ही टिकट दिया है. नागपुर में पहले चरण में ही 11 अप्रैल को मतदान होना है.
'राष्ट्रवादी हूं, लेकिन काम पर बात करता हूं'
नितिन गडकरी का कहना है कि वो विकास के कामों में जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं रखते - और वो सिर्फ अपने काम के आधार पर ही वोट मागेंगे - लेकिन जिस तरह नाना पटोले चुनावी राजनीति को जातीय समीकरणों में उलझा रहे हैं क्या नितिन गडकरी का काम उतनी ही तेज आवाज में बोल पाएगा?
राष्ट्रवाद और पाकिस्तान की भाषा बोलने वालों की तीखी बहस में भी नितिन गडकरी अपने स्टैंड पर कायम हैं, 'मैं राष्ट्रवादी हूं - ये सभी को पता है. हम पिछली बार चुनाव लड़े थे और वादे किए थे. अब समय आ गया है लोगों को ये बताने का कि हमने क्या किया है.'
अपने काम को लेकर गडकरी सड़कें बनवाने, नागपुर मेट्रो का काम शुरू कराने के साथ साथ दलितों के लिए किये गये अपने काम की ओर भी ध्यान दिलाते हैं - लेकिन उनका जोर काम के नाम पर ही चुनाव लड़ने में है.
एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दिन-रात विरोधियों को देशद्रोही बताते नहीं थक रहे, नितिन गडकरी कामकाज और हिसाब किताब के पक्षधर दिखते हैं.
नितिन गडकरी का कहना है, 'मैं जो कहता हूं उसको करता हूं. मैं धर्म, जाति के आधार पर चुनाव नहीं लड़ता.' कहने और सुनने में गडकरी की ये बातें बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन क्या चुनाव जीतने के लिए भी व्यावहारिक हैं? नागपुर में इस बार इस बात का भी फैसला होना है.
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