स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत बनाने का समय अब आ चुका है!
यह लेख युवाओं के लिए है, जिसमें साधारणतः बात युवाओं पर टिकी हुई है, जहां आप पढ़ेंगे कि किस प्रकार युवाओं को एक परिदृश्य बनाना होगा, जिससे वो अपने स्किल और अपने सामर्थ्य पर अपने स्वयं व देश के लिए वास्तव में दिखावे से बढ़कर कुछ कर सकें.
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हम सभी युवा छात्र नेताओं को बहुत खूब जानते होंगे. कई लोग इस नाम का मजाक बनाते हैं तो कई लोग इसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं. देखा जाए तो भारत की 65% आबादी युवा है, जोकि विश्व के सभी देशों से सबसे अधिक है. ऐसे समय में युवाओं को अपने व्यक्तिगत जीवन से बढ़कर, अपनी नौकरी पेशा के साथ-साथ, समाज व देशहित में भी कार्य करने की कहीं अधिक आवश्यकता है.
स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत बनाने का समय अब आ गया है. जहां एक तरफ़ भारत विश्व में एक प्रभावी नेतृत्व के साथ अपना कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, वहीं युवाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारी दोनों ही बढ़ जातीं हैं.
लेकिन युवाओं के अंदर राजनीति करने की एक नैतिकता होनी चाहिए, एक ख़ास गुण होना चाहिए, वो गुण ये नहीं होना चाहिए कि किसी नेता के पीछे लग कर उनकी जय-जयकार करे या उनके पीछे घूमकर या जिन्दाबाद के नारे लगाए, ऐसे में वो सिर्फ़ ग़ुलाम बन सकता है, नेता कभी नहीं. भारत देश में इस समय ग़ुलामों की नहीं बल्कि ऐसे युवा और ऊर्जा से ओत-प्रोत युवा नेतृत्व की ज़रूरत है, जो समूचे विश्व को अपनी प्रतिभा के दम पर घुटने टेकने पर मजबूर कर दे. युवाओं को होना चाहिए कि वह जिस परिवेश में रह रहा है, उसके आस-पास के सुधार के लिए क्या कर सकता है, उस पर हमेशा विचारशील हो.
इसके साथ ही युवाओं को विशेषकर ध्यान देना चाहिए कि एक दौर ऐसा भी था जहां चमचागीरी करने और आगे पीछे घूमने से थोड़ी बहुत बात बन भी जाती थी, लेकिन अब वो दौर बीत चुका है, नया दौर शुरू हो चुका है, इसमें आगे पीछे घूमने की या सोशल मीडिया पर फला भैया का, फला नेता जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ जैसे पोस्ट करने से बात नहीं बनेगी, यहाँ बात बनेगी काम करने से. लोगों के सुधार के लिए कौन से काम किए जा सकते हैं, उससे बात बनेगी, उससे आपकी पहचान बनेगी. हमें ख़ुद से अवसर तलाश करने होंगे. आज लगभग हर व्यक्ति समझदार है, और हर कोई यह भी जानता है कि कौन चमचागीरी कर रहा है, और कौन काम कर रहा है.
चमचागीरी ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाती और वो एक न एक दिन ख़त्म हो ही जाती है, लेकिन यदि आप काम कर रहे होंगे तो वहाँ से आपके अंदर कौशल का विकास होगा, आपके अंदर नेतृत्व करने का विकास होगा, जोकि भारत जैसे तेज़ी से उभरते हुए देश को बहुत ज़रूरत है. इसे साथ ही लोग भी जब आपके द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखेंगे तो वो भी आपका भरपूर साथ देने के लिए तैयार रहेंगे. अपना पूरा सामर्थ्य, पूरा बल, पूरा विवेक आमजन की भलाई में लगाकर देखेंगे, तो हमारे अंदर एक नई ऊर्जा आएगी, नया जोश, नया जुनून और हुनर आएगा, फिर तुमको दुनिया में चमकने से कोई नहीं रोक सकता.
युवाओं, आप में से लगभग सभी के आदर्श स्वामी विवेकानंद होंगे, तो उनके विचारों को पढ़ना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए, यह समय वास्तव में सबसे सुनहरा समय है अपने आप को और अपने देश के बढ़ते हुए गौरव में आहुति देने का. अभी नहीं तो कभी नहीं.
राजनीति में युवाओं को स्वतः से उत्साहित रहने की प्रेरणा लेने की जरूरत है, क्योंकि यहाँ आपको कोई भी प्रेरित करने नहीं आएगा, हाँ अपने आस पास के माहौल या व्यक्ति से सीख ज़रूर ले सकते हैं लेकिन यदि बात आ जाए कि अपने आप को सजग रखने की तो उसमें आपको स्वयं से ही सीख लेनी होगी. क्योंकि आज के इस दौर में सिखाने वाले आपको बहुत ही कम मिलेंगे, समय रहते ख़ुद से सीख लेना, अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है.
सबसे ज़्यादा तो हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ये दौर न आएगा दोबारा. सबसे अधिक ऊर्जा और कुछ भी करने की क्षमता अगर किसी दौर में होती है तो वह युवा दौर ही होता है, इसमें आप चट्टान को भी तोड़ने की क्षमता रखते हैं.
युवाओं को थोड़ा सा आज के चकाचौंध से बचना चाहिए, क्योंकि यह आपको अल्प समय की ख़ुशी तो प्रदान कर सकता है लेकिन आपको लंबे समय तक चलना है तो यह आपके लिए सही रास्ता नहीं है. इसके साथ ही जब आप अपना रास्ता स्वयं से तय करते हैं तो कुछ समय तक तो तकलीफ उठानी पड़ सकती है, लेकिन फिर एक समय बाद आप देखेंगे कि आपसे प्रेरित होकर हज़ारों की संख्या में नवयुवक/युवतियाँ तैयार हो रहे हैं, ये अपने आप में बहुत ही आशावादी और स्वप्रेरक बात है.
इसलिए अभी सही समय है तथाकथित नेताओं और भैयाओं के चंगुल से निकलिए और अपने समाज, अपने देश और सबसे अधिक अपने स्वयं के लिए कुछ अच्छा कीजिए, क्योंकि यदि आप सक्षम हो जाएँगे तो देश तो अपने आप ही सक्षम जो जाएगा.
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