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Updated: 28 सितम्बर, 2018 04:22 PM
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ये सीधा प्रसारण के चलते ही संभव हो पाया कि पूरे देश ने संसद में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गले मिलते - और फिर आंख मारते भी लाइव देखा. जानने को तो लोग ये सब बाद में भी जान लेते लेकिन लाइव देखने की बात ही कुछ और होती है.

लाइव होने से ही हर कोई देख पाया कि रोहित वेमुला की खुदकुशी को लेकर किस तरह मायावती और स्मृति र्ईरानी में बहस हुई. अगर ऐसा न होता तो क्या किसी को मालूम हो पाता कि संसद में कौन क्या कर रहा है. लाइव स्ट्रीमिंग आज तकनीक की बदौलत ही संभव हो पा रही है - और सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी सबकी आंखों के सामने ही हो जा रहा है. अगर कोर्ट से लाइव हो रहा होता तो सजा पाने के बाद गुरमीत राम रहीम और जुर्माना लगने पर स्वामी ओम की हरकतें भी हर किसी को देखने को मिली होतीं.

अहम अदालती कार्यवाहियों के सजीव प्रसारण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी एक अच्छा कदम तो है ही - बहुत ही क्रांतिकारी भी कहना चाहिये. चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस में लोकतंत्र पर खतरे की आशंका को दूर करने में इस फैसले की बड़ी भूमिका होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी है कि लाइव स्ट्रीमिंग से न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ेगी. जाहिर है पारदर्शिता भी आएगी.

लाइव तो LIVE ही होता है

कई बार जजों और सीनियर वकीलों की बहस ही नहीं हल्के फुल्के अंदाज वाली बातचीत भी बड़ी ही दिलचस्प होती है - जो अमूमन वहां मौजूद लोगों तक सीमित रह जाती है या फिर कभी कभार अखबारों के जरिये झलकियों के तौर पर पढ़ने को मिलती है.

सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया है. बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल हैं.

parliament liveदेखो देखो देखो... संसद लाइव देखो.

सबसे बड़ी अदालत ने अपने फैसले में कहा, "इसे सुप्रीम कोर्ट से शुरू किया जाएगा... इसके लिए कुछ नियमों का पालन किया जाएगा... लाइव स्ट्रीमिंग से ज्यूडिशियल सिस्टम में जवाबदेही आएगी..."

हालांकि, कोर्ट ने आरक्षण और अयोध्‍या जैसे संवेदनशील मामलों की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करने की इजाजत नहीं दी है. वैसे भी शुरुआती दौर में ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में पॉयलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में ही ये फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट का मानना रहा कि सुनवाई का सीधा प्रसारण होने से पक्षकार ये जान पाएंगे कि उनके वकील कोर्ट में किस तरह से पक्ष रख रहे हैं.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड का कहना रहा - 'हम खुली अदालत को लागू कर रहे हैं... ये तकनीक का दौर है... हमें सकारात्मक होकर सोचना चाहिये और देखना चाहिये कि दुनिया कहां जा रही है..."

कोर्ट की कार्यवाही के लाइव टेलीकास्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानून के ही एक छात्र की पहल का नतीजा है. जोधपुर में कानून की पढ़ाई कर रहे स्वप्निल त्रिपाठी के साथ साथ सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह और एक गैरसरकारी संगठन ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की थी. स्वप्निल त्रिपाठी कानूनी जानकारियों को लेकर एक ब्लॉग भी चलाते हैं.

कुछ अदालती वाकये जिन्हें लाइव देखना मजेदार होता

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा अगले ही महीने रिटायर होने जा रहे हैं. जब सुप्रीम कोर्ट के 45वें मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति हुई तो विवादित स्वयंभू बाबा स्वामी ओम उसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये. स्वामी ओम की याचिका तो खारिज हुई ही, उन पर ₹10 लाख का जुर्माना भी लगा. मगर, सुप्रीम कोर्ट में स्वामी ओम ने जो हरकत की वो उनके बिग बॉस के सफर से कम मजेदार नहीं लगा.

केस की सुनवाई तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच कर रही थी. बेंच के सामने केस आया तो कोर्ट ने कहा - ये पब्लिसिटी स्टंट है.

स्वामी ओम ने इसका अपने तरीके से खंडन किया. स्वामी ओम का कहना था कि बिग बॉस के जरिये वो पहले ही इतनी पब्लिसिटी पा चुके हैं कि ऐसी कोई उन्हें जरूरत नहीं है.

parliament liveजो भी है आंखों के सामने है...

जब जुर्माना भरने की बात आयी तो स्वामी ओम दुहाई देने लगे कि दस लाख क्या उनके पास तो ₹10 भी नहीं हैं. इस पर कोर्ट ने याद दिलाया कि वो खुद ही दावा कर चुके हैं कि उनके 34 करोड़ अनुयायी हैं - फिर तो वे ₹1-1 भी दे देंगे तो जुर्माना आसानी से भर जाएगा.

फर्ज कीजिए - अगर उस वक्त सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही लाइव हो रही होती तो देखना कितना दिलचस्प होता. कुछ ऐसा ही हाल बलात्कार के अभियुक्त गुरमीत राम रहीम को सजा सुनाये जाने के वक्त भी रहा.

फैसले के वक्त राम रहीम खामोश होकर वकीलों की बातें सुनता रहा. फैसले की बारी आयी तो रोते रोते सीबीआई से रहम की भीख मांगने लगा. वो बुरी तरह कांफ रहा था - 'मुझे माफ कर दीजिये...'

ये वही राम रहीम था जिसकी डेरा सच्चा सौदा से लेकर सिल्वर स्क्रीन तक कभी तूती बोलती थी - "शेर दहाड़ते हैं तो कांपते हुए गीदड़ गिरते हैं. हम तो वो हैं जो शेरों के मुंह में हाथ डाल कर उनके दांत गिनते हैं."

कैसा हो जब पुलिस एक्शन भी लाइव दिखे

हफ्ते भर पहले की बात है. अलीगढ़ में टीवी पत्रकारों को अचानक यूपी पुलिस का बुलावा मिला. मालूम हुआ पुलिस ने लाइव एनकाउंटर शूट करने के लिए बुलाया था. खबरों के मुताबिक एक पुरानी सरकार इमारत में पुलिस के आला अफसरों की मौजूदगी में दो कथित बदमाशों का एनकाउंटर किया गया. ज्यादातर पुलिस एनकाउंटर सवालों के घेरे में ही होते हैं और यूपी पुलिस का एनकाउंटर तो कुछ ज्यादा ही विवादित रहा है. खास बात ये है कि यूपी पुलिस को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वरद हस्त भी प्राप्त है.

सुबह 6.30 बजे की इस घटना पर मीडिया के जरिये आये वीडियो में पुलिस वाले फायरिंग करते देखे गये - और कुछ पुलिस अफसर मौजूद थे. ये वीडियो भी इसलिए सामने आया क्योंकि पुलिस ने इसके लिए मौका मुहैया कराया.

लेकिन क्या पुलिस तब किसी को बुलाती है जब हिरासत में लेकर किसी से पूछताछ करती है?

ऐसे बहुत सारे मामले हैं जिसमें सीधे हिरासत में मौत की ही खबर आती है. पुलिस की थर्ड डिग्री तो शुरू से ही बदनाम रही है. 24 साल बाद बाइज्जत बरी हुए इसरो वैज्ञानिक नांबी नारायणन ने भी बताया कि हिरासत में उनके साथ कितना बुरा सलूक हुआ - वो भी जासूसी के फर्जी इल्जाम में अवैध तरीके से.

क्या वो दिन भी कभी आएगा जब हिरासत में होने वाली पूछताछ का भी लाइव टेलीकास्ट होने लगेगा. क्या पुलिस, सीबीआई और ऐसी दूसरी एजेंसियों की पूछताछ के दौरान हरकतें कभी लाइव देखने को मिलेंगी? अगर वाकई कभी ऐसा संभव हो पाया फिर तो ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट के काम कम और मानवाधिकार आयोग का बोझ भी काफी हल्का हो जाएगा.

अदालतों की जिम्मेदारी नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत लागू करने की होती है - गुनहगार भले छूट जाये किसी बेगुनाह को सजा न हो. अगर पुलिस रिमांड का भी सीधा प्रसारण होने लगे तो हिरासत में होने वाली बेगुनाहों की मौत पर तो रोक लग सकेगी.

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