आधार की अनिवार्यता पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंडपीठ ने आधार सिस्टम को लेकर अहम निर्णय सुनाया है. इस फैसला को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि कहीं न कहीं यह लोगों की निजता से जुड़ा था.
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आधार कार्ड और इससे जुड़े 2016 के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय खंडपीठ ने अहम निर्णय सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रमुख शर्तों के साथ आधार को संवैधानिक माना है. आधार को लेकर निजता के हनन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब तक निजता के हनन के पर्याप्त प्रमाण नहीं मिले हैं. खंडपीठ के अल्पमत निर्णय में केवल जस्टिस चंद्रचूड़ ने आधार को निजता का हनन बताया है. यूं तो कोर्ट ने स्कूलों, बैंक खातों, मोबाइल सिम इत्यादि के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. मगर कई स्थानों पर आधार कार्ड की अनिवार्यता जारी रहेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता के मामले में सभी पक्षों की सुनवाई पूरी कर 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले की सुनवाई 17 जनवरी को शुरू हुई थी, जो 38 दिनों तक चली. आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय खंडपीठ में मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं.
आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है जिससे आम लोगों को काफी राहत मिली है
आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पढ़ते हुए जस्टिस सीकरी ने कहा कि, "सर्वोत्तम होने से अच्छा है कि आप अनूठे हो जाइए". सुप्रीम कोर्ट ने आधार को अन्य पहचान पत्र से बेहतर बताया, जिसके नकली होने की कोई संभावना नहीं है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसे हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए सशक्तिकरण का प्रमुख माध्यम भी बताया.
भारत का बायोमेट्रिक डेटाबेस दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस है. बीते 8 सालों में सरकार 122 करोड़ से ज्यादा लोगों की उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान जुटा चुकी है. सरकार यह भरोसा दे रही है कि बायोमेट्रिक डेटा सुरक्षित ढंग से इनक्रिप्टेड रूप से संग्रहित है. लेकिन छात्रों, पेंशन और जनकल्याण योजनाओं का लाभ लेने वालों की जानकारियां दर्जनों सरकारी वेबसाइट पर आ चुकी हैं. यहां तक कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान धोनी की निजी जानकारी भी एक उत्साही सर्विस प्रोवाइडर द्वारा गलती से ट्वीट की जा चुकी है.
इसके बाद भारत के सेंटर फोर इंटरनेट एंड सोसायटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक चार अहम सरकारी योजनाओं के तहत आने वाले,13 से 13.5 करोड़ आधार नंबर पेंशन और मनरेगा में काम करने वाले 10 करोड़ बैंक खातों की जानकारी ऑनलाइन लीक हो चुकी है. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को डेटा सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के आदेश दिए हैं.
सरकार जिस तरह विभिन्न डेटाबेस के ऑकड़ों को आपस में जोड़ रही है, उससे आंकड़ों के चोरी होने और लोगों के निजता भंग होने का खतरा बढ़ा है. सरकार खुद भी यह स्वीकार कर चुकी है कि करीब 34 हजार सर्विस प्रदाताओं को या तो ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है या फिर सस्पेंड किया गया है, जो उचित प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और फर्जी पहचान पत्र बना रहे हैं.
2015 में हैकरों ने अमेरिकी सरकार के नेटवर्क से करीब 50 लाख लोगों के फिंगरप्रिंट को हैक कर लिया था. ऐसे में भारतीय बायोमेट्रिक डेटाबेस के सुरक्षा पर सवाल उठना स्वाभाविक है. भारत में सरकार डेटा सुरक्षा के लिए डेटा प्रोटेक्शन लॉ लाने की तैयारी कर रही है. लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी धीमी है, जबकि डेटा सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया है कि वह लोगों के आधार के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए और भी कड़ा कानून बनाएं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "शिक्षा से हम अंगूठे के निशान से हस्ताक्षर की तरफ बढ़े, लेकिन तकनीक हमें फिर से हस्ताक्षर से अंगूठे के निशान की तरफ ले गई है."
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पूरे देश के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा था
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार को आवश्यक माना है. बीते कुछ सालों के दौरान आधार संख्या का दबदबा इतना बढ़ा है कि इसने लोगों के जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. जनवितरण प्रणाली के अंतर्गत राशन का वितरण आधार के द्वारा किया जा रहा है. इसके कारण झारखंड में कई स्थानों पर लोगों को राशन नहीं मिल पाया. इस कारण झारखंड में भूख से लोगों की मृत्यु तक हो गई.
इसी तरह राजस्थान के कई हिस्सों में भी लोगों के उंगलियों के निशान का मिलान न होने के कारण राशन नहीं मिल पाया. मजदूरों द्वारा कठोर श्रम के कारण उनके उंगलियों के निशान भी मिट चुके हैं, ऐसे में उनके राशन का वितरण भी प्रभावित हो चुका है. वास्तव में कई मामलों में आधार की अनिवार्यता लोगों के जीवन को भी लील रही है.
इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश बिल्कुल स्पष्ट हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भले ही कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार अनिवार्य है, लेकिन अगर उंगलियों के निशान या दूसरे शब्दों में बायोमेट्रिक पुष्टि नहीं हो पा रही है, तो भी उसे योजनाओं के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऑथेंटिकेशन के आधार पर लाभार्थियों को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता.
आधार को जबरन मोबाइल फोन, बैंक खाते, स्कॉलरशिप, स्कूल एडमिशन और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े इत्यादि से जोड़ने की कोशिश से लोगों की निजी जानकारी लीक होने का खतरा बढ़ता जा रहा है. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि कोई भी मोबाइल कंपनी अपनी सेवा देने के लिए आधार की मांग नहीं कर सकती. यह एक बड़ा फैसला है, क्योंकि ज्यादातर मोबाइल कंपनियां अपनी सेवा देने के लिए लोगों से आधार कार्ड की मांग करती रही हैं.
इसी तरह बैंक अकाउंट से भी आधार लिंक कराना अब जरूरी नहीं है. साथ ही कोर्ट की इजाजत के बिना बायोमेट्रिक डेटा किसी एजेंसी से साझा नहीं किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त स्कूलों में नामांकन के लिए आधार नहीं मांगा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि नाबालिग बच्चे आधार बनाएं या नहीं, इसका निर्णय उनके अभिभावकों को करना है. बच्चे जब बालिग हो जाएंगे, तब वे अपने आधार बनवाने का स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी, एनईईटी और सीबीएसई की परिक्षाओं के लिए आधार के अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने "निजता के अधिकार" को मूल अधिकार के रूप में स्वीकार किया है. यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार के लिए न्यूनतम डेटा की बात कही है,अर्थात केवल आवश्यकता भर ही डाटा का प्रयोग आधार के अंतर्गत हो।यह एक आम धारणा है कि 'आधार' से जुड़ी हुई निजता संबंधी चिंता "सेट्रल आइडेंटिटीज डेटा रिपोजिटरी(सीआईडीआर)" की गोपनीयता से संबंधित है. ये धारणा दो कारणों से भ्रामक है. पहली बात सीआईडीआर की कल्पना कहीं भी तालाबंद आलमारी की तरह नहीं की गई है.
इसके उलट, आधार अधिनियम 2016 सीआईडीआर की ज्यादातर जानकारियों को साझा करने का एक ढांचा प्रदान करता है. दूसरा कारण, सबसे बड़ा खतरा वैसे भी यहां नहीं, कहीं और है. बायोमेट्रिक सूचनाओं के अतिरिक्त अन्य सूचनाओं की सुरक्षा की बात आधार एक्ट नहीं करता, अपितु आधार एक्ट बकायदा 'आग्रह करने वाली इकाई' के साथ इसे साझा करने के लिए एक फ्रेमवर्क मुहैया कराता है. इस फ्रेमवर्क का असली हिस्सा एक्ट की धारा 8 में है, जो ऑथेंटिकेशन या प्रमाणीकरण से संबंधित है.
ऑथेंटिकेशन के तहत आग्रह करने वाली इकाई के साथ पहचान संबंधी सूचनाओं को साझा करने की संभावना का दरवाजा खोल दिया गया है. उपरोक्त संदेहों को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने प्रथमतः अपने आदेश में कहा है कि कोई भी ऑथेंटिकेशन रिकॉर्ड को केवल 6 माह तक ही अधिकतम अपने पास रख सकते हैं, उसके बाद उन्हें इस तरह के डेटा को नष्ट करना होगा.
इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट कंपनियों के साथ आधार कार्ड मांगने पर पूर्णतः रोक लगा दी है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने आधार एक्ट के सेक्शन- 57 को निरस्त कर दिया है. इस आदेश के बाद अब न तो कोई निजी कंपनी या कोई व्यक्ति आधार की मांग कर सकता है.
काले धन एवं वित्तीय सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने के लिए सरकार ने आधार से पैन कार्ड को जोड़े जाने को अनिवार्य बनाए रखा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आधार से निजता के अधिकार पर अगर थोड़ा बहुत अंकुश लग रहा है, तो वह उसे नकारात्मक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि भारतीय संविधान में मूल अधिकारों पर भी कुछ संवैधानिक सीमाएं लगाई गई है. ऐसे में वित्तीय निगरानी एवं काले धन को रोकने के लिए आधार का प्रयोग हो सकता है.
इस तरह सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने कई शर्तों के साथ आधार को संवैधानिक बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार की अनिवार्यता को बेहद संतुलित तरीके से परिभाषित किया है. सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तथा पैन कार्ड के साथ आधार को अनिवार्य,जबकि बैंक, मोबाइल, प्रतियोगी परीक्षाओं, स्कूलों के नामांकन में इसे अनिवार्य न बताकर, आधार के भूमिका को सीमित किया है. आधार जिन उद्देश्यों के लिए बनी थी,सुप्रीम कोर्ट ने आधार को पुनः उसी तरह सीमित कर दिया है.
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