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Updated: 27 सितम्बर, 2017 08:56 PM
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28 सितंबर 2016 की आधी रात नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान में ग्रेनेड के हमले और गोलियों की आवाजों से जो शोर शुरू हुआ, वह थमने का नाम नहीं ले रहा है. सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल बाद भी छातियां पीटने, हमले की आलोचना और विश्लेषण करना बदस्तूर जारी है.

पाकिस्तान या मोदी विरोधी लोग कितना भी शोर मचा लें कि सर्जिकल स्ट्राइक एक छलावा है. लेकिन सालभर पहले हुए उस हमले ने विश्व की और खासकर पाकिस्तान की नजरों में भारत के 'सॉफ्ट स्टेट' होने की छवि को तोड़ दिया है. जून 2015 में म्यांमार में पूर्वोत्तर के विद्रोहियों पर सैन्य कार्रवाई और डोकलाम विवाद में चीन कठोर शब्दों में धमकाने की घटना ने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से भारत की छवि एक सशक्त देश की बना दी है. एक ऐसे देश की जिसके साथ पंगा लेने के पहले दुश्मन दस बार सोचने के लिए मजबूर हो जाए.

1971 के युद्ध में पाकिस्तान के खिलाफ शानदार जीत और बांग्लादेश के निर्माण के बाद से भारत ने कड़ी कार्रवाई करने का अपना रूप छुपा लिया था. हम वापस नेहरू की कूटनीतिक सोच के प्रति आसक्त होने लगे थे. किसी भी कीमत पर युद्ध न करने की हमारी रणनीति को सभी समझ गए थे. सभी को पता चल गया था कि अगर हमारे ऊपर हमला भी कर दिया जाए तो भी हम शांति का ही राग ही अलापते रहेंगे.

एक सर्जिकल स्ट्राइक ने इस पूरे देश की पहचान को ही बदलकर रख दिया. इस हमले ने हमें एक नई पहचान दे दी है. जिसमें हम क्या कदम उठाने वाले हैं इसके बारे में अनुमान लगाना नामुमकिन हो गया है.

surgical strikeएक सर्जिकल स्ट्राइक ने पूरी पहचान ही बदल दी

देश के सर्वोच्च सुरक्षा अधिकारियों ने निजी बातचीत में इस बात को स्वीकार किया कि पाकिस्तान के आतंकवादियों द्वारा उरी हमले के बाद उनका मुंहतोड़ जवाब देना ही आखिरी रास्ता बचा था. खुद प्रधानमंत्री और एनएसए अजीत डोवाल दोनों ने ही सुरक्षा अधिकारियों को दो टूक कह दिया था कि उन्हें इसका समाधान बताएं, चुनौतियां नहीं. स्पष्ट निर्देश दिया गया था: "कार्रवाई पर फोकस करिए. किसी भी घटना का बहुत ज्यादा एनालिसिस, पैरालिसिस (लकवे) में बदल देता है."

हमले से पहले एक टीम पाकिस्तान के उन चारों ठिकानों पर गई थी, जहां हमला करना था. उन जगहों पर पहुंचने के रास्ते अलग और वहां से बाहर निकलने के रास्ते अलग-अलग बनाए गए थे. लश्कर के कैंप में भारतीय जासूस पहले से ही सेंध लगाए हुए थे. कहां-कहां लैंडमाइन्स बिछाए गए हैं इस बात तक की जानकारी हमारे सैनिकों के पास थी. हमले में सिर्फ एक सैनिक घायल हुआ था. वो भी एंटी-पर्सनल लैंडमाइन में पैर उलझ जाने के कारण.

पूरे ऑपरेशन को सैटेलाइट द्वारा मॉनिटर किया जा रहा था और ड्रोन के जरिए इस पूरी कार्रवाई को कैप्चर किया जा रहा था.

सुरक्षा अधिकारी का कहना था कि- 'आतंकी कैंपों को तो आदमपुर एयरबेस से मिराज से हमले के द्वारा या भारी तोपों से भी नष्ट किया जा सकता था. लेकिन इस बार भारत पाकिस्तान को एक साफ मैसेज देना चाहता था.'

प्रधानमंत्री ऑपरेशन में अपने सैनिकों की कम से कम क्षति चाहते थे. अगली सुबह मिशन की सफलता के बारे में पीएम को सबसे पहले सूचित करने वाले खुद डोभाल थे. सेनाओं ने सदियों से दुश्मन के क्षेत्रों को टारगेट करके हमला करने की नीति अपनाई है. क्योंकि इससे दुश्मन आश्चर्यचकित रह जाता है और हम अनावश्यक नुकसान से भी बच जाते हैं.

इतिहास की सबसे मशहूर सर्जिकल स्ट्राइक इजराइल द्वारा 1976 में की गई थी. इस हमले में इजराइयली कमांडो ने एंटाबे एयरपोर्ट में बंधक बनाए लोगों को छुड़ाया था. इसके बाद नंबर आता है 1981 इजराइल के ही द्वारा इराक के ओसीराक स्थित परमाणु रिएक्टर पर बमबारी का. और तीसरे नंबर पर अमेरिका के यूएस नेवी सील्स द्वारा 2011 पाकिस्तान के एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए किए गया हमला.

पाकिस्तान द्वारा भेजे गए आतंकवादियों और आतंकी हमलों में हमारे देश के हजारों लोग अकाल मौत मारे गए हैं. ऐसे में जरुरत थी भारत द्वारा पाकिस्तान को एक कड़ा मैसेज देने की. पीएम मोदी और एनएसए अजित डोभाल द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले का असर पाकिस्तान पर गहरे तक पड़ा है.

(DailyO से साभार)

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