शुभेंदु अधिकारी का TMC छोड़ना ममता के लिए मुकुल रॉय से बड़ा नुकसान
संभव है शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) के TMC छोड़ने को भी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) वैसे ही ले रही हों जैसे मुकुल रॉय (Mukul Roy) का मामला रहा. अगर ऐसी सोच है तो बहुत बड़ी भूल है - एक साथ दोनों को मोर्चे पर लगा कर BJP ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.
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अक्सर विधायक और सांसद अपना इस्तीफा अपने राजनीतिक नेतृत्व को सौंपते हैं, लेकिन शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) ने अपना कागज पश्चिम बंगाल विधानसभा सेक्रेट्री को सौंपा है. साफ है, अब शुभेंदु अधिकारी का इरादा विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी से आमना सामना करने का है. पूर्वी मिदनापुर की नंदीग्राम सीट से विधायक शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के मंत्रिमंडल को भी बॉय-बॉय बोल दिया था.
शुभेंदु अधिकारी भी तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के वैसे ही खास माने जाते रहे हैं, जैसे किसी जमाने में मुकुल रॉय (Mukul Roy) हुआ करते रहे. मुकुल रॉय ने संगठन का काम संभाला था और शुभेंदु अधिकारी नंदीग्राम संग्राम के आर्किटेक्ट रहे. वैसे भी वो उनका ही इलाका है.
मुकुल रॉय ने रिएक्ट भी अपनेपन का एहसास कराते हुए ही किया है, 'जिस दिन शुभेंदु अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, मैंने कह दिया था कि अगर वो TMC छोड़ देंगे तो उनका स्वागत करते हुए मुझे खुशी होगी. पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि ये तो होना ही था. दिलीप घोष की बातों में कैलाश विजयवर्गीय वाला टोन ही सुनाई दे रहा है जिसमें बीजेपी महासचिव ने कहा है कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिराने में सबसे बड़ा रोल तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही रहा.
अगस्त, 2019 से लेकर अब तक 15 महीने में पांचवां दौरा कर चुके संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी 19 सितंबर को पश्चिम बंगाल के दौरे पर जाने वाले हैं - और मान कर चलना चाहिये कि अवसर विशेष पर शुभेंदु अधिकारी भगवा धारण करेंगे. ध्यान देने वाली बात ये है कि ऐसा सुअवसर मुकुल रॉय को नहीं मिल सका था. मुकुल रॉय की ज्वाइनिंग के वक्त मंच पर अमित शाह नहीं थे. बाद में उनकी अलग से मुलाकात जरूर करा दी गयी थी. दरअसल, तब मुकुल रॉय जांच एजेंसियों के प्रकोप के शिकार हुआ करते थे और ऐसा होना किसी भी नेता की नकारात्मक छवि पेश करता है.
हाल फिलहाल तो यही माना जाने लगा है कि भगवा चोला धारण किये बगैर न तो प्रकोप खत्म हो पाता है और न ही छवि निखर पाती है - कुछ कुछ शुभेंदु अधिकारी के बारे में भी ऐसा ही सुनने आया है. नोटिस तो उनके पास भी पहुंच ही गया है - और नोटिस का फायदा ये होता है कि फैसला लेने में इंसान देर नहीं करता.
शुभेंदु अधिकारी ने फैसला तो पहले ही ले लिया था, सही मौके की तलाश थी. तोहमत के लिए एक-दो कंधों की जरूरत थी जिनके सिर ठीकरा फोड़ा जा सके. चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी आसानी से मिल गये - अब बाकी विधायक और नेता भी यही राह अख्तियार करेंगे.
शुभेंदु ने ममता को मुकुल से बड़ा झटका दिया है
शुभेंदु अधिकारी धीरे धीरे अपने कदम बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनके इलाके में चीजें तेजी से बदल रही हैं. नंदीग्राम के इर्द गिर्द के जिन इलाकों में अधिकारी परिवार तृणमूल कांग्रेस का पताका फहरा रहा था, वहां मंजर बदला हुआ है - जगह जगह लगे बैनर पोस्टर पर लिखा है - दादा के अनुगामी. मतलब, जो भी है सब दादा का है - जो दीदी का रहा वो अब नहीं है.
2006 में पश्चिम बंगाल विधानसभा पहुंचे शुभेंदु अधिकारी 2009 और 2014 में लोक सभा के सदस्य भी रह चुके हैं, लेकिन 2016 में ममता बनर्जी ने दिल्ली से कोलकाता बुला लिया और चुनाव जीतने के बाद शुभेंदु को कैबिनेट में शामिल कर लिया. शुभेंदु अधिकारी इस्तीफा देने से पहले ममता बनर्जी सरकार में परिवहन मंत्री रहे.
शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी तीसरी बार संसद पहुंचे हैं और उससे पहले तीन बार विधायक भी रह चुके हैं - मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. शुभेंदु के भाई
शुभेंदु अधिकारी के छोटे भाई दिब्येंदु अधिकारी भी पहले विधायक रहे, लेकिन शुभेंदु के विधायक बन जाने के बाद जब उनकी खाली की हुई सीट पर उपचुनाव हुआ तो संसद पहुंच गये - 2019 में भी वो अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं.
ममता बनर्जी को शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय भले ही दो लगते हों, लेकिन बीजेपी के लिए वे एक और एक ग्यारह हैं!
मुकुल रॉय के टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में चले जाने से ममता बनर्जी पर काम का बोझ जरूर बढ़ा, लेकिन वैसा कोई नुकसान नहीं हुआ जैसी की शुभेंदु अधिकारी से आशंका है. मुकुल रॉय, दरअसल, संगठन संभालते थे और तकरीबन सारे काम वो ममता बनर्जी के नाम पर ही करते रहे. मुकुल रॉय के छोड़ने के बाद संगठन के कामकाज में जितना भी फर्क आया हो, फील्ड में ममता बनर्जी को कोई खास नुकसान नहीं हुआ.
आम चुनाव के आस पास कुछ नेताओं ने टीएमसी जरूर छोड़ा. और वे बीजेपी में पहुंचे भी मुकुल रॉय के ही जरिये लेकिन उनकी भूमिका एक माध्यम भर से ज्यादा नहीं रही. वो सब वैसा ही रहा जैसे टॉम वडक्कन जैसे नेताओं का बीजेपी में आने का सिलसिला कुछ दिन बना रहा.
शुभेंदु अधिकारी के भरे पूरे राजनीतिक परिवार का आस पास के इलाके में भारी दबदबा है - और माना जाता है कि छह जिलों की करीब 80 सीटों पर अधिकारी परिवार का सीधा असर है - ममता बनर्जी को शुभेंदु अधिकारी के साथ नहीं होने का असर इलाके की विधानसभा सीटों पर पड़ सकता है और वो भी चुनाव के ऐन पहले ऐसा वाकया होना.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए बुरी बात ये भी है कि शुभेंदु अधिकारी कुछ ही दिनों में मुकुल रॉय के साथ मिल कर काम कर सकते हैं - अगर ऐसा होता है तो समझ लेना चाहिये कि ममता बनर्जी के लिए मुकुल रॉय के जाने से भी बड़ा झटका है शुभेंदु का टीएमसी छोड़ना और फिर बीजेपी में जाने की संभावना.
2019 में परिस्थितियां अलग रहीं और मोदी लहर में जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बनी थी, बीजेपी ने एकाध छोड़ कर सारी सीटें झटक लीं. बेशक आम चुनाव के प्रदर्शन को बीजेपी सामने रख कर चल रही थी, लेकिन वो दिल बहलाने जैसा ही था - अगर ऐसा ही होना होता तो महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी की सीटें कम नहीं आयी होतीं और झारखंड सरकार हाथ से न फिसलती और कम से कम दिल्ली में तो और बेहतर स्थिति हो सकती थी.
ये सब देखते हुए बीजेपी को भी लगता ही होगा कि मुकुल रॉय के भरोसे विधानसभा चुनाव में पार लगाना मुश्किल है, लिहाजा शुभेंदु अधिकारी को शिकार बनाया गया है - अब मुकुल रॉय और शुभेंदु मिल कर ममता को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
ममता के खिलाफ होगा BJP का डेडली-कॉम्बो जत्था
ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी के साथ छोड़ने को अधिक महत्व न देने का फैसला किया है. जैसे राहुल गांधी ने टॉम वडक्कन के बीजेपी ज्वाइन करने पर कहा था कि वो कोई बड़े नेता नहीं थे, ममता बनर्जी का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस बरगद के पेड़ की तरह है, एक दो लोगों के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर ममता बनर्जी सोचती भी यही हैं, तो सही नहीं सोच पा रही हैं. अगर उनको मुकुल रॉय जैसा ही शुभेंदु अधिकारी का चले जाना भी लग रहा है तो, लगता नहीं कि उनको सही अंदाजा हो पा रहा है.
टीएमसी नेता सौगत रॉय ने शुभेंदु अधिकारी के पार्टी छोड़ने पर दावा किया है कि वो तृणमूल कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत चाहते थे - और ममता बनर्जी के बाद वो उनकी जगह लेना चाहते थे. सौगत रॉय का ये भी कहना है कि शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल के 5-6 जिलों में पार्टी का कंट्रोल चाहते थे जो संभव नहीं था लिहाजा वो अलग राह पर चलने का फैसला कर लिये.
कूचबिहार की एक रैली ममता बनर्जी ने शुभेंदु अधिकारी के जाने पर डैमेज कंट्रोल की भी कोशिश की. बोलीं, 'जो अच्छा काम करेंगे, उनको टिकट मिलेगा. ये पार्टी का फैसला है. कुछ सशंकित हो सकते हैं, इसलिए वे छोड़ने का फैसला कर सकते हैं - बीजेपी ने पहले ही हमें जेल भेजने की धमकी दी है, इसलिए कुछ लोग डर सकते हैं.'
जैसी आशंका बीजेपी को लेकर ममता बनर्जी जता रही हैं, करीब करीब वैसी ही शुभेंदु अधिकारी को भी है, लेकिन वो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पुलिस से ही. राज्यपाल जगदीप धनखड़ को पत्र लिख कर शुभेंदु अधिकारी ने आशंका जतायी है कि विधायक पद से इस्तीफे के बाद पश्चिम बंगाल पुलिस उनको झूठे मुकदमे में फंसा सकती है - और ऐसी स्थिति में वो केंद्र सरकार से दखल देने की मांग कर रहे हैं.
Suvendu Adhikari former minister @MamataOfficial has by way of representation sought my intervention so that police @WBPolice @KolkataPolice and administration are dissuaded from implicating him and associates in criminal cases out of political vendetta.
Taking expected steps. pic.twitter.com/NXwH914Eog
— Governor West Bengal Jagdeep Dhankhar (@jdhankhar1) December 16, 2020
केंद्र में बीजेपी की मोदी सरकार ने शुभेंदु अधिकारी की सुरक्षा बढ़ा दी है. शुभेंदु अधिकारी को भी कैलाश विजयवर्गीय की ही तरह Z कैटेगरी की सुरक्षा मुहैया करायी जा रही है. बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की सुरक्षा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले की गाड़ियों पर हमले के बाद बढ़ाई गयी है.
मुकुल रॉय की तृणमूल कांग्रेस में जमीनी स्तर तक पहुंच मानी जाती रही है. मुकुल रॉय के लिए ममता के प्रभाव से निकाल कर तृणमूल कार्यकर्ताओं को बाहर लाना बेहद मुश्किल हो रहा था - शायद इसलिए भी क्योंकि खुद मुकुल रॉय की बीजेपी में हैसियत कोई अच्छी नजर नहीं आ रही थी. किसी नेता के साथ कोई कार्यकर्ता जुड़ता तो तभी है जब उसे लगे कि बदले में क्या क्या मिल सकता है - ये बात अलग है कि वो मिलेगा ही ऐसी कोई गारंटी नहीं होती, लेकिन संभावनाएं तो खत्म होती नहीं. ये बिलकुल चुनावी जुमलों के असरदार होने जैसा ही होता है.
लगता है शुभेंदु अधिकारी को भी मुकुल रॉय की बीजेपी में हैसियत परेशान करती रही हो, तभी तो पहले से ही अपने इलाके में वो 'दादा के अनुगामी' अभियान चला रहे हैं - ये मैसेज देना चाहते हैं कि वो अपनी बदौलत राजनीतिक दल बदल रहे हैं. मैसेज ये भी है कि बीजेपी को शुभेंदु अधिकारी को महज टीएमसी से आये एक नेता की तरह लेने की जरूरत नहीं है, जैसा कि मुकुल रॉय के केस में हुआ है. बल्कि, बीजेपी को ये समझना चाहिये कि वो ऐसे मजबूत और जमीनी नेता को ले रही है जिसका अपना और अपनी बदौलत अच्छा खासा जनाधार है.
अगर वो टीएमसी में रहा भी तो ममता बनर्जी को ही मजबूत करता रहा. निश्चित तौर पर ममता बनर्जी के नेतृत्व का शुभेंदु अधिकारी को फायदा मिला, लेकिन वो एकतरफा नहीं रहा. शुभेंदु अधिकारी के साथ अगर उनके पिता और भाई भी आ जाते हैं तो ममता बनर्जी के हिस्से की दो लोक सभा सीटें और भी कम हो जाएंगी.
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