चिन्मयानन्द: एक सन्यासी का सियासत से सेक्स-स्कैंडल तक का डरावना सफर
यौन शोषण मामले में स्वामी चिन्मयानन्द को गिरफ्तार कर लिया गया है. मामले को लेकर कार्रवाई अब तक सुस्त क्यों चली? इसकी एक बड़ी वजह स्वयं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को माना जा रहा है जिनका शुमार चिन्मयानन्द के करीबियों में है.
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शाहजहांपुर यौन शोषण मामले में पीड़िता की बड़ी जीत हुई है. केस के मद्देनजर पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद को गिरफ्तार कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है. एसआईटी ने स्वामी चिन्मयानंद को उनके आवास से गिरफ्तार किया.गिरफ़्तारी के बाद चिन्मयानंद को शाहजहांपुर की जिला अदालत में ले जाया गया. कोर्ट के आदेश पर चिन्मयानंद का मेडिकल टेस्ट हुआ फिर उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गंभीर आरोपों के बावजूद चिन्मयानंद पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इसकी एक बड़ी वजह जहां एक तरफ उनके रसूख को माना जा रहा है. तो वहीं सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ से नजदीकी भी वो अहम कारण है जिस वजह से जांच अब तक धीमी गति से हुई. ध्यान रहे कि लॉ की एक छात्रा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. घटना से जुड़ा विडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ, जिसके बाद स्वामी चिन्मयानंद सुर्खियों में आए.
जिस हिसाब से स्वामी चिन्मयानंद का बचाव यूपी सरकार ने किया है सीएम योगी आदित्यनाथ की खूब किरकिरी हो रही है
आज भले ही बलात्कार मामले के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को गिरफ्तार कर लिया गया हो. मगर मामले पर जैसा रवैया, उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त करने का दावा करने वाले सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथा का रहा उनके यही प्रयास थे कि कैसे भी करके चिन्मयानंद को बेदाग़ साबित कर दिया जाए.
Shahjahanpur: BJP leader Swami Chinmayanand has been arrested in connection with the alleged sexual harassment of a UP law student. pic.twitter.com/gxZxr81qN6
— ANI UP (@ANINewsUP) September 20, 2019
इन तमाम बातों के बाद सवाल होना लाजमी है कि उत्तर प्रदेश के मुखिया अब तक स्वामी चिन्मयानंद पर क्यों मेहरबान रहे हैं? तो इन सभी सवालों के लिए हमें स्वामी चिन्मयानंद का इतिहास समझना होगा. साथ ही हमें ये भी जानना होगा कि आखिर कैसे एक अपराधी से दोस्ती यूपी के मुखिया के लिए गले की हड्डी बन गई.
Naveen Arora, Special Investigation Team Chief: Swami Chinmayanand has admitted to almost every allegation levelled against him,including sexual conversations&body massage.Circumstantial evidences also being examined.He said he doesn’t want to say more as he's ashamed of his acts https://t.co/d8zfRm0f7K pic.twitter.com/DhdrjN8FOF
— ANI UP (@ANINewsUP) September 20, 2019
आइये उन कारणों पर नजर डालें जिन्हें जानने के बाद हमारे लिए ये समझने में आसानी रहेगी कि कैसे अगर आदमी रसूखदार हो और ऊंची पॉलिटिकल पहुंच रखता हो तो वो कानून को नाकों चने चबवाने का सामर्थ्य रखता है.
कौन हैं स्वामी चिन्मयानंद? रखते हैं शाहजहांपुर में भगवान की हैसियत
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 2003-04 तक आंतरिक मामलों के राज्य मंत्री रह चुके स्वामी चिन्मयानंद शाहजहांपुर और आसपास में किसी भगवान की तरह देखे जाते हैं. इनका रसूख इतना प्रभावशाली के कि इनको लेकर यही कहा जाता है कि इलाके में बिना इनकी मर्जी के पत्ता तक नहीं हिलता है. तीन बार के सांसद स्वामी चिन्मयानंद वर्तमान में शाहजहांपुर स्थित स्वामी सुखदेवानंद पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज की प्रबंध कमिटी के अध्यक्ष हैं साथ ही वो शाहजहांपुर में ही मुमुक्षु आश्रम का भी प्रबंधन देखते हैं.
कैसे हुआ चिन्मयानंद का उदय
चिन्मयानंद ने अपनी राजनीति की शुरुआत जयप्रकाश नारायण के आंदोलनसे जुड़कर की. आंदोलन को तमाम बड़े नेताओं का समर्थन मिला और इसके फ़ौरन बाद ये जन संघ के नेताओं के पसंदीदा बन गए. बात 1980 की है. राम मंदिर आंदोलन ने धार पहाड़ ली थी. इस समय तक चिन्मयानंद ने भी विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के बीच अपनी गहरी पैठ जमा ली थी इसलिए जब आंदोलन शुरू हुआ तो उसमें चिन्मयानंद आगे आगे रहे और माना यही जाता है कि इसी के फ़ौरन बाद से राजनीति के मद्देनजर चिन्मयानंद के अच्छे दिन आए.
महंत अवैद्यनाथ के साथ शुरू की राम मंदिर मुक्ति यज्ञ समिति
बात 1985 की है राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. इस समय तक स्वामी चिन्मयानंद एक मजबूत हिंदूवादी नेता के तौर पर अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे. ये योगी योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ के संपर्क में आए और इन्होंने अवैधनाथ के साथ मिलकर राम मंदिर मुक्ति यज्ञ समिति की स्थापना की. कहा यही जाता है कि यही वो समय था जब स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के रिश्तों को मजबूत आधार मिला जो बाद में स्वयं योगी आदित्यनाथ के लिए संजीवनी साबित हुआ.
राम मंदिर आंदोलन के झोंके ने बनाया सांसद
1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, स्वामी चिन्मयानंद को पहली बार उत्तर प्रदेश के बदायूं से टिकट दिया गया. बदायूं से कोई कनेक्शन न होने के बावजूद राम मंदिर आंदोलन के दम पर इन्होंने चुनाव जीता और सांसद बने इसके बाद चिन्मयानंद 1998 में मछलीशहर और फिर 1999 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर से सांसद चुने गए. 2003 को चिन्मयानंद के लिए खासा महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि हिंदुस्तान के इतिहास में ये पहली बार हुआ था जब किसी 'साधू' को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नियुक्त किया गया. 2004 तक चिन्मयानंद सीधे अडवाणी को रिपोर्ट करते थे.
योगी आदित्यनाथ के नाम को किया था यूपी सीएम के लिए प्रस्तावित
योगी आदित्यनाथ और स्वामी चिन्मयानंद का रिश्ता किसी से छुपा नहीं है. ये रिश्ता कितना मजबूत है इसे हम पूर्व में गुजरे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से भी समझ सकते हैं. 2017 में सूबे की जनता ने समाजवादी पार्टी को सिरे से खारिज करते हुए भाजपा को उत्तर प्रदेश में मजबूत जनाधार मिला था. भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के सामने सबसे जरूरी सवाल ये था कि आखिर वो कौन होगा जिसके हाथ में सूबे की कमान होगी. ऐसे में ये स्वामी चिन्मयानंद ही थे जिन्होंने सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मुखिया के तौर पर योगी आदित्यनाथ का नाम प्रस्तावित कर एक अच्छा गुरु भाई होने का प्रणाम दिया.
यौन शोषण के चलते न्यायिक हिरासत में आ चुके स्वामी चिन्मयानंद का आगे का भविष्य कितना सुगम होगा इसका फैसला वक़्त करेगा. लेकिन जो वर्तमान है वो खुद-ब-खुद इस बात को साफ़ कर दे रहा है कि फ़िलहाल स्वामी चिन्मयानंद सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के गले की हड्डी हो गए हैं जिसे न तो वो निगल ही पा रहे हैं और न ही उगल ही पा रहे हैं. पूरा मामला देखकर ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि उन्नाव कांड के बाद ये दूसरी बार हुआ है जब किसी करीबी ने योगी आदित्यनाथ की खूब किरकिरी की है.
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