यूपी में योगी की मुश्किल राह
प्रदेश में 'सबका साथ सबका विकास' के नारे के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा भले ही दो-दो इन्वेस्टर समिट आयोजित कर प्रदेश को विकास की दौड़ में आगे ले जाने का काम कर रही हो, लेकिन वहीं उन्नाव जैसी आपराधिक घटनाएं प्रदेश की जनता के दिलों में सरकार के इकबाल को कम रही हैं.
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यूपी में कानून व्यवस्था एक ऐसा मुद्दा है जो प्रदेश के लिए नासूर बनाता जा रहा है, फिर चाहे सरकरें कोई भी आईं और गयी हों. मौजूदा समय में प्रदेश की योगी सरकार भले ही एनकाउंटर पर एनकाउंटर कर अपराधियों को दुरुस्त करने का दावा करती रही हो, लेकिन इन सबके बीच कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं जो योगी सरकार के लिए चुनौती से कम नही हैं.
प्रदेश में 'सबका साथ सबका विकास' के नारे के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा भले ही दो-दो इन्वेस्टर समिट आयोजित कर प्रदेश को विकास की दौड़ में आगे ले जाने का काम कर रही हो, लेकिन वहीं उन्नाव जैसी आपराधिक घटनाएं प्रदेश की जनता के दिलों में सरकार के इकबाल को कम रही हैं. और यही योगी के लिए आने वाले समय मे बड़ी चुनौती और विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा बन सकती हैं.
इतिहास गवाह है 2011 में मायावती सरकार में भट्टा परसौल की घटना हो या फिर अखिलेश सरकार में 28 मई 2014 की बदायूं घटना, इन घटनाओं ने विपक्ष के तरकश में ऐसे तीर दिए थे जो आने वाले चुनावों में सत्ता परिवर्तन कर गए.
ऐसे में मौजूदा समय मे योगी सरकार के सामने उन्नाव जिले की घटना समेत सोनभद्र में हत्याकांड, अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म, लखनऊ में सिपाही की हत्या समेत कई घटनाएं बड़ी चुनौती हैं. जिसके लिए सरकार को विपक्ष के साथ साथ जनता के बीच भी अपनी जबाबदेही तय करनी पड़ेगी.
योगी आदित्यनाथ के लिए आगे की राह आसान नहीं हैमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आते ही दिया गया सबसे पहला बयान कि "अगर अपराध करोगे तो ठोक दिए जाएंगे" का प्रदेश में कितना अमल हुआ है ये बीते सालों में हुई घटनाओं से साफ हो जाता है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ अब अपने ही दिए बयानों में कितना पास हो पाए हैं ये एक बड़ा सवाल है. और यही योगी आदित्यनाथ के लिए आने वाले दिनों में सिरदर्द बन सकता है.
उन्नाव की घटना के बाद योगी सरकार के सामने जो 5 बड़ी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं
1. बहुमत के बाद भी सदन के अंदर विपक्ष सरकार पर हावी होता नज़र आ रहा है.
2. उन्नाव घटना में बीजेपी के विधायक कुलदीप सेंगर का नाम आने के बाद योगी की जबाबदेही तय हो जाती है जो शायद अब तक नहीं हुई है.
3. प्रदेश में एक के बाद एक आपराधिक घटनाओं से योगी आदित्यनाथ की एक फायर ब्रांड नेता और सफल मुख्यमंत्री के तौर पर बनी छवि पर सवाल उठने लगे हैं.
4. प्रदेश में विकास की दिशा मे भले ही योगी की तुलना मोदी से होती रही हो लेकिन अपराध पर लगाम लगाने में योगी को अभी मोदी से बहुत कुछ सीखना है.
5. भले ही योगी प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था के लिए पिछली सरकारों को दोष देते रहे हों लेकिन मौजूदा समय में सूबे के बाद एक के बाद एक होती घटनाएं सरकार को भी कटघरे में खड़ा करती हैं.
भले ही कई बार अपने भाषणों में मुख़्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के कार्यकाल में हुए एककाउंटर के आंकड़े देकर खुद को सफल मुख्यमंत्री बताने की कोशिश करते रहे हों, लेकिन एक सच ये भी है कि सिर्फ सूबे में निवेश और नए औद्योगिक अवसर को बढ़ाने से प्रदेश का विकास सम्भव नहीं है. जब तक प्रदेश में बेलगाम होते अपराधों पर लगाम नहीं लगेगी तब तक सूबे में 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देना सिर्फ अतिशयोक्ति ही कहलाएगी. और सरकार अतिशयोक्ति से कभी नहीं चलती. ये बात शायद भाजपा से बेहतर कोई नहीं समझ सकता.
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