Unnao Rape Case : सुप्रीम कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ की भी मदद की है!
उन्नाव केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से UP सरकार की किरकिरी नहीं हुई है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बहुत बड़ी मदद मिली है - क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मुसीबत से उबार दिया है.
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उन्नाव रेप केस में पहली बार इंसाफ की आस जगी है. वो भी सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद रेप पीड़ित और ये बचे हुए परिवार के सदस्यों के लिए बहुत बड़ी राहत की बात है.
ऊपरी तौर पर तो इस मामले में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की फजीहत नजर आ रही है, लेकिन असल बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को बहुत बड़ी मुसीबत से उबार दिया है. उत्तर प्रदेश की जातीय राजनीति की मजबूरी के चलते यूपी बीजेपी दो साल से बलात्कार और हत्या के आरोपी कुलदीप सेंगर के खिलाफ एक्शन लेने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी - ये सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही है जो कुलदीप सेंगर को बीजेपी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
हर एक्शन कोर्ट के डंडे से
उन्नाव गैंग रेप केस में अब तक जो भी एक्शन हुआ है सिर्फ अदालती आदेशों की वजह से ही हो पाया है. पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आरोपी बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को जेल भिजवाया और अब सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल भी उत्तर प्रदेश से हटाकर बाहर भेज दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को साजिश का हिस्सा लग रहे रायबरेली रोड एक्सीडेंट की जांच 7 दिन में पूरी करने और केस की नियमित सुनवाई कर 45 दिन में ट्रायल पूरा करने का आदेश दिया है. ये ट्रायल भी अब यूपी में नहीं बल्कि दिल्ली में होगा.
देश की सबसे बड़ी अदालत ने सरकार से रेप पीड़ित के परिवार को 25 लाख रुपये बतौर मुआवजा भी देने का हुक्म दिया है - और पीड़ित से भी कह दिया है कि कोई भी शिकायत हो सीधे सुप्रीम कोर्ट आ जाना.
सुप्रीम कोर्ट तक पीड़ित की वो चिट्ठी अभी पहुंची नहीं है, रजिस्ट्री में वो स्क्रीनिंग का दौर पूरा होने के बाद मंजिल तक पहुंच सकेगी. ये सब भी संभव तब हुआ है जब मीडिया के जरिये ये बाद मुख्य न्यायाधीश तक पहुंची है. हैरानी की बात तो ये है कि उसी चिट्ठी की कॉपी दूसरे अफसरों और मददगार लग रहे सरकारी दफ्तरों को भी भेजी गयी थी, लेकिन अभी तक किसी ने उसके बारे में चर्चा तक करना मुनासिब नहीं समझा है. ताज्जुब की बात तो ये है कि पीड़ित परिवार पिछले एक साल में 35 शिकायतें पुलिस के पास दर्ज करा चुका है, लेकिन उनके साथ कूड़े जैसा व्यवहार होता रहा. इन सभी चिट्ठियों में पीड़ित परिवार कुलदीप सेंगर की ओर से हमले की आशंका जताता रहा.
अगर किसी भी मंच पर पीड़ित परिवार की बात सुनी गयी होती तो क्या पीड़ित के पिता और उसकी दो चाचियों की जान नहीं बचायी जा सकती थी? क्या पीड़ित और उसके वकील को मौत से जूझने से नहीं बचाया जा सकता था?
कोर्ट की दखल के बगैर कुलदीप सेंगर पर एक्शन शायद ही हो पाता...
ऐसा नहीं हुआ क्योंकि यूपी पुलिस को एनकाउंटर से फुरसत मिले तब तो. फुरसत भी कैसे मिले जब मुख्यमंत्री हमेशा पुलिस की पीठ ठोकते रहे हों और बंदूक नहीं चलने पर जबान से ही 'ठांय-ठांय' करनी पड़े.
अदालत के फरमान के बाद योगी सरकार ने अब भले ही पीड़ित के लिए ड्यूटी पर लगे तीन सुरक्षाकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है, लेकिन मालूम तो यही है वो आरोपी विधायक के लिए ही काम करते रहे. वैसे भी जब पुलिस के आला अफसर आरोपी विधायक पर हाथ डालने से डर रहे हों तो छोटे पुलिसवालों की क्या बिसात?
कुलदीप सेंगर ने यूपी में ठाकुरवाद का पूरा फायदा उठाया
याद कीजिए योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने कुलदीप सेंगर को आखिर तक गिरफ्तार करने से बचती रही, बचती क्या रही हाथ तक नहीं लगया - सीबीआई ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की डांट फटकार के बाद ही गिरफ्तार किया था.
यूपी के छोटे मोटे पुलिसवालों की कौन कहे, आला अफसरों को तो 'माननीय' विधायक से नीचे बोलने हलक सूख जा रही थी. कुलदीप सेंगर के खिलाफ अंदर अंदर जो भी हुआ हो, बीजेपी नेता भी इससे पहले नहीं बता पा रहे थे कि आरोपी विधायक बीजेपी में है या बाहर किया जा चुका है. जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखायी तब जाकर बीजेपी भी गंभीर हुई है. हालांकि, अब भी सस्पेंस बना हुआ है. बीजेपी प्रवक्त जीवीएल नरसिम्हा कह रहे हैं कि कुलदीप सेंगर को निष्काषित किया गया है, जबकि यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह सस्पेंड बता रहे हैं.
आखिर ऐसा क्या था कि यूपी बीजेपी या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ एक्शन लेने से परहेज कर रहे थे?
दरअसल, कुलदीप सिंह सेंगर ठाकुर बिरादरी से आते हैं. वैसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के विरोधी उन पर ठाकुरवाद के आरोप लगाते रहे हैं. ऐसा अफसरों की नियुक्तियों से लेकर चुनावों के वक्त टिकट बंटवारे में भी इल्जाम लगता रहा है. योगी के इलाके गोरखपुर और आस पास तो इस ठाकुरवाद के चलते बीजेपी को ब्राह्मणों की नाराजगी तक झेलनी पड़ी है - हालांकि, बीजेपी बार बार इसे बैलेंस करने की कोशिश करती रही है.
जातीय राजनीति के चलते ही यूपी में कुलदीप सिंह सेंगर अब तक पुलिस और प्रशासन से बचते भी आ रहे थे और पूरा फायदा भी उठाते रहे. ऐसा भी नहीं है ठाकुरवाद को हवा देने का आरोप झेलने वालों में अकेले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही हैं, यूपी से ही आने वाले केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का भी संरक्षण मिलने का कई ठाकुर नेता दबी जबान दावा भी करते हैं और फायदा भी उठाते हैं. ठाकुर पॉलिटिक्स की एक और मजबूत कड़ी कुंडा के राजा कहलाने वाले राजा भैया उर्फ रघुराज प्रताप सिंह भी माने जाते हैं. लखनऊ की गलियों में ये चर्चा भी होती ही रहती है कि कुलदीप सेंगर को ठाकुरवाद की वजह से खासी मदद मिलती रही है. अब ये सब खत्म होता हुआ लग रहा है.
तब भी खबर आई थी कि योगी आदित्यनाथ के हुक्म पर यूपी पुलिस ने कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी की तैयारी कर ली थी, लेकिन एक बड़े नेता के फोन से मामला रुक गया. ये तब की बात है जब सीबीआई कुलदीप सेंगर सीबीआई की पकड़ से भी बाहर घूम रहे थे. तभी ये भी चर्चा रही कि कुलदीप सेंगर की गिरफ्तारी को लेकर कई ठाकुर विधायक लामबंद हो गये थे. बीजेपी की मुश्किल ये रही कि उसी वक्त विधान परिषद के चुनाव भी होने वाले थे.
योगी सरकार के लिए बड़ी राहत है
अव्वल तो बीजेपी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं का दबदबा हुआ करता है, लेकिन उन्नाव के माखी से आने वाले कुलदीप सिंह सेंगर के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी. यही नहीं कुलदीप सेंगर ऐसे नेताओं में भी नहीं शुमार हैं जो शुरू से भगवा धारण कर 'जय श्रीराम' बोलने के आदी हों. कुलदीप सेंगर की सबसे बड़ी ताकत उनका उस तबके से आना रहा जो यूपी की राजनीति में जड़ों तक घुसा हुआ है. कास्ट पॉलिटिक्स.
उन्नाव गैंग रेप केस का मुद्दा उछलने के वक्त से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हमेशा बचाव की मुद्रा में रहना पड़ रहा था. सवाल उठने पर जैसे तैसे गोलमोल बात कहने और टालने के अलावा कोई चारा नहीं बच रहा था. सच तो ये है कि उन्नाव रेप केस के चलते कुलदीप सेंगर बीजेपी के लिए बोझ बन चुके थे. मुश्किल ये रही कि न योगी आदित्यनाथ खुद कुलदीप सेंगर से निजात पाने में सफल हो पा रहे थे न यूपी बीजेपी नेतृत्व.
अगर रायबरेली रोड एक्सीडेंट नहीं हुआ रहता और पीड़ित परिवार के लोग मारे नहीं गये होते तो शायद ही ये मामला इतना तूल पकड़ पाता - ये तो लगभग असंभव होता कि पीड़ित परिवार को कभी कोई इंसाफ की राह दिखाई भी दे पाती. भला हो देश की न्यायपालिका का जो पीड़ित की मदद में ऐसे वक्त फरिश्ता बन कर प्रकट हुई है जब वो वेंटिलेटर पर जीने के लिए संघर्ष कर रही है. जिसके पिता को पीट पीट कर मार डाला गया. जान बचाने के लिए चाचा के साथ जब उसके रहने का विधायक के आदमियों को मालूम हुआ तो ऐसी साजिश रची कि चाचा को भी जेल भेज दिया गया. उसी चाचा से जेल में मुलाकात के लिए जाते वक्त जान पर भी बन आयी.
कुलदीप सेंगर ने राजनीति में उसी मौके का फायदा उठाया जिसमें दूसरे दलों के दागी नेता भी बीजेपी का दामन थाम अपना पाक साफ कर ले रहे हैं. इस मामले में बीजेपी ने पूरे देश में ये मिसाल कायम कर रखी है. 2002 में मायावती की कृपा बरसने के बाद राजनीति में एंट्री पाने वाले कुलदीप सेंगर वाया समाजवादी पार्टी 2017 में बीजेपी में पहुंचे. देखा जाये तो कुलदीप सेंगर बीजेपी में पैराशूट एंट्री लेकर चुनाव लड़ने और जीत कर विधायक और सांसद बनने वाले नेताओं के मुद्दे पर बीजेपी के लिए बहुत बड़ी सीख है - मुश्किल ये है कि कोई सबक भी सीखे तब तो.
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