सैयद अली शाह गिलानी चले गए, अपना 'नासूर' पीछे छोड़ गए!
हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत से माना जा रहा है कि घाटी में अलगाववाद खत्म हो जाएगा. लेकिन क्या ऐसा है? सेना और पुलिस अब भी आतंकवादियों के परिवार की मनुहार करते दिख रही है, कि वे भटके हुए अपने बच्चों को लौटा लाएं.
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इंडिया गो बैक, आज़ादी, पाकिस्तान जिंदाबाद, नरेंद्र मोदी अमित शाह मुर्दाबाद जैसे नारों से जम्मू कश्मीर जिसे धरती का स्वर्ग कहा जाता है, को नरक बनाकर गर्त के अंधेरों में धकेलने वाले अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का निधन हो गया. 92 साल कश्मीर की अस्थिरता देख चुके गिलानी की जिस वक़्त मौत हुई वो अपने घर पर ही थे. गिलानी की मौत का कारण बीमारी है. बताया जा रहा है कि बीते दिन उनकी तबियत बिगड़ी और उन्होंने दम तोड़ दिया. गिलानी की मौत के बाद घाटी में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा है और तमाम तरह की बातें हो रही हैं.
जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने गिलानी की मौत पर दुख प्रकट किया है और अपने ट्वीट में इस बात को कहा है कि मैं गिलानी साहब के निधन की सूचना से दुखी हूं. हम ज्यादातर बातों पर सहमत नहीं हो सके, लेकिन मैं उनकी दृढ़ता और उनके विश्वासों के साथ खड़े होने के लिए उनका सम्मान करता हूं. अल्लाह तआला उन्हें जन्नत और उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना प्रदान करें. यूं तो हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी की मौत घाटी में अलगाववाद खत्म होने के मद्देनजर एक बड़ी जीत है. लेकिन अभी भी अगर ये कहा जाए कि कश्मीर से अलगाववाद खत्म हो गया है तो यकीनन ये कथन जल्दबाजी भरा होगा.
गिलानी की मौत से घाटी में अलगाववाद पर लगाम कस जाए ये कहना अभी जल्दबाजी है
सवाल होगा कैसे? तो इसके जवाब के लिए हमें जम्मू कश्मीर पुलिस और सेना के उस इंटरेक्शन पर गौर करना होगा जो उसने शोपिया में एक्टिव मिलिटेंट्स के परिजनों के साथ किया है. बताते चलें कि जम्मू कश्मीर पुलिस और सेना ने उन 83 परिवारों के साथ मुलाकात की है जिनके घर के सदस्य एक्टिव मिलिटेंट्स हैं और जो अपनी गतिविधियों से घाटी की शांति को प्रभावित कर रहे हैं. सेना और पुलिस ने इनसे बात करते हुए कहा है कि ये लोग आतंकियों से हिंसा और नफरत का मार्ग त्यागने और मुख्य धारा में लौटने की अपील करें.
JK Police & Army holds face to face interaction with 83 families of active militants in #Shopian, urged them to appeal their children to shun the path of violence & return to mainstream. #SaveKashmiriYouth #SaveKashmir pic.twitter.com/WZDlmVF2sv
— Saqib Ashraf (@SaqibQashmiri) September 1, 2021
सेना और पुलिस दोनों ही इस बात को लेकर एकमत हैं कि कश्मीर में शांति तब ही कायम हो वसकती है जब ये लोग बंदूक छोड़कर 'वापसी' करें और कश्मीर के विकास में अपना योगदान दें. सेना और पुलिस का ये प्रयास कश्मीर की शांति व्यवस्था के मद्देनजर कितना कारगर होगा इसका जवाब तो वक़्त दे देगा लेकिन जैसा वर्तमान है राजनीतिक विश्लेषकों का मत है. इससे कश्मीर का फायदा होने की ज्यादा संभावनाएं हैं और इससे घाटी में फैले आतंकवाद पर भी नकेल कसेगी.
LtGen DP Pandey GOC #ChinarCorps alongwith GoC #VictorForce MajGen Rashim Bali & IGP JKP Mr Vijay Kumar met 83 family members of active terrorists at Shopian and urged them to guide their wards back into society @SpokespersonMoD @adgpi @NorthernComd_IA @PIBSrinagar @diprjk pic.twitter.com/TUtVGUIJrg
— PRO Defence Srinagar (@PRODefSrinagar) August 31, 2021
गौरतलब है कि चाहे वो सैयद अली शाह गिलानी रहे हों या मीर वाइज उमर फारूक इन लोगों ने अपने जहर बुझे तीरों से लंबे समय तक आम कश्मीरी आवाम की नसों में जहर घोला और उन्हें मजबूर किया भारत, भारत सरकार और भारत सरकार की पॉलिसियों के खिलाफ जाने और बंदूक और नफरत के बल पर हिंसा का रास्ता अपनाने के लिए.
साफ है कि कश्मीर की फिजा में जो बीज सैयद अली शाह गिलानी ने किसी जमाने में डाले थे आज मजबूत दरख़्त बन गए हैं जहां से विकास और न्यू इंडिया की गाड़ी का गुजरना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. गिलानी की मौत भले ही घाटी की सियासत के मद्देनजर एक युग का अंत हो. लेकिन अपने जीवनकाल में जिस तरह गिलानी ने एन्टी इंडिया रुख अपनाया और पाकिस्तान परस्ती की उसने कश्मीर की आवाम विशेषकर युवाओं को प्रेरित किया. एक ऐसा मार्ग चुनने के लिए जिसकी मंजिल एक अंधेरी सड़क और अंजाम मौत है.
वो तमाम लोग जो आज गिलानी की मौत पर आंसू बहा रहे हैं उन्हें समझना होगा इस बात को कि वक़्त हमेशा हर किसी पर मेहरबान नहीं रहता. वो गिलानी जिनकी मर्जी के बिना घाटी और वहां की सियासत में परिंदा भी पर नहीं मार सकता था उन गिलानी को घाटी से धारा 370 और 35 ए हटाए जाने के बाद एक देश के रूप में भारत ने नजरबंद होते और पस्ताहाली की ज़िंदगी जीते देखा.
आज भले ही सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस ने घाटी में एक्टिव मिलिटेंट्स के 83 परिवारों से बात की हो और कहा हो कि वो लोग आतंकियों से शांति का रास्ता अख्तियार करने की गुजारिश करें मगर बेहतर यही होता कि ये अपील खुद घाटी के हुक्मरान करते और उस उद्देश्य की पूर्ति करते जिसके लिए देश की सरकार लंबे संजय से प्रयत्नशील है.
बहरहाल गिलानी भारी सुरक्षा के बीच सुपुर्द ए खाक हो चुके हैं मगर कश्मीर में जारी हिंसा का चैप्टर अभी खत्म नहीं हुआ है. और ये सब उस दौर में हो रहा है जब देश और देश की सरकार कश्मीर के विकास और उसे मुख्यधारा में लाने के लिए बेहद गम्भीर है. कश्मीर का भविष्य क्या होता है? घाटी में शांति स्थापित हो पाती है या नहीं? क्या गिलानी की मौत कश्मीर से अलगाववाद का खात्मा करेगी?
क्या अपने घर वालों की अपील के बाद घाटी के दहशतगर्द आत्म समर्पण करते हैं? सवाल कई हैं जिनका जवाब वक़्त की गर्त में छिपा है वहीं बात वर्तमान की हो तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि गिलानी की मौत के बावजूद कश्मीर के, कश्मीर के लोगों के मुस्तकबिल पर संदेह बना हुआ है.
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