Tabrez Ansari lynching: 20 लोगों से घिरे इंसान का बचाव सिर्फ कानून ही कर सकता है
तबरेज अंसारी की मौत का मामला फिर से तूल पकड़ता जा रहा है. ऐसे में कहा यही जा सकता है कि अब वो वक़्त आ गया है जब मॉब लिंचिंग को लेकर सख्त से सख्त कानून बन ही जाना चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं में दोषी कोई भी हो उसे सख्त से सख्त सजा मिले और इंसाफ हो.
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2014 में भाजपा की सरकार आने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यूं तो कई सुधार हुए मगर जो बात सरकार की किरकिरी बनी वो थी लिंचिंग की घटनाएं. बीते 5 सालों में लिंचिंग की घटनाओं में तेजी देखने को मिली है. कभी गाय के नाम पर, तो कभी बच्चा चोरी या फिर कभी धर्म को मुद्दा बनाकर लोगों का एकजुट होना, भीड़ बनना और कानून की परवाह न करते हुए हिंसा का मार्ग अपनाना आज एक आम बात हो गई है. इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब लिंचिंग को लेकर एक बेहद सख्त कानून बन ही जाना चाहिए. बात लिंचिंग की चल रही है तो तबरेज अंसारी का जिक्र स्वाभाविक है. तबरेज अंसारी की मौत का मामला फिर से तूल पकड़ता जा रहा है. तबरेज की पत्नी ने आरोपियों के खिलाफ धारा-302 हटाकर 304 किए जाने पर नाराजगी जताई है. उन्होंने मांग की है कि आरोपियों के खिलाफ वापस धारा-302 लगाई जाए. ऐसा नहीं होने पर उन्होंने आत्महत्या करने की चेतावनी दी है. तबरेज अंसारी की बीवी की मांग पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि वो मॉब लिंचिंग पर जो मौजूदा कानून है उससे संतुष्ट नहीं है. मौजूदा कानून का अवलोकन करने पर साफ़ पता चल रहा है कि इसमें अपराधियों का फायदा ज्यादा है और पीड़ित का उतना ही फायदा है जितना की दाल में नमक.
तबरेज अंसारी मामले के बाद साफ़ है कि अब सरकार को लिंचिंग पर सख्त कानून बना ही देना चाहिए
मॉब लिंचिंग पर बनना चाहिए एक सख्त कानून
क्योंकि तबरेज अंसारी की मौत फिर से सुर्ख़ियों में है. तो हम अपनी इस बात को आधार देने के लिए उस पूरे प्रकरण को बतौर उदाहरण पेश करेंगे. तबरेज की मौत पर तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि वो चोर था इसलिए उसकी पिटाई हुई और उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो गैर इरादतन था. एक बार के लिए मान लिया जाए कि तबरेज अंसारी चोर था. लोगों ने उसे पकड़ा और बांध दिया. इसके बाद उन्हें रुक जाना चाहिए था. आखिर उन्हें ये अधिकार किसने दिया कि वो कानून अपने हाथ में लें और उसकी ऐसी पिटाई करें कि उसकी जान चली जाए. सवाल ये है कि आखिर लोग जुटे क्यों? लोगों के भीड़ बनने का आधार क्या था? मौका-ए-वारदात पर पुलिस को क्यों नहीं बुलाया गया. बात साफ़ है लिंचिंग पर एक सख्त कानून बनना चाहिए और जो कोई भी, किसी भी व्यक्ति के लिए हिंसा का मार्ग अपनाए उसे सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए.
गैर इरादतन, इरादतन से भी बड़ा गुनाह
बात तबरेज की चल रही है तो वो बातें बताना बहुत जरूरी है जो पुलिस ने अपनी जांच और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के आधार पर कहीं. विसरा रिपोर्ट में तबरेज की मौत का कारण तनाव और दिल का दौरा बताया गया. साथ ही पुलिस की तरफ से ये तर्क भी आए कि ये हत्या गैर इरादतन थी यानी एक ऐसी हत्या जिसमें लोगों का उद्देश्य किसी को मौत के घाट उतारना नहीं होता बल्कि उस समय जो होता है वो गुस्से के कारण, गर्मी के कारण, आवेश के कारण होता है. जबकि बात अगर इरादतन हत्या कि हो तो इसमें मारने की पूरी प्लानिंग होती है.
आज दौर सोशल मीडिया का है. कहीं की भी घटना हो उसके विडियो सामने आ ही जाते हैं. ऐसे में किसी भी मौत के बाद यदि हम ये कहते हैं कि भीड़ वहां हत्या करने के इरादे से नहीं आई थी तो हम खुद इस बात को कहकर सोसाइटी में जहर घोलने का काम कर रहे हैं. अपनी बातों को वजन देने के लिए हम फिर यही दोहराना चाहेंगे कि किसी को मारने के लिए अगर एक हाथ भी उठ रहा है तो वो पूरी तरह गलत है. ऐसे मामलों में संज्ञान खुद पुलिस को लेना चाहिए और जो कोई भी दोषी हो उस पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए. अब वो वक़्त आ गया है जब पुलिस को खुद लोगों को ये सन्देश देना है कि गैर इरादतन, इरादतन से भी बड़ा अपराध है.
साल 2019 में कितने हुए लिंचिंग के मामले
ऐसा बिलकुल नहीं है कि सरकार हत्याओं या फिर हत्यारों का समर्थन कर रही है. पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब खुद देश के प्रधानमंत्री तक ने इन घटनाओं का संज्ञान लिया और इनपर नाराजगी जाहिर की. लेकिन ये सख्त कानून का आभाव ही है जिसके कारण लोगों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है और लिंचिंग की ये घटनाएं बदस्तूर जारी हैं. बात अगर 2019 की हो तो तबरेज अंसारी मामले को मिलाकर अब तक लिंचिंग के 23 मामले दर्ज हो चुके हैं और इनमें भी सबसे ज्यादा 15 मामले अकेले झारखंड में देखने को मिले हैं.
पुलिस पर दबाव भी है लिंचिंग के मामलों की एक बड़ी वजह
2014 से देश में भाजपा का शासन है. यदि भाजपा के गुजरे 6 सालों के कार्यकाल पर गौर किया जाए तो मिलता है कि भाजपा का समर्थन करने वाला एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि वो पार्टी की आड़ में कुछ भी कर सकता है. चूंकि समर्थकों का एक बड़ा समूह दक्षिणपंथी है ये पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती है. पुलिस की कार्यप्रणाली पर नजर डालें तो मिलता है कि वो एक अलग तरह के दबाव में काम कर रहे हैं. पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती जहां एक तरफ ऐसे मामलों को कंट्रोल करना है. तो वहीं ऐसे भी प्रयास करने हैं जिनसे किसी भी कार्रवाई को लेकर वो सरकार के नुमाइंदों की नजर में न आएं और उनकी नौकरी बची रहे.
बहरहाल, बात की शुरुआत लिंचिंग पर एक सख्त कानून को लेकर हुई है. तो हम बस ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि यदि ये कानून आ गया तो आने वाले वक़्त में लिंचिंग या फिर भीड़ द्वारा अंजाम दिए जा रहे मामले खुद ब खुद कम होंगे. भले ही वो कारण डर हो लोग खुद अपने आपको किसी भी तरह की हिंसा के प्रचार प्रसार से दूर रखेंगे.
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