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Updated: 01 मार्च, 2021 05:09 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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तमिलनाडु (Tamil Nadu Election 2021) में 6 अप्रैल को एक ही पूरे राज्य में वोटिंग होनी है - और बाकियों के साथ ही वोटों की गिनती 2 मई को होने वाली है. चुनावी गहमागहमी तो पहले से ही चली आ रही थी, अब और भी तेज हो चली है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी का तो शुरू से ही ज्यादा जोर तमिलनाडु पर ही देखने को मिला है. पश्चिम बंगाल की कौन कहे, केरल से भी ज्यादा ध्यान राहुल गांधी का तमिलनाडु पर ही लगता है.

राहुल गांधी एक बार फिर तमिलनाडु के दौरे पर हैं और उसी चक्कर में लेफ्ट के साथ संयुक्त रैली में उनकी जगह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भेजा जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो हो ही आये हैं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी तमिलनाडु के दौरे पर जाने वाले हैं.

तमिलनाडु में मुकाबला इस बार डीएमके और एआईएडीएमके के बीच हो रहा है. पिछली बार की तरह इस बार लेफ्ट और छोटे दलों का कोई अलग मोर्चा नहीं बना है. कांग्रेस जहां विपक्षी गठबंधन की अगुवाई कर रही डीएमके के साथ है वहीं बीजेपी का सत्ताधारी एआईएडीएमके के साथ चुनावी समझौता हुआ है. असल में तमिलनाडु में दोनों ही गठबंधनों (AIADMK-DMK) के बीच विरासत की लड़ाई होने जा रही है - और उसमें भी सत्ताधारी गठबंधन में हिस्सेदारी जताने जेल से छूट कर वीके शशिकला भी आ धमकी हैं.

मौजूदा स्थिति देखें तो बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस (Congress-BJP) बेहतर स्थिति में है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे में जिस तरीके से MGR और के. कामराज की विरासत पर बीजेपी ने दावा जताने की कोशिश की है, सिर्फ डीएमके की कौन कहे - जयललिता के लोग भी बेचैन हो उठे हैं.

ये विरासत की लड़ाई है

AIADMK और DMK की बरसों पुरानी जंग में तमिलनाडु में ये पहला विधानसभा चुनाव जो पुराने दिग्गजों एम. करुणानिधि और जे. जयललिता की गैरमौजूदगी में होने जा रहा है. चुनाव के लिहाज से देखें तो ये दोनों ही नेताओं के बगैर 2019 का आम चुनाव पहला रहा और अब ये दूसरा चुनाव होगा.

2016 में विधानसभा चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीने बाद जयललिता बीमार पड़ीं और फिर अस्पताल में ही उनका निधन हो गया. दो साल बाद 2018 में एम. करुणानिधि भी चल बसे.

और इस हिसाब से देखा जाये तो राजनीतिक विरासत की असली जंग अब शुरू होने जा रही है - जिसमें एक तरफ तो करुणानिधि के बेटे डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन हैं और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी के नेतृत्व में जयललिता की राजनीतिक विरासत के दावेदार खड़े हैं. ये लड़ाई भी पारिवारिक राजनीतिक विरासत बनाम एक स्वाभाविक विरासत की लड़ाई है.

सत्ताधारी एआईएडीएमके के पाले में खड़े होकर बीजेपी के लिए फेमिली पॉलिटिक्स पर हमला बोलना आसान हो जा रहा है - क्योंकि पारिवारिक राजनीतिक की सबसे बड़ी मिसाल कांग्रेस भी डीएमके के साथ ही चुनाव लड़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो तमिलनाडु दौरे में एक ही साथ दोनों को निशाना बना लिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीएमके और कांग्रेस के गठबंधन को 'भ्रष्टाचार का हैकाथॉन' करार दिया. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन भ्रष्टाचार के हैकाथॉन जैसा है... उनके नेता बैठते हैं और कैसे लूटा जाये, इसको लेकर मंथन करते हैं - जो सबसे अच्छा रास्ता बताता है उसे पद और मंत्रालय से नवाजा जाता है.' प्रधानमंत्री ने जयललिता समर्थकों का भी ध्यान खींचने की कोशिश की - ये कहते हुए कि तमिलनाडु को पता है कि डीएमके ने सत्ता में रहते हुए जयललिता के साथ कैसा व्यवहार किया था. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'मुझे उसे दोहराने की जरूरत नहीं है... औरतों के प्रति ये उनके व्यवहार को दर्शाता है - दुख की बात ये है कि जिन्होंने जयललिता जी को परेशान किया, कांग्रेस और डीएमके ने सम्मानित किया.'

vk sasikala, o panneerselvamजेल से छूटते ही वीके शशिकला ने जयललिता की विरासत में हिस्सादारी पर दावा ठोक दिया है - और कोई बात नहीं बनी तो AIADMK के लिए वोटकटवा का रोल तो निभाएंगी ही.

मोदी की रैली के बाद डीएमके की तरफ से पलटवार भी हुआ है. बीजेपी नेतृत्व को टारगेट करने का डीएमके को मौका दे दिया है, पार्टी के पोस्टर ने. बीजेपी ने तमिलनाडु में अपने नेताओं के साथ पूर्व मुख्यमंत्रियों एमजी रामचंद्रन और के. कामराज के कटआउट भी लगाये हैं - और ध्यान देने वाली बात ये है कि एमजीआर के कटआउट की साइज मोदी से भी बड़ी है. ऐसा करने का मकसद भी खास है, वो ये कि बीजेपी तमिलनाडु के बड़े नेताओं के प्रति कितना आदर भाव रखती है. ये तरकीबें बीते कई चुनावों में बीजेपी की तरफ से अपनायी जाती रही हैं. बिहार चुनाव को भी याद करें तो पहली ही रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने जिन नेताओं का पहले नाम लिया वे दूसरे दलों के थे - रामविलास पासवान और रघुवंश प्रसाद सिंह. रामविलास पासवान तो वैसे भी बीजेपी के साथी रहे, लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह तो आजीवन लालू प्रसाद के साथी रहे.

डीएमके नेता नेता एमके स्टालिन का कहना है कि बीजेपी के पास अपना कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे वो प्रोजेक्ट कर सके, इसलिए दूसरी पार्टी के नेताओं के कटआउट लगाती है. डीएमके नेता कनिमोझी कह रही हैं, 'MGR पर AIADMK का कोई हक नहीं है - और बीजेपी एमजीआर को इस्तेमाल करना ये बताता है कि दोनों ही दलों के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो वोटर को अपनी तरफ खींच सके'.

मुश्किल तो ये है कि AIADMK नेताओं को भी बीजेपी का एमजीआर को इस्तेमाल करना रास आ रहा है. AIADMK नेता ये कहते पाये गये हैं, 'ये बात अलग है कि AIADMK और BJP के बीच चुनावी गठबंधन है लेकिन बीजेपी जब अपना प्रचार कर रही है तो उसमें एमजीआर के पोस्टर का इस्तेमाल उचित नहीं है.'

AIADMK के सामने नयी चुनौती बन कर जयललिता की सहयोगी रहीं वीके शशिकला भी मैदान में आ चुकी हैं. जेल से छूटते ही वीके शशिकला भी एक्टिव हो गयी हैं. AIADMK में विरासत की जंग तो जयललिता के निधन के बाद ही शुरू हो गयी थी, लेकिन सजा हो जाने के कारण शशिकला के मुख्यमंत्री बनने के सपने पर पानी फिर गया था.

तब तो ई पलानीसामी के विरोध में जयललिता के जेल जाने की स्थिति में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते रहने वाले ओ. पनीरसेल्वम भी खड़े हो गये थे, लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि ओ. पनीरसेल्वम खुद डिप्टी सीएम से संतोष कर लिये और ई. पलानीसामी मुख्यमंत्री पर स्थायी तौर पर बैठ गये.

अंदरूनी लड़ाई का नतीजा ये हुआ कि शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरन ने अपनी अलग पार्टी बना ली - AMMK. जयललिता के जन्म दिन के मौके पर श्रद्धांजलि देते हुए शशिकला ने जो इशारे किये उससे तो लगता है कि वो एआईएडीएमके में अलग ही हिस्सेदारी चाहती हैं. शशिकला का कहना है कि एआईएडीएमके को उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन की पार्टी एएमएमके के साथ चुनावी गठबंधन करके ही मैदान में उतरना चाहिये. अगर ये मुमकिन नहीं होता तो एआईएडीएमके को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है - शशिकला वोट तो काटेंगी ही, देखना होगा कि ओ. पनीरसेल्वल का क्या रुख रहता है - वैसे उनकी सहानुभूति अक्सर बीजेपी के साथ देखी गयी है क्योंकि बीजेपी नेतृत्व भी बैलेंस बनाये रखने के लिए उनके पीछे खड़ा नजर आता है.

शशिकला कह रही हैं, 'जैसा ही हमारी अम्मा की इच्छा थी, सौ साल बाद भी हमारी सरकार होनी चाहिये. ऐसा हो इसलिए हमें मिल कर ही चुनाव लड़ना चाहिये. मैं तो यही चाहती हूं. मैं जल्द ही पार्टी काडर और लोगों से मुलाकात करने जा रही हूं.'

गठबंधन के बूते कांग्रेस-बीजेपी में जोर आजमाइश

पश्चिम बंगाल की तरह बीजेपी तमिलनाडु में कमाल दिखाना तो दूर पूरे देश में मोदी लहर में भी खाता भी नहीं खोल पायी, लेकिन सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस ने भी 8 सीटें जीत ली थी. देखा जाये तो एमके स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके गठबंधन ने 39 में से एक छोड़ कर सारी सीटें जीत ली थी.

2016 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के हाथ सिफर ही लगा, जबकि कांग्रेस के 7 विधायक चुनाव जीत कर आये. डीएमके ने तो एआईएडीएमके की 124 सीटों के मुकाबले अकेले 97 सीटें भी जीती थी, लेकिन जयललिता के नाम तो रिकॉर्ड दर्ज होना था.

1984 के बाद ये पहला मौका रहा जब कोई मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब रहा - और किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल हुई हो, वरना तो हर चुनाव में लोग सत्ताधारी पार्टी को बेदखल कर विपक्ष की ही सरकार बनवा देते रहे हैं.

जयललिता ने ये कामयाबी तभी हासिल की थी जब करुणानिधि भी दूसरी छोर पर जमे रहे, लेकिन इस बार हालात बदले हुए हैं. फिलहाल ऐसे कई फैक्टर हैं जो डीएमके का पक्ष मजबूत कर रहे हैं - और कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस मौके का पूरा फायदा उठाने में जुटे हुए हैं.

राहुल गांधी कितनी शिद्दत से तमिलनाडु चुनाव में लगे हुए हैं, उनके दौरों से समझ आ रहा है. पश्चिम बंगाल में झांकने तक नहीं गये और तमिलनाडु में लगातार डटे नजर आ रहे हैं. विदेश दौरे से लौटने के बाद सीधे जल्ली कट्टू देखने वो तमिलनाडु ही पहुंचे थे. हालिया केरल दौरे से पहले भी तमिलनाडु में ही नजर आये और एक बार फिर कोलकाता में लेफ्ट के साथ होने वाली ज्वाइंट रैली की परवाह न कर फिर तमिलनाडु पहुंचे हुए हैं.

एआईएडीएमके का प्लस प्वाइंट ये है कि मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी की छवि अच्छी है और जयललिता के नहीं होने के बावजूद खुद को एक अच्छे प्रशासक के तौर पर अब तक स्थापित किये हुए हैं - और कोरोनाकाल की अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद लोगों का विश्वास बनाये रखने में सफल रहे हैं.

केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के साथ चुनावी गठबंधन के चलते लोगों को डबल इंजन वाली सरकार के फायदे समझाने का मौका भी है - और राजनीतिक विरोधी डीएमके के खिलाफ धावा बोलने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पूरी मदद मिलने वाली है.

एमके स्टालिन को राहुल गांधी से भले ही कोई बड़ी उम्मीद न हो लेकिन दो चीजों पर काफी भरोसा होगा - एक, दूसरी छोर पर जयललिता नहीं हैं और दूसरी, ई. पलानीसामी सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर तो काम करेगा ही. ऊपर से 2019 के आम चुनाव में गठबंधन की एक छोड़ कर सभी सीटों पर जीत. अब भला और क्या चाहिये. आखिर 42 में से 18 सीटें जीत लेने के बाद बीजेपी पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने की तैयारी में तो एमके स्टालिन क्यों न उम्मीद करें - और स्टालिन की उम्मीदों से ही राहुल गांधी की उम्मीदें बनी हुई हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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