The Tashkent Files के वो डायलॉग जो कांग्रेस और गांधी परिवार को ध्यान में रखकर लिखे गए
The Tashkent Files फिल्म के बहुत से डायलॉग्स कांग्रेस को निशाना बनाते हुए लिखे गए हैं, क्योंकि हमेशा से इस मामले में कांग्रेस ही घिरी हुई है. चलिए एक नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ डायलॉग पर, जो सीधे गांधी परिवार पर आघात करते हैं.
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'दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी का दूसरा प्रधानमंत्री ताशकंद जाता है... वॉर ट्रीटी पर साइन करता है... और मर जाता है. सैकड़ों सस्पीशियस होते हैं, लेकिन एक एन्क्वायरी कमीशन भी नहीं बैठता है.'
यहां बात हो रही है लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर बनी फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' की. इसका ट्रेलर 25 मार्च को रिलीज हो चुका है और 12 अप्रैल को फिल्म भी रिलीज होने के लिए तैयार है. पूरी फिल्म में लाल बहादुर शास्त्री की मौत पर सवाल खड़े किए गए हैं. और सवालों के घेरे में है कांग्रेस पार्टी, जिस पर शास्त्री जी की मौत के बाद से ही तरह-तरह के आरोप लगते आ रहे हैं. जिस तरह रहस्यमयी तरीके से शास्त्री जी की मौत हुई और उसका सच छुपाने की कोशिशें की गईं, उसे देखें तो कांग्रेस पर सवाल उठना लाजमी भी है.
लाल बहादुर शास्त्री की बहू नीरा शास्त्री तो पहले ही उनकी मौत के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा चुकी हैं. उन्होंने सवाल उठाए थे कि उनके शव का पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया गया? जहर की वजह से शरीर नीला पड़ गया था, उसे चंदन लपेटकर जनता से क्यों छुपाया गया? उनके शरीर पर दो कट के निशान थे, लेकिन फिर भी उनकी मौत को दिल का दौरा क्यों बताया गया? नीरा का मानना है कि संभवतः उनके ससुर को दूध में जहर मिलाकर दिया गया था.
इस चुनावी मौसम में फिल्म के जरिए राजनीतिक हित साधने और विरोधियों को आड़े हाथों लेने का दौर भी चल पड़ा है. अभी पीएम मोदी पर बनी बायोपिक को लेकर बातें हो ही रही थीं, इस लिस्ट में एक नाम और जुड़ चुका है 'द ताशकंद फाइल्स' का. फिल्म शास्त्री जी की मौत पर बनी हुई जरूर है, लेकिन इसे बनाने वाले शख्स का नाम सुनते ही ये समझ आ जाएगा कि फिल्म भाजपा के समर्थन में और कांग्रेस-लेफ्ट के विरोध में है. फिल्म को बनाया है विवेक अग्निहोत्री ने, जो आए दिन किसी न किसी मौके पर कांग्रेस के खिलाफ मुखर होते दिखते हैं. विवेक अग्निहोत्री ने तो 'अर्बन नक्सल' नाम की एक किताब भी लिखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि लेफ्ट ही है जो अपने फायदे के लिए सेक्युलेरिज्म के नाम पर लोगों का इस्तेमाल करता है. यही वो लोग हैं जो भारत के टुकड़े करने के नारे लगवाते हैं. खैर, जैसी विचारधारा उनकी किताब 'अर्बन नक्सल' में है, कुछ वैसा ही उनकी फिल्म में भी दिख रहा है.
श..श..श.., कुछ मत बोलो, सेक्युलेरिज्म है.
'द ताशकंद फाइल्स' फिल्म के बहुत से डायलॉग्स कांग्रेस को निशाना बनाते हुए लिखे गए हैं, क्योंकि हमेशा से इस मामले में कांग्रेस ही घिरी हुई है. चलिए एक नजर डालते हैं ऐसे ही कुछ डायलॉग पर, जो सीधे गांधी परिवार पर आघात करते हैं.
'श...श...श..., कुछ मत बोलो, सेक्युलेरिज्म है'
- कांग्रेस पार्टी की छवि अब भले ही हिंदूवादी दिखने लगी हो, लेकिन कुछ समय पहले तक यह सेक्युलर पार्टी के नाम से जानी जाती थी. मोदी के हिंदुत्व को टक्कर देने के लिए राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अख्तियार किया है.
'शास्त्री जी मरे या मार दिए गए? ये इस देश के मुंह पर ऐसी कालिख है, जिसे मिटाने की इस देश में 50 साल में किसी सरकार ने कोशिश नहीं की.'
- शास्त्री जी की मौत पर सवाल उठाकर फिल्म के जरिए सीधा निशाना कांग्रेस पर है कि वह सत्ता में बार-बार आती रही, लेकिन कभी भी ये कोशिश नहीं की कि शास्त्री जी की मौत का सच जाना जा सके. इसी वजह से शास्त्री जी की बहू नीरा शास्त्री ने कांग्रेस को शास्त्री जी की मौत का जिम्मेदार तक ठहरा दिया था.
'लोग सच नहीं सच की कहानी सुनना पसंद करते हैं.'
- फिल्म में इस डायलॉग के जरिए ये कहने की कोशिश की गई है कि शास्त्री जी की मौत का सच दुनिया को बताने से कोई राजनीतिक फायदा नहीं होगा. वहीं दूसरी ओर अगर उसकी कहानी लोगों को बार-बार बताई जाए तो उसका राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है.
'लाल बहादुर शास्त्री का केस हिंदुस्तान का सबसे बड़ा कवर अप है.'
- शास्त्री जी की मौत की गुत्थी आज तक नहीं सुलझी है. जिस तरह से उनकी मौत की असल वजह को छुपाया गया, उसे ही सबसे बड़ा कवर अप कहा जा रहा है. कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए नीरा शास्त्री कई सवाल पहले ही उठा चुकी हैं, जिनमें पोस्टमार्टम से लेकर शरीर पर लगे 2 कट छुपाने की बात भी शामिल है.
'जब अटल बिहारी ने ज्यूडीशियल इंक्वायरी का मांग की तो वो मांग पूरी क्यों नहीं हुई?'
- अटल बिहारी ने शास्त्री जी की मौत का सच जानने की कोशिश की थी. इसके लिए उन्होंने इंक्वायरी की मांग की थी, लेकिन उसे भी नहीं माना गया. इसका इशारा इसी बात की ओर जाता है कि कुछ तो है, जो कांग्रेस छुपा रही है और नहीं चाहती की सच सामने आए.
'इस कमेटी का मकसद सच जानना नहीं, झूठ क्रिएट करना है, क्योंकि सच जानने का करेज आपमें से किसी में है ही नहीं.'
- जो कमेटी शास्त्री की मौत की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रही थी और सवाल जवाब कर रही थी उस पर भी आरोप लगाया गया कि वह सच नहीं जानना चाहती, बल्कि एक झूठ गढ़ना चाहती है.
'ये सत्य और अहिंसा का देश है, ये गांधी और नेहरू का देश है... शास्त्री जी का क्यों नहीं?'
- अक्सर ही भारत को गांधी और नेहरू का देश कहा जाता है, लेकिन शास्त्री जी का जिक्र नहीं होता है. हो सकता है कि डर इस बात का हो कि कोई फिर से उनकी मौत की वजह ना पूछ ले. यहां तक कि विवेक अग्निहोत्री को ये फिल्म बनाने का आइडिया भी इसी बात से आया कि गांधी जयंती के दिन सिर्फ महात्मा गांधी की बात होती है, जबकि उसी दिन लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन होता है और उन्हें कोई नहीं याद करता.
'कौन कहता है कि मरे हुए पीएम से किसी का फायदा नहीं होता.'
- शास्त्री जी की मौत पर भी राजनीति हुई. उसे वोट बटोरने के लिए भुनाया गया. फिल्म में इस बात को भी बड़े अच्छे से स्टेबलिश किया गया है.
10 जनवरी 1996 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ लाल बहादुर शास्त्री ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. उस करार के महज 12 घंटे के बाद ही उनकी मौत हो गई. मौत की वजह दिल का दौरा बताया गया, लेकिन भारत के लोगों के लिए उनकी मौत आज भी एक ऐसी पहेली है, जिसे सुलझाया नहीं जा सका है. एक सवाल आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है कि 'शास्त्री जी की मौत कैसे हुई?' अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस सवाल का जवाब ढूंढ़ रहे लोगों को 'द ताशकंद फाइल्स' फिल्म सच से रूबरू कराने में कितनी सफल होती है.
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