चुनाव परिणामों के बाद सपा-कांग्रेस में अंदरूनी घमासान तय
अगर समाजवादी पार्टी बहुमत लाने में सफल हुई तो अखिलेश की बल्ले-बल्ले. और यदि वे असफल रहते हैं तो सारा ठीकरा उनके सर पर फूटना तय है.
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एग्जिट पोल के नतीजे तो आ गए हैं. अगर एग्जिट पोल पर विश्वास करें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने जा रही है. उत्तराखंड में भी लगभग यही स्तिथि है. चुनाव से पहले की अगर बात करें तो दोनों राज्यों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की स्तिथि कोमोवेश एक ही थी. उत्तर प्रदेश में सपा जहां चाचा-भतीजे की आपसी खींचतान में फंसी हुई थी तो वहीं उत्तराखंड में हरीश रावत बनाम किशोर उपाध्याय बना हुआ था. खैर चुनाव हो गया है. अब बरी हैं रिजल्ट की.
अगर समाजवादी पार्टी बहुमत लाने में सफल हुई तो अखिलेश की बल्ले-बल्ले. और यदि वे असफल रहते हैं तो सारा ठीकरा उनके सर पर फूटना तय है. जो आज उनके साथ दिख रहे हैं कल चाचा के साथ दिखाई देंगे, पापा-मम्मी से लेकर चाचा तक. तो कई कांग्रेस-सपा के गठबंधन को भी जिम्मेवार बताएंगे. ये सब बातें तो होंगी ही लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उनसे यही लगता है कि कहीं पार्टी का विघटन न हो जाए. चाचा शिवपाल अब कोई मौका नहीं देंगे अखिलेश को. जो मुलायम सिंह के लिए भी एक धर्म संकट पैदा करेगा. खैर नेताजी इन सभी से ऊपर हैं.
संकेत आजम खान भी दे चुके हैं. एग्जिट पोल देखने के बाद आजम खान ने नतीजे आने से पहले ही हार का ठीकरा जनता पर फोड़ दिया.आजम ने कहा कि अगर राज्य में उनकी पार्टी हारती है तो इसके लिए अकेले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिम्मेदार नहीं होंगे. आजम खान ने कहा, की अगर उप्र विधानसभा चुनावों में सपा हारती हैं तो इसका ठीकरा अखिलेश के सिर नहीं बल्कि जनता पर फोड़ा जाना चाहिए. आजम ने यहां तक कह दिया कि अगर उनकी पार्टी हारी तो प्रदेश की जनता भुगतेगी. जनता के सिर ठीकरा तो फोड़ दिया लेकिन पार्टी के सिर का ठीकरा कौन फोड़ेगा आजम जी?
इसी बीच समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता रविदास मेहरोत्रा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन पर बयान दिया उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी को गठबंधन का कोई फायदा नहीं हुआ. समाजवादी पार्टी अकेले सरकार बना सकती थी इसलिए अखिलेश को चुनाव में अकेले जाना चाहिए था.
चाचा शिवपाल 11 मार्च के बाद नई पार्टी बनाने की बात पहले ही कर चुके हैं. हालांकि बाद में उन्होंने इसका खंडन भी कर दिया था. लेकिन यह तय है कि अखिलेश के लिए मार्च माह कुछ ठीक ठाक नहीं रहने वाला है. शायद बुआ उनकी कुछ सहायता कर सकती हैं. उधर उत्तराखंड में भी अगर कांग्रेस हारती है तो ठीकरा हरीश रावत के सिर फूटना तय है, पहले ही कांग्रेस के कई बड़े नेता बीजेपी में जा चुके हैं. रही सही कसर चुनाव रिजल्ट तय कराएंगे. हालांकि हरीश रावत को कांग्रेस हाई कमान ने भी अकेला ही छोड़ दिया था. उनके पास एकला चलो के अलावा कुछ अगर था तो वो था उनका कार्य. यहां भी पार्टी नेतृत्व में चुनाव परिणामों के बाद शायद कुछ परिवर्तन देखने को मिले.
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