Russia Ukraine War: अंतर्विरोध संसार की देन है साल भर युद्ध का खींचना...
युद्व के बाद रूस के अंदरूनी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं. बेरोजगारी और महंगाई की समस्या दिनों दिन बढ़ रही है. इसका प्रमुख कारण उन पर लगा आर्थिक प्रतिबंध है. ज्यादातर मुल्कों ने रूस के साथ आयात-निर्यात करना बंद कर दिया है. सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जो राजी रखे हुए है.
-
Total Shares
युद्ध किसी समस्या को सुलझाने का विकल्प नहीं हो सकता? ये ऐसी हनन और जिद है जो सिर्फ बर्बादी और तबाही देती है. वैश्विक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आपसी संबंधों और आर्थिक मोर्चे को रूस-यूक्रेन के जंग ने बर्बादी की गहरी खाई में कितना नीचे धकेल दिया है, जिसकी फिलहाल कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. नुकसान की समीक्षा होगी, लेकिन युद्ध रुकने के बाद. पर, जंग के दुष्परिणामों को समूची दुनिया ने अभी झेलना शुरू कर दिया है. युद्ध रूकवाने को कई मुल्कों ने ईमानदारी से प्रयास किए, जिनमें भारत ने पहले दिन से अग्रणी भूमिका निभाई. लेकिन सभी कोशिशें असफल हुईं, इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जितनी भी विदेशी यात्राएं हुईं, वहां भी उन्होंने इस मसले को प्रमुखता से उठाया. दरअसल, युद्ध की समकालीन तासीर कल्पनाओं से अलहदा हैं. कुछ ऐसे कारण हैं जिनमें कई मुल्कां को सामुहिक प्रयास करने होंगे? तभी बात बन सकती है. वरना, स्थिति और बिगड़ेगी.
एक्सपर्ट्स की मानें तो युद्ध से जितना नुकसान यूक्रेन का हुआ उतना ही रूस का भी हुआ
पिछले वर्ष जब रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तो रूसी सरकार का पहला अधिकारिक बयान आया कि अगले 24 घंटे में वो यूक्रेन को हरा देंगे? लेकिन साल बीत गया, पर दोनों मुल्कों के बीच जारी जंग एक दिन भी नहीं रुकी? रुकेगी भी या नहीं, इसकी भी कोई संभावना फिलहाल दिखती नजर नहीं आती? दरअसल, इस लड़ाई को रूस ने नाक की लड़ाई बना लिया है. उन्हें डर है कि कहीं उनकी हनक, आर्थिक मोर्चे पर मुल्क का प्रभाव, साथ ही समूचे संसार में बढ़ती उनकी ताकत कम ना हो जाए?
खुदा ना खास्ता अगर ऐसा हुआ तो विश्व बिरादरी में नाक कट जाएगी कि एक छोटे से मुल्क को नहीं हरा पाए और हार मान ली. इसलिए रूस को बबार्द होना गवारा है, पर हारना नहीं? युद्व अगर यूं ही चलता रहा है तो रूस की यही जिद उन्हें कहीं की नहीं छोड़ेगी, तबाही कर देगी. जारी जंग में दोनों मुल्कां में ना कोई झुकने को राजी है और ना हार मानने को?
इसलिए तत्कालिक तस्वीरें कुछ ऐसी ही दिखती हैं कि जंग फिलहाल किसी नतीजे पर पहुंचती नहीं दिखती. अमेरिकी राष्टृपति का दौरा भी पिछले सप्ताह यूक्रेन में हुआ, तब उम्मीद जगी कि वो मध्यस्ता करके युद्व को रूकवाएंगे, लेकिन वो यूक्रेन की पीठ थपथपाकर यह कहते हुए चले गए कि अमेरिका तुम्हारे साथ है, लड़ो हम साथ है, जितने भी सैन्य हथियारों की जरूरत होगी, अमेरिका मुहैया कराएंगा.
जंग रूकवाने में यूक्रेन को अगर अब भी किसी देश से उम्मीद है तो वह हिंदुस्तान ही है. तभी, यूक्रेनी राष्ट्रपति के संसदीय प्रमुख एंड्री यरमक ने हमारे एनएसए प्रमुख अजीत डोभाल को हाल ही में फोन करके युद्व रूकवाने की मदद मांगी. इससे पहले भी पिछले वर्ष अगस्त में यूक्रेनी राष्ट्रपति ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करके मध्यस्थता के लिए कहा था. तब उन्होंने ये बात रूसी राष्ट्रपति के समझ रखी थी.
पर, बात नहीं बनी, युद्ध को एक साल बीत गया है लेकिन प्रयास अब भी जारी हैं. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उम्मीद थी कि यूक्रेन पर हमले से पश्चिमी संसार बंट जाएगा और नाटो कमजोर पड़ेगा, वैसा हुआ कतई नहीं? पर, तत्काल नतीजे उनके सोच से विपरीत दिख रहे हैं. परिणाम कुछ ऐसे दिखते हैं युद्व के बाद पश्चिमी देशों का गठजोड़ और मजबूत हुआ है.
युद्ध के बाद रूस चौतरफा घिरा है, दुनिया का एक तिहाई हिस्सा उनसे अलग हो चुका है. 27 देशों वाले यूरोपीय संघ ने सख्त प्रतिबंध लगा दिए हैं. जबकि, वो सभी मिलकर यूक्रेन को अनगिनत धन की मदद भेज रहे हैं. इसके अलावा नाटो सदस्य मुल्क लगातार हथियार मुहैया करा रहे हैं. इसलिए ये युद्ध अभी लंबा खिंचेगा. यूक्रेन के सहयोग में अमेरिका अब खुलकर सामने आ गया है. उनकी भूमिका थोड़ी सी अब संदिग्ध दिखती हैं, जबकि अगर ईमानदारी से पहल करता तो युद्व रूक भी सकता था.
अमेरिका की पहचान से दुनिया वाकिफ है. फिलहाल, साल भी से जारी रूस-यूक्रेन युद्व ने निश्चित रूप से अर्थव्यवस्थाओं के स्वरूप को बदला है. समूची दुनिया में युद्ध ने आर्थिक मोर्चे पर बड़ा प्रभाव डाला है. युद्ध से पूर्व तमाम यूरोपीय संघीय देशों का प्राकृतिक गैस का आधा हिस्सा और पेट्रोलियम का एक तिहाई हिस्सा रूस पर ही निर्भर हुआ करता था. लेकिन वर्ष भर में युद्ध ने स्थिति को एकदम बदल दिया है.
स्थिति अब कुछ ऐसी बनती जा रही है जिससे पश्चिमी देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए नए विकल्प तलाशने में लग गए हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का दौर भी शुरू हो गया है. जंग से ना फिर्स आम यूक्रेनी नागरिक प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि अन्य देश भी इसकी चपेट में आ चुके हैं. यूक्रेन में भारत से असंख्य मात्रा में छात्र मेडिकल की पढ़ाई के लिए जाते थे.
जंग के बाद उनकी पढ़ाई भी अधर में अटक गई. अब, रूस ने परमाणु युद्ध की धमकी दी है, अगर ऐसा हुआ तो समूचे विश्व में शीत युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी. आज के समय में परमाणु हमले के संबंध में सेचना भी घोर चिंता का विषय है. सरकारी आंकड़े बताते हैं सामान्य युद्व से ही सिर्फ यूक्रेन में 19,000 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, करोड़ों की संख्या में बेघर हुए हैं.
कमोबेश, ऐसा ही आंकड़ा रूस का भी है. वहां भी भुखमरी जैसे हालात पैदा हुए हैं. शिक्षा पूरी तरह से प्रभावित है. सरकारी कार्यालयों में ताले लटके हैं.बहरहाल, युद्व के बाद रूस के अंदरूनी हालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं. बेरोजगारी और महंगाई की समस्या दिनों दिन बढ़ रही है. इसका प्रमुख कारण उन पर लगा आर्थिक प्रतिबंध है. ज्यादातर मुल्कों ने रूस के साथ आयात-निर्यात करना बंद कर दिया है.
सिर्फ भारत एक ऐसा देश है जो राजी रखे हुए है. रूस ने अंतरराष्ट्रीय दाम से बेहद कम कीमत पर कच्चा तेल बेचने का ऑफर हिंदुस्तान को दिया हुआ है. भारत ने उसे स्वीकारा भी है. यही वजह है कि उनकी अर्थव्यवस्था का एक मात्र सहारा इस वक्त भारत है. रूस सस्ते दाम में कच्चा तेल भारत को दे रहा है. बीते दस महीनों से हिंदुस्तान की तेल कंपनियां सस्ते दामों पर वहां से कच्चा तेल खरीद रही हैं.
इससे भारत को जबरदस्त मुनाफा हो रहा है. क्योंकि एक वक्त ऐसा था, जब भारत कच्चे तेल खरीदने में सऊदी अरब, इराक व दूसरे खाड़ी देशों पर निर्भर रहता था. मौजूदा वक्त में रूस हमारा सबसे बड़ा ऑयल ट्रेडिंग पार्टनर है, कच्चे तेल की कुल हिस्सेदारी 26 फीसदी है. लेकिन फिर भी भारत युद्व का पक्षधर नहीं है, चाहता है ये जंग बिना देर करे रूके, लेकिन ऐसा होगा, उसकी तस्वीर फिलहाल नहीं दिखती. अमेरिका इस युद्व की आड़ में रूस को कमजोर करना चाहता है.
आपकी राय