BCCI के बहाने बीजेपी को घेर कर टीएमसी गांगुली पर दबाव तो नहीं बना रही है?
सौरव गांगुली (Saurav Ganguly) को दोबारा अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा, ये तय तो हुआ BCCI की मीटिंग में, लेकिन तृणमूल कांग्रेस (TMC) का इल्जाम है कि सब भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने फाइनल किया है - जबकि महीने भर पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने रास्ता साफ कर दिया था.
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सौरव गांगुली (Saurav Ganguly) के दोबारा BCCI अध्यक्ष न बनने में राजनीति का कितना रोल हो सकता है? 2019 में सौरव गांगुली का BCCI अध्यक्ष बनना अगर गैर राजनीतिक था, तो दोबारा न बनना भी वैसा ही समझा जाना चाहिये - लेकिन अगर सौरव गांगुली के अध्यक्ष बनने में राजनीति का कोई रोल रहा तो दोबारा न बनने में भी ये सवाल तो उठना ही चाहिये.
जब देश भर में छोटे छोटे खेल संगठनों में राजनीति हावी हो, फिर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जैसे खूब पैसे वाले संगठन का तो हक बनता है. कुछ दिन पहले ही राजस्थान क्रिकेट बोर्ड के चुनाव का विवाद जब हाई कोर्ट पहुंचा तो रोक लगा दी गयी. दरअसल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत RCA अध्यक्ष का दोबारा चुनाव लड़ रहे थे - और जिला क्रिकेट संघों ने चुनाव अधिकारी की भूमिका पर ही सवाल उठा दिये थे. कोर्ट में दलील दी गयी कि जिस रिटायर्ड IAS अफसर को चुनाव अधिकारी बनाया गया है, जो सरकार की तरफ से लाभ का पद है और जब मुख्यमंत्री के बेटे ही दोबारा चुनाव लड़ रहे हों तो निष्पक्ष चुनाव की संभावना कितनी रह जाती है.
वैभव गहलोत RCA के अध्यक्ष दोबारा बन पाएंगे या नहीं, सौरव गांगुली BCCI के दोबारा अध्यक्ष नहीं बनने जा रहे हैं. टीम इंडिया के कैप्टन भी रहे सौरव गांगुली की जगह अब जाने माने क्रिकेटर रोजर बिन्नी के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की संभावना है.
सौरव गांगुली को लेकर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर हमले से पहले हैरानी इसलिए भी हुई है, क्योंकि अभी महीना भर भी नहीं हुआ जब सौरव गांगुली के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बहुत राहत भरा समझा जा रहा था. अपने संविधान संशोधन को लकेर बीसीसीआई की तरफ से ही दाखिल एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अध्यक्ष सौरव गांगुली ही नहीं बल्कि सचिव जय शाह भी अगले तीन साल तक अपने पद पर रह सकते हैं.
बीसीसीआई से अपनी याचिका के जरिये सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि कूलिंग ऑफ पीरियड जैसी व्यवस्था को रद्द किया जाये, और ऐसी व्यवस्था हो कि संविधान में संशोधन के लिए अदालत में न जाना पड़े.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बीसीसीआई के एक बार के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड की जरूरत नहीं है, लेकिन दो कार्यकाल के बाद ऐसा जरूर करना होगा. तब ये माना जाने लगा था कि सौरव गांगुली और जय शाह दोनों ही 2025 तक अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे. खबर है कि जय शाह तो अपने दूसरे कार्यकाल में बने रहेंगे लेकिन सौरव गांगुली के साथ ऐसा नहीं होने जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ अध्यक्ष और सचिव ही नहीं बल्कि बीसीसीआई और राज्य एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों पर भी लागू होता है. कूलिंग ऑफ पीरियण का नियम 2018 में बनाया गया था.
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को भी सवाल उठाने का मौका इसीलिए मिला है क्योंकि दूसरे कार्यकाल को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया था. एक वजह ये भी है कि जय शाह को एक्सटेंशन दिया जा रहा है. टीएमसी के बीजेपी पर हमलावर होने की बड़ी वजह जय शाह का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बेटा होना भी है.
तृणमूल कांग्रेस का सीधा आरोप है कि सौरव गांगुली के बीजेपी ज्वाइन करने से इनकार के चलते ही उनके साथ ये व्यवहार हो रहा है. सच तो ये है कि 2011 में सत्ता परिवर्तन के बाद ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही सौरव गांगुली पर राजनीतिक दलों की तरफ से डोरे डाले जाते रहे हैं - और सिर्फ बीजेपी या तृणमूल कांग्रेस की ही कौन कहे, लेफ्ट की तरफ से भी कोशिशें कम नहीं हुई हैं.
पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान सौरव गांगुली को लेकर कभी ऐसा लगता रहा कि वो बीजेपी ज्वाइन कर लेंगे तो कभी तृणमूल कांग्रेस. कई वाकये तो ऐसे हुई भी जब अफवाहें भी सच के काफी करीब नजर आ रही थीं, लेकिन सौरव गांगुली की गुगली गुमराह करती हुई बार बार निकल जाती रही. न वो किसी को फायदा होने देते, न नुकसान ही. सौरव गांगुली न चाहते हुए भी लगता है, 'न माया मिली न राम' वाली राजनीति के शिकार हुए लगते हैं.
अगर ये सब, जैसे कि नये कयास शुरू हो चुके हैं, सौरव गांगुली के ICC के चुनाव मैदान में उतरने को लेकर नहीं हो रहा है, फिर तो ऐसा ही समझा जाएगा कि तृणमूल कांग्रेस का आरोप बगैर धुआं की आग नहीं है. सूत्रों के हवाले से ऐसी भी तो खबरें मीडिया में आयी ही हैं कि सौरव गांगुली बड़े गुस्से में दफ्तर से बाहर निकले थे. और ये भी कि सौरव गांगुली को लेकर बीसीसीआई के एक धड़ा काफी दिनों से खिलाफ लामबंद भी हो गया था.
बाकी सब तो ठीक है, लेकिन सवाल तो ये भी उठता है कि तृणमूल कांग्रेस का मकसद सौरव गांगुली के बहाने बीजेपी को कठघरे में खड़ा करना भर ही है या इरादा कुछ और ही है?
क्या गांगुली के साथ कोई दुर्व्यवहार हुआ है?
पश्चिम बंगाल चुनावों के करीब डेढ़ साल बाद बीसीसीआई अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल से आने पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुल एक बार फिर राजनीति के केंद्रबिंद बन गये हैं - हां, इस बार भी सौरव गांगुली को लेकर भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ही आमने सामने हैं.
सौरव गांगुली तृणमूल कांग्रेस के झांसे में आ सकते हैं क्या?
ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का सीधा सा सवाल है - अगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह दूसरी पारी के लिए बीसीसीआई सचिव बने रह सकते हैं, तो सौरव गांगुली अगले कार्यकाल के लिए अध्यक्ष क्यों नहीं बन सकते?
सौरव गांगुली के अलावा सिर्फ बीसीसीसीआई के संयुक्त सचिव जयेश जॉर्ज ही ऐसे हैं जिनको दोबारा मौका नहीं दिया जा रहा है. तृणमूल कांग्रेस की आपत्ति की वजह भले ही जय शाह हों, लेकिन राजीव शुक्ला भी उपाध्यक्ष बने रहेंगे. राजीव शुक्ला कांग्रेस के नेता हैं, लेकिन उनको IPL के चेयरमैन के पद से हटा दिया गया है.
पूरे घटनाक्रम को लेकर मीडिया रिपोर्ट में सौरव गांगुली को खफा भी बताया गया है. और कहा जा रहा है कि सौरव गांगुली ने अपनी नाराजगी छुपाने की कोई कोशिश भी नहीं की. दलील ये है कि परंपरा के मुताबिक मौजूदा अध्यक्ष बोर्ड के फैसले के बाद नये अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव रखना है, लेकिन सौरव गांगुली ऐसा कुछ किये बगैर ही चले गये.
तृणमूल कांग्रेस का इल्जाम है कि ये सौरव गांगुली के अपमान की कोशिश है, और उसके पीछे बीजेपी है. टीएमसी नेताओं का दावा है कि सौरव गांगुली के साथ ऐसा व्यवहार इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वो बीजेपी में शामिल नहीं हुए.
बीजेपी की तरफ से टीएमसी नेताओं के आरोपों को सिरे से खारिज किया गया है. बीजेपी का कहना है कि सौरव गांगुली को कभी पार्टी में शामिल करने की कोशिश ही नहीं की गयी. ऊपर से, बीजेपी ये सवाल भी पूछ रही है कि क्या तृणमूल कांग्रेस ने ही सौरव गांगुली को बीसीसीआई का अध्यक्ष बनवाया था? बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में क्रिकेट और क्रिकेटरों के हाल को लेकर भी सत्ताधारी टीएमसी को घेरने की कोशिश की है.
पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रहे दिलीप घोष कहते हैं, जिन लोगों ने कभी सौरव गांगुली के लिए आवाज तक नहीं उठाई, वे आज उनके लिए आंसू बहा रहे हैं... कार्यकाल पूरा हो गया... ऐसी राजनीति की क्या जरूरत है?
बीजेपी के पलटवार पर टीएमसी प्रवक्ता ने साथी नेताओं का बचाव किया है. कह रहे हैं, हम इस मामले में सीधे तौर पर कोई कमेंट नहीं कर रहे हैं... चूंकि बीजेपी ने चुनाव के टाइम और बाद में भी ये सब प्रचारित किया था इसलिए सवाल उठाया गया है. कुणाल घोष का कहना है कि अब ये बीजेपी की ही जिम्मेदारी बनती है कि वो समझाये कि सौरव गांगुली को अगली पारनी न देने के पीछे की वजह भी बताये.
टीएमसी नेता शांतनु सेन ने अमित शाह के सौरव गांगुली के घर डिनर का हवाला देते हुए सवाल उठाया है. शांतनु सेन कहते हैं, अमित शाह डिनर पर सौरव गांगुली के घर आए थे. वो चाहते थे कि सौरव गांगुली बीजेपी से जुड़ें... पहले भी बीजेपी की तरफ से सौरव गांगुली से ऐसा कहा गया था... वो बीजेपी में शामिल नहीं हुए - और ममता बनर्जी के राज्य से हैं, शायद इसीलिए उनको कीमत चुकानी पड़ी है.
सौरव गांगुली के घर डिनर पर पहुंचे अमित शाह और बीजेपी नेता
मई, 2022 की ही बात है, पश्चिम बंगाल दौरे में अमित शाह और कुछ सीनियर बीजेपी नेता डिनर के लिए पहुंचे थे. अमित शाह के साथ बीजेपी सांसद स्वप्न दासगुप्ता, प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और शुभेंदु अधिकारी भी पहुंचे थे. तभी ये जानना भी दिलचस्प रहा जब अमित शाह के साथ डिनर के अगले ही दिन सौरव गांगुली ने ममता बनर्जी को लेकर टिप्पणी की. सौरव गांगुली ने अमित शाह के साथ तो पुराना रिश्ता बताया ही, ममता बनर्जी के साथ बेहद करीबी संबंध की बात कही. और ममता बनर्जी ही नहीं, कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम की भी खूब तारीफ की थी.
ऐसा लगता है, तृणमूल कांग्रेस ने सौरव गांगुली के बाहने बीजेपी के खिलाफ मुद्दा बनाने का फैसला कर लिया है. टीएमसी नेता के ट्वीट से तो ऐसा ही लगता है. तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सासंद शांतनु सेन ट्विटर पर लिखते हैं, ये राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है... गृह मंत्री अमित शाह के बेटे बीसीसीआई के सचिव बने रह सकते हैं... सौरव गांगुली, बीजेपी में शामिल नहीं हुए और वो पश्चिम बंगाल से हैं, इसलिए उनको टारगेट किया जा रहा है - हम आपके साथ हैं दादा!
Another example of political vendetta.Son of @AmitShah can be retained as Secretary of #BCCI.But @SGanguly99 can't be.Is it because he is from the State of @MamataOfficial or he didn't join @BJP4India ?We are with you Dada!
— DR SANTANU SEN (@SantanuSenMP) October 11, 2022
तृणमूल कांग्रेस का इरादा क्या है?
तृणमूल कांग्रेस के तेवर देख कर अब तो ये समझना जरूरी हो गया है कि सौरव गांगुली के बहाने वो बीजेपी को टारगेट करने का नया मौका ढूंढ लिया है - या फिर ये सारी कवायद सौरव गांगुली पर दबाव बनाकर तृणमूल कांग्रेस में शामिल कराने की कोई कोशिश है?
ये तो बीजेपी नेता ही बताते हैं कि 2014 के आम चुनाव में भी सौरव गांगुली को अपनी पसंद की किसी भी सीट से टिकट ऑफर किया गया था - और जब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीत लीं, फिर तो सौरव गांगुली को लेकर ज्यादा ही गंभीर हो गयी थी - क्योंकि बीजेपी को लगता था कि सौरव गांगुली की लोकप्रियता को भुना कर ममता बनर्जी को सत्ता से बेदखल किया जा सकता था.
चुनावों के दौरान ही, एक दिन तो ऐसा भी रहा जब लगा सौरव गांगुली बीजेपी करीब करीब ज्वाइन कर चुके हैं. दिल्ली में क्रिकेट से जुड़े एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोलकाता से निकलने से पहले सौरव गांगुली अचानक राज भवन पहुंच गये थे - और तत्कालीन राज्यपाल (मौजूदा उपराष्ट्रपति) जगदीप धनखड़ से उनकी शिष्टाचार मुलाकात को राजनीतिक चश्मे से देखा जाने लगा था.
ऐसे देखे जाने की खास वजह भी थी. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की तब की राजनीतिक भूमिका को लेकर ममता बनर्जी और उनके नेता हमलावर तो रहते ही थे, राज भवन की मुलाकात के बाद दिल्ली में सौरव गांगुली और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात हुई. हालांकि, दोनों की मुलाकात को राजनीतिक नजरिये से न देखने देने का दोनों ही पक्षों के पास बहाना भी मजबूत था. वो कार्यक्रम बीजेपी नेता रहे अरुण जेटली की स्मृति में आयोजित था, फिर तो अमित शाह को पहुंचना ही था - और क्रिकेट से जुड़ा इवेंट होने के नाते सौरव गांगुली का भी.
जनवरी, 2021 में जब सौरव गांगुली की अचानक तबीयत खराब हो गयी और अस्पताल में भर्ती होना पड़ा तो एक पैर पर ही हर कोई दौड़े दौड़े पहुंचा - ममता बनर्जी भी और तमाम बीजेपी नेताओं के अलावा तब के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं दीं. बेशक ये सौरव गांगुली की कुशल क्षेम जानने की कोशिश रही, लेकिन चुनावी माहौल के कारण मामला ज्यादा राजनीतिक ही लगा.
सौरव गांगुली की तबीयत ठीक हो जाने के बाद बीजेपी इंतजार करती रही, लेकिन लगता है सौरव गांगुली की छठी इंद्रीय ने पहले ही संकेत दे दिया था. हुआ तो भी वैसा ही. लगता तो ये भी है कि सौरव गांगुली को ममता बनर्जी की काबिलियत पर भी एकबारगी भरोसा उठने लगा था.
निराश होकर बीजेपी ने बंगाली भद्रलोक और बाकियों के भी वोट को लेकर डरे होने की वजह से मिथुन चक्रवर्ती का रुख किया. कहीं मिथुन चक्रवर्ती भी सौरव गांगुली की तरह ही मना न कर दें, इसलिए बीजेपी के सबसे सम्मानित अभिभावक संघ प्रमुख मोहन भागवत सीधे मिथुन चक्रवर्ती के घर पर ही पहुंच गये थे. कुछ देर के लिए मिथुन चक्रवर्ती को सौरव गांगुली का स्थानापन्न भी समझा गया. हो सकता है, हाई फाई ट्रीटमेंट देख कर मिथुन चक्रवर्ती को भी वैसा ही लगा हो - वैसे मंच पर पहुंच कर मिथुन चक्रवर्ती ने बडे़ बड़े डायलॉग भी बोले, लेकिन बीजेपी को कोई फायदा नहीं मिला.
अब जिस तरीके से सौरव गांगुली के बीसीसीआई बैठक में हुई बैठक से नाराजगी की बात बतायी जा रही है, निश्चित तौर पर तृणमूल कांग्रेस को अपने लिए स्कोप नजर आ रहा होगा. लेकिन जो सौरव गांगुली ममता बनर्जी से पहले लेफ्ट शासन को भी ललचा कर और चकमा देकर आगे निकल गये हों, बीजेपी की केंद्र में सरकार के दौरान तीन साल तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहने के बाद भी राजनीतिक बाड़बंदी लांघ कर आगे बढ़ गये हों - ये जरूरी तो नहीं कि वो तृणमूल कांग्रेस को भाव देंगे ही.
ये शोर शराब इसलिए तो नहीं है कि गुस्से में या दबाव में आकर सौरव गांगुली आखिरकार तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने के लिए राजी हो जायें - और अगर वास्तव में सौरव गांगुली की कुर्सी आगे भी कायम न रहने के पीछे बीजेपी का कोई रोल है तो वो ममता बनर्जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बदले के लिए ऐलान-ए-जंग कर डालें?
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