2019 के लोकसभा चुनाव में, तमिल और बांग्ला होंगे शाह के प्रमुख हथियार
भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष अमित शाह के बारे में मशहूर है कि राजनीति में उनका किसी से कोई मुकाबला नहीं है. इस बात को फिर एक बार सही साबित करते हुए, शाह ने कुछ ऐसा कर दिया है जिसने उनके आलोचकों तक का मुंह बंद हो गया है.
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2019 लोक सभा चुनावों को लगभग डेढ़ साल बचा है. हर राजनेता और राजनीतिक दल इस परीक्षा के लिए तैयारी कर रहा है. यह बात सबको पता है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह मेहनत करने से नहीं कतराते हैं. अपनी पार्टी के प्रचार और प्रसार के लिए वह विभिन्न प्रकार के प्रयोग कर चुके हैं. इस बार अपनी मेहनत को वह एक नई ऊंचाई पर ले गए हैं. अपनी पार्टी के विचारों को सीधे आम जनता तक ले जाने के लिए वह तमिल, बांग्ला, असमिया और मणिपुरी भाषा सीख रहे हैं. पेशेवर शिक्षकों के द्वारा अमित शाह को यह भाषाएं सिखाई जा रही हैं.
शाह वर्तमान में बोल चाल के लायक तमिल और बांग्ला बोल सकते हैं. अब वह इन भाषाओं में अपनी पकड़ सुधारने में लगे हैं. शाह बहुत बुद्धिमान रणनीतिज्ञ हैं. उन्हे पता है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों से उन्होंने 2014 के लोक सभा चुनावों में लगभग सारी की सारी सीटें जीत ली थीं. 2019 लोकसभा चुनावों में उस प्रकार के परिणाम दोहराना लगभग असंभव है.
अन्य भाषाओँ को सीखकर शाह अपने वोटर के करीब होना चाहते हैं
हर सरकार, चाहे वह कितना ही अच्छा काम करे उसकी कुछ न कुछ आलोचना अवश्य होती है. देश के हर व्यक्ति को प्रसन्न करना असंभव है. अतः 2014 में जिन राज्यों में भाजपा ने सारी की सारी सीटें जीती थी, 2019 में वहां कुछ गिरावट आना निश्चित है. इस गिरावट की भरपाई करने के लिए अमित शाह ने केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल का रुख़ किया है और इसीलिए अलग अलग भाषाएं सीखी जा रही हैं.
पश्चिम बंगाल में भाजपा को मजबूत करने के लिए तृणमूल कांग्रेस से मुकुल रॉय को तोड़कर भाजपा में लाना हो, केरल में वामपंथी सरकार के विरुद्ध हल्ला बोल करना हो. यह सारे कदम भाजपा को केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में स्थापित करने के लिए जा रहे हैं. अमित शाह हर हाल में 2019 लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की सरकर लाना चाहते हैं.
इन विभिन्न भाषाओं को सीखकर शाह, नरेंद्र मोदी का 'सबका साथ-सबका विकास' का संदेश इन राज्यों के लोगों को सीधे संवाद के द्वारा देना चाहते हैं. यह देखना होगा की क्या अमित शाह अपनी इस नई रणनीति में सफल होते हैं या नहीं.
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