'देह व्यापार' वाले बयान से साबित हो गया कि ये नोटबंदी की सालगिरह है या बरसी
गुजरे वक्त हुई नोटबंदी देखकर लगा कि इसके पीछे कोई उद्देश्य है मगर आज जिस तरह सत्तापक्ष के नेताओं के इसपर तर्क है वो देख कर लगता है कि सरकार को इसे बस करना था तो उन्होंने कर दिया.
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आज डिमॉनेटाइजेशन की सालगिरह है या बरसी ? यानी इसका जश्न मनाएं या मातम. सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक लोग इसी पर बात कर रहे हैं. आज केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी इसको लेकर अपने मन की बात की और न सिर्फ मुझे बल्कि पूरे देश को हैरत में डाल दिया. प्रसाद का तर्क अजीब है. प्रसाद ने कहा है कि इससे देह व्यापार और वेश्यावृत्ति में कमी आई है. इस बयान को सुनकर कुछ बातें जहन में आ गयीं. गौर करियेगा...
नोटबंदी पर जब मैंने प्रधानमंत्री को सुना तो लगा कि मुझे भी देश के लिए लाइन में लगना चाहिए
मुझे आज भी अच्छे से वो गुनगुनी सर्दी वाली रात याद है जब राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा फैसला लेते हुए 1000 और 500 के नोटों को 'बेकार' घोषित कर दिया था. देश के प्रधानमंत्री ने हमें बताया था कि उनके द्वारा लिया गया ये फैसला हमारे लिए है. हमारे राष्ट्र के लिए हैं. उस रात उन्होंने कई बातें कहीं थीं. उन्होंने देश में रखे काले धन पर बात की थी, उन्होंने कालाबाजारी पर बात की थी. उन्होंने टैक्स चोरी पर बात की थी. उन्होंने विदेशों में जमा पैसे पर बात की थी. उन्होंने इसपर बात की थी, उन्होंने उसपर बात की थी.
प्रधानमंत्री लगातार बात किये जा रहे थे, मैं उनकी मोहिनी सूरत देखता और उनकी बातों को बड़े ही ध्यान से सुनता जा रहा था. मुझे महसूस हुआ कि भले ही ये एक मुश्किल पल हो, भले ही मुझे तब 100 के नोटों और कुछ दिन बाद आए 2000 के सिंगल नोट के लिए भूखा प्यासा घंटों लाइन में लगना पड़े, मैं लगूंगा क्योंकि मेरा उस तरह लाइन में खड़ा होना भी एक तरह की राष्ट्रसेवा है. एक आत दो बार मैंने लाइन में लगने के लिए नाटक किया था तो कुछ मित्रों ने मुझे उन सैनिकों को हवाला दिया जो सियाचिन समेत देश की सरहदों पर खड़े देश सेवा करते रहते हैं.
मेरे जैसे कई 'मितरों' को प्रधानमंत्री मोदी की बात ठीक लगी. मैं अपने ही पैसों के लिए पागल दीवानों की तरह लाइन में लगा. धक्का मुक्की की. तब जो एक साथ पूरे खानदान के एटीएम लेकर पैसा निकालने के लिए घंटों एटीएम में घुस जाता उसे दर्जनों गालियां दीं. ऐसा करते हुए मुझे बड़े ही गर्व की अनुभूति होती. महसूस होता कि मैं ये जो कुछ भी कर रहा हूं देश के लिए कर रहा हूं. एक सिविलियन होकर भी मैं अपने को फौजी समझता.
मेरी तरह देश में कई लोग थे जो देश की खातिर एटीएम की लाइनों में लगे
आज एक साल हो गया है. 1000 और 500 के नोट को हमारे बीच से गए हुए पूरे एक साल हो गए हैं. मेजेंटा कलर के, कोमल से 2000 के नोट को हमारे बीच आए हुए पूरा एक साल हो गया है. उस 2016 के 8 नवंबर से लेकर इस 2017 के नवंबर तक बहुत कुछ बदल गया है. देश वासियों के अलावा खुद प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तक कुछ एक मौकों पर ये मान चुके हैं कि नोटबंदी से नुकसान हुआ है. देश की अर्थव्यवस्था डोली है.
आज नोटबंदी पर तमाम तरह के तर्क आ रहे हैं. विपक्ष इसे एक बुरी घटना कह रही है. सत्तापक्ष जबरन इस बात को मनवाने का प्रयास कर रहा है कि "नहीं, जो भी हुआ है अच्छा हुआ है". नोटबंदी पर मैंने अब तक सबका पक्ष सुना और खामोश था मगर आज अपनी आवाज तब नहीं रोक पाया जब केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद जिन्हें अब तक मैं एक समझदार नेता मानता था उनकी बात सुनी. रविशंकर प्रसाद का मानना है कि डिमॉनेटाइजेशन या नोटबंदी का अर्थ सिर्फ इतना है कि इससे देह व्यापार और वेश्यावृत्ति में कमी आई है.
जी हां, वाकई ये बात किसी को भी हैरत में डालने के लिए काफी है. इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए उन्होंने कहा, 'महिलाओं और लड़कियों की तस्करी के मामलों में भारी कमी आई है. इसके लिए बड़े पैमाने पर नगदी नेपाल और बांग्लादेश चली जाती थी.' प्रसाद के अनुसार 500 रुपये और 1000 रुपये के पुराने नोटों को देह व्यापार और मानव तस्करी में भुगतान के लिए इस्तेमाल किया जाता था. जब इस विषय में प्रसाद से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि ये 'अहम जानकारी' उन्हें गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के हवाले से मिली है.
नोटबंदी पर एक केंद्रीय मंत्री के ऐसे बयान से मेरे होश उड़ गए
रिपोर्ट द्वारा नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि नोटबंदी से नक्सलवाद, आतंकवाद और सट्टा बाजार में कमी आई है. उन्होंने यह भी कहा कि नोटबंदी के बाद जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं कम हो गई हैं. प्रेस कांफ्रेस खत्म होने वाली थी, सभागार में चाय, समोसा और बिस्कुट रखा जा चुका था इस समय तक प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद पत्रकारों को इस बात का एहसास करा ही दिया कि 'नोटबंदी के बाद बीते एक साल में साबित हो गया है कि यह फैसला देश हित में था.'
आज से एक साल पहले मैंने प्रधानमंत्री की बातें सुनी थीं आज एक साल बाद केन्द्रीय मंत्री की बात सुनी. दोनों में कितना अंतर है. तब प्रधानमंत्री ने इसे टैक्स चोरी, कालाबाजारी के लिए एक बड़ा कदम बताया था और कहा था कि इनमें नियंत्रण होगा जबकि आज उन्हीं के एक 'केंद्रीय मंत्री' का बयान कि इससे देह व्यापार में सिर्फ इसलिए नियंत्रण हुआ क्योंकि सरकार ने 1000 और 500 के नोट बंद कर दिए निहायत ही बचकाना है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिसे ये ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग करनी होगी, उसके लिए नोटबंदी के बाद आया 2000 का नोट किसी वरदान से कम न रहा होगा. मंत्री जी की बातों से एक चीज तो साफ है कि भले ही इनके टूथपेस्ट में नमक ज्यादा रहा हो मगर इनके होम वर्क में कमी तो अवश्य ही थी.
बहरहाल रविशंकर प्रसाद की बातों को सुनकर बस यही कहा जाएगा कि यदि वाकई नोटबंदी का उद्देश्य केवल देह व्यापार पर लगाम लगाना था तो वाकई मोदी जी और उनकी सरकार ने मिलकर मेरी भावना को आहत किया और मुझे ये एहसास दिलाया कि जब उंगली से घी न निकले तो घी का डिब्बा ही पटक दो. जो गन्दा है वो गन्दा है जो साफ है उसे उठा के कटोरी में डाल लो. यूं भी जब ऐसा कर रहे होंगे तो कौन हमें देखने आएगा.
अंत में इतना ही कि सीने में एक दिल था जिसे पहले देश की बात करने वाले प्रधानमंत्री जी ने जीता था मगर आज उन्हीं के एक बड़े मंत्री ने निहायत ही बचकानी बात कर चूर-चूर करते हुए तोड़ दिया. बहरहाल मैंने नोटबंदी के दौरान पूर्व में कही बातों की आदत डाल ली थी अब आज इसे भी स्वीकार कर लिया कि, भइया नोटबंदी इसलिए हुई की सरकार को देह व्यापार बंद करना था.
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