Triple Talaq ban: कुछ भी हो, सीना ठोककर अब कोई तीन तलाक नहीं दे पा रहा
तीन तलाक बिल (Triple Talaq law) को आए हुए एक साल हो चुके हैं. कानून कुछ ऐसा है जिसे पीएम मोदी (PM Modi) और उनकी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है. कह सकते कि इस कानून के बाद अब शायद ही कोई मुस्लिम किसी स्त्री को तीन तलाक देने की गुस्ताखी कर पाए.
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मोदी सरकार (Modi Government) द्वारा किये गए सारे काम एक तरफ़ ट्रिपल तलाक बिल (Triple Talaq law) एक तरफ़. मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) के बीच व्याप्त ट्रिपल तलाक बिल के लिए जो कुछ भी मोदी सरकार ने किया है वो कई मायनों में ऐतिहासिक है. ध्यान रहे कि ट्रिपल तलाक कानून को संसद (Parliament) से पास हुए एक साल पूरा हो गया है. सत्ताधारी दल भाजपा (BJP) ने इसे 'मुस्लिम महिला अधिकार दिवस' के रूप में मनाया है. चाहे वो केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी हों या फिर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद मोदी सरकार सहित कई मंत्रियों ने इसे ऐतिहासिक दिन बताया है और पीएम मोदी की जमकर तारीफ की है. भाजपा के मंत्रियों का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण का श्रेय सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी को जाता है.
बात भाजपा और मोदी सरकार की हुई है तो बता दें कि केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने प्रधानमंत्री और अपनी पार्टी की शान में कसीदे पढ़ते हुए ये तक कह दिया है कि कि मोदी सरकार 'सियासी शोषण' नहीं बल्कि 'समावेशी सशक्तिकरण' के संकल्प के साथ काम करती है और तीन तलाक को खत्म करके मुस्लिम समाज की आधी आबादी को सम्मान, सुरक्षा और समानता दिलाने का काम किया है.
ध्यान रहे कि संसद में कानून पास होने से पहले तलाक के मद्देनजर मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय थी. शरिया कानून का हवाला देकर ज़रा ज़रा सी बात पर तलाक दे दिया जाता था. पूर्व में हम ऐसे तमाम मामले देख चुके हैं जिनमें उस परिस्थिति तक में तलाक दे दिया गया जब पति को खाने में नमक कम मिला या फिर पति की किसी नाजायज मांग पर पत्नी ने अपनी आवाज़ बुलंद की.
ऐसे तमाम कारण हैं जो बताते हैं कि तीन तलाक बिल पीएम मोदी की एक बड़ी उपलब्धि है
गौरतलब है कि कानून पास होने से पहले मुस्लिम वर्ग शरिया की दुहाई देता था और तब मुसलमानों के एक तबके द्वारा यहां तक कहा जाता था कि मुस्लिम सुमदाय अपनी धार्मिक मान्यताओं में किसी की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा. बात उस दौर की चल रही है तो हमारे लिए दारुल उलूम देवबंद और बरेली मरकज़ जैसे इदारों की बात करना भी बहुत ज़रूरी हो जाता है.
ये बात काबिल ए गौर है कि जिस वक्त सरकार ट्रिपल तलाक जैसी कुरीति पर लगाम कसने पर विचार कर रही थी उस वक़्त यही वो संस्थाएं थीं जिन्होंने मामले पर खूब हो हल्ला मचाया था और सड़क पर आकर मोदी सरकार की नीति का विरोध किया था मगर सरकार ने इनकी कोई परवाह नहीं की और एक ऐसा फैसला लिया जो तारीखी है.
क्या हुआ था एक साल पहले
आज से ठीक एक साल पहले जिस वक्त ये बिल लोकसभा में पास हुआ बिल के पक्ष में 245 जबकि विरोध में 11 वोट पड़े. बिल के पास होने के बाद कांग्रेस, एआईएडीएमके, डीएमके और समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने सदन से वॉक आउट कर दिया था. तब इन दलों के सदस्यों के सदन से वॉक आउट ने खुद ब खुद इस बात की अनुभूति करा दी थी कि कैसे इन दलों ने आज़ादी के 70 सालों बाद मुस्लिम समाज और इस समाज की महिलाओं को बेवकूफ बनाया और अपनी सियासत चमकाने के चलते इन्हें हाशिये पर रखा.
बताते चलें कि क्यों कि विधेयक में सजा के प्रावधान का जिक्र था इसलिए कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने बिल का कड़ा विरोध किया था. तब विपक्ष द्वारा मांग उठाई गई कि बिल को जॉइंट सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए. वहीं बिल पर सरकार का तर्क था कि यह किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना है.
स्त्री या पुरूष का मसला नहीं है तीन तलाक
तीन तलाक और इसके कानून पर गौर करें तो मिलता है कि तीन तलाक स्त्री या फिर पुरुष का मसला नहीं है. ये समस्या देश के एक आम मुसलमान की समस्या है. इसका शिकार मुस्लिम समाज मे कोई भी हो सकता है. किसी की भी मां, बहन, भाभी इत्यादि को तलाक दिया जा सकता है.
जब बिल आया तो हुई थी मोदी की आलोचना
जिस वक्त ये बिल आया उस वक़्त पीएम मोदी की खूब आलोचना हुई थी. कहा गया है कि इस बिल को पास करके पीएम मोदी ने मुस्लिम समाज के लोगों से बदला लिया है. इसके पीछे ये तर्क दिया गया था कि चूंकि मुस्लिम पुरुष भाजपा को वोट नहीं करते इसलिए इस पहल के जरिये भाजपा आम मुस्लिम महिलाओं को रिझाने और उनके वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है.
मुस्लिम परस्त पार्टियों के मुंह पर पड़े थप्पड़ की तरह है ये बिल
आज हमारे बीच कांग्रेस समेत ऐसे तमाम सियासी दलों की भरमार है जो अपने को मुस्लिम परस्त कहती हैं और कभी रोज़ा इफ्तार तो कभी कुछ और करके वोट बैंक की राजनीति की अंजाम देती हैं मगर जब बात ट्रिपल तलाक पर कुछ करने की आई तो इन्होंने देश के मुसलमानों को पीठ दिखा दी. सवाल ये है कि इस बिल के पास होने तक आखिर मुस्लिम दल क्या कर रहे थे? आखिर क्यों उन्होंने चुप्पी साध रखी थी? साफ है कि इस बिल के जरिये पीएम मोदी और उनकी सरकार ने न सिर्फ एक बड़ा रिस्क लिया बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाया. साफ बात है कि इस कानून ने तमाम मुस्लिम परस्त पार्टियों के मुंह पर करारा थप्पड़ जड़ने का काम किया.
बहरहाल अब इस कानून को आए एक साल हो गए हैं. साथ ही जिस तरह की सजा इस कानून में है उसने बड़े से बड़े तुर्रम खां की हवा टाइट कर दी है आ गया है और जिस तरह मुस्लिम समाज के लोग बड़े ही गर्व के साथअपने घर की महिलाओं को सीना ठोंक के तलाक दे दिया करते थे अब ये उनके लिए दूर की कौड़ी हो गया है. वाक़ई ये मोदी सरकार की एक बड़ी पहल है जिसके लिए मुस्लिम समाज की औरतें हमेशा ही पीएम मोदी की आभारी रहेंगी.
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