ट्रिपल तलाक पर ओवैसी का अड़ंगा, पूरी लोक सभा का कहना "तलाक, तलाक, तलाक!"
ट्रिपल तलाक पर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी का रुख हैरत में डालने वाला है. असदुद्दीन ओवैसी का मानना है कि ये बिल मुसलमानों विशेषकर महिलाओं के खिलाफ है.
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केंद्र सरकार का तीन तलाक को आपराधिक घोषित करने वाले विधेयक को लोकसभा में पास हो गया है और अब इस बिल को राज्य सभा में पेश होना है. इस बिल को जहां मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का समर्थन प्राप्त है तो वहीं इस बिल का AIMIM, आरजेडी, बीजेडी जैसे दल विरोध कर रहे हैं. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि बिल पास हुआ तो मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन होगा. उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून को लेकर मुस्लिमों से कोई चर्चा नहीं की गई. ओवैसी ने इस बिल में तीन संशोधन भी करने की बात कही थी, हालांकि उनके तीनों ही संशोधन को संसद में सदस्यों ने ख़ारिज कर दिया और यह बिल बिना किसी संसोधन के पास हो गया. एक संशोधन पर हुई वोटिंग में तो ओवैसी के पक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े. जबकि, इसके खिलाफ 241 वोट पड़े.
ट्रिपल तलाक पर ओवैसी का विरोध किसी को भी हैरत में डाल सकता है
हालांकि इस बिल को ओवैसी अभी भी महिलाओं के खिलाफ ही बता रहें हैं, अब यह बिल किस तरह मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ होगा यह तो असदुद्दीन ओवैसी ही बेहतर बता सकते हैं, मगर तीन तलाक़ को सही बताते समय ओवैसी उन महिलाओं के दर्द को जरूर भूल जाते हैं जो तीन तलाक़ के कारण बदतर जिंदगी जीने को मजबूर हैं. इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि तीन तलाक़ मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है और इसपर रोक निश्चित रूप से महिलाओं की स्थिति सुधारने में मददगार होगी.
ध्यान रहे कि ओवैसी के साथ कई मुस्लिम संघटनों को भी ऐसा लगता है कि यह उनके धर्म के खिलाफ है मगर सही मायनों में ऐसा कुछ है नहीं. सच्चाई तो यह है कि जब भी किसी सुधार कि शुरुआत होती तो शुरू में इसे विरोध के दौर से गुजरना ही होता है. कुछ ऐसा ही विरोध हिन्दू कोड बिल के पास होने के दौरान भी दिखा था. जब हिन्दू महासभा और आरएसएस ने इस बिल का विरोध किया था. उस समय इनका तर्क यह था कि बिल के प्रस्तावित प्रावधानों से हिन्दू धर्म की खूबसूरती जाती रहेगी.
कई मुस्लिम संगठनों ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है
दरअसल 50 के दशक में हिन्दू महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए जवाहर लाल नेहरू की तत्कालीन सरकार हिन्दू कोड बिल लेकर आयी थी. इसमें चार बिल की मदद से महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए महिलाओं के लिए संपत्ति में बेटों के सामान अधिकार, महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र को बढ़ाना और महिलाओं के लिए पुनः विवाह करने जैसे प्रावधान थे. इसका विरोध करने वाले इसे हिन्दू सभ्यता के खिलाफ बता रहे थे.
मगर आज इस बिल के 60 साल से अधिक हो जाने के बाद हम महसूस कर सकते है किस तरह उस दौर पास हुए बिल के कारण हिन्दू महिलाओं की स्थिति में आमूल चूक बदलाव हुए हैं. ऐसा ही बदलाव ट्रिपल तलाक़ का बिल भी लाने में सक्षम है. बस जरुरत है कि इस ऐतिहासिक पहल पर मुस्लिम संघटन समेत राजनैतिक पार्टियां सस्ती राजनीति करने से बचे. बेशक जिन मुद्दों पर चर्चा की गुंजाइश है उस पर चर्चा की जानी चाहिए, मगर केवल अपना राजनैतिक हित साधने के लिए इस मुद्दे पर राजनीति इस ऐतिहासिक कानून के राह में रोड़े अटका सकती है.
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