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Updated: 29 दिसम्बर, 2018 01:03 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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तीन तलाक बिल लोकसभा में पास हो गया है. बिल के पक्ष में 245 जबकि विरोध में 11 वोट पड़े. बिल के पास होने को लेकर लोकसभा में सियासी सरगर्मियां तेज रहीं और वोटिंग के दौरान कांग्रेस, एआईएडीएमके, डीएमके और समाजवादी पार्टी के सदस्य सदन से वॉक आउट कर गए. चूंकि विधेयक में सजा के प्रावधान का जिक्र है इसलिए कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने बिल का कड़ा विरोध किया. विपक्ष द्वारा मांग उठाई गई कि बिल को जॉइंट सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए. वहीं बिल पर सरकार का तर्क था कि यह किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाना है.

मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने के लिए पारित हुआ ये बिल, इसलिए भी दिलचस्प है. क्योंकि एक तरफ सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है, तो वहीं दूसरी तरफ आलोचकों के तर्क अलग हैं. मोदी विरोधियों की तरफ से लगातार ये दलील पेश की जा रही है कि सरकार मुस्लिम समाज को रोजगार दिलाने, उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा देने में असमर्थ है और इस तरह उनके निजी मसलों में दखलंदाजी करके अपनी कमियां छुपा रही है.

तीन तलाक, मुस्लिम, महिलाएं, मोदी सरकार  माना जा रहा है कि मोदी सरकार का ट्रिपल तलाक बिल आम मुस्लिम महिला को मजबूती देगा

हो सकता है कि आलोचकों का ये कहना कि आम मुस्लिम आज भी विकास की मुख्य धारा से कोसों दूर हैं बिल्कुल सही हो. मगर जिस तरह मुस्लिम समाज में ये कुरीति अपनी जड़ें जमा चुकी है इसे नजरंदाज हरगिज नहीं किया जा सकता. मुसलमानों में तीन तलाक की समस्या भी उतनी ही गंभीर है जितनी की शिक्षा, रोजगार या स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा.

विषय शीशे की तरह साफ है. तीन तलाक 'ही' या 'शी' का मसला नहीं है. ये एक आम मुसलमान की समस्या है जिसका शिकार उसकी मां, बहन, बीवी तक कोई भी हो सकता है. इसका दंश कितना बुरा होता है इसे केवल और केवल वही समझ सकता है जिसपर ये बीती है. आज मुस्लिम समाज में हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो इस समस्या से दो चार हुई हैं और अब वाकई उन्हें इस बिल के जरिये उम्मीद की एक आखिरी किरण दिखी है.

बात आगे बढ़ाने से पहले हम आलोचकों की तरफ से पेश किये गए एक अहम तर्क पर प्रकाश डालना चाहेंगे. कहा जा रहा है कि एक सोची समझी मोडस ऑपरेंडी के तहत इस बिल को लोकसभा में पेश किया गया है. आलोचकों का मानना है कि, चूंकि मुस्लिम पुरुष भाजपा को वोट नहीं करते इसलिए इस पहल के जरिये भाजपा आम मुस्लिम महिलाओं को रिझाने और उनके वोट हासिल करने की कोशिश कर रही है.

लोग आज भले ही इस बिल की लाख आलोचना करें. मगर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि भले ही मुस्लिम समाज भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दुश्मन समझता हो. मगर देखा जाए तो पीएम मोदी ही वो व्यक्ति हैं, जो मुसलमानों के दुश्मन की छवि रखने के बावजूद उनके विकास और कल्याण की दिशा में प्रयत्नशील हैं और लगातार काम कर रहे हैं.

सवाल ये है कि जो पार्टियां अपने को इस देश के मुसलमानों का हिमायती कहती हैं. कभी रोजा इफ्तार तो कभी कुछ, मुसलमानों के नाम पर लगातार वोट बैंक की राजनीति करती हैं आखिर उन्होंने अब तक इस अहम मसले पर क्यों चुप्पी साधी हुई थी? क्यों नहीं आखिर उन्होंने मुस्लिम समाज और मुस्लिम समाज में भी व्याप्त इस कुरीति को दूर करने की दिशा में काम किया? आज जैसे मुसलमानों के हालात हैं और जिस तरह उन्हें नाम पर राजनीति हो रही है, कहना गलत नहीं है कि ये बिल तो कब का आ जाना चाहिए था.

भले ही ये कहा जाए कि भाजपा इस बिल को लाकर अपनी रियासी रोटी सेंक रही है. मगर जो उसने आम मुसलमान के साथ किया उसके लिए वो बधाई की पात्र है. तीन तलाक बिल पर जैसी स्थिति मुसलमानों की है कहा जा सकता है कि उसके दोस्त तो खूब रहे मगर समय समय पर उन्होंने इस देश के आम मुसलमाओं को छलने और ठगने के अलावा और कोई काम नहीं किया और उस अहम मुद्दे पर काम उनका एक ऐसा दुश्मन आया जो कई मोर्चों पर अपने आलोचकों से लोहा ले रहा है.

बेशक ये दलील दी जाए कि, इस देश के मुसलमानों के पास चुनौतियों का अंबार है. और सरकार को पहले उसे देखना समझना चाहिए. लेकिन ये जो समस्या है उसे नाकारा नहीं जा सकता. इस बिल पर जिस तरह का सरकार का रवैया रहा उसने कम से कम उन महिलाओं को एक उम्मीद दी है जो अब तक हाशिये पर रहकर अपना जीवन जी रही थीं.

इस बिल पर राज्यसभा में क्या सियासी ड्रामा रचा जाता है उसका जवाब हमें वक़्त देगा. मगर जो वर्तमान है वो ये साफ तौर पर कह रहा है कि सारी आलोचना और विरोध को दरकिनार करते हुए मोदी सरकार ने इस देश की आम मुस्लिम महिला को एक ऐसा हथियार दे दिया है जो उसे सशक्त करने की दिशा में वज्र से कम नहीं हैं.  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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