तो इसलिए त्रिपुरा के CM माणिक सरकार, इन दिनों इतने बेचैन नजर आ रहे हैं!
त्रिपुरा में चुनाव नजदीक हैं ऐसे में अगर त्रिपुरा की राजनीति पर एक नजर डालें तो मिलता है कि वहां चुनाव को लेकर जो व्यक्ति सबसे ज्यादा परेशान है वो खुद मुख्यमंत्री माणिक सरकार हैं जिनकी मुसीबतें भाजपा लगातार बढ़ाती चली जा रही है.
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त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव 2018 में होना है. त्रिपुरा परम्परागत लेफ्ट का गढ़ रहा है. पहली बार बीजेपी को लग रहा है कि वो त्रिपुरा में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. लेफ्ट के गढ़ पर कब्जा ज़माने के लिए बीजेपी बहुत ही आतुर है. बीजेपी ने केरल में बहुत कोशिश की थी लेकिन नाकामी हासिल हुई थी. त्रिपुरा के रूप में उसे एक उम्मीद नजर आ रही है. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने खुद स्वीकारा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में केवल लेफ्ट और बीजेपी के बीच ही मुक़ाबला होगा. उन्होंने साथ ही ये भी आरोप लगाया कि बीजेपी अलगाववादी तत्वों से हाथ मिला रही है और धार्मिक एवं जातीय आधार पर राज्य के लोगों को बांटने की कोशिश कर रही है. मतलब साफ हैं लेफ्ट के लिए अपने ही गढ़ में खतरे बहुत हैं. उसे डर लग रहा है कि कहीं बीजेपी आगामी चुनाव में उसे हरा न दे.
त्रिपुरा में चुनाव नजदीक है और माणिक सरकार को देखकर लग रहा है कि भाजपा ने उनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं
पिछले 19 साल से लगातार सीपीएम के माणिक सरकार त्रिपुरा में राज्य चला रहे हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में कुल 60 सीटों में से सीपीएम को 49 सीट मिली थी. 1 सीट सीपीआई को मिली थी और 10 सीट कांग्रेस को मिली थी. बीजेपी ने यहां पर 50 सीटों पर चुनाव लड़ा था. खाता खोलना तो दूर की बात, 49 सीटों पर तो उसकी जमानत तक जब्त हो गयी थी.
लेफ्ट त्रिपुरा में कई वर्षो से राज कर रही हैं और इस बार के चुनाव में उसे सत्ता-विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. त्रिपुरा में करीब 84 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है. कई सालों से लेफ्ट को कांग्रेस चुनौती देती आयी है लेकिन अब उसका मुकाबला कांग्रेस की बजाय बीजेपी से है. कांग्रेस की पॉपुलैरिटी राज्य में काफी गिरी है. कांग्रेस कमजोर इसलिए भी हुई है क्योंकि उसके 6 विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और कुछ महीने पहले वो सभी बीजेपी में चले गए हैं. वर्तमान में त्रिपुरा में 51 सीटें लेफ्ट के पास हैं. 3 सीट कांग्रेस और 6 सीट बीजेपी के पास हैं. जहां बीजेपी के पास एक भी सीट नहीं थी वहां पर अब उसके 6 विधायक हैं.
असम में जीत के बाद बीजेपी को लगा कि त्रिपुरा में भी वो जीत का परचम लहरा सकती हैं और उसके बाद से ही बीजेपी के टॉप लीडर वहां लगातार अपना दौरा कर रहे हैं. वहां ये नेता कई रैलियों को सम्बोधित कर रहे हैं और जनता को अपने पक्ष में वोट करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने त्रिपुरा में रैली करके पार्टी कार्यकर्ताओं में जान फूंकने का काम किया है. उन्होंने तो आदिवासी के घर में खाना भी खाया है ताकि आने वाले चुनाव में उन्हें साधा जा सके.
त्रिपुरा की एक-तिहाई जनसंख्या आदिवासी समुदाय से आती है और ये करीब 20 सीटों में किसी उम्मीदवार को जिताने और हराने का माद्दा रखती हैं. बीजेपी इन्ही आदिवासी क्षेत्रो में रैलियां आयोजित करके माणिक सरकार की खामियों को उजागर कर रही है. साथ ही साथ शहरी क्षेत्रो में भी आक्रामक प्रचार करके लेफ्ट को घेरने का प्रयास कर रही है.
मतलब साफ है कि माणिक सरकार को बीजेपी से डर लग रहा है. उन्हें डर सता रहा है कि लेफ्ट का गढ़ कहीं 2018 में मिट न जाये. हाल ही में उन्होंने अगरतला में हिंदू संप्रदाय के अनुकूल ठाकुर के समर्थकों के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था जिसको लेकर काफी विवाद पैदा हुआ था कि वामपंथी विचारधारा का मुख्यमंत्री ऐसे कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ. उन्होंने चाहे जिस मकसद से उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया हो बीजेपी को एक शानदार मौका दे दियाउनकी खिल्ली उड़ाने के लिए.
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